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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 519
    ऋषिः - सप्तर्षयः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
    39

    पु꣣नानः꣡ सो꣢म꣣ जा꣡गृ꣢वि꣣र꣢व्या꣣ वा꣢रैः꣣ प꣡रि꣢ प्रि꣣यः꣢ । त्वं꣡ विप्रो꣢꣯ अभवोऽङ्गिरस्तम꣣ म꣡ध्वा꣢ य꣣ज्ञं꣡ मि꣢मिक्ष णः ॥५१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पु꣣नानः꣢ । सो꣣म । जा꣡गृ꣢꣯विः । अ꣡व्याः꣢꣯ । वा꣡रैः꣢꣯ । प꣡रि꣢꣯ । प्रि꣣यः꣢ । त्वम् । वि꣡प्रः꣢꣯ । वि । प्रः꣣ । अभवः । अङ्गिरस्तम । म꣡ध्वा꣢꣯ । य꣣ज्ञ꣢म् । मि꣣मिक्ष । नः ॥५१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुनानः सोम जागृविरव्या वारैः परि प्रियः । त्वं विप्रो अभवोऽङ्गिरस्तम मध्वा यज्ञं मिमिक्ष णः ॥५१९॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पुनानः । सोम । जागृविः । अव्याः । वारैः । परि । प्रियः । त्वम् । विप्रः । वि । प्रः । अभवः । अङ्गिरस्तम । मध्वा । यज्ञम् । मिमिक्ष । नः ॥५१९॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 519
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 9
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 5;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में सोम जीवात्मा को उद्बोधित किया गया है।

    पदार्थ

    हे (अङ्गिरस्तम) अतिशय तेजस्वी (सोम) मेरे अन्तरात्मन् ! (जागृविः) जागरूक, (अव्याः वारैः) भेड़ों के बालों से निर्मित दशापवित्रों के सदृश बुद्धि के तर्कों से (परि पुनानः) असत्य के त्याग तथा सत्य के स्वीकार द्वारा स्वयं को पवित्र करता हुआ (प्रियः) सबका प्रिय (त्वम्) तू (विप्रः) ज्ञानी (अभवः) हो गया है। वह तू (नः) हमारे (यज्ञम्) जीवन-यज्ञ को (मध्वा) माधुर्य से (मिमिक्ष) सींचने का प्रयत्न कर ॥९॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिए कि वे जागरूक, पवित्र, सबके प्रिय, ज्ञानी, तेजस्वी और मधुर व्यवहार करनेवाले होवें ॥९॥

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    पदार्थ

    (अङ्गिरस्तम सोम) हे प्राणतम—अतीवप्राणस्वरूप “प्राणो वा अङ्गिराः” [श॰ ६.१.२.२८] शान्तस्वरूप परमात्मन्! (त्वम्) तू (पुनानः) हमें पवित्र करने वाला (प्रियः) स्नेही (वारैः) रक्षण कर्मों से (परि-अव्याः) हमारी सब ओर से रक्षा कर, तथा (विप्रः-अभवः) विशेष कामनापूरक हो (नः) हमारे (यज्ञम्) अध्यात्मयज्ञ को (मध्वा मिमिक्ष) अपने मधुर रस से सींचने की इच्छा कर—सींच।

    भावार्थ

    अतिप्राणरूप शान्तस्वरूप परमात्मन्! तू हमें पवित्र करने वाला स्नेही रक्षण क र्मों से सब ओर से हमारी रक्षा कर तथा विशेष कामनापूरक हो, हमारे अध्यात्मयज्ञ को अपने मधुर रस से सींचता रह॥९॥

    विशेष

    ऋषिः—काश्यपः॥<br>

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    विषय

    हमारा जीवन माधुर्यमय हो

    पदार्थ

    हे (सोम) = सोम! तू (पुनान:) = हमारे जीवनों को पवित्र करता है, जागृवि: हमारी चेतना को स्थिर रखता है। संयमी पुरुष ‘अपने स्वरूप व अपने जीवन के लक्ष्य' को कभी भूलता नहीं । इसी का यह परिणाम होता है कि वह कभी भी सांसारिक प्रलोभनों में नहीं फँसता । यह सोम (अव्या) = रक्षण के द्वारा, सब प्रकार के राग-द्वेषादि अशुभ भावों से तथा (वारैः) = सब रोगों के निवारणो के द्वारा (परि- प्रिय:)- हमारे शरीर में सर्वत्र तृप्ति व कान्ति को पैदा करनेवाला है [प्रीञ् तर्पणे कान्तौ च ] । जिस समय मनुष्य ईर्ष्या-द्वेषादि से दूर होता है तथा शरीर में किसी प्रकार का रोग नहीं होता, उस समय मनुष्य एक अफ्रुत सन्तोष को अनुभव करता है ।

    इस प्रकार हे सोम! (त्वम्) = तू (विप्रः अभव) = सब प्रकार की न्यूनताओं को दूर करनेवाला है। तू (अङ्गिरस्तमः) = मुझे अत्यन्त मेधावी बनानेवाला है। अथवा ('ये अङ्गाराः आसन् ते अङ्गिरसोऽभवन्') इस वाक्य के अनुसार तू हमें प्रज्ज्वलित अंगारे के समान देदीप्यमान् व शक्तिसम्पन्न बनानेवाला है। प्रभु के ‘वरेण्य भर्ग'=वरणीय तेज को प्राप्त करके जीव प्रभु के समान ही चमकने लगता है।

    इतना तेजस्वी हो जाने के बाद सौन्दर्य इसी में है कि हमारा जीवन नम्र हो, अतः मन्त्र में कहते हैं कि हे सोम! तू (नः) = हमारे जीवन-यज्ञ को [पुरुषो वाव यज्ञः] (मध्वा) = माधुर्य से (मिमिक्ष)=सिक्त कर दे। हमारा जीवन माधुर्यमय हो । हमारी कोई भी क्रिया किसी के लिए कटुता लिए हुए न हो।

    भावार्थ

    मैं तेजस्वी व मधुर बनूँ।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = हे ( सोम ) = आत्मन् ! ( जागृवि: ) = जागरणशील, ( अव्याः ) = अवि, चेतना या प्राण के ( वारैः ) = वृत्तियों, चेष्टाओं या ऊहापोहों द्वारा ( पुनान: ) = पवित्र करना हुआ ( प्रियः ) = सबका प्रिय, ( विप्रः ) = मेधावी, ( त्वं ) = तू ( अङ्गिरस्तमः ) = सबसे अधिक प्रकाशमान, आनन्दरूप परमरस में ( परि अभवः ) = प्रकट होता है ।  तू ( नः ) = हमारे ( यज्ञं ) = जीवन-यज्ञ को ( मध्वा ) = उस आनन्दरूप मधु से ( मिमिक्ष ) = सींच दें, भर दे ।

    टिप्पणी

     ५१९  –'जागृविरव्यो' 'बारे' अभिवोंगिरस्तमो' ' ञ्मिक्ष नः' इति च ऋ० ।॥६॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - भरद्वाजः काश्यपो गोतमोऽत्रिर्विश्वामित्रो जमदग्निर्वसिष्ठश्चैते सप्तर्षयः ।

    देवता - पवमानः ।

    छन्दः - बृहती।

    स्वरः - मध्यमः।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ सोमं जीवात्मानमुद्बोधयति।

    पदार्थः

    हे (अङ्गिरस्तम) अतिशयेन तेजस्विन् ! अङ्गारेष्वङ्गिराः इति हि निरुक्तम् ३।१७। (सोम) मदीय अन्तरात्मन् ! (जागृविः) जागरूकः, (अव्याः वारैः) अविबालनिर्मितदशापवित्रैरिव बुद्धेस्तर्कैः (परि पुनानः) असत्यं परित्यज्य सत्यं स्वीकृत्य स्वात्मानं पवित्रं कुर्वन् (प्रियः) सर्वेषां स्नेहभाजनभूतः (त्वम् विप्रः) प्रशस्तज्ञानवान् (अभवः) अजायथाः। स त्वम् (नः) अस्माकम् (यज्ञम्) जीवनयज्ञम् (मध्वा) मधुना, माधुर्येण (मिमिक्ष) सेक्तुं प्रयतस्व। मिह सेचने धातोः सनि लोण्मध्यमैकवचने रूपम् ॥९॥

    भावार्थः

    मनुष्यैर्जागरूकैः सर्वेषां प्रियैर्ज्ञानवद्भिस्तेजस्विभिर्मधुरव्यवहारैश्च भवितव्यम् ॥९॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।१०७।६, ‘जागृविरव्या, अभवोऽङ्गिरस्तम, णः’ इत्यत्र क्रमेण ‘जागृविरव्यो, अभवोऽङ्गिरस्तमः, नः’ इति पाठः।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Immortal, Most Learned God, Thou art Pure, Conscious, Lovable, Omniscient, Pray protect us from all rides with Thy excellent qualities, and fill our life with pleasure !

    Translator Comment

    $ Life has boat spoken of as यज्ञ, as life is meant to be spent in the service of others. A life of sacrifice is the true, real life.

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    Meaning

    Pure and all purifying, O Soma, spirit of peace and bliss, ever awake and awakening with your eternal consciousness, all protective and promotive, dearest in the heart of the cherished loving soul, you are the vibrant awareness of omniscience and the very life energy of life. O Spirit of peace, joy and divine bliss, pray bless our yajna of life with the honey sweets of existence. (Rg. 9-107-6)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (अङ्गिरस्तम् सोम) હે પ્રાણતમ-અત્યંત પ્રાણ સ્વરૂપ શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! (त्वम्) તું (पुनानः) અમને પવિત્ર કરનાર (प्रिय) સ્નેહી (वारैः) રક્ષણ કર્મોથી (परि अव्याः) અમારી સર્વત્રથી રક્ષા કર; તથા (विप्रः अभवः) વિશેષ કામના પૂરક બન (नः) અમારા (यज्ञम्) અધ્યાત્મયજ્ઞને (मध्या मिमिक्ष) પોતાના મધુરરસથી સિંચવાની ઇચ્છા કર-સિંચ.

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : અતિ પ્રાણરૂપ, શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! તું અમને પવિત્ર કરનાર સ્નેહી રક્ષણ કર્મોથી સર્વત્રથી અમારી રક્ષા કર; તથા વિશેષ મધુરરસથી સિંચવાની ઇચ્છા કર-સિંચ. (૯)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    زندگیک ے لمحے میٹھے ہوں!

    Lafzi Maana

    ہے زندگی بخش سوم! تُو ہماری زندگیوں کو پاکیزہ بناتاہ ے، ہماری خبر گیری کیلئے تُو ہمیشہ چوکس رہتا ہے۔ جس سے ہم اُپاسنا میں غفلت نہ کریں۔ سب کے دُکھوں کو دُور کرنے والے سب کے پیارے پرم گیانی ورن کرنے یوگیہ پرمیشور از راہِ نوازش مُدھر سوم سے ہمارے جیونوں میں مدھرتا بھر دیجئے!

    Tashree

    جاگتے ہو خود جگاتے رہتے سب کو ایشور، ہوں ہمارے شُدھ جیون اور مدھر جگدیشور۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    माणसांनी जागरूक, पवित्र, सर्वांचे प्रिय, ज्ञानी, तेजस्वी व मधुर व्यवहार करणारे असावे ॥९॥

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    विषय

    सोम नावाने जी जीवात्म्याला उद्बोधम -

    शब्दार्थ

    हे (अड्गिरस्तम) अत्यंत तेजस्वी (सोम) माज्या अंतरात्मा (अव्याः वारैः मेंढीच्या केसांनी निर्मित दशापवित्राप्रमाणे जसे रस गाळतात, तद्वव बुद्धीच्या तर्कशक्तीने (परि पुनानः असल्याचा त्याग व सत्याचा स्वीकार करील (प्रियः) सर्वांचा प्रिय (लम्) तू (विप्रः) ज्ञानी (अभवः) झाला आहेस. तू (नः) हा आमच्या (ज्ञम्) जीवन यज्ञ (मध्वा) माधुर्याने (मिमिक्ष) सिंचित करून टाक (सर्वत्र माधुर्यभाव भर) ।। ९ ।।

    भावार्थ

    सर्व मनुष्यांनी जागरू, पवित्र, सर्वप्रिय ज्ञानी, तेजस्वी आणि मधुर आचरण करणारे व्हायला पाहिजे. ।। ९ ।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    சோமனே! நீ புனிதமாக்கப்படுங்கால் சூரிய ரசிமிகளால் (விழிப்புள்ளவனாய்) பிரியமாய் மேதாவியாகி (அங்கிரசனுக்குச்) சமானமாய் ஆகிறாய். எங்கள் யக்ஞத்தை மதுவான யக்ஞத்தால் தெளிக்கவும்.

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