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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 37
ऋषिः - शंयुर्बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
40
बृ꣣ह꣡द्भि꣢रग्ने अ꣣र्चि꣡भिः꣢ शु꣣क्रे꣡ण꣢ देव शो꣣चि꣡षा꣢ । भ꣣र꣡द्वा꣢जे समिधा꣣नो꣡ य꣢विष्ठ्य रे꣣व꣡त्पा꣢वक दीदिहि ॥३७॥
स्वर सहित पद पाठबृ꣣ह꣡द्भिः꣢ । अ꣣ग्ने । अ꣣र्चिभिः꣢ । शु꣣क्रे꣡ण꣢ । दे꣣व । शोचि꣡षा꣢ । भ꣣र꣡द्वा꣢जे । भ꣣र꣢त् । वा꣣जे । समिधानः꣢ । सम्꣣ । इधानः꣢ । य꣣विष्ठ्य । रेव꣢त् । पा꣣वक । दीदिहि ॥३७॥
स्वर रहित मन्त्र
बृहद्भिरग्ने अर्चिभिः शुक्रेण देव शोचिषा । भरद्वाजे समिधानो यविष्ठ्य रेवत्पावक दीदिहि ॥३७॥
स्वर रहित पद पाठ
बृहद्भिः । अग्ने । अर्चिभिः । शुक्रेण । देव । शोचिषा । भरद्वाजे । भरत् । वाजे । समिधानः । सम् । इधानः । यविष्ठ्य । रेवत् । पावक । दीदिहि ॥३७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 37
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 4;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 4;
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में पुनः परमात्मा से प्रार्थना की गयी है।
पदार्थ
हे (यविष्ठ्य) अतिशय युवा, (पावक) पवित्रकर्ता, (देव) दाता (अग्ने) तेजस्वी परमेश्वर ! (बृहद्भिः) महान् (अर्चिभिः) तेजों से, और (शुक्रेण) शुद्ध (शोचिषा) ज्ञान-प्रकाश से (भरद्वाजे) अपने आत्मा में बल भरनेवाले पुरुषार्थप्रिय मुझ स्तोता के अन्दर अथवा बल एवं उत्साह से सम्पन्न मेरे मन के अन्दर (समिधानः) प्रकाशित होते हुए आप (रेवत्) समृद्धिपूर्वक (दीदिहि) देदीप्यमान हों ॥३॥
भावार्थ
मनुष्यों को पुरुषार्थी होकर ही परमेश्वर का आह्वान करना चाहिए। अकर्मण्य की प्रार्थना वह नहीं सुनता ॥३॥
पदार्थ
(पावक-अग्ने देव) हे पवित्रकारक परमात्मदेव! (बृहद्भिः-अर्चिभिः) हमारे द्वारा की गई बड़ी अर्चनाओं, हावभावभरी स्तुतियों से “अर्च पूजायाम्” [भ्वादि॰] “अर्चति-अर्चतिकर्मा” [निघं॰ ३.१४] “ततः-इसिः प्रत्यय औणदिकः” पुनः प्रसन्न होकर (शुक्रेण शोचिषा) अपने सत्य ज्ञान प्रकाश से “सत्यं वै शुक्रम्” [श॰ ३.९.३.२५] (समिधानः) दीप्यमान-प्रकाशमान हुआ (यविष्ठ्य) नित्य युवा—जरारहित परमात्मन्! (भरद्वाजे रेवत्-दीदिहि) तेरे अर्चन ज्ञानप्रकाशबल धारण करने वाले मुझ उपासक के निमित्त ऐश्वर्ययुक्त प्रकाशित हो।
भावार्थ
हे पवित्रकारक नित्य अजर परमात्मन्! तू अपने उपासक की महत्त्वपूर्ण हार्दिक अर्चनाओं—स्तुतियों से प्रसन्न होकर उस अर्चनाकर्ता के निमित्त अपने सत्यज्ञानप्रकाश से प्रकाशमान हुआ अध्यात्मैश्वर्य प्रकाशित कर जो अनश्वर है—अमर है॥३॥
विशेष
ऋषिः—शंयुर्बार्हस्पत्यः (विद्यानिष्णात आचार्य से सम्बद्ध कल्याण का इच्छुक उपासक)॥<br>
विषय
प्रभु का प्रकाश किनमें?
पदार्थ
हे (अग्ने)= आगे ले-चलनेवाले प्रभो! (बृहद्भिः) = वृद्धि की कारणभूत (अर्चिभिः) = पूजाओं से तथा हे देव-ज्ञान से दीप्यमान प्रभो ! (शुक्रेण) = तीव्र (शोचिषा)= ज्ञान की दीप्ति से भरद्वाजे-अपने में शक्ति भरनेवाले में (समिधानः) = प्रकाशित होते हुए (यविष्ठ्य )= सर्वदा युवतम (रेवत्) = ज्ञानधन-सम्पन्न पावक=सबको पवित्र करनेवाले आप (दीदिहि) = दीप्त होओ।
प्रभु का प्रकाश पूजा करनेवाले के हृदय में होता है। प्रभु की पूजा उसकी आज्ञाओं के पालन तथा शम, दम, दया, दानादि से होती है। ये ही उसके आदेश हैं।
प्रभु का प्रकाश (रेवत्) = देदीप्यमान ज्ञान की ज्योति से होता है। जब हम अपने मस्तिष्क को निर्मल ज्ञान का निधान बनाएँगे, तभी उसके प्रकाश का अनुभव करेंगे।
प्रभु निर्बलों को प्राप्त नहीं होते। ('नायमात्मा बलहीनेन लभ्यः'),= अतः हम अपने में शक्ति का संचय करेंगे, तभी उस प्रभु को पाने के अधिकारी होंगे।
वे प्रभु ‘पावक' हैं। हम उस प्रभु का स्मरण करते हुए शम, दमादि गुणों से अपने हृदयों को पवित्र करें। वे प्रभु 'रेवत्' हैं- सर्वोत्तम ज्ञानधन से पूर्ण हैं। हम भी स्वाध्यायादि द्वारा अपने ज्ञान को दीप्त करें।
प्रभु (‘यविष्ठ') = सर्वदा युवतम, अनन्त शक्तिशाली हैं, हम भी अपने अन्दर शक्ति भरें। जो भी पुरुष ‘शंयु’ शान्ति की कामनावाला है, उसे अपना जीवन ऐसा बनाना ही होगा।
भावार्थ
पवित्र मन से, दीप्त मस्तिष्क से व शक्ति सम्पन्न शरीर से ही प्रभु का प्रकाश प्राप्त होता है।
विषय
परमेश्वर की स्तुति
भावार्थ
भा० = हे ( देव ) = दानादि गुणसम्पन्न ! ( यविष्ठ ) = सब से महान् युवतम ! सब से अधिक यौवन सम्पन्न, कभी निर्बल न होने वाले, हे ( अग्ने ) = प्रकाशस्वरूप हे ( रेवत् !) = समस्त धनों के स्वामी हे कान्तिमन् ! हे ( पावक ) = सबको अपने तेज से पवित्र करने वाले ! तू ( शुक्रेण ) = निर्मल ( शोचिषा ) = तेज से ( भरद्वाजे ) = ज्ञान और बल वीर्य को धारण करने वाले पुरुष में ( समिधानः ) = विशेष रूप से प्रदीप्त होते हुए ( बृहद्भिः ) = वड़े ( अर्चिभिः ) = कान्तियों, ज्वालाओं, तेजों से ( दीदिहि ) = प्रकाशमान होवो ।
टिप्पणी
३७ ‘रवन्न: शुक्र दीदिहि द्युमत्पावक' इति ऋ० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषि :- शंयुस्तृणपाणिर्वा ।
छन्दः - बृहती ।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ पुनः परमात्मानं प्रार्थयते।
पदार्थः
हे यविष्ठ्य नित्यतरुण। अतिशयेन युवा यविष्ठः, स एव यविष्ठ्यः। युवशब्दाद् इष्ठन् प्रत्ययः। ततो नवसूर्तमर्तयविष्ठेभ्यो यत् अ० ५।४।२५ वा० इति स्वार्थे यत् प्रत्ययः। (पावक) पवित्रयितः, (देव) दातः (अग्ने) तेजस्विन् परमेश्वर ! (बृहद्भिः) महद्भिः (अर्चिभिः) तेजोभिः, (शुक्रेण) शुद्धेन। शुच्यते पवित्रीभवतीति शुक्रः। शुचिर् पूतीभावे धातोः ऋज्रेन्द्राग्र०’ उ० २।२९ इति रन्-प्रत्ययान्तो निपातः। (शोचिषा) ज्ञानप्रकाशेन च (भरद्वाजे२) भरन् बिभ्रद् वाजं बलं स्वात्मनि यः स भरद्वाजः पुरुषार्थ-प्रियः, तादृशे मयि स्तोतरि, यद्वा भरद्वाजे बलोत्साहसम्पन्ने मदीये मनसि। मनो वै भरद्वाज ऋषिः। श० ८।१।१।९। (समिधानः) प्रकाशमानः सन् (रेवत्) समृद्धियुक्तं यथा भवति तथा। धनवाचकाद् रयिशब्दान्मतुपि रयेर्मतौ बहुलम्’ अ० ६।१।३७ वा० इति सम्प्रसारणम्। (दीदिहि) देदीप्यस्व। दीदयतिः ज्वलतिकर्मा। निघं० १।१६ ॥३॥
भावार्थः
मनुष्यैः पुरुषार्थिभिरेव भूत्वा परमेश्वर आह्वातव्यः। अकर्मण्यस्य प्रार्थनां स न कर्णे करोति ॥३॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ६।४८।७। रेवन्नः शुक्र दीदिहि इति पाठः। तदनन्तरं द्युमत् पावक दीदिहि’ इत्यधिकम्। २. अस्य मन्त्रस्य शंयुः ऋषिः, मन्त्रे च भरद्वाजस्य नाम। तदेतद् ऋषयो मन्त्रकर्तारः क्वचित् स्वकीयं नाम मन्त्रे प्रचिक्षिपुः इति ये मन्यन्ते तेषां मते कथं संगच्छेत? तत्समाधानं भरतस्वामी प्रोवाच—भरद्वाजे मम भ्रातरि इति भरद्वाजः शंयोर्भ्रातासीदिति तदीयोऽभिप्रायः। सायणोऽपि तथैव व्याचख्यौ। वस्तुतस्तु भरद्वाज इति यौगिकं नाम, अतो नात्रेतिहासः शङ्कनीयः।
इंग्लिश (4)
Meaning
O Resplendent God, Embodiment of Charity, most Youthful, the lord of riches, Purifier of all, with Thy pure brilliancy, Kindled in the heart of man of knowledge, strength and action, shine with thy lofty beams.
Translator Comment
Griffith translates Bhardwaj as Bhardwaj, the name of an individual. There is no history in the Vedas, hence there can be no historical reference. भरद्वाजे means भरद्रब पुरुषार्थिनि पुरुषे।
Meaning
O resplendent Agni, most youthful unageing power, bright and pure, kindled and rising in the mind and soul of sagely scholars in pursuit of science, energy and progress, shine with mighty flames of light, purity and power, and bring us the wealth of life replete with light and enlightenment. O generous light and fire of life, shine and enlighten us. (Rg. 6-48-7)
Translation
O Ever-Resplendent giver of peace and bliss, With Thy wonderful splendour and with Thy pure brilliancy O Ever Youthful Purifier shining in pure mind possessing wisdom, enlighten us. Mayst Thou glow with Thy wealth of knowledge in our pure hearts
Translation
O divine, ever-young, resplendent fire-divine, when kindled by the bearers of wisdom, you shine with many radiant attributes and pure radiance. O resplendent purifier, conferring riches upon us, ever continue to shine in our inner consciousness. (Cf. Rv VI.48.7)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : : (पावक अग्ने देव) પવિત્ર કરનારા પરમાત્મ દેવ ! (बृहद्भिः अर्चिभिः) અમારા દ્વારા કરેલી મહાન અર્ચનાઓ, હૃદયભાવથી ભરી સ્તુતિઓથી ફરી પ્રસન્ન થઈને (शुक्रेण शोचिषा) પોતાના સત્ય જ્ઞાન-પ્રકાશથી (समिधानः) દીપ્યમાન-પ્રકાશમાન બનીને (यविष्ठ्य) નિત્ય યુવાન-ઘડપણ રહિત પરમાત્મન્ ! (भरद्वाजे रेवत् दीदिहि) તારા અર્ચન જ્ઞાન-પ્રકાશબળ ધારણ કરનાર મને-ઉપાસકને માટે ઐશ્વર્યયુક્ત પ્રકાશિત થા. (૩)
भावार्थ
ભાવાર્થ : હે પવિત્રકારક, નિત્ય, અજર પરમાત્મન્ ! તું પોતાના ઉપાસકની મહત્ત્વપૂર્ણ હાર્દિક અર્ચનાઓ-સ્તુતિઓથી પ્રસન્ન થઈને, તે સ્તુતિ કરનારને માટે તારા જ્ઞાન-પ્રકાશથી પ્રકાશમાન બનીને, અધ્યાત્મ ઐશ્વર્યને પ્રકાશિત. કર; જે અવિનાશી છે - અમર છે. (૩)
उर्दू (1)
Mazmoon
ایشور کا پرکاش کس میں
Lafzi Maana
(پاوک اگنے دیو) ہے پِوتّر کرنے والے پرماتم دیو! (برہد بھی ارچی بھی) ہم سے کی گئی بہت ارچناپں، پرارتھناؤں کے دوارہ اپنی پُرنُور روشنیوں کے ساتھ (شکرین شوچِشا) اپنے ستیہ گیان پرکاش، شُدھ تیج سے (بھر دوا جے) گیان، بَل، ویریہ سی یُکت پُرشارتھی منش میں (سمدھانہ) پرکاشت ہوویں۔ (یوشِٹھ) ہے مہان یُوا۔ بڑھاپے سے سدا الگ۔ ہمیشہ نوجوان رہنے والے (ریوت) اپنے آگیا پالک، فرمانبردار شرناگت اُپاسکوں کو، سچے عابدوں کو دنیاوی اور رُوحانی دولتوں وِدّیا، گیان، دھن کو (دی دےیہی) دیتے ہوئے اُن کے جیونوں میں پرکاشت ہوویں۔ نُورِ الہٰی سے اُن کی زندگیاں مُنّور ہو جائیں۔
Tashree
پِوتّر من، شُدھ بُدھی (پاک و صاف دماغ) اور بلوان شریر میں ہی پربھُو کے پرکاش یا آنند جیوتی کے درشن ہوتے ہیں۔
मराठी (2)
भावार्थ
माणसांनी पुरुषार्थी बनून परमेश्वराला आवाहन करावे. अकर्मण्य माणसाची प्रार्थना तो ऐकत नाही ॥३॥
विषय
पुढील मंत्रात पुन्हा परमेश्वराला प्रार्थना केली आहे. -
शब्दार्थ
हे (यविष्ठ्य) अत्यंत युवा (पावक) पवित्रकर्ता तसेच (देव) दाता (अग्ने) तेजस्वी परमेश्वर (बृहद्भि:) आपल्या महान (अर्चिभि:) तेजाने आणि (शुक्रेण, शोचिषा) शुद्ध ज्ञान प्रकाशाने (भरद्वाजे) स्वत:च्या आत्म्यात शक्ती भरणाऱ्या पुरुषार्थ प्रिय माझ्या म्हणजे तुमच्या स्तोत्याच्या (उपासकाच्या) मनात शक्ती आणि उत्साह (समिधान:) जागृत करीत आपण (रेवत्) समृद्धीपूर्वक (दीदिहि) देदीप्यमान व्हा.
भावार्थ
मनुष्यांनी पुरुषार्थ करीत करीत वा पुरुषार्थ प्रयत्न केल्यानंतरच परमेश्वराला आवाहन केले पाहिजे. तो अकर्मण्य मनुष्याची प्रार्थना स्वीकारत नाही. ।।३।।
तमिल (1)
Word Meaning
(அக்னியே)! தேவரே! இளைஞனே! புனிதமாக்குபவனே ! நிர்மலமான சுடர்களால்
[1](பரத்வாஜரால்) மூட்டப்படும் நீ பெரிய சுடர்களால் செல்வமாய் ஒளி வீசவும்.
FootNotes
[1]. பரத்வாஜரால் - ஞானம் பலம் நிறைந்தவரால்
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