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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 288
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
30
य꣣दा꣢ क꣣दा꣡ च꣢ मी꣣ढु꣡षे꣢ स्तो꣣ता꣡ ज꣢रेत꣣ म꣡र्त्यः꣢ । आ꣡दिद्व꣢꣯न्देत꣣ व꣡रु꣢णं वि꣣पा꣢ गि꣣रा꣢ ध꣣र्त्ता꣢रं꣣ वि꣡व्र꣢तानाम् ॥२८८
स्वर सहित पद पाठय꣣दा꣢ । क꣣दा꣢ । च꣣ । मीढु꣡षे꣢ । स्तो꣣ता । ज꣣रेत । म꣡र्त्यः꣢꣯ । आत् । इत् । व꣣न्देत । व꣡रु꣢꣯णम् । वि꣣पा꣢ । गि꣣रा꣢ । ध꣣र्त्ता꣡र꣢म् । वि꣡व्र꣢꣯तानाम् । वि । व्र꣣तानाम् ॥२८८॥
स्वर रहित मन्त्र
यदा कदा च मीढुषे स्तोता जरेत मर्त्यः । आदिद्वन्देत वरुणं विपा गिरा धर्त्तारं विव्रतानाम् ॥२८८
स्वर रहित पद पाठ
यदा । कदा । च । मीढुषे । स्तोता । जरेत । मर्त्यः । आत् । इत् । वन्देत । वरुणम् । विपा । गिरा । धर्त्तारम् । विव्रतानाम् । वि । व्रतानाम् ॥२८८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 288
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 6;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 6;
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में वरुण देवता है। उसकी उपासना के लिए प्रेरणा की गयी है।
पदार्थ
(यदा कदा च) जब कभी (स्तोता) स्तोता (मर्त्यः) मनुष्य (मीढुषे) बादल के समान ऐश्वर्यवर्षक परमैश्वर्यशाली इन्द्र परमात्मा को अनुकूल करने के लिए (जरेत) उसकी अर्चना करे, (आत् इत्) उसके अनन्तर ही वह (विव्रतानाम्) व्रत-रहितों को (धर्तारम्) कर्म-पाशों से जकड़नेवाले, (वरुणम्) कर्मानुसार फल देकर पापों से निवारण करनेवाले वरुण परमात्मा की भी (विपा) मेधायुक्त (गिरा) वाणी से (वन्देत) वन्दना कर लिया करे ॥६॥
भावार्थ
इन्द्र और वरुण दोनों ही परमेश्वर के नाम हैं। इन्द्र नाम से उसकी परमैश्वर्यवत्ता तथा ऐश्वर्यवर्षकता सूचित होती है और वरुण नाम से उसका पाशधारी होना तथा कर्म-पाशों से बाँधकर और दण्ड देकर पापनिवारक होना सूचित होता है। परमेश्वर के इन दोनों ही स्वरूपों के चिन्तन करने, स्मरण करने तथा सदा अपने सामने धारण रखने से मनुष्य अपने जीवन में सन्मार्गगामी होकर सफलता प्राप्त कर सकता है। ऐश्वर्य पाकर मनुष्य कुमार्ग में प्रवृत्त न हो जाए, इसके लिए परमेश्वर के वरुण स्वरूप को भी ध्यान में रखना आवश्यक है ॥६॥
पदार्थ
(मर्त्यः) मरणधर्मी जन्ममरण में पड़ा संसारी मनुष्य (स्तोता) परमात्मा का स्तुतिकर्ता हुआ—स्तुतिकर्ता बनकर (यदा कदा) जब कभी भी सुख में हो या दुःख में हो सम्पत्ति में या विपत्ति में (मीढुषे जरेत) सुखशान्तिवर्षक परमात्मा की स्तुति करें “जरते अर्चतिकर्मा” [निघं॰ ३.१४] (आत्-इत्) अनन्तर ही साथ ही (विव्रतानां धर्तारम्) विविधकर्मों—सृष्टि उत्पत्ति आदि तथा जीवों के कर्मफल विधान मोक्षानन्द प्रदान कर्मों के धर्ता—सम्पादन कर्ता—(वरुणम्) वरने योग्य वरने वाले या दुःखाज्ञान निवारक परमात्मा को (गिरा विपा) गरण भजन गुणगान करने वाली वाणी “विपा वाङ्नाम” [निघं॰ १.११] से (वन्देत) वन्दन करें—अभिनन्दन करें।
भावार्थ
सांसारिक बन्धन में पड़ा जन्ममरण में आने वाला मनुष्य जब कभी सुख में हो या दुःख में हो या सम्पत्ति में हो या विपत्ति में हो सांसारिक सुख तथा मोक्षानन्द की वृष्टि करने वाले परमात्मा की स्तुति किया करें सुखसम्पत्ति में गर्वरहित रहने का शान्तिबल मिलेगा और दुःख दारिद्र्य में सन्तोष का सहारा मिलेगा साथ ही स्तुति के उस नाना प्रकार सृष्टि रचनादि तथा जीवों के कर्मफल मोक्षानन्द प्रदान आदिकर्मा के विधाता का स्पष्ट कथन करने वाला वाणी से वन्दन गुणगान भजन भी उसका करना चाहिए, एकान्त में स्तुति स्तवन और सभा सम्मेलन में भी गुणगान भजन करना चाहिए॥६॥
विशेष
ऋषिः—वामदेवः (वननीय—उपासनीय इष्टदेव परमात्मा जिसका है ऐसा अनन्य उपासक)॥ देवताः—वरुणरूप (वरने योग्य वरने वाला ऐश्वर्यवान् परमात्मा)॥<br>
विषय
खाली समयों को नामस्मरण से भर दें
पदार्थ
(स्तोता मर्त्यः) = स्तवन करनेवाला मनुष्य (यदा कदा च)= जब भी, अर्थात् जिस समय भी वह अवसर प्राप्त हो तो (मीढुषे) = सब सुखों की वर्षा करनेवाले उस प्रभु की (जरेत) = स्तुति करे | खाली समय का इससे सुन्दर उपयोग और क्या हो सकता है? प्रभुस्मरण के लिए किसी बाह्य उपकरण की आवश्यकता नहीं। उसके लिए तो वाणी के व्यापार की भी आवश्यकता नहीं। यदि उस समय को प्रभु नामस्मरण में बिताएँगे तो हमारा मन छोटी-छोटी व्यर्थ की बातों में न उलझेगा, उसमें तुच्छ भावनाएँ न पनपेंगी।
(आत् इत्)-और अब निश्चय से (वरुणम्) = उस श्रेष्ठ बनानेवाले प्रभु की (विपा) = बुद्धिमत्ता से यह स्तोता (वन्देत) = वन्दना करे । पुस्तकों से प्राप्त 'ज्ञान' कहलाता है, यही ज्ञान प्राकृतिक संसार को देखने के बाद बुद्धिमत्ता [wisdom] में परिवर्तित हो जाता है। उसी समय यह मनुष्य प्रभु की सच्ची वन्दना कर पाता है। 'ज्ञानी' भक्त तो प्रभु को आत्मतुल्य प्रिय है। ज्ञानी व्यक्ति कण-कण में प्रभु की महिमा को देखता हैं।
इस प्रकार भक्ति करनेवालों का प्रभु (गिरा) = वेदवाणी के द्वारा (धर्तारम्) = धारण करनेवाले हैं। परन्तु कब? (विव्रतानाम्) = जबकि वे विविध व्रतों का धारण करते हैं। हम वेदवाणी तो पढ़ें पर व्रतों का धारण न करें तो प्रभु हमारा धारण न करेंगे।
एवं प्रस्तुत मन्त्र में तीन उपदेश हैं १. जो भी खाली समय मिले उसमें प्रभु का स्मरण करो, २. प्रभु के ज्ञानी भक्त बनें, ३. (मन्त्र श्रुत्यं चरामसि) = जो वेद में सुनें उसे करें जिससे प्रभु के धारण के पात्र बनें।
भावार्थ
उल्लिखित तीन बातें हमारे जीवनों को वामदेव सुन्दर दिव्यगुणोंवाला बनाएँ तथा हमारी इन्द्रियाँ उत्तम होकर हम 'गौतम' बनें।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = ( मीढुषे ) = सकल संसार पर सुखों बलों, और ज्ञानों के वर्षक इश्वर के लिये ( मर्त्यः ) = मनुष्य ( स्तोता ) = स्तुतिकर्त्ता ( यदा कदा च ) = जब कभी ( जरेत ) = रतुति करे ( आत् इत् ) = तब ही ( विव्रतानाम् धर्तारं ) = नाना प्रकार के कर्मों के धारण करने हारे विरुद्धाचारियों को रोकने वाले ( वरुणं ) = पाप निवारक सर्वश्रेष्ठ ईश्वर को ( विपा गिरा ) = विशेष रूप से पालन करने हारी वेदवाणी से ही ( वन्देत ) = स्तुति करे ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - वामदेव:।
छन्दः - बृहती।
स्वरः - मध्यमः।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ वरुणो देवता। तमुपासितुं प्रेरयति।
पदार्थः
(यदा कदा च) यस्मिन् कस्मिन्नपि काले (स्तोता) स्तुतिकर्ता (मर्त्यः) मनुष्यः (मीढुषे) पर्जन्यवत् ऐश्वर्यवर्षकाय इन्द्राय परमैश्वर्यवते परमात्मने, तमनुकूलयितुमित्यर्थः (जरेत) अर्चनां कुर्यात्। जरते अर्चतिकर्मा। निघं० ३।१४। (आत् इत्) तदनन्तरमेव सः (विव्रतानाम्२) विगता व्रतेभ्य इति विव्रतास्तेषाम् व्रतहीनानाम्। तत्पुरुषे अव्ययपूर्वपदप्रकृतिस्वरः। (धर्तारम्) कर्मपाशैः निग्रहीतारम् (वरुणम्) कर्मानुसारं दण्डयित्वा पापेभ्यो निवारकं परमात्मानम् अपि (विपा२) मेधावत्या। विप इति मेधाविनाम। निघं० ३।१५। (गिरा) वाचा (वन्देत) पूजयेत् ॥६॥
भावार्थः
इन्द्रो वरुणश्चोभे अपि परमेश्वरस्य नाम्नी स्तः। इन्द्रनाम्ना तस्य परमैश्वर्यवत्त्वमैश्वर्यवर्षकत्वं च सूच्यते, वरुणनाम्ना तस्य पाशित्वं कर्मपाशैर्बद्ध्वा दण्डयित्वा पापनिवारकत्वं च सूच्यते। परमेश्वरस्योभयोरपि स्वरूपयोश्चिन्तनेन, स्मरणेन, सदा स्वसम्मुखं धारणेन च मनुष्यो जीवने सन्मार्गगामी भूत्वा साफल्यमधिगन्तुमर्हति। ऐश्वर्यं प्राप्य जनः कुमार्गे प्रवृत्तो न भवेदित्येतदर्थं परमेश्वरस्य वरुणस्वरूपस्यापि ध्यानमावश्यकम् ॥६॥
टिप्पणीः
१. “वि शब्दः ‘छन्दसि परेऽपि’ पा० १।४।८१ इत्येवं परः प्रयुक्तः पूर्वो द्रष्टव्यः। विविधं धारयितारमित्यर्थः। केषाम् ? व्रतानां कर्मणाम्”। इति विवरणकृद्व्याख्यानं तु चिन्त्यं पदपाठे ‘विव्रतानाम्’ इति समस्तपाठात्। धर्तारं धारयितारं विव्रतानां विविधयज्ञादिकर्मणां जनानाम्—इति भ०। विव्रतानां विविधानां कर्मणां धर्तारं धारकम्—इति सा०। २. विपा गिरा विविधमिन्द्रगुणान् प्रति प्राप्तया गिरा। इन्द्रगुणप्रकाशिकया गिरेत्यर्थः—इति वि०। वेपयन्त्या कम्पयन्त्या दुःखानि, गिरा स्तुत्या—इति भ०। विशेषेण रक्षिकया गिरा स्तुत्या—इति सा०।
इंग्लिश (2)
Meaning
Whenever a mortal worshipper will sing the praise of God, the Giver of knowledge and happiness, let him with Vedic song laud God, Who subdues the ignoble, and is the Banisher of sins!
Meaning
Whenever a mortal celebrant would appreciate, praise or exalt the rich, generous and the magnanimous, let him with free and vibrant voice appreciate, exalt and worship Varuna, universal supporter and sustainer of the people and powers of discipline, resolution and graciousness of generosity.
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (मर्त्यः) મરણ ધર્મી જન્મ-મરણમાં પડેલો સંસારી મનુષ્ય (स्तोता) પરમાત્માનો સ્તુતિકર્તા બનીને (यदा कदा) જ્યારે ક્યારેક સુખમાં હોય અથવા દુઃખમાં હોય સંપત્તિમાં હોય કે વિપત્તિમાં હોય (मीढुषे जरेत) સુખ-શાન્તિ વર્ષક પરમાત્માની સ્તુતિ કરે (आत् इत्) અનન્તર જ-સાથે જ (विवृत्तानां धर्तारम्) વિવિધ કર્મો સૃષ્ટિ ઉત્પત્તિ આદિ તથા જીવોના કર્મફળ વિધાન મોક્ષાનંદ પ્રદાન કર્મોના ધર્તા-સંપાદન કર્તા, (वरुणम्) વરણ કરવા યોગ્ય અથવા દુઃખ-અજ્ઞાન નિવારક પરમાત્માનું (गिरा विपा) વરણ, ભજન, ગુણગાન કરનારી વાણીથી (वन्देत) વંદન કરે-અભિનંદન કરે. (૬)
भावार्थ
ભાવાર્થ : જન્મ-મરણના બંધનમાં પડેલ, જન્મમરણમાં આવનાર મનુષ્ય જ્યારે ક્યારેક સુખમાં અથવા દુઃખમાં હોય, અથવા સંપત્તિ કે વિપત્તિમાં હોય, સાંસારિક સુખ તથા મોક્ષાનંદની વૃષ્ટિ કરનાર પરમાત્માની સ્તુતિ કર્યા કરે. સુખ-સંપત્તિમાં ગર્વરહિત રહેવાનું શાન્તિબળ પ્રાપ્ત થશે અને દુઃખ દરિદ્રતા સંતોષનો સહારો મળશે સાથે સ્તુતિના તે અનેક પ્રકાર સૃષ્ટિ રચનાદિ તથા જીવોના કર્મફળ મોક્ષાનંદ પ્રદાન આદિના વિધાતાનું સ્પષ્ટ કથન કરનાર વાણીથી વંદન, ગુણગાન, ભજન પણ કરવું જોઈએ, એકાન્તમાં સ્તુતિ-સ્તવન અને સભા-સંમેલનમાં પણ ગુણગાન અને ભજન કરવા જોઈએ. (૬)
उर्दू (1)
Mazmoon
دُعائے خدا بھی عمل کے ساتھ!
Lafzi Maana
(ستوتا) اِیشور کی سُتتی کرنے والا (مرتیہ) منش (یداکداچہ میڑھُشے جریت) جیسے ہی وقت ملے بھگوان کی عبادت (بھگتی) کیا کرے، (آت ورُونم وِپاگراوندیت) اور بعد ازان بُرائیوں کو نکالنے والے اِیشور کی بانی اور بُدھی کے علاوہ اپنے کرموں سے بھی اُس کا پُوجن بالضرور کیا کرے یعنی وندنا یا حمد و ثنا کو اپنے عمل میں لائے۔ جو پرمیشور کہ (وِورتانام دھرتارم) اپنے اپنے راستوں پر چلنے والے سُورج، چاند وغیرہ گرہوں کو دھارن کرنے والا ہے۔
Tashree
جب جب ملے موقع ہمیں بھگوان کو دھیایا کریں، بانی بُدھی اور عمل سے اُس کے گُن گایا کریں۔
मराठी (2)
भावार्थ
इंद्र व वरुण दोन्ही परमेश्वराची नावे आहेत. इंद्र नावाने त्याची परमैश्वर्यवत्ता व ऐश्वर्यवर्षकता सूचित होते व वरुण नावाने त्याचे पाशधारी होणे व कर्मपाशात बांधून व दंड देऊन पापनिवारक होणे, हे सूचित होते. परमेश्वराच्या या दोन्ही स्वरूपांचे चिंतन करण्याने, स्मरण करण्याने व सदैव आपल्यासमोर धारण करण्याने मनुष्य आपल्या जीवनात सन्मार्गगामी बनून सफलता प्राप्त करू शकतो. ऐश्वर्य प्राप्त करून मनुष्य कुमार्गात प्रवृत्त होता कामा नये. त्यासाठी परमेश्वराच्या वरुणस्वरूपालाही लक्षात ठेवणे आवश्यक आहे. ॥६॥
विषय
वरूण देवता / त्याच्या उपासनेकरिता प्रेरणा केली आहे -
शब्दार्थ
(यदा कदा च) जेव्हा केव्हा (स्तोता) स्तोता (मर्त्यः) माणूस (मीढुषे) मेघाप्रमाणे ऐश्वर्याची वृष्टी करणाऱ्या परमैश्वर्यशाली परमेश्वराला अनुकूल करून घेण्यासाठी (जरेत) त्याची अर्चना करील (आत इत्) त्यानंतर त्याने (स्तोत्याने) (विव्रतानाम्) व्रत- रहित लोकांना (धर्तारम्) कर्म- पाशाने बांधून टाकणाऱ्या (वरुणम्) कर्माप्रमाणे फळ देऊन पापापासून वाचविणाऱ्या वरुण परमेश्वराची देखील (विपा) मेधायुक्त (गिरा) वाणीने (वन्देत) वंदना अवश्य करावी. ।। ६।।
भावार्थ
इंद्र व वरुण दोन्ही परमेश्वराचीच नावे आहेत. इंद्र नावाने त्याचे परमैश्वर्यत्व आणि ऐश्वर्य वर्षकत्व व्यक्त होत आहे, तर वरुण नावाने तो पाशधारी आहे. कर्म-पाशाने बांधून जिवाला दंड देऊन तो पाप निवारण करतो, हा अर्थही सूचित होत आहे. परमेश्वराच्या या दोन्ही स्वरूपांचे चिंतन, स्मरण केल्यामुळे आणि सदा त्याचे ते स्वरूप समोर ठेवल्यामुळे मनुष्य जीवनात सन्मार्गागामी ह्तो आणि नेहमी यशस्वी होतो. ऐश्वर्य प्राप्त झाल्यामुळे माणूस कुमार्गगामी होऊ नये, यासाठी परमेश्वराच्या वरु रूपाचेही स्मरण सदा ठेवले पाहिजे. ।। ६।।
तमिल (1)
Word Meaning
துதிக்கும் மனிதர்கள் தாராளமாய் அளிப்பவனின் துதியை கானஞ் செய்யுங்கால் பற்பல செயல்களை அனுசரிக்கும் மனிதர்களைத் தாங்கும் வருணனை ரட்சிக்கப்படும் துதிகளால் நமஸ்கரிக்கட்டும்.
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