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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 546
    ऋषिः - नहुषो मानवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
    20

    अ꣣यं꣢ पू꣣षा꣢ र꣣यि꣢꣫र्भगः꣣ सो꣡मः꣢ पुना꣣नो꣢ अ꣢र्षति । प꣡ति꣣र्वि꣡श्व꣢स्य꣣ भू꣡म꣢नो꣣꣬ व्य꣢꣯ख्य꣣द्रो꣡द꣢सी उ꣣भे꣢ ॥५४६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ꣣य꣢म् । पू꣣षा꣢ । र꣣यिः꣢ । भ꣡गः꣢꣯ । सो꣡मः꣢꣯ । पु꣣नानः꣢ । अ꣣र्षति । प꣡तिः꣢꣯ । वि꣡श्व꣢꣯स्य । भू꣡म꣢꣯नः । वि । अ꣣ख्यत् । रो꣡द꣢꣯सी꣣इ꣡ति꣢ । उ꣣भे꣡इति꣢ ॥५४६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं पूषा रयिर्भगः सोमः पुनानो अर्षति । पतिर्विश्वस्य भूमनो व्यख्यद्रोदसी उभे ॥५४६॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । पूषा । रयिः । भगः । सोमः । पुनानः । अर्षति । पतिः । विश्वस्य । भूमनः । वि । अख्यत् । रोदसीइति । उभेइति ॥५४६॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 546
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 2
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 8;
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    अगले मन्त्र में सोम परमात्मा की महिमा वर्णित की गयी है।

    पदार्थ

    (पूषा) पुष्टिकर्ता, (रयिः) ऐश्वर्यवान् और ऐश्वर्यप्रदाता, (भगः) भजनीय (अयं सोमः) यह रसागार प्रेरक परमेश्वर (पुनानः) रची हुई सब वस्तुओं को पवित्र करता हुआ (अर्षति) सक्रिय हो रहा है। (विश्वस्य) सकल (भूमनः) ब्रह्माण्ड का (पतिः) स्वामी वा रक्षक यह परमेश्वर (उभे) दोनों (रोदसी) भूगोल व खगोल को (व्यख्यत्) तेज से प्रकाशित करता है। इस वर्णन से परमेश्वर का जगत् का शिल्पी होना व्यञ्जित हो रहा है ॥२॥

    भावार्थ

    सब जगत् का रचयिता, धारक, प्रकाशक, ऐश्वर्यशाली तथा ऐश्वर्य का दाता जगदीश्वर सबके द्वारा भजन करने योग्य है ॥२॥

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    पदार्थ

    (अयं सोमः) यह शान्त परमात्मा (उभे रोदसी व्यख्यत्) द्युलोक और पृथिवीलोक की ऊपर नीचे की सीमाओं को प्रसिद्ध करता है (विश्वस्य भूमनः पतिः) उनमें होने वाले जगत् का स्वामी है, तथा (पूषा) पोषक—पालक (रयिः) रयिमान्—धनवान्—भोगरूप धनदाता ‘मतुब्लोपश्छान्दसः’ (भगः) भजनीय—आश्रयणीय (पुनानः-अर्षसि) आत्मा को निर्मल करता हुआ आता है।

    भावार्थ

    यह शान्त परमात्मा विश्व के द्युलोक पृथिवीलोकरूप सीमाओं को प्रसिद्ध करता है। उनमें रहने वाले जगत् का स्वामी है तथा सबका पोषक यथा योग्य रक्षक है। वह मोक्षधन का दाता है, आश्रयणीय और पवित्रकर्ता है॥२॥

    विशेष

    ऋषिः—ययातिर्नाहुषः (जीवन्मुक्त होने में जीवनयात्री उपासक)॥<br>

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    विषय

    नहुष - मानव [ मिलनसार मनुष्य ]

    पदार्थ

    प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि 'नहुष मानव' है। मननपूर्वक प्रत्येक कर्म को करनेवाला यह [नह् बन्धने] औरों के साथ अपने जीवन को सम्बद्ध करके चलता है। अपनी ही मौज में मस्त न होकर यह औरों के साथ सहानुभूति रखता है उनके दुःख में दुःखी होता है, सुख में सुखी। इसका जीवन भोग-प्रवण न होने से ही (अर्यम्) = यह (पूषा) = अपने स्थूल शरीर को ठीक पुष्ट रख पाता है—इसका शरीर दुर्बल नहीं होता। भोग ही तो रोगों व क्षीणता के कारण होते हैं—और उनसे यह दूर ही है। इसका प्राणमयकोश (रयिः भगः) = चान्द्रमस तत्त्व व सौर तत्त्व की शक्तिवाला होता है। ‘रयि' चन्द्रमा है, ‘भग' सूर्य है, सूर्य प्रजाओं का प्राण है, प्राण के स्थान में भग का प्रयोग ठीक ही है। इन दोनों तत्त्वों के समन्वय पर ही स्वास्थ्य का पूर्ण निर्भर है। शरीर का विकास व दोषों का दूरीकरण व नैर्मल्य का परिणाम यह होता है कि यह (सोमः) = सौम्यता को धारण करता है - अभिमान से शुन्य होता है और अपने मनोमय कोश को (पुनान:) = पवित्र करता हुआ (अर्षति) = [ऋष् गतौ] ऋषि बनता है - तत्त्व द्रष्टा होता है। इस तत्त्वज्ञान को प्राप्त करने के उपरान्त यह (विश्वस्य) = सब (भूमन:) = [यौ वै भूमा तत्सुखम् ] सुख का (पति:) = पति होता है। विज्ञानमयकोश में ज्ञान की दीप्ति के उपरान्त ही आनन्दमयकोश में सुखानुभव होता है।

    इस प्रकार अपने पञ्चकोशों का ठीक विकास करता हुआ यह 'नहुष' (उभे रोदसी)= दोनों द्युलोक व पृथिवीलोक को (व्यख्यत्) = प्रकाशित करता है। इसके यश का प्रकाश सर्वत्र फैलता है, इतना ही नहीं, यह सर्वत्र ज्ञान का प्रकाश फैलाता है। ज्ञान के प्रकाश द्वारा अन्धकार को दूर कर सभी के जीवनों को सुखी व उन्नत बनाने का प्रयत्न करता है। 

    भावार्थ

     हम अपने जीवनों को सुन्दर बनाकर औरों के मंगल में प्रवृत्त हों।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = ( पूषा ) = पुष्टिकारक, ( भगः ) = सब के भजन सेवन योग्य, कल्याणकारी, ऐश्वर्यवान्, ( रयिः ) = कांतिजनक, परम धनस्वरूप ( अयं ) = यह ( सोमः ) = परमानंद ( पुनानः ) = सब बाह्याभ्यंतर को पवित्र करता हुआ या स्वयं शुद्ध पवित्र रूप में प्रकट होता हुआ ( अषति ) = द्रवित होता है । ( विश्वस्य ) = समस्त ( भूमनः ) = विशाल, भूमास्वरूप आत्मा क ( पतिः ) = पालक होकर ( रोदसी ) = द्यौ और पृथिवी दोनों को ( वि अख्यत् ) = अपने तेज से प्रकाशित करता है । 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - ययातिर्नाहुष:।

    देवता - पवमानः।

    छन्दः - अनुष्टुप्।

    स्वरः - गान्धारः। 

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    विषय

    परमात्मा को प्राप्त कर

    शब्दार्थ

    (इन्दो) हे जीवात्मन् ! तू परमेश्वर को (अभि अर्ष) प्राप्त कर जो (नः) हमें (वाजसातमम्) अन्न, ज्ञान और बल का प्रदाता है (शतस्पृहम्) जिसकी सभी भव्यात्मा स्पृहा करते हैं, जिसे सभी व्यक्ति चाहते हैं (रयिम्) जो मोक्ष-धन का प्रदाता है । (सहस्रभर्णसम्) जो सबका भरण-पोषण और रक्षण करनेवाला है। (तुविद्युम्नम्) जिसका ऐश्वर्य और कीर्ति अपार है (विभासहम्) जो बड़ों-बड़ों का भी पराभव करनेवाला है ।

    भावार्थ

    संसार के प्रत्येक मनुष्य को ईश्वर को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए । ईश्वर के स्थान पर हम मनुष्यपूजा अथवा मूर्तिपूजा आदि में न लग जाएँ; अतः वेद ने कुछ विशेषण दे दिये कि कैसे ईश्वर को प्राप्त करना चाहिए । हम ऐसे ईश्वर को प्राप्त करें, ऐसे ईश्वर के उपासक बनें- १. जो हमें अन्न, ज्ञान और बल प्रदान करता है । २. हम ऐसे ईश्वर की स्पृहा करें जिसकी भव्यात्मा योगीजन उपासना करते हैं । ३. हम ऐसे ईश्वर की उपासना करें जो हमें मोक्षधन प्रदान कर सकता हो । ४. जो सबका भरण, पोषण और रक्षण करनेवाला है । ५. जिसका ऐश्वर्य अपार है और कीर्ति महान् है । ६. जो छोटे-मोटों की तो बात ही क्या, बड़ों-बड़ों का भी पराभव करनेवाला है ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ सोमस्य परमात्मनो महिमानमाह।

    पदार्थः

    (पूषा) पोषकः (रयिः) ऐश्वर्यवान् ऐश्वर्यप्रदाता वा। अत्र रयिशब्दस्य तद्वति तत्प्रदातरि वा लक्षणा, भूयस्त्वं च व्यज्यते। (भगः) भजनीयः (अयं सोमः) एष रसागारः प्रेरकः परमेश्वरः (पुनानः) रचितानि सर्वाणि वस्तूनि पवित्रीकुर्वन् (अर्षति) गच्छति, सक्रियो भवति। (विश्वस्य) सर्वस्य (भूमनः) ब्रह्माण्डस्य (पतिः) स्वामी रक्षको वा एष परमेश्वरः (उभे) द्वे अपि (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ। (व्यख्यत्) तेजसा प्रकाशयति। एतेन परमेश्वरस्य जगच्छिल्पित्वं व्यज्यते ॥२॥

    भावार्थः

    सर्वस्य जगतो रचयिता धारकः, प्रकाशकः, परमैश्वर्यवान् परमैश्वर्यप्रदाता च जगदीश्वरः सर्वैर्भजनीयः ॥२॥

    टिप्पणीः

    १. ९।१०१।७, साम० ८१८।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    This Strengthening, Adorable, Wealth-Bestowing, Purifying God, the Lord of all beings, illumines both the Earth and Heaven.

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    Meaning

    It is Pusha, life-sustaining and nourishing protector, wealth and honour of the world, power and the glory, Soma that is pure and purifying, ever going forward with the world. It is the master, sustainer and ruler of the vast expansive universe and illuminates both heaven and earth. (Rg. 9-101-7)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (अयं सोमः) એ શાન્ત પરમાત્મા (उभे रोदसी व्यख्यत्) દ્યુલોક અને પૃથિવીલોકની ઉપર નીચેની સીમાઓને પ્રસિદ્ધ કરે છે (विश्वस्य भूमनः पतिः) તેમાં થનાર જગતનો સ્વામી છે; તથા (पूषा)  પોષક-પાલક (रयिः रयिमान्) ધનવાન-ભોગરૂપ ધનદાતા (भगः) ભજનીય-આશ્રયસ્થાન (पुनानः अर्षसि) આત્માને નિર્મળ બનાવતો આવે છે. (૨)
     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : એ શાન્ત પરમાત્મા વિશ્વના દ્યુલોક અને પૃથિવીલોક રૂપ સીમાઓને પ્રસિદ્ધ કરે છે. તેમાં રહેનાર જગતનો સ્વામી છે; તથા સર્વનો પોષક, યથાયોગ્ય રક્ષક છે. તે મોક્ષધામનો દાતા છે, આશ્રયસ્થાન અને પવિત્રકર્તા છે. (૨)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    حرکت پذیر رہتا سب جا

    Lafzi Maana

    سب کا پالک یہ سوم دُنیا کو پیدا کرنے والا، شانتی اور زر و مال کا مالک پرمیشور، عابدوں، عارفوں کو پوتر کرتا ہوا اُن کے دِلوں میں ظاہر ظہور ہوتا ہے۔ ارض و سما کو بنا کر ظاہر کرنے والا سب جگہ حرکت پذیر ہو رہا ہے۔

    Tashree

    سب کا پالک سب کا رکھشک ایشور وان ہے سوم سکھا، سب کو پوتر کرتا جاتا حرکت پذیر رہتا سب جا۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    सर्व जगाची रचना करणारा, धारक, प्रकाशक, ऐश्वर्यवान व ऐश्वर्यदाता जगदीश्वर सर्वांनी भजन करण्यायोग्य आहे ॥२॥

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    विषय

    सोम परमेश्वराचा महिमा

    शब्दार्थ

    (पूषा) पुष्टिकर्ता (रयिः) ऐश्वर्यवान् व ऐश्वर्यदाता तसेच (भगः) भजनीय (अयं सोमः) हा रसागार व प्रेरक सोम परमेश्वर (पुनानः) त्याने निर्मिलेल्या सर्व वस्तूंना पवित्र करीत (अर्षति) सर्वत्र क्रिया करीत आहे. (विश्वस्व) समस्त (भूमनः) ब्रह्मांडाचा (पतिः) स्वामी असलेला हा परमेश्वर (उभे) दोन्ही (रोदसी) भूमंडल व खगोल, यांना (व्यख्यत्) आपल्या तेजाने जुळून टाकत आहे. मंत्रातील या वर्णनाने हे तथ्य व्यंजित आहे की परमेश्वरच या जगाचा शिल्पी वा निर्माता कलाकार आहे.।। २।।

    भावार्थ

    सर्व जगाचा रचयिता, धारक, प्रकाशक, ऐश्वर्य दाता जगदीश्वर सर्वांसाठी भजनीय आहे. सर्वांनी त्याचीच उपासना केली पाहिजे.।। २।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    அவன் புனிதமாகும் பொழுது பூஷணனாய் பகனாய் ஐசுவரியனாய் இந்த சோமன் வருகிறான்;சகத்தின் எல்லாப் பொருள்களின் தலைவனான சோமன் வானம் வையகத்தில் பிரகாசிக்கிறான்.

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