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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 518
    ऋषिः - सप्तर्षयः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
    22

    अ꣣भि꣡ सोमा꣢꣯स आ꣣य꣢वः꣣ प꣡व꣢न्ते꣣ म꣢द्यं꣣ म꣡द꣢म् । स꣣मु꣡द्रस्याधि꣢꣯ वि꣣ष्ट꣡पे꣢ मनी꣣षि꣡णो꣢ मत्स꣣रा꣡सो꣢ मद꣣च्यु꣡तः꣢ ॥५१८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ꣣भि꣢ । सो꣡मा꣢꣯सः । आ꣣य꣡वः꣢ । प꣡व꣢꣯न्ते । म꣡द्य꣢꣯म् । म꣡द꣢꣯म् । स꣣मुद्र꣡स्य꣢ । स꣣म् । उद्र꣡स्य꣢ । अ꣡धि꣢꣯ । वि꣣ष्ट꣡पे꣢ । म꣣नीषि꣡णः꣢ । म꣣त्सरा꣡सः꣢ । म꣣दच्यु꣡तः꣢ । म꣣द । च्यु꣡तः꣢꣯ ॥५१८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि सोमास आयवः पवन्ते मद्यं मदम् । समुद्रस्याधि विष्टपे मनीषिणो मत्सरासो मदच्युतः ॥५१८॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । सोमासः । आयवः । पवन्ते । मद्यम् । मदम् । समुद्रस्य । सम् । उद्रस्य । अधि । विष्टपे । मनीषिणः । मत्सरासः । मदच्युतः । मद । च्युतः ॥५१८॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 518
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 8
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 5;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में यह वर्णन है कि कौन कहाँ आनन्दरस को प्रवाहित करते हैं।

    पदार्थ

    (मनीषिणः) मनन करनेवाले, (मत्सरासः) उल्लासयुक्त, (मदच्युतः) आनन्द बहानेवाले (सोमासः) ब्रह्मानन्द रूप सोमरस का पान किये हुए (आयवः) मनुष्य (समुद्रस्य विष्टपे अधि) राष्ट्ररूप अन्तरिक्ष के लोक में अर्थात् राष्ट्रवासी जनों में (मद्यम्) उल्लासजनक (मदम्) ब्रह्मानन्द-रस को (पवन्ते) प्रवाहित करते हैं ॥८॥

    भावार्थ

    स्वयं ब्रह्मानन्द-रस में मग्न योगी जन अन्यों को भी ब्रह्मानन्द-रस में मग्न क्यों न करें? ॥८॥

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    पदार्थ

    (आयवः) प्राप्त होने वाला (मनीषिणः) अन्तर्यामी (मत्सरासः) आनन्दरूप (मदच्युतः) हर्ष चुआने—आनन्द वर्षाने वाला (सोमासः) शान्तस्वरूप परमात्मा ‘सर्वत्र बहुवचनमादरार्थम्’ (समुद्रस्य-अधिविष्टपे) प्राणों और रक्त को सम्यक् शरीर में फेंकने वाले हृदय के विष्टप—गुहा ब्रह्म स्थान में “विष्टप एव......यस्मिन्नेतद् ब्रह्म” [जै॰ १.१४३] (मद्यं मदम्) हर्षकर आनन्द कर ( पवन्ते) ‘पवते’ प्रवाहित करता है।

    भावार्थ

    प्राप्त होने वाला अन्तर्यामी आनन्दरूप आनन्द वर्षाने वाला शान्तस्वरूप परमात्मा हृदय के गुहारूप—गह्वर स्थान में हर्षाने योग्य आनन्द को प्रवाहित करता है॥८॥

    विशेष

    ऋषिः—विश्वामित्रः॥<br>

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    विषय

    उत्साह का संचार

    पदार्थ

    (समुद्रस्य) = प्रसादगुणयुक्त हृदय के (अधिविष्टपे) = स्थान में अर्थात् निर्मल अन्तःकरण में (मनीषिणः) = मन का शासन करनेवाली बुद्धिवाले (मत्सरासः) = उल्लासमय जीवनवाले (मदच्युतः) = मद व उल्लास का सारे समाज में संचार 'वर्षा' करनेवाले (सोमासः) = सोम की रक्षा के द्वारा सोम के पुंज बने हुए (आयवः) =गतिशील मनुष्य (मद्यम्) = मद-मस्ती से युक्त (मदम्) - उल्लास को (अभिपवन्ते) = सर्वत्र प्रवाहित करते हैं।

    (‘कामो हि समुद्रः') इस उपनिषद वाक्य के अनुसार समुद्र का अर्थ काम है। उस काम का स्थान है ‘हृदय' । समुद्र शब्द उस हृदय के लिए भी प्रयुक्त होता है जोकि उल्लासमय है। इस उल्लासमय कामना के अधिष्ठान हृदय में जो मनीषी लोग हैं, अर्थात् जो मन को पूर्ण संयम करनेवाले हैं - अतएव उल्लासमय हैं - वे औरों के जीवनों में भी उत्साह का संचार करते हैं। ये सोम के पुञ्ज सर्वत्र एक मस्तीवाले उल्लास को प्रवाहित करते हैं। ये न स्वयं निराश होते हैं न इनके जीवन के सम्पर्क में आनेवाले लोग निराश हुआ करते हैं। 

    भावार्थ

    हम संयमी बनें, और हमारे जीवन में एक मस्ती हो।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = ( सोमासः ) = सोम= सौम्य स्वभाव के शान्त, तपस्वी ( आयवः ) =  दीर्घजीवी, ( मदच्युतः ) = हर्ष, सुख का प्रकाश करनेहारे, मौजी ( मत्सरासः ) = स्वयं गौरव से परिपूर्ण, आनन्दयुक्त, ( मनीषिणः ) = मन को अपने वश करने हारे, योगि जन ( समुद्रस्य ) = उमड़ते हुए आनन्दसागर की ( अधिविष्टपे ) = चरम सीमा में स्थित होकर ( मद्यं ) = हर्षजनक ( मदं ) = आनन्दरस को ( अभि पवन्ते ) = चारों ओर बहाते या साक्षात् करते हैं । 

    टिप्पणी

    ५१८ - 'अधिविष्टपि', 'मत्सरासः स्वर्विदः' इति ऋ० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - भरद्वाजः काश्यपो गोतमोऽत्रिर्विश्वामित्रो जमदग्निर्वसिष्ठश्चैते सप्तर्षयः ।

    देवता - पवमानः ।

    छन्दः - बृहती।

    स्वरः - मध्यमः।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ के कुत्रानन्दरसं प्रवाहयन्तीत्युच्यते।

    पदार्थः

    (मनीषिणः) मननवन्तः, (मत्सरासः) उल्लासमयाः, (मदच्युतः) आनन्दस्राविणः (सोमासः) पीतब्रह्मानन्दरूपसोमाः। अत्र सोमशब्दस्य सोमवति लक्षणा विज्ञेया, यद्वा सोमासः सोमवन्तः, मतुब्लुक्। (आयवः) मनुष्याः। आयव इति मनुष्यनाम। निघं० २।३। (समुद्रस्य विष्टपे अधि) राष्ट्ररूपस्य अन्तरिक्षस्य लोके, राष्ट्रवासिषु जनेषु इत्यर्थः। (मद्यम्) उल्लासजनकम् (मदम्) ब्रह्मानन्दरसम् (पवन्ते) प्रवाहयन्ति। ‘मत्सरासः’, ‘सोमासः’ इत्युभयत्र ‘आज्जसेरसुक्’ इति जसोऽसुगागमः ॥८॥

    भावार्थः

    स्वयं ब्रह्मानन्दरसे मग्ना योगिनो जना अन्यानपि ब्रह्मानन्दरसमग्नान् कुतो न कुर्युः ॥८॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।१०७।१४, ‘विष्टपे’, ‘मदच्युतः’ इत्यत्र क्रमेण ‘विसृपि, स्वर्विदः’ इति पाठः। साम० ८५६।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Austere, aged, ecstatic, rapturous, self-controlled Yogis, stationed in the extreme boundary of the ocean of joy, spread gladdening delight all round.

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    Meaning

    Intelligent and dedicated lovers of Soma refine and sublimate their pleasurable joy of the heart and emotion, direct it to divinity on top of the existential ocean of daily business and, thoughtful, ecstatic and divinely oriented, experience the heavenly ecstasy of Soma as in samadhi. (Rg. 9-107-14)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (आयवः) પ્રાપ્ત થવાવાળા (मनीषिणः) અન્તર્યામી (मत्सरासः) આનંદરૂપ (मदच्युतः) આનંદ ટપકાવનાર-આનંદ વર્ષાવનાર (सोमासः) શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મા (समुद्रस्य अधिविष्टपे) પ્રાણોને તથા રક્તને શરીરમાં ફેંકનાર હૃદયની વિષ્ટરૂપ-ગુણ બ્રહ્મસ્થાનમાં (मद्यं मदम्) હર્ષકર-આનંદકર (पवन्ते) પ્રવાહિત કરે છે. (૮)

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : પ્રાપ્ત થનાર, અન્તર્યામી, આનંદ વર્ષક, શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મા હૃદયની ગુહા રૂપગુફા સ્થાનમાં હર્ષને માટે આનંદને પ્રવાહિત કરે છે. (૮)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    بھگتی کے رس سے ہی شانتی اور آنند

    Lafzi Maana

    بھگتی کے رس میں ڈوبے ہوئے من پر قابو حاصل کئے ہوئے شانتی کے سمندر اور سب پر سُکھ شانتی کی ورشا کرنے والے یوگی، عابد، اُپاسک اپنے دل کے ساگر کی تفکرات سے خالی شانت گُفا میں مستی سے جُھومتے ہوئے اِیشوری آنند کو پراپت ہوتے ہیں۔

    Tashree

    عارفوں کے دل میں بستا سوم آنند کند ہی، جس سے اُن کو شانتی رہتی اور ہے آنند بھی۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    स्वत: ब्रह्मानंद रसात मग्न योगी जनांनी इतरांनाही ब्रह्मानंद रसात का मग्न करू नये? ॥८॥

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    शब्दार्थ

    (मनीविणः) मननशील (मत्सरासः) उल्हासमय तसेच (मदच्युतः) आनंद प्रवाहित करणारे (सोमासः) ब्रह्मानंदरूप सोमरसाचे सेवन केलेले (जायनः) मनुष्य (समुद्रस्य विष्टषे अधि) राष्ट्ररूप अंतरिक्षात म्हणजे राष्ट्रवासी जनात (मधम्) उल्हादायक (मदम्) ब्रह्मानंद रस (पवन्ते) प्रवाहित करतात. ।। ८ ।।

    भावार्थ

    स्नतः ब्रह्मानंद रसात मग्न योगीजनांनी इतरांसाठी ब्रह्मानंद रसात मग्न का करू नये ? (अर्थात अवश्य करावे) ।। ८ ।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    செல்லும் சுபாவமான சோமதுளிகள் ஆகாசத்தின் அதி உத்தம நிலயத்தில் ஓடுங்கால் இனிமை நிறைந்து மனோமயமானவன் இன்பமளித்து சந்தோஷமளிப்பவன் பெருகுகிறான்.

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