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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 369
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
    37

    ऋ꣢च꣣ꣳ सा꣡म꣢ यजामहे꣣ या꣢भ्यां꣣ क꣡र्मा꣢णि कृ꣣ण्व꣡ते꣢ । वि꣡ ते सद꣢꣯सि राजतो य꣣ज्ञं꣢ दे꣣वे꣡षु꣢ वक्षतः ॥३६९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋ꣡च꣢꣯म् । सा꣡म꣢꣯ । य꣣जामहे । या꣡भ्या꣢꣯म् । क꣡र्मा꣢꣯णि । कृ꣣ण्व꣡ते꣢ । वि । ते꣡इति꣢ । स꣡द꣢꣯सि । रा꣣जतः । यज्ञ꣢म् । दे꣣वे꣡षु꣢ । व꣣क्षतः ॥३६९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋचꣳ साम यजामहे याभ्यां कर्माणि कृण्वते । वि ते सदसि राजतो यज्ञं देवेषु वक्षतः ॥३६९॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ऋचम् । साम । यजामहे । याभ्याम् । कर्माणि । कृण्वते । वि । तेइति । सदसि । राजतः । यज्ञम् । देवेषु । वक्षतः ॥३६९॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 369
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 10
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 2;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र का देवता ‘ऋक्सामौ’ है, इसमें ऋक् और साम के अध्ययन का विषय है।

    पदार्थ

    हम (ऋचम्) ऋग्वेद का, और (साम) सामवेद का (यजामहे) अर्थज्ञानपूर्वक तथा गीतिज्ञानपूर्वक अध्ययन करते हैं, और अध्यापन कराते हैं (याभ्याम्) जिनसे अर्थात् जिनका अध्ययन-अध्यापन करके (कर्माणि) तदुक्त कर्मों को वेदपाठी लोग (कृण्वते) करते हैं। (ते) वे ऋग्वेद और सामवेद (सदसि) निवासगृह तथा सभागृह में (राजतः) शोभा पाते हैं, क्योंकि वहाँ उनका पाठ और गान किया जाता है। और वे (देवेषु) विद्वानों में (यज्ञम्) यज्ञ-भावना को (वक्षतः) प्राप्त कराते हैं ॥१०॥

    भावार्थ

    हमें चाहिए कि ऋग्वेद, सामवेद, सामयोनि ऋचा, ऋचा पर किया जानेवाला सामगान, यह सब योग्य गुरुओं से अर्थज्ञानपूर्वक पढ़कर घर में, सभा में और विभिन्न समारोहों के अवसरों पर सस्वर वेदपाठ और सामगान किया करें ॥१०॥ इस दशति में इन्द्र नाम से और कश्यप नाम से इन्द्र का स्मरण करने से, उसकी अर्चनार्थ प्रेरणा होने से, उसके ध्यान का फल प्रतिपादित होने से, उसके दान की याचना होने से, दिव्य उषा का प्रभाव वर्णित होने से और ऋक् तथा साम के अध्ययन का संकल्प वर्णित होने से इस दशति के विषय की पूर्व दशति के विषय के साथ संगति है ॥ चतुर्थ प्रपाठक में द्वितीय अर्ध की तृतीय दशति समाप्त ॥ चतुर्थ अध्याय में द्वितीय खण्ड समाप्त ॥

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    पदार्थ

    (ऋचं साम यजामहे) परमात्मा की स्तुति और उपासना का हम सेवन करें (याभ्यां कर्माणि कृण्वते) जिनके द्वारा—जिनके सेवन के साथ श्रेष्ठकर्म करते हैं (ते) वे दोनों (सदसि) हमारे हृदयसदन में (विराजतः) विशेषरूप से बने रहें, स्थान जमावें (यज्ञं देवेषु वक्षतः) हमारे अध्यात्म यज्ञ को हमारी समस्त इन्द्रियों में प्रवाहित करें।

    भावार्थ

    समस्त श्रेष्ठ कर्मों को परमात्मा की स्तुति उपासना से आरम्भ करना चाहिए, हमारे हृदय में स्तुति उपासना घर कर जावें और हमारी इन्द्रियों में अध्यात्मता का सञ्चार कर दें जिससे इन्द्रियाँ असंयम का कार्य न कर सकें॥१०॥

    विशेष

    ऋषिः—वामदेवः (वननीय उपासनीय देव जिसका है)॥ देवता—ऋक्सामे ‘इन्द्रसम्बद्धे’ (ऐश्वर्यवान् परमात्मा के ऋक्साम—स्तुति उपासना)॥<br>

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    विषय

    विद्या+श्रद्धा

    पदार्थ

    हम अपने जीवनों में (ऋचम्) = विज्ञान को और (साम) = भक्ति व उपासना को (यजामहे) = सङ्गत कर देते हैं। मैं मस्तिष्क को ज्ञान से परिपूर्ण करने का प्रयत्न करने का करता हूँ तो हृदय को भक्ति की भावना से भरने के लिए यत्नशील होता है। अथर्व के ('मूर्धानमस्य संसीव्य अथर्वा हृदयं च यत्') = इस उपदेश के अनुसार मस्तिष्क व हृदय को सी देने का प्रयत्न करता हूँ। जैसे सामवेद ऋग्वेद में समा - सा गया है उसी प्रकार मैं अपने ज्ञान में श्रद्धा का समावेश करता हूँ। ज्ञान शक्ति है, जिसे भक्ति क्रिया में परिणत कर दिया करती है। इस प्रकार (याभ्याम् )= जिस ज्ञान और भक्ति से (कर्माणि) = कर्मों को (कृण्वते) =  करते हैं, उन ज्ञान और भक्ति को मैं अपने जीवन में सङ्गत कर देता हूँ।

    (ते) = ये दोनों मिले हुए ही (सदसि) = सभा में अथवा जीव के निवासस्थानभूत इस शरीर में (विराजतः) = विशेष दीप्ति - [शोभा] - वाले होते हैं। अकेला ज्ञानी शोभावाला नहीं लगता - ब्रह्मराक्षस - सा प्रतीत होता है और अकेला भक्त तो कभी शोभा पाता ही नहीं। ये ज्ञान और श्रद्धा मिलकरके (देवेषु) = विद्वानों में यज्ञम् उत्तम कर्मों को (वक्षतः) = कराते हैं। (‘यदेव श्रद्धया विद्यया क्रियते तदेव वीर्यवत्तरं भवति') = उपनिषद् के इन वचनों के अनुसार श्रद्धा और ज्ञान के समन्वय से ही इनमें बड़े उत्तम दिव्यगुणों की उत्पत्ति होती है और ये 'वामदेव' बनते हैं - प्रशस्त इन्द्रियोंवाले बनकर 'गौतम' बनते हैं। 

    भावार्थ

    हमारे जीवनों में श्रद्धा और विद्या का समन्वय हो ।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = ( याभ्यां ) = जिन ऋग्वेद और सामवेद से ( कर्माणि ) = यज्ञ आदि समस्त संसार के कर्म ( कृण्वते ) = करते हैं उन ( ऋचं ) = ज्ञानमया ऋग्वेद और ( साम) = सर्वत्रव्यापक, सामवेद का ( यजामहे ) = हम स्वाध्याय करते हैं ।  ( ते ) = वे दोनों ( सदसि ) = यज्ञों और सभाओं में ( राजतः ) = विराजते हैं और ( देवेषु ) = विद्वानों में ( यज्ञं ) = यज्ञ दानादि को ( वि वक्षतः ) = वहन करते हैं, प्राप्त कराते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - वामदेव:।

    देवता - ऋक्सामे ।

    छन्दः - अनुष्टुभ् ।

    स्वरः - गान्धारः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    ऋक्सामौ देवते। ऋक्सामाध्ययनविषयमाह।

    पदार्थः

    वयम् (ऋचम्) ऋग्वेदम् (साम) सामवेदं च (यजामहे) अर्थज्ञानपूर्वकं गीतिज्ञानपूर्वकं च अधीमहे अध्यापयामश्च। यज देवपूजासंगतिकरणदानेषु। संगतिकरणं चात्र अध्ययनं, दानं च अध्यापनम्। (याभ्याम्) ऋक्सामभ्याम्, ययोः अध्ययनेनाध्यापनेन च इत्यर्थः (कर्माणि) तदुक्तानि कर्त्तव्यकर्माणि (कृण्वते) कुर्वन्ति तज्ज्ञाः। (ते) ऋक्साम्नी (सदसि) निवासगृहे सभागृहे च (राजतः) शोभेते, गृहेषु सभासु च तेषां पाठो गानं च क्रियते इत्यर्थः, (देवेषु) विद्वत्सु च (यज्ञम्) यज्ञभावनाम् (वक्षतः) वहतः प्रापयतः। वह प्रापणे धातोर्लेटि रूपम् ॥१०॥

    भावार्थः

    अस्माभिः ऋग्वेदं सामवेदं सामयोनिरूपामृचम् ऋच्यधूढं सामगानं च सर्वमेतद् योग्येभ्यो गुरुभ्योऽर्थज्ञानपूर्वकमधीत्य गृहे सभायां विभिन्नसमारोहेषु च सस्वरं वेदपाठः सामगानं च विधातव्ये ॥१०॥ अत्रेन्द्रनाम्ना कश्यपनाम्ना चेन्द्रस्य स्मरणात्, तदर्चनार्थं प्रेरणात्, तद्ध्यानफलप्रतिपादनात्, तद्दानयाचनात्, दिव्याया उषसः प्रभाववर्णनाद्, ऋक्सामाध्ययनसंकल्पवर्णनाच्चैतद्दशत्यर्थस्य पूर्वदशत्यर्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥ इति चतुर्थे प्रपाठके द्वितीयार्धे तृतीया दशतिः ॥ इति चतुर्थेऽध्याये द्वितीयः खण्डः ॥

    टिप्पणीः

    १. अथ० ७।५४।१ ऋषिः ब्रह्मा, देवते ऋक्साम्नी। ‘कृण्वते’, ‘वि ते’ ‘वक्षतः’ इत्यत्र क्रमेण ‘कुर्वते’, ‘एते’, ‘यच्छतः’ इति पाठः।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    With the assistance of the Sam and Rigveda dare performed. We study them. They are prominent in all Yajnas and societies. They preach the performance of Yajnas in all the planets.

    Translator Comment

    This verse clearly establishes that the Vedas are found in all the worlds besides Earth. Enumeration of the Sam and Rig is symbolical of all the four Vedas. They refer to the Vedas.

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    Meaning

    We use and chant Rks and Samans while we perform yajna, (Rks which give us the knowledge of the facts and processes of nature to be applied in programmes of human action, and the Samans which joyously celebrate the successful completion of the programme). By these, all works are initiated, conducted and completed. They shine, resonate, and glorify the yajna in the hall and they conduct the yajna in the divine forces of nature in the universe.

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    गुजराती (1)

    पदार्थ


    પદાર્થ : (ऋचं साम यजामहे) અમે પરમાત્માની સ્તુતિ અને ઉપાસનાનું સેવન કરીએ (याभ्यां कर्माणि कृण्वते) જેના દ્વારા-જેના સેવનની સાથે શ્રેષ્ઠ કર્મ કરીએ (ते) તે બન્ને (सदसि) અમારા હૃદયઘરમાં (विराजतः) વિશેષ રૂપથી રહે, બિરાજમાન રહે, (यज्ञं देवेषु वक्षतः) અમારા અધ્યાત્મયજ્ઞમાં અમારી સમસ્ત ઇન્દ્રિયોમાં પ્રવાહિત કરે. (૧૦)

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : સમસ્ત શ્રેષ્ઠ કર્મોનો આરંભ પરમાત્માની સ્તુતિ, ઉપાસનાથી કરવી જોઇએ, અમારા હૃદયમાં સ્તુતિ, ઉપાસના ઘર કરી જાય અને અમારી ઈન્દ્રિયોમાં અધ્યાત્મતાનો સંચાર કરી દે, જેથી ઇન્દ્રિયો સંયમમાં રહીને કાર્ય કરે. (૧૦)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    رگ اور سام کے منتروں سے اپاسنا!

    Lafzi Maana

    (یا بھیام کرمانی کرن وتے) جن رگوید اور سام وید سے اپاسنا آدی کرم کئے جاتے ہیں ان (رچم سام یجا مہے) ان رچاؤں اور سام کو گا کر ہم یگیہ کرتے ہیں، (تے سدسی راجتہ) وہ رگوید اور سام وید کے منتر یگیہ منڈپ میں شوبھائمان ہوتے ہیں اور (دیویشو یگیم دکھشتہ) دیووں، ودوانوں میں یگیہ کرموں کو پھیلاتے ہیں!

    Tashree

    بھگتی کرتے سام رگ کے منتروں سے ایش کی، شبھ کرم کی امر شکشا دیتے جو جگدیش کی.

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    आम्ही ऋग्वेद, सामवेद, सामयोनी ऋचा, ऋचावर केले गेलेले सामगान, योग्य गुरूंकडून अर्थज्ञानपूर्वक शिकून, घरात, सभेत, विभिन्न समारोहात सस्वर वेदपाठ व सामगान करावे ॥१०॥

    टिप्पणी

    या दशतिमध्ये इंद्र नावाने व कश्यप नावाने इंद्राचे स्मरण करण्याने, त्याच्या अर्चनेसाठी प्रेरणा असल्यामुळे, त्याच्या ध्यानाचे फळ प्रतिपादित केल्यामुळे, त्याच्या दानाची याचना असल्यामुळे व ऋक् आणि सामच्या अध्ययनाचा संकल्प वर्णित असल्यामुळे या दशतिच्या विषयाची पूर्व दशतिच्या विषयाबरोबर संगती आहे

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    विषय

    ऋक् साम देवता। ऋग्वेद आणि सामवेदाचे अध्ययनाविषयी -

    शब्दार्थ

    (वेदाध्यायी जन) (ऋचम्) ऋग्वेदाचे आणि (साम) सामवेदाचे (यजामहे) अर्थज्ञानासह आणि गीतिज्ञानासह अध्ययन करतो तसेच अध्यायनही करतो. (वाभ्यम्) ज्यांच्याप्रमाणे म्हणजे ज्या वेदांचे अध्ययन व अध्यापन करून वेदपाठीजन (कर्माणि) वेदात सांगितल्याप्रमाणे कर्म (कृण्वते) करतात. (ते) ते ऋग्वेद व सामवेद (सदसि) निवासगृहात व सभागृहात (राजतः) शोभित होतात. कारण तिथे त्यांचा पाठ केला जातो, गान केले जाते आणि ते (देवेषु) विद्वज्जनांना (यज्ञम्) यज्ञाचे महत्त्व (वक्षतः) प्राप्त करून देतात. ।। १०।।

    भावार्थ

    आम्ही सर्व सद्गृहस्थांनी घरात, सभेत वा विविध समारंभात ऋग्वेद, सामवेद, सामयोनि, ऋचा, ऋचेचे केलेले सुस्वर गायन अवश्य केले पाहिजे. या विद्या व कलाने अर्थज्ञान वा प्रक्रिया सुयोग्य गुरूकडून अर्थज्ञानपूर्वक शिकली पाहिजे तसेच सस्वर वेदपाठ व सामगान घरी, सभेत वा विशिष्ट अवसरांवर केले पाहिजे.।। १०।। या दशतीमध्ये इंद्र आणि कश्यप नावाने इंद्राचे स्मरम, त्याच्या अर्चनासाठी प्रेरणा, त्याच्या ध्यानाचे फल, त्याच्याकडून दान मिळण्याची याचना, दिव्य उषेचा प्रादुर्भाव या विषयांचे वर्णन आणि ऋक् व साम यांच्या अध्ययन- अध्यापनाचा संकल्प, हे सर्व विषय आहेत. करिता या दशतीतील विषयांची संगती मागील दशतीच्या विषयांशी आहे, हे जाणावे.।। चतुर्थ प्रपाठकातील द्वितीय अर्धाची तृतीय दशति समाप्त. चतुर्थ अध्यायाचा द्वितीय खंड समाप्त.

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    எவைகளால் செயல்களைச் செய்கிறார்களோ, அந்த ரிக்கு சாமனை [1]யஜிக்கிறோம்.
    அத்யயனஞ் செய்கிறோம். அவைகள் பெரிய விஷயத்தில் சபையில் அரசு புரிகின்றன. தேவர்களில் யக்ஞத்தைச் சுமந்து செல்லுகின்றன.

    FootNotes

    [1] யாஜிக்கிறோம் - நாடுகிறோம்.

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