Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 427
ऋषिः - ऋण0त्रसदस्यू
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - द्विपदा विराट् पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
41
प꣢रि꣣ प्र꣢ ध꣣न्वे꣡न्द्रा꣢य सोम स्वा꣣दु꣢र्मि꣣त्रा꣡य꣢ पू꣣ष्णे꣡ भगा꣢꣯य ॥४२७॥
स्वर सहित पद पाठप꣡रि꣢꣯ । प्र । ध꣣न्व । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । सो꣣म । स्वादुः꣢ । मि꣣त्रा꣡य꣢ । मि꣣ । त्रा꣡य꣢꣯ । पू꣣ष्णे꣢ । भ꣡गा꣢꣯य ॥४२७॥
स्वर रहित मन्त्र
परि प्र धन्वेन्द्राय सोम स्वादुर्मित्राय पूष्णे भगाय ॥४२७॥
स्वर रहित पद पाठ
परि । प्र । धन्व । इन्द्राय । सोम । स्वादुः । मित्राय । मि । त्राय । पूष्णे । भगाय ॥४२७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 427
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 9;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 9;
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आदि की छः ऋचाओं का पवमान सोम देवता है। इस मन्त्र में सोम परमात्मा से प्रार्थना की गयी है।
पदार्थ
हे (सोम) रसागार एवं शान्तिमय जगदीश्वर ! (स्वादुः) मधुर आप, मेरे (इन्द्राय) आत्मा के लिए, (मित्राय) मित्रभूत मन के लिए, (पूष्णे) पोषक प्राण के लिए और (भगाय) सेवनीय बुद्धितत्त्व के लिए (परि प्र धन्व) सब ओर से माधुर्य और शान्ति को क्षरित करो ॥१॥
भावार्थ
रसागार और शान्त परमेश्वर ही हमें रसमय और शान्तिप्रिय कर सकता है ॥१॥
पदार्थ
(सोम) हे शान्त उपासनारस! (इन्द्राय) ऐश्वर्यवान् परमात्मा के लिए (स्वादुः) स्वादरूप में (परिप्रधन्व) समन्तरूप से प्रगति कर “धन्वति गतिकर्मा” [निघं॰ २.१४] तथा (मित्राय) मित्रभूत परमात्मा के लिए (पूष्णे) पोषणकर्ता परमात्मा के लिए (भगाय) धनभाजक के लिए प्रगति कर।
भावार्थ
मेरा उपासनारस ऐश्वर्यवान् तथा मित्रभूत पोषणकर्ता परमात्मा के लिए तथा भग ऐश्वर्य विभाजक परमात्मा के लिये बहुत प्रक्षरित हो॥१॥
विशेष
ऋषिः—ऋणत्रसदस्यू ऋषी (ऋणत्रास को क्षीण करनेवाले जप और स्वाध्यायकर्ता)॥ देवता—पवमानः सोमः (आनन्दप्रद उपासनारस)॥ छन्दः—द्विपदा पंक्तिः॥<br>
विषय
पवमान सोम [आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ]
पदार्थ
हे (साम) = मेरे शरीर को पवित्र बनानेवाले सोम! तू (इन्द्राय) = उस सर्वशक्ति सम्पन्न प्रभु के लिए (परिप्रधन्व) = दौड़ चल - तीव्रता से उसे मुझे प्राप्त करा | उस प्रभु के लिए जोकि (मित्राय) = वस्तुत: मेरा हितचिन्तक है, (पूष्णे) = मेरा पोषण करनेवाला है और (भगाय) = ऐश्वर्य-वीर्य- यश-श्रीज्ञान और वैराग्य को प्राप्त करानेवाला है।
संसार के सभी मित्रों व हितचिन्तकों की अपनी सीमाएँ [limitations] हैं - वे उसी सीमित क्षेत्र में हमारा भला कर सकते हैं। प्रकृति से सब प्रकार का पोषण अन्ततोगत्वा प्रभु के द्वारा ही प्राप्त कराया जा रहा है। भग के स्वामी तो हैं ही भगवान्। उन्हीं की समीपपता में में भी भग के अंश को प्राप्त करनेवाला बनूँगा । प्रभु की समीपता मुझे इस सोम के द्वारा ही प्राप्त होगी। सोम मुझे निरन्तर प्रभु की ओर ले चल रहा हैं यह मेरे जीवन को पवित्र कर डालता है और मैं प्रभु सामीप्य का अधिकारी बनता हूँ। यह सोम मुझे प्रभु के समीप तो पहुँचाता ही है, साथ ही मेरे इस भौतिक जीवन को भी (स्वादुः) = मधुर बना देता है। मैं प्रभु को ही अपनी अन्तिम शरण समझता हूँ और संसार में बड़ी मधुरता से वर्तता हूँ।
सोम की रक्षा करनेवाला यह व्यक्ति निरन्तर प्रभु की ओर चल रहा है इसलिए 'ऋण' [ऋ गतौ] कहलाता है। यह मार्ग में आनेवाले विघ्नों को भयभीत करके दूर भगा देने के कारण ‘त्रसदस्यु’ होता है। सचमुच वासनारूप विघ्नों को कम्पित कर दूर करता हुआ यह प्रभु की ओर निरन्तर चलता रहा है।
भावार्थ
मैं सोम के संयम से अपने जीवन को मधुर बनाऊँ और प्रभु को अपना लक्ष्य समझू ।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = हे ( सोम ) = आनन्दरस को बहाने वाले, सब दुःखों के ओषधिरूप परमरस स्वरूप ऐश्वर्यवन् ! ( स्वादुः ) = ओषधिरस के समान परम आनन्ददायक आप ( मित्राय ) = सबको स्नेह करनेहारे ( पृष्णे ) = सब को पोषण करनेहार ( भगाय ) = सबके भजन, सेवन करने योग्य ( इन्द्राय ) = उस ऐश्वर्य के इच्छुक जीव के लिये ( परि प्र धन्व१ ) = चारों और उत्तमरूप से गति कर बहो ।
टिप्पणी
१. धन्वतिगतिकर्मा, ( नि० ) रिवि रवि धवि गत्यर्थाः । भ्वा० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - ऐश्वरा धिष्ण्या अग्नयः।
देवता - पवमानः।
छन्दः - द्विपदा पङ्क्तिः।
स्वरः - पञ्चमः।
संस्कृत (1)
विषयः
अथाद्यानां षण्णां पवमानः सोमो देवता। सोमः परमात्मा प्रार्थ्यते।
पदार्थः
हे (सोम) रसागार, शान्तिमय जगदीश्वर ! (स्वादुः) मधुरः त्वम्, मदीयाय (इन्द्राय) आत्मने, (मित्राय) मित्रभूताय मनसे, (पूष्णे) पोषकाय प्राणाय, (भगाय) सेवनीयाय बुद्धितत्त्वाय च (परि प्र धन्व) सर्वतः प्रक्षर, माधुर्यं शान्तिं च प्रस्रावयेत्यर्थः। धन्वतिः गतिकर्मा। निघं० २।१४ ॥१॥
भावार्थः
रसागारः शान्तश्च परमेश्वर एवास्मान् रसमयान् शान्तिप्रियांश्च कर्तुमर्हति ॥१॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ९।१०९।१।
इंग्लिश (2)
Meaning
0 Tranquil God, the Bestower of supreme felicity, rain happiness on the lovely, strong and prosperous soul!
Meaning
O Soma, come and inspire as the most delicious psychic and spiritual experience for the soul and the nation, for friends, for the sustaining guardians and for the spirit of honour and glory of humanity. (Rg. 9-109-1)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (सोम) હે શાન્ત ઉપાસનારસ (इन्द्राय) ઐશ્વર્યવાન પરમાત્માને માટે (स्वादुः) સ્વાદરૂપમાં (परीप्रधन्व) સમગ્રરૂપથી પ્રગતિ કર તથા (मित्राय) મિત્રભૂત પરમાત્માને માટે (पूष्णे) પોષણકર્તા પરમાત્માને માટે (भगाय) ધન વિભાજકને માટે પ્રગતિ કર. (૧)
भावार्थ
ભાવાર્થ : મારો ઉપાસનારસ ઐશ્વર્યવાન તથા મિત્રભૂત પોષણકર્તા પરમાત્માને માટે તથા ભગ - ઐશ્વર્ય વિભાજક પરમાત્માને માટે ખૂબજ પ્રક્ષરિત થાય. (૧)
उर्दू (1)
Mazmoon
بھگتی اور پریم پرمیشور کے لئے ہو!
Lafzi Maana
یہ بھگتی رس دیا ہوا بھگوان کا حوالے ہو بھگوان کے، دُنیاوی بندھنوں سے دُور ہو جائے، سب کے مِتر پیارے، سب کو بل دینے والے، سب کے بھاگیہ سوبھاگیہ کے داتا بھگوان کے لئے ہی وقف رہے سدا۔
Tashree
یہ سوم رس یہ بھگتی رس کس نے دِیا؟ کر حوالے اُس کے جس نے ہے دِیا۔
मराठी (2)
भावार्थ
रसाचे आगार व शांत परमेश्वरच आम्हाला रसमय व शांतिप्रिय बनवू शकतो ॥१॥
विषय
पुढील सहा मत्राची देवता - पवमान सोम। सोम परमात्म्याची प्रार्थना
शब्दार्थ
हे (सोम) रसागार एवं शांतिमय परमेश्वर, (स्वादुः) मधुर असे. आपण माझ्या (इन्द्राय) आत्म्यासाठी (नित्राय) मित्र असलेल्या मनासाठी, (पूष्णे) पोषक प्राणासाठी आणि (भगाय) माझ्या सेवनीय बुद्धि तत्त्वासाठी (परि प्र धन्व) सर्वतः माधुर्य आणि शांतीचा प्रवाह वाहू द्या.।। १।।
भावार्थ
रसाचा आनंदाचा जो आग व शांतिसागर परमेश्वरच आम्हाला रसमय आनंदपूर्ण व शांतिप्रिय करू शकतो.।। १।।
तमिल (1)
Word Meaning
சோமனே! இனிமையான நீ (இந்திரனுக்கு, பூஷணனுக்கு, பகனுக்கு) எங்கும் பெருகவும்.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal