Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 547
ऋषिः - ययातिर्नाहुषः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
23
सु꣣ता꣢सो꣣ म꣡धु꣢मत्तमाः꣣ सो꣢मा꣣ इ꣡न्द्रा꣢य म꣣न्दि꣡नः꣢ । प꣣वि꣡त्र꣢वन्तो अक्षरन्दे꣣वा꣡न्ग꣢च्छन्तु वो꣢ म꣡दाः꣢ ॥५४७॥
स्वर सहित पद पाठसु꣣ता꣡सः꣢ । म꣡धु꣢꣯मत्तमाः । सो꣡माः꣢꣯ । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । मन्दि꣡नः꣢ । प꣣वि꣡त्र꣢वन्तः । अ꣣क्षरन् । देवा꣢न् । ग꣣च्छन्तु । वः । म꣡दाः꣢꣯ ॥५४७॥
स्वर रहित मन्त्र
सुतासो मधुमत्तमाः सोमा इन्द्राय मन्दिनः । पवित्रवन्तो अक्षरन्देवान्गच्छन्तु वो मदाः ॥५४७॥
स्वर रहित पद पाठ
सुतासः । मधुमत्तमाः । सोमाः । इन्द्राय । मन्दिनः । पवित्रवन्तः । अक्षरन् । देवान् । गच्छन्तु । वः । मदाः ॥५४७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 547
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 8;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 8;
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में परमानन्दरूप सोमरस का विषय है।
पदार्थ
(मधुमत्तमाः) सबसे अधिक मधुर, (मन्दिनः) हर्षजनक (सोमाः) परमानन्द-रस (इन्द्राय) जीवात्मा के लिए (सुतासः) अभिषुत किये हुए, (पवित्रवन्तः) मन रूप दशापवित्र से युक्त होकर (अक्षरन्) आत्मा रूप कलश में क्षरित होते हैं। वे (मदाः) परमानन्दरस (वः) आप (देवान्) सब विद्वान् जनों को (गच्छन्तु) प्राप्त होवें ॥३॥
भावार्थ
ध्यान द्वारा परमात्मा के पास से प्रादुर्भूत अत्यन्त मधुर परमानन्दरस मन के माध्यम से जीवात्मा को प्राप्त होते हैं ॥३॥
पदार्थ
(सुतासः) ‘अत्र मन्त्रयोर्बहुवचनमादरार्थम्’ निष्पादित—साक्षात् किया (मधुमत्तमाः) अत्यन्त मीठा (मन्दिनः) हर्षभरा (सोमासः) शान्तस्वरूप परमात्मा (इन्द्राय) उपासक आत्मा के लिये (पवित्रवन्तः) हृदयस्थ प्राणापान वाला “प्राणापानौ पवित्रे” [तै॰ सं॰ ३.२.४.४] (अक्षरन्) आनन्दधारारूप में प्राप्त हो रहा है, इस प्रकार (वः) तेरे (मदाः) हर्षप्रवाह (देवान् गच्छन्तु) इन्द्रियों को प्राप्त हों।
भावार्थ
साक्षात् किया हुआ अत्यन्त मधुर हर्षभरा शान्तस्वरूप परमात्मा उपासक आत्मा के लिये हृदयस्थ प्राणापान वाला आनन्दधारा में प्राप्त हो रहा है। इस प्रकार परमात्मन्! तेरा हर्षप्रवाह इन्द्रियों को भी प्राप्त हो रहा है॥३॥
विशेष
ऋषिः—ययातिर्नाहुषः (जीवन्मुक्त होने में जीवनयात्री उपासक)॥<br>
विषय
हम दिव्यता में आनन्द लें
पदार्थ
औरों के साथ अपने जीवन को सम्बद्ध करके चलानेवाला ‘नाहुष' सदा गतिमय रथवाला [वायोरिव रथं ‘याति' यस्य स] 'ययाति' इस मन्त्र का ऋषि है। इन ययातियों का जीवन निम्न प्रकार का होता है -
१. (सुतासः) = ये सदा निर्माणात्मक कार्य ही करते हैं, इनका जीवन ध्वंस के लिए नहीं होता। अ-ध्वर=यशमय जीवन हिंसा व तोड़-फोड़ से रहित होना ही चाहिए।
२. (मधुमत्तमाः) = ये अत्यन्त माधुर्य को लिए हुए होते हैं। इनकी वाणी से कभी कोई कटु शब्द उच्चरित नहीं होता। वे मधुर ही मधुर शब्दों का प्रयोग करते हैं।
३. (सोमाः) = ये सौम्य, विनीत व अतिमानिता से दूर होते हैं। अभिमान इनकी दिव्यता को कभी कलंकित नहीं करता। नम्रता से ये सदा उन्नत बने रहते हैं। अभिमान के कारण ये लोगों के द्वेष्य नहीं बनते।
४. (इन्द्राय) = सौम्य बने रहने के लिए ये सदा उस परमैश्वर्यवान् प्रभु के लिए मन्दिन:-[मन्दतेः स्तुतिकर्मणः] स्तुति करनेवाले होते हैं। प्रभु की स्तुति ही इनकी उदात्तता को स्थिर रखती है।
५. (पवित्रवन्तः) =ज्ञानवाले बनते हैं। ज्ञान के कारण ही तो ये सुखों में फँसकर स्वार्थी नहीं हो जाते।
६. (अक्षरन्) = ज्ञान के द्वारा ये मलों को अपने से दूर करते हैं। उत्तरोत्तर पवित्रता का साधन ही इनके जीवन का उद्देश्य होता है। ये अपवित्र वस्तुओं में आनन्द का अनुभव नहीं करते। प्रभु के इस आदेश को ये नहीं भूलते कि (वो मदा:) = तुम्हारे आनन्द (देवान् गच्छन्तु) = दिव्य गुणों की ओर चलें अर्थात् तुम अच्छी बातों में आनन्द लेने का प्रयत्न करो। इसीलिए यह 'ययाति नाहुष' जीवन की साधना, दिव्यगुणों की प्राप्ति व निर्माणात्मक कार्यों में आनन्द लेने का प्रयत्न करता है ।
भावार्थ
मैं दिव्यता की वृद्धि में आनन्द लेनेवाला बनूँ।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = ( मधुमत्तमाः ) = आत्मरसानुभव से युक्त ( मन्दिनः ) = आनन्द और हर्ष के जनक ( सुतासः ) = तैयार किये, प्रकट हुए ( सोमाः ) = परमानन्दरस और विद्वान् जन ( पवित्रवन्तः ) = पवित्रस्वरूप को धारण करने वाले, दीप्तिदशा में वर्तमान ( इन्द्राय ) = आत्मा के लिये ( अक्षरन् ) = क्षरित होते हैं । हे सोमरसो ! ( वः ) = तुम्हारे ( मदाः ) = आनन्द,हर्ष ( देवान् ) = इन्द्रियगण या विद्वान् जनों को ( गच्छन्तु ) = प्राप्त हों जिससे वे अन्तर्मुख हो जायें ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - ययातिर्नाहुषः।
देवता - पवमानः।
छन्दः - अनुष्टुप्।
स्वरः - गान्धारः।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमानन्दरूपसोमरसविषयमाह।
पदार्थः
(मधुमत्तमाः) अतिशयमधुराः (मन्दिनः) हर्षकराः (सोमाः) परमानन्दरसाः (इन्द्राय) जीवात्मने (सुतासः) अभिषुताः (पवित्रवन्तः२) मनोरूपदशापवित्रयुक्ताः (अक्षरन्) आत्मकलशं प्र क्षरन्ति। ते (मदाः) परमानन्दरसाः (वः) युष्मान् (देवान्) सर्वान् विदुषः (गच्छन्तु) प्राप्नुवन्तु ॥३॥
भावार्थः
ध्यानद्वारा परमात्मनः सकाशात् प्रादुर्भूता मधुरमधुराः परमानन्दरसा मनसो माध्यमेन जीवात्मानमधिगच्छन्ति ॥३॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ९।१०१।४, साम० ८७२, अथ० २०।१३७।४। २. पवित्रवन्तः दशापवित्रेण संसृष्टाः—इति भ०।
इंग्लिश (2)
Meaning
The renowned learned persons, relishing the beauty of the soul, spreading joy, pure in nature, long for the soul. May your pleasures go forth to the learned.
Translator Comment
Your refers to the performers of a Yajna.
Meaning
Filtered, felt and cleansed, honey sweet soma streams, pure and exhilarating, flow for Indra, the soul, and may the exhilarations reach you, noble favourites of divinity. (Rg. 9-101-4)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (सुतासः) નિષ્પાદિત-સાક્ષાત્ કરેલ (मधुमत्तमाः) અત્યંત મધુર (मन्दिनः) હર્ષપૂર્ણ (सोमासः) શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મા (इन्द्राय) ઉપાસક આત્માને માટે (पवित्रवन्तः) હૃદયસ્થ પ્રાણાપાન વાળો (अक्षरन्) આનંદ ધારા રૂપમાં પ્રાપ્ત થઈ રહ્યો છે, એ રીતે (वः) તારો (मदाः) હર્ષ પ્રવાહ (देवान् गच्छन्तु) ઇન્દ્રિયોને પ્રાપ્ત થાય. (૩)
भावार्थ
ભાવાર્થ : સાક્ષાત્ કરેલ, અત્યંત મધુર, હર્ષપૂર્ણ, શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મા ઉપાસકના આત્મા માટે હૃદયસ્થ પ્રાણાપાનવાળો આનંદધારામાં પ્રાપ્ત થઈ રહ્યો છે. એ રીતે પરમાત્મન્ ! તારો હર્ષ પ્રવાહ ઇન્દ્રિયોને પણ પ્રાપ્ત થઈ રહ્યો છે. (૩)
उर्दू (1)
Mazmoon
جس کا دِیا ہوا ہے اُسی کے حوالے
Lafzi Maana
بہت میٹھا اور تسکین دینے والا یہ بھگتی رس اِندر پرمیشور کے لئے پیدا ہوا ہے، جو اِن حواس خمسہ دیوتاؤں کو بھی پوتر کرتا ہوا شانتی دے گا۔ آخر میں تو یہ بھگوان کا ہی دِیا ہوا ہے، اُس کے ہی ارپن ہے۔
Tashree
بھگتی کا یہ رس جو پیدا ہوا ہے، اُسی کا دِیا ہے اُسی کی دیا ہے، کرتاہ وا شُدھ اِندری ومن کو، آخر میں پھر سے ہے اُس کے حوالے۔
मराठी (2)
भावार्थ
ध्यानाद्वारे परमात्म्याजवळून प्रादुर्भूत होणारा मधुर परमानंदरस मनाच्या माध्यमाने जीवात्म्याला प्राप्त होते ॥३॥
विषय
परमानंद रूप जो सोमरस, त्याविषयी सांगत आहेत -
शब्दार्थ
(मधुमत्रमाः) सर्वांहून अधिक मधुर, (मन्दिनः) हर्षदायक (सोमाः) परमानंद रूप रस (इन्द्राय) जीवात्म्यासाठी (सुतासः) गाळलेल्या (पवित्रवन्तः) मन रूप दशापवित्राद्वारे मिळून (अक्षरन्) आत्मारूप कलशात क्षरित होतात. ते (मदाः) परमानंद रस (वः) आपण (देवान्) सर्व विद्वज्जनांना (गच्छन्तु) प्राप्त होवो. (सर्वांना तुमचा भक्तिरूप रस मिळो.)।। ३।।
भावार्थ
ध्यानाद्वारे परमात्म्याचे भजन केल्यास जो अत्यंत मधुर ब्रह्मानंद रस झरतो, तो मनाच्या माध्यमातून जीवात्म्याला प्राप्त होतो. ।। ३।।
तमिल (1)
Word Meaning
மது நிறைந்து இன்பமளிக்கும் அமிழ்த்தப்பட்ட சோமன் [1]வடிகட்டியிலிருக்கும் இந்திரனுக்கு(ஆன்மாவிற்கு) ஓடட்டும்; இன்பமளிக்கும் ரசம் தேவர்களை அடையட்டும்.
FootNotes
[1]வடிகட்டியிலிருக்கும்- புனிதத்தில்.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal