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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 548
ऋषिः - मनुः सांवरणः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
26
सो꣡माः꣢ पवन्त꣣ इ꣡न्द꣢वो꣣ऽस्म꣡भ्यं꣢ गातु꣣वि꣡त्त꣢माः । मि꣣त्राः꣢ स्वा꣣ना꣡ अ꣢रे꣣प꣡सः꣢ स्वा꣣꣬ध्यः꣢꣯ स्व꣣र्वि꣡दः꣢ ॥५४८॥
स्वर सहित पद पाठसो꣡माः꣢꣯ । प꣣वन्ते । इ꣡न्द꣢꣯वः । अ꣣स्म꣡भ्य꣢म् । गा꣣तुवि꣡त्त꣢माः । गा꣣तु । वि꣡त्त꣢꣯माः । मि꣣त्राः꣢ । मि꣣ । त्राः꣢ । स्वा꣣नाः꣢ । अ꣣रे꣢प꣡सः꣢ । अ꣣ । रेप꣡सः꣢ । स्वा꣣ध्यः꣢꣯ । सु꣣ । आध्यः꣢꣯ । स्व꣣र्वि꣡दः꣢ । स्वः꣣ । वि꣡दः꣢꣯ ॥५४८॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमाः पवन्त इन्दवोऽस्मभ्यं गातुवित्तमाः । मित्राः स्वाना अरेपसः स्वाध्यः स्वर्विदः ॥५४८॥
स्वर रहित पद पाठ
सोमाः । पवन्ते । इन्दवः । अस्मभ्यम् । गातुवित्तमाः । गातु । वित्तमाः । मित्राः । मि । त्राः । स्वानाः । अरेपसः । अ । रेपसः । स्वाध्यः । सु । आध्यः । स्वर्विदः । स्वः । विदः ॥५४८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 548
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 8;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 8;
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में यह वर्णन है कि कैसे परमानन्दरस हमें पवित्र करते हैं।
पदार्थ
(इन्दवः) प्रकाशमय अथवा रस से आर्द्र करनेवाले (सोमाः) परमानन्दरस (पवन्ते) हमें पवित्र करते हैं, जो (अस्मभ्यम्) हमारे लिए (गातुवित्तमाः) अतिशय सन्मार्ग को प्राप्त करानेवाले, (मित्राः) मित्रभूत, (स्वानाः) सद्गुणों की ओर प्रेरित करनेवाले, (अरेपसः) निष्पाप, निष्कलङ्क, निर्दोष, (स्वाध्यः) उत्कृष्ट ध्यान में सहायक और (स्वर्विदः) मोक्ष प्राप्त करानेवाले हैं ॥४॥ इस मन्त्र में अनेक साभिप्राय विशेषणों का योग होने से परिकरालङ्कार है ॥४॥
भावार्थ
जो ब्रह्मानन्दरस जीवन में सन्मार्ग दिखानेवाले, मित्र के सदृश परम उपकारक, शुभगुण-प्रेरक, ध्यान में सहायक और मोक्षप्रापक होते हैं, वे पवित्रता देनेवाले क्यों न होंगे ॥४॥
पदार्थ
(गातुवित्तमाः) गमन—ज्ञान को अत्यन्त प्राप्त कराने वाला “गातुं यज्ञाय गमनं यज्ञाय” [निरु॰ ४.२१] “पूर्वेषामपि गुरुः.......” [योग॰ १.२६] (अरेपसः) अनवद्यवचन वाला यथार्थ वक्ता “रेपः—अवद्यं वचः” [उणा॰ ४.१९०] (स्वाध्यः) सम्यक् समन्तरूप से ध्यान करने योग्य (स्वर्विदः) सुख—मोक्षसुख को प्राप्त कराने वाला (मित्रः) प्रेरक स्नेही (इन्दवः) अध्यात्मरसभरा (सोमाः) शान्तस्वरूप परमात्मा (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (पवन्ते) आनन्दधारा में प्राप्त होता है।
भावार्थ
अत्यन्त ज्ञान प्राप्त कराने वाला, अयुक्तवचनरहित, यथार्थ वक्ता, सम्यक् सर्वथा ध्यान करने योग्य, मोक्षसुख का प्रापक, प्रेरक, स्नेही, अध्यात्मरसभरा परमात्मा हमारे लिये आनन्दधारा में प्राप्त होता है॥४॥
विशेष
ऋषिः—मनुः संवरणः (परमात्मा को अपने अन्दर धारण करने में कुशल मननशील)॥<br>
विषय
ठीक चुनाव [ A right choice ]
पदार्थ
पिछले मन्त्र की समाप्ति पर कहा गया है कि हम दिव्यता में आनन्द लेने का प्रयत्न करें। वस्तुतः संसार में दो ही मार्ग हैं - एक दिव्यता का और दूसरा भौतिकता का । ये ही श्रेय व प्रेय कहे गये हैं। हमें इनमें चुनाव करना है। उपनिषद् कहती है कि 'तौ सम्पपरीत्य विविनक्ति धीर:'=धीर पुरुष सब दृष्टिकोणों से इनका विवेक करता है और विवेक करके श्रेय का ग्रहण करता है। प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि भी 'मनु' है - विचारनेवाला है और विचार का ही परिणाम है कि यह 'सांवरण' है= सम्यक् - उत्तम-वरणवाला है - प्रेय को न चुनकर यह श्रेय का ही वरण करता है। यह श्रेयोमार्ग पर चलनेवाला अपने जीवन को निम्न प्रकार से बनाता है -
१. (सोमाः) = ये सौम्य - विनीत होते हैं- विनीतता से ही तो ये उन्नत हैं। अभिमान से इनकी दिव्यता कलंकित नहीं होती।
२. (पवन्ते) = ये गतिशील होते हैं और अपने को पवित्र बनाते हैं। वस्तुतः गतिशीलता ही इनके जीवन को पवित्र करने वाली है।
३. (इन्दवः) = पवित्रता के कारण-भोगग्रसित न होने के कारण ये शक्तिशाली हैं। ४. अस्मभ्यं गातुवित्तमा: हमारे लिए बड़े उत्तम प्रकार से मार्ग का ज्ञान देनेवाले व मार्ग को प्राप्त करानेवाले हैं। इनके शब्द ही नहीं इनका जीवन हमारे लिए पथ-प्रदर्शन का काम करता है।
५. (मित्रा:) =ये सचमुच हमारा हित चाहनेवाले होते हैं हित चाहने के कारण ही इनके वाक्यों का हमारे हृदयों पर विशेष प्रभाव होता है।
६. (स्वाना:) = [सु+आना:] ये अपने उपदेशों से हम सबके अन्दर उत्साह का संचार करते हैं। अत्यन्त पतित भी इनके सम्पर्क में आकर उत्साह से पाप को तैरने मे प्रवृत्त होता है।
७. (अरेपसः) = स्वयं इनका जीवन निर्दोष होता है। तभी तो औरों को प्रभावित कर पाता है।
८. (स्वाध्यः) = जीवन को निर्दोष बनाने के लिए ये उत्तम ध्यानवाले होते हैं। [सुष्ठु घ्यानवन्तः] प्रभु का ध्यान इन्हें पापों से बचाए रखता है।
९. (स्वर्विदः) = ये उस स्वर = स्वयं प्रकाश ब्रह्म को प्राप्त [विद्] करनेवाले होते हैं - ब्रह्मनिष्ठ होते हैं। ब्रह्मनिष्ठ गुरु ही गुह्य अन्धकार - हृदय के अज्ञान को रुद्ध करने में समर्थ होता है।
भावार्थ
हम संसार में श्रेय का ही वरण करें। प्रेय का वरण कर भटकते ही न रह जाएँ।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = ( गातुवित्तमाः ) = मार्ग को उत्तम रीति से जानने हारे, ( इन्दवः ) = आत्मा के प्रति साक्षात् द्रवित होने वाले, कान्तिस्वरूप, ( सोमाः ) = ब्रह्मरस या योगिजन ( मित्रा: ) = हृदय अन्तःकरण के या सब के मित्र, ( अरेपसः ) = निर्दोष, निर्मल, निष्पाप, ( स्वाध्यः ) = उत्तम ध्यानयोग के साधक ( स्वर्विदः ) = प्रकाश के प्रापक, सर्वज्ञता के दायक, ( स्वाना:) = प्रकट होते हुए ( पवन्ते ) = क्षरित होते या विचरते हैं ।
सोमरस, आत्मानन्द और योगियों का समानरूप से वर्णन है ।
टिप्पणी
५४८ - सुवानाः, इति ऋ०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - मनुः सांवरणः।
देवता - पवमानः।
छन्दः - अनुष्टुप्।
स्वरः - गान्धारः।
संस्कृत (1)
विषयः
कीदृशाः परमानन्दरसाः अस्मान् पवित्रीकुर्वन्तीत्याह।
पदार्थः
(इन्दवः) प्रकाशमयाः रसेन क्लेदयितारो वा। इन्दुः इन्धेः उनत्तेर्वा। निरु० १०।४१। (सोमाः) परमानन्दरसाः (पवन्ते) अस्मान् पवित्रीकुर्वन्ति। ये (अस्मभ्यम्) अस्माकं कृते (गातुवित्तमाः) अतिशयेन सन्मार्गलम्भकाः, (मित्राः) मित्रभूताः। वेदे सुहृद्वाचको मित्रशब्दः पुंस्यपि दृश्यते। (स्वानाः) सुवानाः सद्गुणान् प्रति प्रेरयन्तः, (अरेपसः) निष्पापाः, निष्कलङ्काः, निर्दोषाः (स्वाध्यः) उत्कृष्टध्याने सहायकाः, (स्वर्विदः) मोक्षप्रापकाश्च सन्तीति शेषः। स्वः मोक्षसुखं वेदयन्ते प्रापयन्तीति तादृशाः ॥४॥ अत्र साभिप्रायाणां बहूनां विशेषणानां योगात् परिकरालङ्कारः ॥४॥२
भावार्थः
ये ब्रह्मानन्दरसा जीवने सन्मार्गदर्शकाः सुहृद्वत् परमोपकारकाः शुभगुणप्रेरकाः ध्याने सहायकाः मोक्षप्रापकाश्च भवन्ति ते पावकाः कुतो न स्युः ॥४॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ९।१०१।१० ‘सुवाना’ इति पाठः। साम० ११०१। २. विशेषणैर्यत् साकूतैरुक्तिः परिकरस्तु सः (का० प्र० १०।८७), इति तल्लक्षणात्।
इंग्लिश (2)
Meaning
For us roam the Yogis, the Knowers of the right path, lovely, friendly, self-reliant, immaculate, contemplative, and imparters of all sorts of knowledge.
Meaning
Streams of Soma flow for us, brilliant, eloquent and expansive, friendly, inspiring, free from sin, intellectually creative and spiritually illuminative. (Rg. 9-101-10)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (गातुवित्तमाः) ગમન-શાનને અત્યંત પ્રાપ્ત કરાવનાર (अरेपसः) અનવદ્ય વચનવાળા યથાર્થ વક્તા (स्वाध्यः) સારી રીતે સમગ્રરૂપથી ધ્યાન કરવા યોગ્ય (स्वर्विदः) સુખ-મોક્ષસુખને પ્રાપ્ત કરાવનાર (मित्रः) પ્રેરક સ્નેહી (इन्दवः) અધ્યાત્મરસપૂર્ણ (सोमाः) શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મા (अस्मम्यम्) અમારે માટે (पवन्ते) આનંદધારામાં પ્રાપ્ત થાય છે. (૪)
भावार्थ
ભાવાર્થ : અત્યંત જ્ઞાન પ્રાપ્ત કરાવનાર, અયુક્તવચન રહિત, યથાર્થવક્તા, સમ્યક્ સર્વથા ધ્યાન કરવા યોગ્ય, મોક્ષ સુખ પ્રાપક, પ્રેરક, સ્નેહી, અધ્યાત્મરસ ભરેલ પરમાત્મા અમારે માટે આનંદધારામાં પ્રાપ્ત થાય છે. (૪)
उर्दू (1)
Mazmoon
یہ بھگتی رس
Lafzi Maana
شانتی دینے والے یہ سوم رس پوتر کرتے ہوئے گیان جیوتی کو جنم دے کر زندگی کی شاہراہ کو دکھلاتے ہوئے دوست کی طرح بھگتی کے گیتوں کو سُناتے اور ہمیں بُرائیوں سے بچا کر بھگوان کے دھیان میں مددگار ہوتے ہوئے سُکھ پہنچا رہے ہیں۔
Tashree
بھگتی رس ہیں شانتی داتا گیان جوت جگاتے ہیں، راہ نمائی کرتے جاتے ایش کو پہنچاتے ہیں۔
मराठी (2)
भावार्थ
जे ब्रह्मानंदरस जीवनात सन्मार्ग दाखविणारे, मित्राप्रमाणे परम उपकारक, शुभ गुण-प्रेरक, ध्यानामध्ये सहायक व मोक्ष प्रापक असतात, ते पवित्रता देणारे का बरे असणार नाहीत? ॥४॥
विषय
आम्हाला कोणत्या प्रकारचे परमानंद रस आम्हास पवित्र करतात -
शब्दार्थ
(इन्दवः) प्रकाशमय असलेले वा रसाने आम्हाला सिंचित करणारे (सोमाः) परमानंद रस (पवन्ते) आम्हाला पवित्र करतात. तो रस (अस्मभ्यम्) आम्हाला (गातुवित्तमाः) सन्मार्गाकडे नेणारा व आमचा (मित्राः) मित्र आहे. ते रस आम्हाला (स्वावाः) सद्गुणांकडे प्रेरित करात ते आम्हाला (अरेपसः) निष्पाप, निष्कलंक व निर्दोष करतात, (सस्पाध्यः) उत्कृष्ट ध्यान करण्यात सहाय्यक होतात व (स्वर्विदः) मोक्ष प्राप्त करून देणारे होतात. ।। ४।।
भावार्थ
जे ब्रह्मानंद रस सन्मार्ग दाखविणारे, मित्रवत उपकारक, शुभ गुणांकडे जाण्यासाठी प्रेरक, ध्यान करण्यात सहाय्यक व मोक्ष प्रापक होतात, ते मनुष्यास पवित्र्य का देणार नाहीत ? अर्थात अवश्य देतील.।। ४।।
विशेष
या मंत्रात अेक विशेषणे साभिप्राय असल्यामुळे येथे परिकरालंकार आहे.।। ४।।
तमिल (1)
Word Meaning
நண்பர்களைப் போல் அமிழ்த்தப்பட்டும் பாபம் பிரிந்து சுபமான தியானமான சர்வக்ஞனான அதிசய மார்கத்தை நீடிப்பவர்களான சோமரசங்கள் எங்களுக்காக பெருகட்டும்
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