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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 36
ऋषिः - भर्गः प्रागाथः
देवता - अग्निः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
37
पा꣣हि꣡ नो꣢ अग्न꣣ ए꣡क꣢या पा꣣ह्यू꣡३꣱त꣢ द्वि꣣ती꣡य꣢या । पा꣣हि꣢ गी꣣र्भि꣢स्ति꣣सृ꣡भि꣢रूर्जां पते पा꣣हि꣡ च꣢त꣣सृ꣡भि꣢र्वसो ॥३६॥
स्वर सहित पद पाठपा꣣हि꣢ । नः꣣ । अग्ने । ए꣡क꣢꣯या । पा꣣हि꣢ । उ꣣त꣢ । द्वि꣣ती꣡य꣢या । पा꣣हि꣢ । गी꣣र्भिः꣢ । ति꣣सृ꣡भिः꣢ । ऊ꣣र्जाम् । पते । पाहि꣢ । च꣣तसृ꣡भिः꣢ । व꣣सो ॥३६॥
स्वर रहित मन्त्र
पाहि नो अग्न एकया पाह्यू३त द्वितीयया । पाहि गीर्भिस्तिसृभिरूर्जां पते पाहि चतसृभिर्वसो ॥३६॥
स्वर रहित पद पाठ
पाहि । नः । अग्ने । एकया । पाहि । उत । द्वितीयया । पाहि । गीर्भिः । तिसृभिः । ऊर्जाम् । पते । पाहि । चतसृभिः । वसो ॥३६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 36
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 4;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 4;
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भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
अगले मन्त्र में परमेश्वर और विद्वान् मनुष्य से प्रार्थना करते हैं।
पदार्थ
प्रथम—परमात्मा के पक्ष में। हे (ऊर्जां पते) अन्नों, रसों, बलों और प्राणों के अधिपति, (वसो) सर्वत्र बसनेवाले सर्वान्तर्यामी तथा निवासप्रदायक (अग्ने) परमात्मन् ! आप (नः) हमारी (एकया) एक ऋग्-रूप वाणी से (रक्ष) रक्षा कीजिए; (उत) और (द्वितीयया) दूसरी यजुःरूप वाणी से (पाहि) रक्षा कीजिए; (तिसृभिः) तीन ऋग्, यजुः और सामरूप सम्मिलित (गीर्भिः) वाणियों से (पाहि) रक्षा कीजिए; (चतसृभिः) चार ऋग्, यजुः, साम और अथर्वरूप सम्मिलित वाणियों से (पाहि) रक्षा कीजिए। यहाँ चार बार पाहि के प्रयोग से परमेश्वर द्वारा करणीय रक्षा की निरन्तरता सूचित होती है ॥ द्वितीय—विद्वान् के पक्ष में। हे (ऊर्जां पते) बलों के पालक, (वसो) उत्तम निवास देनेवाले, (अग्ने) अग्नि के तुल्य विद्या-प्रकाश से युक्त विद्वन् ! आप (एकया) एक उत्तम शिक्षा से (नः) हमारी (पाहि) रक्षा कीजिए; (उत) और (द्वितीयया) दूसरी अध्यापन-क्रिया से (पाहि) रक्षा कीजिए; (तिसृभिः) कर्म-काण्ड, उपासना-काण्ड और ज्ञान-काण्ड को जतानेवाली तीन (गीर्भिः) वाणियों से (पाहि) रक्षा कीजिए; (चतसृभिः) धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इनका विज्ञान करानेवाली चार प्रकार की वाणियों से (पाहि) रक्षा कीजिए ॥२॥४
भावार्थ
चार वेदवाणियाँ परमेश्वर ने हमारे हित के लिए प्रदान की हैं। यदि हम वेदवर्णित ज्ञान, कर्म, उपासना और विज्ञान विषयों को पढ़कर कर्तव्य कर्मों का आचरण करें, तो निस्सन्देह हमारी रक्षा होगी। विद्वानों को चाहिए कि वेद पढ़ाकर वेदविहित धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का उपदेश देकर हमारी रक्षा करें ॥२॥
पदार्थ
(ऊर्जां पते वसो-अग्ने) हे शक्तियों के स्वामी वसाने वाले ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मन्! तू (नः) हमारी (एकया पाहि) अपनी एक शक्ति रूप ऋग्वाणी से—ऋग्वेदानुसार स्तुति से रक्षाकर (उत द्वितीयया पाहि) और अपनी दूसरी शक्तिरूप यजुर्वाणी-यजुर्वेदानुसार प्रार्थना से हमारी रक्षा कर (तिसृभिः-गीर्भिः पाहि) अपनी तीसरी शक्तिरूप तीसरी “एकवचने बहुवचनं व्यत्ययेन” सामवाणी सामवेदानुसार उपासना से हमारी रक्षा कर (चतसृभिः पाहि) अपनी शक्तिरूप चतुर्थ अथर्ववाणी अथर्ववेदानुसार जप से हमारी रक्षा कर।
भावार्थ
ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मा वेदचतुष्टयी वाणी से सब मनुष्यों की रक्षा करता ही है और हम उपासकों की वेदानुसार स्तुति प्रार्थना उपासना और साक्षादर्थ-भावन जप से हमारे अन्दर ऊर्जा-ऊँचे बलों को इन्द्रियों और मन को नियन्त्रित करने तथा आत्मबल को मोक्ष प्राप्ति के लिये प्रदान कर अपने पूर्ण रक्षण में ले लेता है॥२॥
विशेष
ऋषिः—भर्गः (ज्ञानमय तेज वाला उपासक)॥<br>
विषय
चार वाणियों के द्वारा रक्षा
पदार्थ
हे (अग्ने)=आगे ले-चलनेवाले प्रभो! (एकया) = ऋग्रूपी प्रथम वाणी से (न:)- हमारी (पाहि) = रक्षा कीजिए, ( )= और द्वितीयया यज्ञरूप द्वितीय वाणी से भी पाहि रक्षा कीजिए।
ऋग्=विज्ञान वेद है। बिना विज्ञान के मनुष्य की उन्नति सम्भव नहीं। संसार में जिन जातियों ने विज्ञान में प्रगति की, वे आगे बढ़ गईं, परन्तु इसी अग्रगति के लिए 'यजूरूप वाणी' से भी रक्षा की प्रार्थना की गई है। यजुर्वेद कर्मवेद है। उसमें उत्तम कर्मों का प्रतिपादन है। लोकहित के लिए कर्म करने का उपदेश है। जब विज्ञान का प्रयोग यज्ञमय कर्मों में न करके, नाशक कर्मों के लिए किया जाता है तब वही विज्ञान अवनति का कारण बन जाता है, ऋग् और यजुः [विज्ञान व उत्तम कर्म] मिलकर हमारी उन्नति करें और हमारे रक्षक हों। अतः
हे (ऊर्जाम्पते)= सामर्थ्यो के स्वामिन् ! (तिसृभिः)= पहली दो वाणियों के साथ तृतीय सामरूप वाणी से भी हमारी (पाहि)= रक्षा कीजिए। यह साम ही उपासना है, परमेश्वर के सम्पर्क में आना है, और ट्राईन के शब्दों में “In tune with the Infinite” [अनन्त के साथ एक तान में होना] है, तभी तो उसकी शक्ति का प्रवाह हममें हो सकता है और हम भी उसकी शक्तियों से शक्ति-सम्पन्न हो जाते हैं ।
(वसो)=हे निवासक प्रभो! हमें (चतसृभिः) = प्रथम तीन के साथ चौथी अथर्वरूप वाणी से भी (पाहि)=सुरक्षित कीजिए। यह अथर्ववाणी मुख्यरूप से दो संकेत कर रही है। एक तो (‘अ-थर्व')=नहीं डाँवाडोल होना और दूसरा ('अथ- अर्वाङ्') = अब अपने अन्दर अर्थात् औरों का अध्ययन करते रहने की बजाय अपना ही अध्ययन करना। ये ही दो बातें हमारे बसने व न उजड़ने का मुख्य साधन हैं। डाँवाडोल होना, दृढ़ निश्चय से कार्यों को न करना तथा दूसरों के दोषों का दर्शन करते रहने की बजाय आत्म- निरीक्षण द्वारा अपने दोषों को जानकर उन्हें दूर करना ही (वसु)= उत्तम निवासवाले बनने के साधन हैं। इस प्रकार चारों वेदों की ज्ञानाग्नियों से अपने को परिपक्व कर हम इस मन्त्र के ऋषि ‘भर्ग' [भ्रस्ज पाके] बनेंगे और इस प्रकार प्रभु का सच्चा गायन करनेवाले 'प्रगाथ' होंगे।
भावार्थ
हम विज्ञान का यज्ञों में प्रयोग कर आगे बढ़ें। भक्ति द्वारा मानस बल को बढ़ाएँ तथा स्थिर संकल्प व स्वाध्याय से वसु [उत्तम बसने व बसानेवाले] बनें।
पदार्थ
शब्दार्थ = ( ऊर्जांपते ) = हे बलपते ! ( वसो ) = हे अन्तर्यामिन् अग्ने ! ( एकया ) = ऋग्वेद रूप वाणी के उपदेशों से ( नः पाहि ) = हमारी रक्षा करो। ( उत द्वितीयया पाहि ) = यजुर्वेद की वाणी से रक्षा करो। ( तिसृभिः गीर्भिः पाहि ) = ऋग्यजुः सामरूप त्रयी वाणी से रक्षा करो। ( चतसृभिः पाहि ) = चारों वेदों की वाणी के उपदेशों से हमारी रक्षा करो ।
भावार्थ
भावार्थ = हे प्रभो ! जैसे वेदों के पवित्र उपदेशों के संसार भर में फैलाने और धारण करने से सब मनुष्यों की इस लोक और परलोक में रक्षा होती और संसार में शान्ति फैल सकती है ऐसी राजादिकों के पुलिसादि प्रबन्धों से भी नहीं, इसीलिये, हे शान्तिवर्धक और सुरक्षक परमात्मन्! आप अपने वेदों के सत्योपदेशों को संसार भर में फैलाओ और हमें भी बल और बुद्धि दो कि आपकी चार वेद रूपी आज्ञा को संसार में फैला दें जिससे सब नर नारी आपकी प्रेम भक्ति मे मग्न हुए सदा सुखी हों ।
विषय
परमेश्वर की स्तुति
भावार्थ
भा० = हे अग्ने ! परमेश्वर ! ( एकया१ ) = एक वेदरूप वाणी से ( नः पाहि ) = हमारी रक्षा करो, पालन करो । ( उत ) = और ( द्वितीयया२ ) = दूसरी वेदमयी वाणी से ( पाहि ) = पालन करो । ( तिसृभिः३ ) = तीनों ( गीर्भिः ) = वेद वाणियों से ( पाहि ) = पालन कर । हे (ऊर्जाम्पते) = सब अन्नों बलों के अधिपते ! हे ( वसो ) = सब के भीतर बसने और सबको बसाने वाले बसो ! ( चतसृभिः४ ) = चारों वेदवाणियों से ( पाहि ) = पालन कर ।
ज्ञान, विज्ञान, क्रिया और उपासना इन चार भेदों के पृथक् २ निरूपण करने से चार वेद हैं । प्रत्येक से प्रजा का पालन करना ही मन्त्र का अभिप्राय है ।
टिप्पणी
१. 'ऋग-लक्षणया' इति मा०, वि० ।
२. यजुर्लक्षणया मा० वि० ।
३. ऋग्यजु: सामलक्षणामिः इति मा० वि० ।
४. ऋग्यजुःसामनिगदलक्षणाभिः । मा० वि० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - भर्गः प्रागाथः।
छन्दः - बृहती ।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमेश्वरो विद्वाँश्च प्रार्थ्यते।
पदार्थः
प्रथमः—परमात्मपरः। हे (ऊर्जां पते) अन्नानां रसानां बलानां प्राणानां चाधिपते ! ऊर्जम् अन्नं रसं चेति निरुक्तम्। ९।४१। ऊर्जं बलप्राणनयोः, क्विप्। (वसो) वसति सर्वत्र वासयति वेति (वसुः), तादृश सर्वान्तर्यामिन् सर्वनिवासप्रद (अग्ने) परमात्मन् ! त्वम् (नः) अस्मान् (एकया) ऋग्रूपया गिरा (पाहि) रक्ष, (उत) अपि च (द्वितीयया) यजुराख्यया गिरा (पाहि) रक्ष। (तिसृभिः) ऋग्यजुः- सामात्मिकाभिः संमिलिताभिः (गीर्भिः) वाग्भिः (पाहि) रक्ष। (चतसृभिः) ऋग्यजुःसामाथर्वरूपाभिः संमिलिताभिः वाग्भिः, (पाहि) रक्ष।२ अत्र चतुःकृत्वः पाहि इति पाठात् परमेश्वरेण करणीयाया रक्षायाः सातत्यं द्योत्यते ॥ अथ द्वितीयः—विद्वत्परः। हे (ऊर्जां पते) बलानां पालक, (वसो) सुवासप्रद (अग्ने) पावकवद् विद्वन् ! त्वम् (एकया) सुशिक्षया (नः) अस्मान् (पाहि) रक्ष, (उत) अपिच (द्वितीयया) अध्यापनक्रियया (पाहि) रक्ष, (तिसृभिः) कर्मोपासनाज्ञानज्ञापिकाभिः (गीर्भिः) वाग्भिः (पाहि) रक्ष, (चतसृभिः) धर्मार्थकाममोक्षविज्ञापिकाभिः वाग्भिः (पाहि) रक्ष ॥२॥३
भावार्थः
चतस्रो वेदवाचः परमेश्वरेणास्माकं हिताय प्रदत्ताः सन्ति। यदि वयं वेदवर्णितान्ज्ञानकर्मोपासनाविज्ञानविषयानधीत्य कर्तव्यकर्माण्याचराम- स्तदा निःसंशयं वयं रक्षिता भवामः। विद्वभिर्वेदानध्याप्य वेदविहितान् धर्मार्थकाममोक्षाँश्चोपदिश्यास्माकं रक्षा विधेया ॥२॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ८।६०।९, य० २७।४३, साम० १५४४। २. गिरा एकया ऋग्लक्षणया। द्वितीयया गिरा यजुर्लक्षणया। तिसृभिर्गीर्भिः ऋग्यजुःसामलक्षणाभिः। चतसृभिः ऋग्यजुःसामनिगद- लक्षणाभिः—इति वि०। ३. अयं विद्वत्परोऽर्थः य० २७।४३ इत्यस्य दयानन्दभाष्यमनुसरति। ४. यह विद्वत्परक अर्थ य० २७।४३ के दयानन्द-भाष्य के अनुसार है।
इंग्लिश (4)
Meaning
O God, protect us by one Veda (Rig), protect us by the second (Yajur). Protect us by the three Vedas, (Rig, Yajur, Sama). O All-pervading Lord of power, protect us by the four Vedas (Rig, Yajur, Sama, Atharva).
Translator Comment
Sayan also interprets चतसृभिः as the four vedas.
Meaning
Agni, save us by the first voice, and by the second, by three voices, and, O lord of cosmic power, ultimate haven and home of existence, save and promote us by the four. (Rg. 8-60-9)
Translation
O God, protect us by the hymns of the one Veda
( Rigveda ), protect us by the hymns of the Second Veda ( Yajurveda ). Protect us by the hymns of the three Vedas, ( Rig. Yajur and Sama ). O Almighty Lord of power, protect us with the hymns of the four Vedas [ Rig. Yajur, Sama and Atharva ]. The four Vedas deal with and stand for inana (knowledge) Karma (Action) Bhakti (Devotion) and Yoga.
Comments
रदूवा जे-पवित्र ज्ञानसम्पन्ने मनसि, मनो व भरद्वाज ऋषिः (शत० ८१.१.६)
It is wrong on the part of Dr. Stevenson and Griffith to take it Bharadvaj as a proper noun as pointed out before.
Translation
O adorable Lord, protect us through the first, protect us through the second hymn, protect us through three hymns, and through four of them. O Lord of energy, 0 Lord of riches. (Cf. S. 1544; Rv VIII.60.9)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (ऊर्जां पते वसो अग्ने) હે બળના સ્વામી, વસાવનારા, જ્ઞાન-પ્રકાશસ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! તું (नः) -અમારી (एकया पाहि) અને તારી એક શક્તિ-બળરૂપ ૠગ્વાણીથી-ૠગ્વેદાનુસાર સ્તુતિથી રક્ષા કર; (उत द्वितीयया पाहि) અને તારી બીજી શક્તિરૂપ યજુર્વાણી - યજુર્વેદાનુસાર પ્રાર્થનાથી અમારી રક્ષા કર; (तिसृभिः गीभिः पाहि) તારી ત્રીજી શક્તિરૂપ ત્રીજી સામવાળી-સામવેદાનુસાર ઉપાસનાથી અમારી રક્ષા કર; (चतसृभिः पाहि) તારી ચોથી શક્તિરૂપ અથર્વવાણી-અથર્વવેદાનુસાર જપથી અમારી રક્ષા કર. (૨)
भावार्थ
ભાવાર્થ : જ્ઞાન-પ્રકાશરૂપ પરમાત્મા ચારેય વેદની વાણીથી સર્વ મનુષ્યોની રક્ષા કરે જ છે અને અમારી ઉપાસકોની વેદાનુસાર સ્તુતિ-પ્રાર્થના-ઉપાસના અને સાક્ષાત્ અર્થ ભાવન જપ દ્વારા અમારી અંદર ઉર્જાબળને ઇન્દ્રિયો તથા મનને નિયંત્રિત કરવા અને આત્મબળ મોક્ષ પ્રાપ્તિને માટે પ્રદાન કરીને પોતાના સંપૂર્ણ રક્ષણમાં રાખે છે. (૨)
उर्दू (1)
Mazmoon
گیان کرم اُپاسنا اور وگیان کے چاروں ویدوں سے رکھشا
Lafzi Maana
(اگنے) اگرنی پرمیشور! (پاہی) رکھشا کیجئے (نہ) ہماری (اے کیا) ایک (پہلے) رِگ وید کے گیان سے (اُت) اور (پاہی) رکھشا کیجئے (دُوتیہ) دوسری وید بانی یجر وید کے یگیہ کرم سے (اُورجا پِتم) ہے بل شکتی اور پرانوں کے سوامی پالک (تِسری بھی) پہلی دوسری رِگ، ۔۔۔۔ کے ساتھ تیسری سام وید کی بانی سے بھی اپنی اُپاسنا بھگتی یوگ کے دان ارتھات (گِربھی) اِن بانیوں کے گیان سے (پاہی) رکھشا کیجئے۔ (وسو) ہردے اور سارے وِشو کے داسی پربُھو! (پاہی) ہماری رکھشا کیجئے۔ (تِسری بھی) پہلے تین ویدوں کے ساتھ چوتھے اتھر وید کی بانی سے رکھشا کیجئے۔ جس سے ہم اتھر و یعنی بغیر ڈگمگائے یجر وید سے تمام دُنیا کی اشیاء کپڑی سے ہاتھی اور انسان تک، پرتھوی سے پرمیشور تک کا گیان اور یجر وید سے اِن تمام پدارتھوں سے یگیہ کرم، پروپکار یا رفاہِ عام کرتے ہوئے سام وید سے آپ کی اُپاسنا بھگتی یا عبادت کے سرورِ حقیقی کو حاصل کر اتھرو وید سے اِن تمام اشیاء کی سائنس کو جان کر اِس پر ہمیشہ چٹان کی مانند مضبوطی سے قائم رہیں۔ خُدا حافظ!
बंगाली (1)
পদার্থ
পাহি নো অগ্ন একয়া পাহ্যুত দ্বিতীয়য়া।
পাহি গীর্ভিস্তিসৃভিরূর্জাম্পতে পাহি চতসৃভির্বসো।। ১৩।।
(সাম ৩৬)
পদার্থঃ (ঊর্জাম্ পতে) হে বলের স্বামী! (বসো) হে অন্তর্যামী (অগ্ন) জ্ঞানস্বরূপ পরমাত্মা! (একয়া) ঋগ্বেদ রূপ বাণীর উপদেশ দ্বারা (নঃ পাহি) আমাদের রক্ষা করো । (উত দ্বিতীয়য়া পাহি) এবং যজুর্বেদের বাণী দ্বারা রক্ষা করো। (তিসৃভিঃ গীর্ভিঃ পাহি) ঋক্, যজু, সামরূপ ত্রয়ী বাণী দ্বারা রক্ষা করো। (চতসৃভিঃ পাহি) চার বেদের বাণীর উপদেশ দ্বারা আমাদের রক্ষা করো।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে পরমাত্মা! যেমন, বেদের পবিত্র উপদেশ সম্পূর্ণ সংসারে ছড়িয়ে যায় এবং বেদবাণীকে ধারণকারী মনুষ্যগণের মাঝে ইহলৌকিক ও পারমার্থিক শান্তি বিস্তার করে। তেমন সুখ, রাজা আদি প্রশাসক নিজেদের রাজ্যে কখনই প্রতিষ্ঠা করতে পারেন না। এজন্য, হে শান্তিবর্ধক এবং সুরক্ষক পরমাত্মা! তুমি তোমার বেদের সত্যোপদেশসমূহকে জগতে ছড়িয়ে দাও এবং আমাদেরকেও বল ও বুদ্ধি দান করো। যাতে আমরাও তোমার চতুর্বেদের জ্ঞান ও উপদেশরূপ আজ্ঞা সর্বত্র ছড়িয়ে দিতে পারি। যাতে সকল নর-নারী তোমার প্রেম ভক্তিতে নিবিষ্ট হয়ে সদা সুখী হতে পারে।।১৩।।
मराठी (2)
भावार्थ
चार वेदवाणी परमेश्वराने आमच्या हितासाठी प्रदान केलेली आहे. जर आम्ही वेदवर्णित ज्ञान, कर्म, उपासना व विज्ञान या विषयांचे अध्ययन करून कर्तव्य कर्मांचे आचरण केले, तर नि:संदेह आमचे रक्षण होईल. विद्वानांनी वेदाचे अध्यापन करून वेदविहित धर्म, अर्थ, काम, मोक्षाचा उपदेश करून आमचे रक्षण करावे ॥२॥
विषय
पुढील मंत्रात परमेश्वराला व विद्वानाला प्रार्थना केली आहे. -
शब्दार्थ
प्रथम अर्थ (परमात्मपूरक) - हे (ऊर्जा पते) अन्न, रस, बळ आणि प्राण यांचे अधिपती (वसो) सर्वत्र वास्तव्य असणारे सर्वान्तर्यामी आणि निवासप्रदायक (अग्ने) परमात्मन्, आपण (न:) आमची (एकया) एकऋक् रूप वाणीद्वारे (रक्ष) रक्षा करा (उत्) आणि (द्वितीयया) दुसऱ्या म्हणजे यजु:रूप वाणीद्वारे (पाहि) रक्षण करा (तिसृभि:) तीन म्हणजे ऋग्, यजु: आणि साम या सन्मिलित (गीर्भि:) वाणीद्वारे (पण्हि) रक्षा करा. (चतसृभि:) चार म्हणजे ऋग्, यजु:, साम आणि अथर्व या चार वाणीद्वारे (पाहि) आमचे रक्षण करा. या मंत्रात चार वेळा पाहि शब्दाच्या प्रयोगाने परमेश्वराद्वारे मिळणाऱ्या रक्षणाची आवश्यकता व नैरन्तर्य व्यक्त होत आहे. ।। द्वितीय अर्थ : (विद्वत्परक) (उर्जा पते) सामर्थ्या आमचे पालन करणारे (वसो) (विद्यार्थ्यांना) उत्तम निवासस्थान देणारे (अग्ने) अग्निवत् विद्याप्रकाशाने समृद्ध हे विद्वान, आपण (एकया) एका उत्तम शिक्षण वा विद्येने (न;) आमचे (पाहि) रक्षण करा. (ठत) आणि (द्वितीयया) दुसऱ्या विद्येने म्हणजे अध्यापन क्रियेने (पाहि) रक्षण करा (विसृभि:) कर्मकांड, उपासनाकांड व ज्ञानकांड या तीन विषयांचे ज्ञान देणाऱ्या (गीर्भि:) वाणी वा उपदेशाद्वारे आमचे (पाहि) खूण करा. (चतसृभि:) चार पुरुषार्थ म्हणजे धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष यांचे ज्ञान देणाऱ्या चार प्रकारच्या वाणीद्वारे आमचे (पाहि) रक्षण करा. ।।२।।
भावार्थ
परमेश्वराने चार वेद आमच्या हिताकरीता प्रदान केले आहेत. जर आम्ही वेदवर्णित ज्ञान, कर्म, उपासना व विज्ञान या विषयांचे ज्ञान संपादित करून आपल्या कर्तव्य कर्मांचे आचरण करू. तर अवश्यमेव आमचे रक्षण होईल. विद्वानांचे कर्तव्य आहे की, आम्हास वेदांचे अध्यापन करून वेदविहित धर्म, अर्थ, काम आणि मोक्ष यांचा उपदेश देऊन आमची रक्षा करावी. ।।२।।
तमिल (1)
Word Meaning
அக்னியே! எங்களை ருக்வேதத்தால் ரட் சிக்கவும். யஜுர் வேதத்தால் பாதுகாக்கவும். மூன்று களான மொழிகளால் பலத்தின் பதியே! பாதுகாக்கவும். நான்கு வேதங்களால் காக்கவும்,
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