Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 230
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
39
व꣣यं꣡ घा꣢ ते꣣ अ꣡पि꣢ स्मसि स्तो꣣ता꣡र꣢ इन्द्र गिर्वणः । त्वं꣡ नो꣢ जिन्व सोमपाः ॥२३०॥
स्वर सहित पद पाठव꣣य꣢म् । घ꣣ । ते । अ꣡पि꣢꣯ । स्म꣣सि । स्तोता꣡रः꣢ । इ꣣न्द्र । गिर्वणः । गिः । वनः । त्व꣢म् । नः꣣ । जिन्व । सोमपाः । सोम । पाः ॥२३०॥
स्वर रहित मन्त्र
वयं घा ते अपि स्मसि स्तोतार इन्द्र गिर्वणः । त्वं नो जिन्व सोमपाः ॥२३०॥
स्वर रहित पद पाठ
वयम् । घ । ते । अपि । स्मसि । स्तोतारः । इन्द्र । गिर्वणः । गिः । वनः । त्वम् । नः । जिन्व । सोमपाः । सोम । पाः ॥२३०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 230
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 12;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 12;
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में परमात्मा के स्तुति-विषय का वर्णन है।
पदार्थ
हे (गिर्वणः) वेदवाणियों से भजनीय ! (इन्द्र) परमैश्वर्यशाली परमात्मन् ! (वयम्) हम (स्तोतारः) स्तोता लोग (घ) निश्चय ही (ते अपि) तेरे ही (स्मसि) हैं। हे (सोमपाः) हमारे मैत्री-रस का पान करनेवाले ! (त्वम्) तू (नः) हमें (जिन्व) तृप्त कर ॥८॥
भावार्थ
जो लोग परमात्मा के साथ सम्बन्ध जोड़ते हैं, परमात्मा भी उन्हें सदा सुखी करता है ॥८॥
विशेष
ऋषिः—मेधातिथिः (मेधा से अतन—गमन करने वाला जन)॥<br>
विषय
इन्द्र व उपेन्द्र शब्द
पदार्थ
प्रभु इन्द्र हैं तो जीव उपेन्द्र है। उपेन्द्र इन्द्र से कहता है कि (वयम्)=[वेञ् तन्तुसन्ताने] कर्मतन्तु का विस्तार करनेवाले हम (घ) = निश्चय से (ते) = तेरे (अपि) = ही (स्मसि) = हैं, अर्थात् कर्मों को करते हुए हम तेरा भी स्मरण करते हैं। तेरे स्मरण के साथ अपने कार्यों को करते हुए हम तेरे (स्तोतारः) = स्तुति करनेवाले हैं। हे (इन्द्र) = ज्ञानरूप परमैश्वर्यवाले प्रभो! आप (गिर्वणः) = वेदवाणियों से स्तवन करने योग्य हैं। इस प्रकार जीव प्रभु से संकेतरूप में कहता है कि मैंने अपने जीवन में यथासम्भव कर्मकाण्ड, उपासनाकाण्ड व ज्ञानकाण्ड को ही स्थान दिया है।
अब प्रभु जीव से कहते हैं कि (त्वम्) = तू (नः) = हमें (सोमपा:) = सोम का पान करनेवाला बनकर (जिन्व) = प्रीणित कर। जो सुचरितों से पिता को प्रीणित करे पुत्र तो वही है, अतः यहाँ भी हम अपने पिता उस प्रभु को अपने उत्तम कार्यों से ही प्रसन्न कर सकते हैं। यहाँ उन सब उत्तम कर्मों का संकेत 'सोमपाः' शब्द से हुआ है। ये कार्य क्रमशः १. सोम=Semen= Vitality की रक्षा करना, २. सौम्यता का धारण करना, ३. और मस्तिष्क को सोम-ज्ञान से परिपूर्ण करना है। सोम शब्द के तीनों अर्थ हैं—१. वीर्य २. सौम्यता और ३. ज्ञान । प्राणमयकोश में वीर्य का, मनोमयकोश में सौम्यता का और विज्ञानमयकोश में ज्ञान का पान करके प्रभु को प्रीणित करते हुए जीव सचमुच उपेन्द्र बन जाता है।
भावार्थ
हम सोमपान द्वारा प्रभु को प्रीणित करें।
विषय
परमेश्वर की स्तुति
भावार्थ
भा० = हे ( इन्द्र ) = आत्मन् ! हे परमात्मन् ! हे ( गिर्वणः ) = एकमात्र वाणी द्वारा स्तुति करने योग्य ! ( वयं ) = हम इन्द्रियगण और हम साधकगण ( अपि ) = भी ( ते ह ) = तेरे ही ( स्तोतारः स्म ) = स्तुति करने वाले हैं । ( त्वं ) = तु ( सोमपाः ) = सोम को पान करने हारा होकर ( नः ) = हमें भी ( जिन्व ) = तृप्त कर, हम भी बलवान कर । जो सम्बन्ध प्रजा का राजा से और साधकों का प्रभु से है वही इन्द्रियों का आत्मा से है ।
टिप्पणी
२३० – 'अपिष्मसि' इति ऋ० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - मेधातिथिः।
देवता - इन्द्रः।
छन्दः - गायत्री।
स्वरः - षड्जः।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मनः स्तुतिविषयमाह।
पदार्थः
हे (गिर्वणः२) गीर्भिः वेदवाग्भिः वननीय संभजनीय (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् ! वयम् (स्तोतारः) स्तुतिकर्त्तारः (घ) नूनम्। संहितायां ‘ऋचि तु नु घ०’ अ० ६।३।१३६ इति दीर्घः। (ते अपि) तवैव (स्मसि) स्मः भवामः। ‘इदन्तो मसि’ अ० ७।१।४६ इति मस इदन्तत्वम्। हे (सोमपाः) अस्माकं मैत्रीरसस्य पातः ! (त्वम् नः) अस्मान् (जिन्व) प्रीणय। जिवि प्रीणनार्थे भ्वादिः ॥८॥
भावार्थः
ये परमात्मना सम्बन्धं योजयन्ति परमात्मापि तान् सदा सुखयति ॥८॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ८।३२।७ ‘स्मसि’ इत्यत्र ‘ष्मसि’ इति पाठः। २. द्रष्टव्यम्—१६५ संख्यकस्य मन्त्रस्य व्याख्यानम्।
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, Lover of the song, we are the singers of Thy praise, O Master of knowledge, gratify us!
Meaning
Indra, lord celebrated in song, your devoted celebrants as we are, O lord protector and promoter of the beauty, honour and excellence of life, pray give us the food and fulfilment of life we love and aspire for. (Rg. 8-32-7)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (वयम्) અમે (घ) નિશ્ચય (ते) તારા (अपि) પણ (स्मसि) તારા સ્મરણ સાથે (स्तोतारः) સ્તુતિ કરનારા છીએ. (इन्द्र) હે પરમૈશ્વર્યવાન પરમાત્મન્ ! તું (गिर्वणः) વેદવાણીઓથી સ્તુતિ કરવા યોગ્ય છે. (त्वम्) તું (नः) અમને (सोमपाः) ઉપાસનારસનું પાન કરાવનાર બનાવીને (जिन्व) તૃપ્ત કર. (૮)
भावार्थ
ભાવાર્થ : હે પરમેશ્વર્યવાન, સ્તુતિ કરવા યોગ્ય પરમાત્મન્ ! અમને તારી સ્તુતિરૂપ ઉપાસનારસનું પાન કરાવનાર બનાવીને તૃપ્ત કર. (૮)
उर्दू (1)
Mazmoon
ہم آپ کے ہی ہیں!
Lafzi Maana
(گرونہ اِندر) وید بانی سے گائے گئے اِندر پرمیشور! (ویم گھ تے سمسی) یقیناً ہم آپ کے ہی ہیں (اپی ستوتارہ) آپ کے ہی ستوتر گاتے رہتے ہیں (سوم پاتوّم جنو) سوم امرت آنند کا پان کئے ہوئے جیسے آپ ہیں، ہمیں بھی اپنے اِس آنند سے آنندت کیجئے۔
Tashree
گِرو نہ ہیں آپ میری بانیوں کو بھی سنو، آپ کے ہی بنے رہیں ایسی مہربانی کرو۔
मराठी (2)
भावार्थ
जे लोक परमात्म्याबरोबर संबंध जोडतात, परमात्माही त्यांना सदैव सुखी करतो ॥८॥
शब्दार्थ
हे (गिर्वणः) वेदवाणीद्वारे भजनीय (इन्द्र) परमैश्वर्यशाली परमेश्वर (वयम्) आम्ही (स्तोतारः) तुमची स्तुती, गुणगान करणारे लोक (घ) निश्चयाने (ते अपि) तुमचेच (स्मसि) आहोत. हे (सोमपाः) आमच्या मैत्री रसाचे पान करणारे (त्वम्) तुम्ही (नः) आम्हाला (जिन्व) तृप्त करा.।।८।।
भावार्थ
जे लोक परमेश्वराशी सबंध ठेवतात, परमेश्वरदेखील त्यांना सदा सुखी ठेवतो.।।८
तमिल (1)
Word Meaning
தோத்திரங்களை விரும்பும் இந்திரனே! உன் துதியை நாங்கள் துதிசெய்கிறோம்.
சோமபான இந்திரனே எங்களைத் துரிதமாக்கவும்.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal