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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 49
    ऋषिः - सुदीतिपुरुमीढावाङ्गिरसौ तयोर्वान्यतरः देवता - अग्निः छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
    41

    अ꣣ग्नि꣡मी꣢डि꣣ष्वा꣡व꣢से꣣ गा꣡था꣢भिः शी꣣र꣡शो꣢चिषम् । अ꣣ग्नि꣢ꣳ रा꣣ये꣡ पु꣢रुमीढ श्रु꣣तं꣢꣫ नरो꣣ऽग्निः꣡ सु꣢दी꣣त꣡ये꣢ छ꣣र्दिः꣢ ॥४९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ꣣ग्नि꣢म् । ई꣣डिष्व । अ꣡व꣢꣯से । गा꣡था꣢꣯भिः । शी꣣र꣡शो꣢चिषम् । शी꣣र꣢ । शो꣣चिषम् । अग्नि꣢म् । रा꣣ये꣢ । पु꣣रुमीढ । पुरु । मीढ । श्रुत꣢म् । न꣡रः꣢꣯ । अ꣣ग्निः꣢ । सु꣣दीत꣡ये꣢ । सु꣣ । दीत꣡ये꣢ । छ꣣र्दिः꣢ ॥४९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निमीडिष्वावसे गाथाभिः शीरशोचिषम् । अग्निꣳ राये पुरुमीढ श्रुतं नरोऽग्निः सुदीतये छर्दिः ॥४९॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्निम् । ईडिष्व । अवसे । गाथाभिः । शीरशोचिषम् । शीर । शोचिषम् । अग्निम् । राये । पुरुमीढ । पुरु । मीढ । श्रुतम् । नरः । अग्निः । सुदीतये । सु । दीतये । छर्दिः ॥४९॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 49
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 5
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 5;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    किसलिए मनुष्यों को परमात्मा की स्तुति करनी चाहिए, यह कहते हैं।

    पदार्थ

    हे (पुरुमीढ) अनेक गुणों से सिक्त स्तोता ! तू (अवसे) रक्षा, प्रगति, सर्वजनप्रीति और तृप्तिलाभ के लिए (शीरशोचिषम्) सर्वत्र व्यापक ज्योतिवाले (अग्निम्) तेजस्वी परमात्मा की (गाथाभिः) मन्त्रवाणियों से (ईडिष्व) स्तुति और आराधना कर। (श्रुतम्) महिमा वर्णन करनेवाले वेदादि शास्त्रों से सुने हुए (अग्निम्) उस परमात्मा की, तू (राये) भौतिक एवं आध्यात्मिक सब प्रकार के धनों की प्राप्ति के लिए (ईडिष्व) स्तुति और आराधना कर। हे (नरः) पौरुषवान् मनुष्यो ! (अग्निः) जगत् का नायक परमात्मा (सुदीतये) उत्तम कर्मवाले पुरुषार्थी जन के लिए (छर्दिः) शरण होता है ॥५॥

    भावार्थ

    धन आदि समस्त कल्याणों के अभिलाषी मनुष्यों को चाहिए कि वे पुरुषार्थी होकर सर्वत्र व्याप्त तेजोंवाले परमगुरु परमात्मा का भजन करें ॥५॥

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    पदार्थ

    (पुरुमीढ-अवसे गाथाभिः) हे बहुत स्तुतियों को सींचने वाले उपासक तू अपनी रक्षा के लिये स्तुतियों से “गाथा वाङ्नाम” [निघं॰ १.११] (शीरशोचिषम्-अग्निम्-ईडिष्व) सर्वत्र शयनशील-व्यापक ज्योति वाले परमात्मा की अवश्य स्तुति कर (राये श्रुतम्-अग्निम्) मोक्षैश्वर्य के लिये प्रसिद्ध परमात्मा की शरण ले (सुदीतये-अग्निः-नरः-छर्दिः) सुदान-आत्मदान-आत्मसमर्पण करने वाले के लिये नायक परमात्मा शरण बन जाता है “छर्दिः-गृहनाम” [निघं॰ ३.४]।

    भावार्थ

    मानव की सच्ची रक्षा परमात्मा की स्तुति से प्राप्त होती है अतः स्तुतियों से उस को तृप्त कर, सर्वत्र व्याप्त परमात्मा की शरण परमरक्षा है, वह आत्मसमर्पण करने वाले अपने उपासक को मोक्षैश्वर्य प्राप्त कराने के लिये अपनी अनश्वर शरण में ले लेता है॥५॥

    विशेष

    ऋषिः—सुदीतिपुरुमीढावृषी (आत्मसमर्पण सुदानकर्ता, स्तुति का बहुत सींचने वाला उपासक)॥<br>

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    विषय

    प्रभु किसको शरण देते हैं?

    पदार्थ

    १. हे मनुष्य! (तू अवसे) = रक्षा के लिए (शीर ) = [ शृ हिंसायम्] हिंसक हैं (शोचिषम्) = ज्ञानाग्नि की ज्वालाएँ जिसकी, उस (अग्निम्) = प्रभु की (गाथाभिः) = गायन के द्वारा (ईडिष्व) = स्तुति कर | मनुष्य पर प्रतिक्षण काम-क्रोधादि वासनाओं का आक्रमण हो रहा है। उस आक्रमण से अपने बचाव के लिए एक ही उपाय है कि मनुष्य प्रतिक्षण प्रभु का चिन्तन करे। जैसे गडरिये अपनी रक्षा के लिए वन में चारों ओर अग्नि प्रज्वलित कर लेते हैं, उसी प्रकार हम काम-क्रोधादिरूप हिंस्र पशुओं से इस भव - कान्तार में अपने बचाव के लिए ज्ञानाग्नि के पुञ्ज प्रभु को अपने चारों ओर सदा दीप्त रक्खें ।

    २. हे (पुरुमीढ)= धन की खूब वर्षा करनेवाले पुरुष ! तू तो धन की वर्षा करता ही रह । धन समाप्त हो जाने की चिन्ता न कर | (राये)=धन के लिए (अग्निम् )- उस प्रभु की (ईडिष्व) स्तुति कर, अर्थात् देता जा, और धन के लिए उस प्रभु को पुकारता चल । तू बाँट, बाँटने के लिए धन प्रभु प्राप्त कराएँगे।

    ३. हे (नरः)=मनुष्यो! श्(रुतम्) = [शृणुत] सुनो। (अग्निः) = वे प्रभु (सुदीतये) = खूब दान देनेवाले के लिए (छर्दिः)=गृह, आश्रय, रक्षणस्थान [Shelter] हैं। जो खूब देता है, वह कभी वासनाओं का शिकार नहीं होता । पञ्चयज्ञ करके यज्ञशेष खानेवाले के पास विलास के लिए धन बचता ही नहीं।

    प्रभु करें कि हम इस मन्त्र के ऋषि ‘सुदीति' खूब देनेवाले और ‘पुरुमीढ' खूब धन की वर्षा करनेवाले बनें।

    भावार्थ

    प्रभु रक्षक हैं। हे मनुष्य ! तू दानी बन । प्रभु तुझे धन भी प्राप्त कराएँगे और वासनाओं से भी बचाएँगे।

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    विषय

    परमेश्वर की स्तुति

    भावार्थ

    भा० = हे मनुष्य ! ( शीरशोचिषम्१   ) = सुप्त ज्योति वाले, ( अग्निं  ) = अग्नि, परमेश्वर को ( अवसे ) = अपनी रक्षा, पालन के लिये ( गाथाभिः ) = नाना प्रकार के वेदमन्त्रों और विज्ञान कथाओं से ( ईडिष्व ) = वर्णन कर ।  हे ( पुरुमीढ२  ) = और बहुत ज्ञान सिचे ! पुरुष ! ( अग्निम् ) = अग्नि, ज्ञानवान् का आश्रय ( राये ) = धनादि विभूति प्राप्ति के लिये ले । ( श्रुतं ) = उसी प्रसिद्ध या विद्वान् अग्नि, ज्ञानी के समान प्रभु को ( नरः३  ) = नेता और नरनारी भी अपना आश्रय बनाते हैं । ( सुदीतये ) = प्रकाश करने के निमित्त भी वह ( अग्नि ) = अग्नि ही ( छर्दिः ) = दीप्तिमय प्रकाश है । अथवा ( छर्दि; सुदीतये अग्निः ) = घर को प्रकाशित करने के लिये दीपक के समान भी वही ज्ञानमय प्रभु हृदयगृह का और ब्रह्माण्ड  का प्रकाशक है ।

    टिप्पणी

    ४९ -'अग्निं सुदीतये छदिः' इति ऋ० ।
    १. शीरं अनुशायिनमिति वा आशीनमिति वा इति । निरु० ४ | २ | १४ ॥
    २. हे पुरुमीढ ! मदीयान्तरात्मन् ! इति मा० वि० ।
    ३. नर इति मनुष्यनाम । नि० २ ।  ३ ।  नरं नराकारम् इति मा० वि० । 
    ४.'छर्दि छर्द संदीपने ' चुरादिः ।
     

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - सुदीतिपुरुमीढष्कम्भा:।

    छन्दः - बृहती।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ किमर्थं जनैः परमात्मा स्तोतव्य इत्युच्यते।

    पदार्थः

    हे (पुरुमीढ) पुरुभिः बहुभिः गुणैः सिक्त स्तोतः२। पुरु बहुनाम। निघं० ३।१। मिह सेचने क्तः। त्वम् (अवसे) रक्षणाय, प्रगतये, सर्वजनप्रीतये, परमतृप्तिलाभाय वा। रक्षणगतिकान्तिप्रीतितृप्त्या- द्यर्थाद् अव धातोः तुमर्थे असेन् प्रत्ययः। (शीरशोचिषम्३) शीरं सर्वत्र व्याप्तं शोचिः ज्योतिर्यस्य तम्। (शीरम्) अनुशायिनमिति वाऽऽशिनमिति वा। निरु० ४।१४। शीङ् स्वप्ने, स्फायितञ्चिवञ्चि०’ उ० २।१३ इति रक् प्रत्ययः। (अग्निम्) तेजोमयं परमात्मानम् (गाथाभिः) मन्त्रवाग्भिः। गाथा वाङ्नाम। निघं० १।११। (ईडिष्व) स्तुहि, आराध्नुहि (श्रुतम्) तन्महिमवर्णनपरेभ्यो वेदादिशास्त्रेभ्यः कर्णगोचरतां नीतम् (अग्निम्) तं परमात्मानम्, त्वम् (राये) भौतिकाध्यात्मिकसर्वविधधनानां प्राप्तये (ईडिष्व) स्तुहि, आराध्नुहि। हे (नरः) पौरुषसम्पन्नाः जनाः ! (अग्निः) जगन्नायकः परमात्मा (सुदीतये४) शोभना दीप्तिः गतिः क्रिया यस्य तस्मै पुरुषार्थिने जनाय। दीयतिः गतिकर्मा। निघं० २।१४। बहुव्रीहौ नञ्सुभ्याम्।’ अ० ६।३।१७२ इत्युत्तरपदस्यान्तोदात्तत्वम्। (छर्दिः) शरणं भवति। छर्दिः गृहनाम। निघं० ३।४ ॥५॥

    भावार्थः

    धनाद्यशेषकल्याणप्राप्तये जनैः पुरुषार्थिभिर्भूत्वा सर्वत्र व्याप्तकान्तिः परमगुरुः परमात्मा भजनीयः ॥५॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ८।७१।१४, अ० २०।१०३।१। उभयत्र नरोऽग्निं इति पाठः। २. एष पदार्थः ऋ० १।१५१।२ इत्यस्य दयानन्दभाष्याद् गृहीतः। ३. शीरं व्यापि शोचिर्दीप्तिः। व्यापिनी दीप्तिर्यस्यासौ शीरशोचिः, तं शीरशोचिषम्, व्यापिदीप्तिमित्यर्थः। अथवा जठरात्मना आश्रयणीया दीप्तिर्यस्य—इति वि०। श्रयतेः शीरम्, शोचिः दीप्तिः। प्रवृद्ध- शोचिषम्—इति भ०। शयनस्वभावरोचिषम्—इति सा०। ४. सुदीतये शोभनस्य दानस्यार्थाय—इति वि०। एतन्मते केवलं पुरुमीढस्यार्षं, न सुदीतेरपि, अतस्तेन यौगिकार्थो निरूपितः अन्तरात्मनः प्रैषः, हे मदीय अन्तरात्मन् ! अग्निम् ईडिष्व स्तुहीत्यर्थः इति पुरुमीढो ब्रूते, इति तदीयः आशयः। अन्येषां मते सुदीतिपुरुमीढयोरुभयोरार्षम्, अतस्तैः सुदीतये एतत्संज्ञाय ऋषये इति व्याख्यातम्। वस्तुतस्तु मन्त्रागतौ सुदीतिपुरुमीढौ यौगिकार्थमेव सूचयतः।

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O soul, sing with songs of praise, for protection and wealth, the praise of God, whose glory is vast, and Who is well-sung w the Vedas. Ye men , God is a house for nice protection.

    Translator Comment

    Just as a house affords us in shelter against storm and rain, and inclement weather, so does God protect us from the evil passions of lust, anger, pride and avarice.

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    Meaning

    Pray to Agni of bright flames with songs and praise for protection and progress. O generous scholar, study and serve Agni for wealth, famous among people, Agni who provides home and happiness for the man of brilliance. (Rg. 8-71-14)

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    Translation

    Solicit with your hymns for protection the adorable fire-divine, whose bright and consuming flames are spread all over. Praise the same for wealth, O much-renowned worshipper. The other devotees are praising that far-famed one on their own behalf. May you recommend to the same fire-divine for a house to me, his devotee. (Cf. Rv VIII.71.14)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (पुरुमिढ अवसे गाथाभिः) હે અનેક સ્તુતિઓને સિંચનાર ઉપાસક તું પોતાની રક્ષા માટે સ્તુતિઓથી (शीरशोचिषम् अग्निम् ईडिष्व) સર્વત્ર શયનશીલ-વ્યાપક જ્યોતિવાળા પરમાત્માની અવશ્ય સ્તુતિ કર. (राये श्रुतम् अग्निम्)  મોક્ષના ઐશ્વર્યને માટે પ્રસિદ્ધ પરમાત્માનું શરણ પ્રાપ્ત કર. (सुदीयते अग्निः नरः छर्दिः) સુદાન = આત્મદાન આત્મસમર્પણ કરનાર માટે નાયક પરમાત્મા શરણ બની જાય છે.

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : મનુષ્યની સાચી રક્ષા પરમાત્માની સ્તુતિ દ્વારા પ્રાપ્ત થાય છે, તેથી સ્તુતિઓથી તેને તૃપ્ત કર, સર્વત્ર વ્યાપ્ત પરમાત્માનું શરણ પરમ રક્ષા છે, તે આત્મસમર્પણ કરનાર પોતાના ઉપાસકને મોક્ષના ઐશ્વર્યને પ્રાપ્ત કરાવવા માટે પોતાના અવિનાશી શરણમાં લઈ લે છે. (૫)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    چھت والے گھر کی طرح سب کارکھشک بھگوان

    Lafzi Maana

    ہے اُپاسک! تُو (اَو سے) اپنی آتم رکھشا کے لئے (اگنم) پرکاش روپ ایشور کی (ایدشو) سُتتی کیا کر (گا تھا بھی) وید منتر گان کے دوارہ اور وگیان کتھاؤں سے اُس کی مہما کو پھیلا۔ جوکہ (شیرِشوچشمِ) پرسِّدھ جیوتی روپ سب میں سما رہا ہے (پُورو میڑھ) اپنی آتما کو بھگتی رس سے بھرنے والے ہے عابد جگیاسوُ! تُو (رائے) ادھیاتمک دھن ایشوریہ کی پراپتی کے لئے (اگنم) اُس جِیون جیوتی کی اور جو (شرُتم) ویدوں سے ہی سُننے میں جس کا یش ہمیشہ  سے چلا آ رہا ہے (نر) ہے منش نر ناریو! اُسی کی اُپاسنا کرو۔ کیونکہ یہ جگت کا نیتا پرمیشور اگنی (سُودیتئے) کشٹ نوارن کے لئے (چھروی) چھت والے گھر کے سمان ہے۔
     

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    धन इत्यादी संपूर्ण कल्याणाची अभिलाषा बाळगणाऱ्या माणसांनी पुरुषार्थी बनून सर्वत्र व्याप्त असलेल्या तेजस्वी परमगुरू परमात्म्याचे भजन करावे ॥५॥

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    विषय

    आता मनुष्यानी परमेश्वराची स्तुती का करावी? हे सांगतात. -

    शब्दार्थ

    (पुकमी) अनेक गुणांनी समृद्ध अशा हे स्तोता (मंत्राद्वारे उपासना करणारा) तू (अवसे) रक्षण, प्रगती, सर्वांविषयी प्रीती आणि तृप्ति लाभाकरीता (शीरशोचिषम्) सर्वत्रव्यापक ज्योतिष्मान अशा (अग्निम्) तेजस्वी परमात्म्याची (गायाभि:) मंत्र वाणीद्वारे (ईडिष्व) स्तुती व आराधना कर. (श्रुतम्) ज्यात त्याच्या महिमेचे वर्णन केले आहे, अशा वेदादी शास्त्रांनी सांगितलेल्या (अग्निम्) त्या परमेश्वराची (राये) भौतिक तसेच आध्यात्मिक अशा सर्व प्रकारच्या धनांच्या प्रापतीसाठी (ईडिष्व) आराधना कर, स्तुती कर. हे (नर:) पौरूषवान मनुष्यांनो, (अग्नि:) विश्वास ठेवा की, तो जगन्नायक परमेश्वर (सुदीतये) उत्तम कर्म करणाऱ्या पुरुषार्थी मनुष्यासाठी (छर्दि) शरणस्थळ वा आश्रय होतो. ।।५।।

    भावार्थ

    धन आदी समस्त कल्याणांची अभिलाषा असणाऱ्या मनुष्यांनी पुरुषार्थी व्हायला हवे. तसेच ज्याचे तत्र सर्वत्र व्याप्त आहे अशा परमगुरू परमेश्वराने भजन केले पाहिजे. ।।५।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    [1](புருமீடனே) ! நமது ரட்சிப்பிற்கு மந்திரமொழிகளால் ஐசுவரியத்திற்கு சயன சுபாவ சோதியான சிறந்த (அக்னியைத்) துதிக்கவும், மானிடர்களே! அவன் சுகத்திற்கு நிலயமாவான்.

    FootNotes

    [1].புருமீடனே - அந்தராத்மாவே

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