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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 342
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
30
गा꣡य꣢न्ति त्वा गाय꣣त्रि꣡णोऽर्च꣢꣯न्त्य꣣र्क꣢म꣣र्कि꣡णः꣢ । ब्र꣣ह्मा꣡ण꣢स्त्वा शतक्रत꣣ उ꣢द्व꣣ꣳश꣡मि꣢व येमिरे ॥३४२॥
स्वर सहित पद पाठगा꣡य꣢꣯न्ति । त्वा꣣ । गायत्रि꣡णः꣢ । अ꣡र्च꣢꣯न्ति । अ꣣र्क꣢म् । अ꣣र्कि꣡णः꣢ । ब्र꣣ह्मा꣡णः꣢ । त्वा꣣ । शतक्रतो । शत । क्रतो । उ꣢त् । वँ꣣श꣢म् । इ꣣व । येमिरे ॥३४२॥
स्वर रहित मन्त्र
गायन्ति त्वा गायत्रिणोऽर्चन्त्यर्कमर्किणः । ब्रह्माणस्त्वा शतक्रत उद्वꣳशमिव येमिरे ॥३४२॥
स्वर रहित पद पाठ
गायन्ति । त्वा । गायत्रिणः । अर्चन्ति । अर्कम् । अर्किणः । ब्रह्माणः । त्वा । शतक्रतो । शत । क्रतो । उत् । वँशम् । इव । येमिरे ॥३४२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 342
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 12;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 12;
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भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
प्रथम मन्त्र में यह विषय है कि इन्द्र की महिमा का सब गान करते हैं।
पदार्थ
हे (शतक्रतो) बहुत बुद्धिमान् तथा बहुत कर्मों को करनेवाले परमैश्वर्यवान् परमात्मन् ! (गायत्रिणः) सामगान करनेवाले गायक जन अथवा यज्ञ के उद्गाता नामक ऋत्विज् (त्वा) तेरा (गायन्ति) गान करते हैं। (अर्किणः) वेदमन्त्रार्थों का अध्ययन करनेवाले जन अथवा पूजक होता और अध्वर्यु नामक ऋत्विज् (त्वा) तेरी (अर्चन्ति) स्तुति करते हैं। (ब्राह्मणाः) ब्रह्मोपासक ब्राह्मण अथवा यज्ञ के ब्रह्मा नामक ऋत्विज् (त्वा) तुझे (वंशम् इव) ध्वजदण्ड के समान (उद्येमिरे) ऊपर उठाते हैं, अर्थात् जैसे पताकाधारी लोग पताका के डण्डे को ऊँचा उठाकर आकाश में पताका को फहराते हैं, वैसे ही ब्राह्मण जन और यज्ञ के ब्रह्मा लोग तेरी कीर्ति को सर्वत्र फहराते हैं ॥१॥ इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। ‘गाय, गाय’ में यमक है। द्वितीय पाद में अनुप्रास है ॥१॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिए कि साङ्गोपाङ्ग वेदों को पढ़कर, यज्ञ आदि में मन्त्रोच्चारणपूर्वक और सामगानसहित परमेश्वर की अर्चना करते हुए उसकी महिमा को गगन में ऊँची उठायी हुई, हवा से लहराती हुई ध्वजा के समान सर्वत्र प्रसारित करें ॥१॥
पदार्थ
(शतक्रतो) हे बहुत ज्ञान कर्म वाले सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान् परमात्मन्! (त्वा) तुझे (गायत्रिणः) गायत्र—साम गान वाले गायक उद्गाता जन (गायन्ति) गाते हैं—तेरी उपासना करते हैं (अर्किणः) अर्क—ऋङ् मन्त्र वाले (अर्कम्) तुझ अर्चनीय देव को (अर्चन्ति) पूजित करते हैं—प्रशंसित करते हैं, तेरी स्तुति करते हैं। (ब्रह्माणः) यजुर्वेद के अध्ययनशील तेरी प्रार्थना करते हैं (वंशम्-इव) वंश की भाँति—बाँस की भाँति ऊपर उठाते हैं।
भावार्थ
परमात्मा को सामवेदी साम गान से उसके साक्षात् से प्रशंसित करते हैं, ऋग्वेदीजन पूजनीय तुझ परमात्मा को अर्चित पूजित करते हैं, प्रार्थना में लाते हैं और यजुर्वेदीजन तुझे वंश बाँस की भाँति ऊँचे घोषित करते हैं॥१॥
विशेष
ऋषिः—मधुच्छन्दाः (मीठी इच्छा वाला या मधुतन्त्र मधुपरायण)॥ छन्दः—अनुष्टुप्॥<br>
विषय
सभी तेरा गुणगान करते हैं
पदार्थ
वेद चार हैं, परन्तु उनमें मन्त्र तीन ही प्रकार के हैं। वे या तो ऋग्मन्त्र हैं या यजुः या फिर साम। इसीलिए ‘त्रयीविद्या' शब्द प्रचलित है। ‘ऋच् स्तुतौ' धातु से बना ऋच् शब्द उन मन्त्रों का वाचक है जोकि पदार्थों का गुणधर्म का वर्णन करते हैं - यही विज्ञान है। इसीलिए ‘ऋग्वेद' विज्ञानवेद-A Book of Natural Sciences है। यजुर्मन्त्र यज्ञों व मानव - कर्त्तव्यों के वर्णन करनेवाले हैं। यजुर्वेद कर्मवेद हैं—A Book on Social Sciences है। साममन्त्र उपासनामन्त्र हैं—इनमें जीव को किस प्रकार प्रभु का स्मरण करना है इस बात का प्रतिपादन है। इन वेदों को समझनेवाले व्यक्तियों में सामन्त्रों से प्रभु का गायन करनेवाले 'गायत्री' हैं- क्योंकि यये मन्त्र गान करनेवालों का त्राण करते हैं। प्रभु का स्मरण इन्हें वासनाओं के आक्रमण से बचाए रखता है - इस तत्त्व को समझते हुए गायत्रिण:- साममन्त्रों से प्रभु का गुणगान के द्वारा अपनी रक्षा करनेवाले ये व्यक्ति त्वा = हे प्रभो! आपको गायन्ति-गाते हैं। अर्किण:-ऋचाओंवाले वैज्ञानिक भी, यह अनुभव करते हुए कि अन्त में सूर्यादि में उस उस शक्ति का आधान करनेवाले आप ही हैं अर्कम्-अर्चना के योग्य आपकी अर्चन्ति= उपासना करते हैं। विज्ञान का गम्भीर अध्ययन आपके प्रति उनकी अटूट श्रद्धा का कारण बनता है। ब्रह्माण:- यज्ञों के करनेवाले ब्रह्मा आदि ऋत्विज [होता, अध्वर्यु, उद्गाता, ब्रह्मा] भी शतक्रतो हे सैकड़ों यज्ञों के करनेवाले प्रभो! (त्वा - आपको ही उद्येमिरे ) = उन्नत करते हैं इव जैसेकि अपरिमित वंशम् = ध्वजदण्ड को, अर्थात् ये याज्ञिक भी पग-पग पर आपकी महिमा का अनुभव करते हैं। किस प्रकार अग्नि की शिखा सदा ऊपर ही जाती है? अग्नि में हव्यद्रव्यों को किस प्रकार सूक्ष्मातिसूक्ष्म कणों में विभक्त करने की शक्ति है? अग्नि में डाली हुई आहुति किस प्रकार सूर्य तक पहुँचती है ? इस प्रकार ये याज्ञिक यज्ञों में भी आपकी महिमा का अनुभव करते हैं। इनके अनुभव का यही सार है कि आप सर्वोपरि हैं |
क्या कर्मकाण्डी, क्या ज्ञानकाण्डी और क्या उपासनाकाण्डी सभी प्रभु के गुणगान में लगे हैं। प्रभु का यह गुणगान ही इन्हें सदा मधुर इच्छाओंवाला=‘मधुच्छन्दाः’ बनाये रखता है। यह प्रभु का उपासक किसी का वैरी न होकर ‘वैश्वामित्रः’=सभी का स्नेही होता है।
भावार्थ
हम ‘कर्म, ज्ञान व उपासना’ किसी भी क्षेत्र में विचरते हुए उस प्रभु को न भूलें।
पदार्थ
शब्दार्थ = ( शतक्रतो ) = हे अनन्तकर्म और उत्तम ज्ञानयुक्त प्रभो! ( गायत्रिणः ) = गाने में कुशल ( त्वा गायन्ति ) = आप का गान करते हैं, ( अर्किण: ) = पूजा में चतुर ( अर्कम् अर्चन्ति ) = पूजनीय आपको ही पूजते हैं ( ब्रह्माण: ) = वेदज्ञाता यज्ञादि क्रिया में कुशल ( वंशम् इव ) = जैसे अपने कुल को ( उद् येमिरे ) = उद्यमवाला करते हैं ऐसे आपकी ही प्रशंसा करते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ = हे प्रभो ! जैसे आपके सच्चे पूजक, वेद विद्या को पढ़ कर अच्छे गुणों के साथ अपने और औरों के वंश को भी पुरुषार्थी करते हैं, वैसे अपने आपको भी श्रेष्ठ गुणयुक्त और पुरुषार्थी बनाते हैं। जो पुरुष आपसे भिन्न पदार्थ की पूजा वा उपासना करते हैं, उन को उत्तम फल कभी प्राप्त नहीं हो सकता, क्योंकि आपकी ऐसी कोई आज्ञा नहीं है कि, आपके समान कोई दूसरा पदार्थ पूजन किया जाए, इसलिए हमसब को आपकी ही पूजा करनी चाहिये ।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = हे शतक्रतो ! ( त्वा ) = तुझको ( गायत्रिणः ) = गान करने हारे उद्गाता, सामगायक ( गायन्ति ) = गान करते हैं । ( अर्किणः ) = ऋग्वेदी विद्वान् ( त्वा अर्चन्ति ) = वेदमन्त्रों द्वारा तेरे गुणगान करते हैं । ( ब्रह्माणः ) = और अथर्ववेद या चारों वेदों के विद्वान् ब्रह्मा लोग ( त्वा ) = तुझको ( वंशम् इव ) = अपने वंशधर, प्रथम पुरुषा के समान ( उद् येमिरे ) = उच्चकोटि पर मानते हैं ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - मधुच्छन्दा:।
देवता - इन्द्रः।
छन्दः - अनुष्टुभ् ।
स्वरः - गान्धारः।
संस्कृत (1)
विषयः
तत्रादौ इन्द्रस्य महिमानं सर्वे गायन्तीत्याह।
पदार्थः
हे (शतक्रतो) बहुप्रज्ञ बहुकर्मन् इन्द्र परमैश्वर्यवन् परमात्मन् ! (गायत्रिणः) गायत्रं साम, तद्गानकर्तारः गायकाः, यद्वा यज्ञे उद्गातारो नाम ऋत्विजः (त्वा) त्वाम् (गायन्ति) गानविषयीकुर्वन्ति। (अर्किणः) वेदमन्त्रार्थाध्येतारो जनाः, यद्वा अर्चकाः होतारः अध्वर्यवश्च ऋत्विजः। अर्को देवो भवति यदेनमर्चन्ति। अर्को मन्त्रो भवति यदनेनार्चन्ति। निरु० ५।४। अर्को देवो मन्त्रो वा येषामस्तीति ते अर्किणः। (त्वा) त्वाम् (अर्चन्ति) स्तुवन्ति। (ब्रह्माणः) ब्रह्मोपासकाः ब्राह्मणाः, यद्वा ब्रह्माणो नाम ऋत्विजः (त्वा) त्वाम् (वंशम् इव२) ध्वजदण्डमिव, (उद्येमिरे) उद्यच्छन्ति, उद्गमयन्ति, ध्वजवंशमुन्नयन्तः पताकिनः पताकां यथा वियति दोधूयन्ते तथा ते त्वत्कीर्तिं सर्वत्र प्रसारयन्तीत्यर्थः। उत्-पूर्वाद् यम उपरमे धातोः कालसामान्ये लिट् ॥१॥ यास्काचार्य इमं मन्त्रमेवं व्याख्यातवान्—गायन्ति त्वा गायत्रिणः, प्रार्चन्ति तेऽर्कमर्किणो, ब्राह्मणास्त्वा शतक्रत उद्येमिरे वंशमिव। वंशो वनशयो भवति, वननाच्छ्रूयत इति वेति। निरु० ५।४ ॥ अत्रोपमालङ्कारः, ग्रहीतृभेदादेकस्यानेकधोल्लेखे उल्लेखालङ्कारश्च३। ‘गाय, गाय’ इति यमकम्, द्वितीये पादेऽनुप्रासः ॥१॥
भावार्थः
साङ्गोपाङ्गं वेदानधीत्य यज्ञादिषु मन्त्रोच्चारणपूर्वकं सामगानसहितं च परमेश्वरं समभ्यर्चद्भिर्जनैस्तन्महिमा गगने प्रोत्तोलितः पवनान्दोलितो ध्वज इव सर्वत्र प्रसारणीयः ॥१॥४
टिप्पणीः
१. ऋ० १।१०।१, साम० १३४४। २. यथा वंशाग्रे नृत्यन्तः शिल्पिनः प्रौढं वंशमुन्नतं कुर्वन्ति, यथा वा सन्मार्गवर्तिनः पुत्राः स्वकीयं कुलमुन्नतं कुर्वन्ति तद्वत्—इति सा०। यथोत्कृष्टैर्गुणैः शिक्षणैश्च स्वकीयं वंशमुद्यमवन्तं कुर्वन्ति तथेति ऋग्भाष्ये द०। ३. क्वचिद् भेदाद् ग्रहीतॄणां विषयाणां तथा क्वचित्। एकस्यानेकधोल्लेखो यः स उल्लेख उच्यते। सा० द० १०।३७ इति तल्लक्षणात्। ४. ऋग्भाष्ये दयानन्दर्षिर्मन्त्रमिमं परमेश्वरार्चनविषय एव व्याख्यातवान्।
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, the Doer of innumerable deeds, the singers hymn Thee, they who chant the psalm of praise laud Thee. The knowers of all the four Vedas exalt Thee, as they raise their family to importance!
Meaning
The singers of Gayatri celebrate you, Indra, lord of song and joy, with the hymns of Sama-Veda. The devotees of Rgveda worship Indra, lord of light, with Rks. And the sage scholars of all the Vedas, O lord of a hundred noble acts of cosmic yajna, maintain the line of divine worship as the centre-string of the human family. (Rg. 1-10-1)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (शतक्रतो) હે બહુજ જ્ઞાન કર્મવાળા સર્વજ્ઞ સર્વશક્તિમાન પરમાત્મન્ ! (त्वा) તને (गायत्रिणः) ગાયત્ર-સામ ગાનવાળા ગાયક ઉદ્ગાતાજન (गायन्ति) ગાય છે તારી ઉપાસના કરે છે (अर्किणः) અર્ક-ઋક્ મંત્રવાળા (अर्कम्) તુજ અર્ચનીય દેવને અન્તિ પૂજિત કરે છે-પ્રશંસિત કરે છે, તારી સ્તુતિ કરે છે. (ब्रह्माणः) યજુર્વેદના અધ્યયનશીલ તારી પ્રાર્થના કરે છે (वंशम् इव) વાંસની સમાન ઉપર ઉઠાવે છે. (૧)
भावार्थ
ભાવાર્થ : પરમાત્માને સામવેદી સામગાનથી તેને સાક્ષાતથી પ્રશંસિત કરે છે, ૠગ્વેદીજન પૂજનીય તુજ પરમાત્માને અર્ચિત-પૂજીત કરે છે, પ્રાર્થનામાં લાવે છે અને યજુર્વેદીજન તને વાંસની સમાન ઊંચે ઘોષિત કરે છે. (૧)
उर्दू (1)
Mazmoon
ہمیشہ آپ کا پُوجن کرتے ہیں!
Lafzi Maana
(شت کرتو) بے شمار کارہائے نمایاں کرنے والے عالمِ کل ایشور (اِو برہمانہ وشم اُدے مِرے) جیسے ویدوں کو پڑھ کر نیک کام کرنے والے اشخاص اپنے خاندان آل اولاد کو نیک اوصاف سے بھر کر پُرشارتھی بناتے ہیں، ویسے ہی (گایتری نا) قابلِ تعریف راگ ودیا کو جاننے والے اِیشور کے اُپاسک (تُوا گاینتی) سام وید وغیرہ کے گیتوں سے مہما گاتے ہیں، (ارکنہ ارکس تُوا ارچنتی) اور جو وید منتروں کے پڑھنے کی مشق رکھتے ہیں، وہ سب لوگوں کے ساتھ مل کر پُوجنے کے لائق آپ کا ہمیشہ پُوجن کرتے ہیں۔
Tashree
کاموں کا ہے کیا شمار ہے پُوجیہ یوگیہ اِیشورا! پُوجا سے ہم ہیں آپ کو پرسّن کرتے گیت گا۔
बंगाली (1)
পদার্থ
গায়ন্তি ত্বা গায়ত্রিণোর্চন্ত্যর্কমর্কিণঃ।
ব্রহ্মাণস্ত্বা শতক্রত, উদ্বংশমিব যেমিরে ।।২৮।।
(সাম ৩৪২)
পদার্থঃ (শতক্রতো) হে অনন্ত কর্ম এবং উত্তম জ্ঞানযুক্ত ঈশ্বর! (গায়ত্রিণঃ) সামগানকারী শ্রেষ্ঠ গায়ক জন (ত্বা গায়ন্তি) তোমারই গান করে। (অর্কিণঃ) বেদ মন্ত্রের অধ্যয়নকারী শ্রেষ্ঠ বিদ্বানজন (অর্কম্) অর্চনীয় দেব তোমাকে (অর্চন্তি) অর্চনা করেন। (ব্রহ্মাণঃ) যজ্ঞাদি ক্রিয়াতে উত্তম বেদজ্ঞাতা (বংশম্ ইব) যেমন নিজের বংশকে (উৎ যেমিরে) উদ্যমশালী করেন, তেমনি আমরা (ত্বা) তোমারই প্রশংসা করি।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে ঈশ্বর! যেরূপ তোমার প্রকৃত পূজক বেদবিদ্যাকে অধ্যয়ন করে উত্তম গুণের সাথে নিজের এবং অন্যের বংশকেও পুরুষার্থী করেন, তেমনি নিজেকেও শ্রেষ্ঠ গুণযুক্ত এবং পুরুষার্থী হিসেবে গড়ে তোলেন। যে ব্যক্তি তোমা ভিন্ন অন্য পদার্থের পূজা বা উপাসনা করে, তার কখনই উত্তম ফল লাভ হয় না। কেননা তুমি এমন কোনো আজ্ঞা দাও নি যে, তোমার সমান অপর কোনো পদার্থ রয়েছে যার উপাসনা করা যেতে পারে। এজন্য আমাদের সকলের একমাত্র তোমারই উপাসনা করা উচিত।।২৮।।
मराठी (2)
भावार्थ
माणसांनी सांगोपांग वेदाध्ययन करून, यज्ञ इत्यादीमध्ये मंत्रोच्चारणपूर्वक व सामगानसहित परमेश्वराची अर्चना करून त्याची महिमा गगनात हवेमध्ये तरंगणाऱ्या ध्वजेप्रमाणे सर्वत्र प्रसारित करावी ॥१॥
विषय
इंद्राचे महिमा गान सर्वजण करतात.
शब्दार्थ
(शतक्रतो) अतीव बुदधिमान आणि अनेक कर्मे करणाऱ्या, हे परमैश्वर्यवान परमेश्वरा, (गायत्रिणः) सामगान करणारे गायक अथवा यज्ञाचे उद्गाता नामक ऋत्विज् (त्वा) तुझे (गायन्ति) स्तुतिगान करतात. (अर्किणः) वेदमंत्राचा अध्ययन करणारे विद्वान वा पूजक अथवा अध्वर्यू नाम ऋत्विज् (त्वा) तुझी (अर्चन्ति) अर्चना करतात. (ब्राह्मणाः) ब्रह्मोपासक ब्राह्मण अथवा यज्ञाचे ब्रह्मा नाम ऋत्विज् (त्वा) तुला (वंशम् इव) थ्वजदंडाप्रमाणे (उद्ये मिरे) उंच ठेवतात (तुला सर्वोच्च मानतात) म्हणजे जसे पताकाधारी माणसे पठाकेची काठी उंच धरून ध्वज आकाशात फडकावतात. तद्वत ब्राह्मणजन आणि यज्ञाचे ब्रह्माजन सर्वत्र तुझ्या कीर्तीचा प्रसार करतात. ।। १।।
भावार्थ
मनुष्यांनी वेदांचे सांगोपांग अध्ययन, यज्ञादीमध्ये मंत्रोच्चारण आणि सामगान करीत परमेश्वराच्या महिमेचा सर्वत्र प्रचार- प्रसार करावा. जसे आकाशात उंच फडकणारी ध्वजा, वायूद्वारे आणखी वेगाने फडकते. तद्वत परमेश्वराच्या महिमेचा सर्वत्र विस्तार व्हायला हवा. ।। १।।
विशेष
या मंत्रात उपमा अलंकार आहे. ङ्गगाय, गायफमध्ये यमक असून द्वितीय पदामध्ये अनुप्रास आहे. ।। १।।
तमिल (1)
Word Meaning
சதக்கிரதுவான இந்திரனே! கானஞ் செய்கிறவர்கள் துதிக்கிறார்கள். மந்திரத்தால் உன்னை மனனஞ்செய்கிறார்கள். கொடிக் கம்பம்போல் [1] பிராமணர்கள் உன்னை உத்தமமாய் துதிக்கிறார்கள்.
FootNotes
[1].பிராமணர்கள் - அறிஞர்கள்
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