Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 57
ऋषिः - कण्वो घौरः
देवता - यूप
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
38
ऊ꣣र्ध्व꣢ ऊ꣣ षु꣡ ण꣢ ऊ꣣त꣢ये꣣ ति꣡ष्ठा꣢ दे꣢वो꣡ न स꣢꣯वि꣣ता꣢ । ऊ꣣र्ध्वो꣡ वाज꣢꣯स्य꣣ स꣡नि꣢ता꣣ य꣢द꣣ञ्जि꣡भि꣢र्वा꣢घ꣡द्भि꣢र्वि꣣ह्व꣡या꣢महे ॥५७॥
स्वर सहित पद पाठऊ꣣र्ध्वः꣢ । ऊ꣣ । सु꣢ । नः꣢ । ऊत꣡ये꣣ । ति꣡ष्ठ꣢꣯ । दे꣣वः꣢ । न । स꣣विता꣢ । ऊ꣣र्ध्वः꣢ । वा꣡ज꣢꣯स्य । स꣡नि꣢꣯ता । यत् । अ꣣ञ्जिभिः꣢ । वा꣣घ꣡द्भिः꣢ । वि꣣ह्व꣡या꣢महे । वि꣣ । ह्व꣡या꣢꣯महे ॥५७॥
स्वर रहित मन्त्र
ऊर्ध्व ऊ षु ण ऊतये तिष्ठा देवो न सविता । ऊर्ध्वो वाजस्य सनिता यदञ्जिभिर्वाघद्भिर्विह्वयामहे ॥५७॥
स्वर रहित पद पाठ
ऊर्ध्वः । ऊ । सु । नः । ऊतये । तिष्ठ । देवः । न । सविता । ऊर्ध्वः । वाजस्य । सनिता । यत् । अञ्जिभिः । वाघद्भिः । विह्वयामहे । वि । ह्वयामहे ॥५७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 57
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 6;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 6;
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में यूप देवता है। यूप के समान उन्नत परमात्मा से प्रार्थना करते हैं।
पदार्थ
हे यज्ञस्तम्भ के समान उन्नत परमात्मन् ! आप (नः) हमारी (ऊतये) रक्षा के लिए (देवः) प्रकाशक (सविता न) सूर्य के समान (उ) निश्चय ही (सु) भली-भाँति (ऊर्ध्वः) हमारे हृदय में समुन्नत होते हुए (वाजस्य) आत्मिक बल के (सनिता) प्रदाता होवो, (यत्) क्योंकि (अञ्जिभिः) स्वच्छ किये हुए (वाघद्भिः) स्तुति का वहन करनेवाले मन-बुद्धि-इन्द्रिय रूप ऋत्विजों के द्वारा, हम आपको (विह्वयामहे) विशेष रूप से पुकार रहे हैं, आपकी स्तुति कर रहे हैं ॥३॥ इस मन्त्र में उपमेय के निगरणपूर्वक उपमेय परमात्मा में यूपत्व का आरोप होने से अतिशयोक्ति अलङ्कार है। देव सविता के समान उन्नत में पूर्णोपमालङ्कार है ॥३॥
भावार्थ
परमात्मा को यज्ञस्तम्भ के समान और सूर्य के समान जब अपने हृदय में हम समुन्नत करते हैं, तब वह हमें महान् फल प्रदान करता है ॥३॥
पदार्थ
(नः ऊर्ध्वः-उ-ऊतये सुतिष्ठ) हे अग्रणायक परमात्मन्! तू हमारे ऊपर निरन्तर रक्षा के लिये स्थिर रह (सविता देवः-न-ऊर्ध्वः) सूर्य देव जैसे ऊपर स्थित प्रकाश देता है (वाजस्य सनिता) अमृत अन्नमोक्षानन्द का “अमृतोऽन्नं वै वाजः” [जै॰ २.१९३] सेवन कराने वाला (उर्ध्वः) हमारे ऊपर बना रह (यत्-अञ्जिभिः-वाघद्भिः) यतः तुझे वहन करने वाली—बुलाने वाली स्निग्धमन्त्रस्तुतियों द्वारा “छन्दांसि वा अञ्जयो वाघतः” [ऐ॰ २.२] (विह्वयामहे) विशेषरूप से बुलाते हैं—अपने हृदयसदन में आमन्त्रित करते हैं।
भावार्थ
परमात्मन्! सूर्य जैसे अन्धकार से बचाने के लिये प्रकाश देता हुआ ऊपर स्थित है ऐसी तू भी अज्ञान से रक्षा के लिये ज्ञानप्रकाश देता हुआ हमारे ऊपर विराजमान रह यह एक प्रार्थना है, दूसरी प्रार्थना है कि तू मोक्षानन्द अमृतभोग का देने वाला है तुझे मन्त्र स्निग्ध स्तुतियों से अपने हृदय में आमन्त्रित करते हैं, सो दोनों तू स्वीकार कर॥३॥
विशेष
ऋषिः—कण्वः (मेधावी वक्ता प्रगतिशील उपासक)॥ देवता—अग्निः (ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मा)॥<br>
विषय
प्रभु की रक्षा किन को प्राप्त होती है?
पदार्थ
(सविता) = सब पदार्थों को उत्पन्न करनेवाला वह प्रभु (देवः न) = [ देवो दानात्] दाता की भाँति (न:)=हमारी सु (ऊतये) = उत्तम रक्षा के लिए (ऊर्ध्वः तिष्ठ)= ऊपर ही खड़ा है, अर्थात् पूर्ण तैयार है और वह (वाजस्य) = शक्ति का (सनिता) देनेवाला (ऊर्ध्वः) = सदा शक्ति देने के लिए उद्यत है। (यत्) = ज्योंहि हम (अञ्जिभिः) = [अञ्ज- व्यक्ति] विषय का स्पष्टीकरण करने में निपुण (वाघद्भिः) = ज्ञान को खूब धारण करनेवाले [ वह = to carry ] विद्वानों के साथ (विह्वयामहे) = विशेषरूप से बातें [ज्ञानचर्चाएँ] करते हैं [ ह्वेञ् शब्दे] तथा उनके साथ स्पर्धा करते हैं, उनसे भी आगे बढ़ने के लिए प्रयत्नशील होते हैं [ ह्वेञ् स्पर्धायाम्]। ('अति समं क्राम') बराबरवाले से आगे लाँघ जाओ-इस वेद - वाक्य के अनुसार यह स्पर्धा अचित ही है। संसार का नियम है 'उन्नति या अवनति' [Either progres or regres], अतः हम आगे बढ़ेंगे तो ठीक है, अन्यथा अवनत हो जाएँगे। विद्वानों की स्पर्धा में आगे बढ़ने पर ही हम प्रभु की रक्षा के पात्र होंगे।
मानव जीवन के निर्माण में दो बातें आवश्यक हैं। एक बीज, दूसरी परिस्थिति। बीज हमें माता-पिता से प्राप्त होता है, परन्तु परिस्थिति का निर्माण हम स्वयं करते हैं। बीज की अपेक्षा परिस्थिति का जीवन निर्माण में तीन गुणा भाग है, अतः अपने भाग्य का निर्माण बहुत कुछ मनुष्य के अपने ही हाथ में है। 'Man is the architect of his own fate.' यह कहावत ठीक ही है। उत्तम परिस्थिति हमें उत्तम बनाएँगी, अधम परिस्थिति में हम अधम बन जाएँगे।
भावार्थ
ज्ञानियों के सम्पर्क में रहकर हम प्रभु की रक्षा व शक्ति प्राप्ति के पात्र बनें। कण-कण करके ज्ञान व शक्ति का सञ्चय करनेवाले हम इस मन्त्र के ऋषि 'कण्व' बनें।
विषय
परमेश्वर की स्तुति
भावार्थ
भा० = हे अग्ने ! परमेश्वर तू ( न: ) = हमारी ( ऊतये ) = रक्षा के लिये ( ऊर्ध्वः ) = उन्नत होकर ( सु तिष्ठ ) = भली प्रकार स्थिर रह । ( देवः सविता न ) = दिव्य गुणों से सम्पन्न सविता, सूर्य या विद्वान् के समान आप ( वाजस्य ) = अन्न और ज्ञान को ( सनिता ) = देनेहारे हो । ( यत् ) = जिस कारण (अन्जिभि:१ ) = गुणों का प्रकाश करने हारे ( वाघद्भिः ) = यज्ञकार्य का सम्पादन करने हारे विद्वानों द्वारा हम आपको ( वि ह्वयामहे ) = बुलाते हैं और आपकी स्तुति उपासना करते हैं ।
टिप्पणी
१. अञ्जिभिः त्वद्गुणप्रकाशकैः छन्दोभिः, इति मा० वि० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - कण्व घौरः।
छन्दः - बृहती।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ यूपो देवता। यूपवदुन्नतः परमात्मा प्रार्थ्यते।
पदार्थः
हे यूप२ यूपवदुच्छ्रित परमात्मन् ! त्वम् (नः) अस्माकम् (ऊतये) रक्षणाय (देवः) प्रकाशकः (सविता न) सूर्यः इव (उ) निश्चयेन सु सम्यक् (ऊर्ध्वः) अस्माकं हृदये समुन्नतः (तिष्ठ) वर्त्तस्व। संहितायां द्व्यचोऽतस्तिङः।’ अ० ६।३।१३५ इति दीर्घः। (ऊर्ध्वः) समुन्नतः सन् (वाजस्य) आत्मिकबलस्य (सनिता३) प्रदाता भव। षणु दाने, तृनि रूपम्। (यत्) यस्मात् (अञ्जिभिः४) स्वच्छीकृतैः। अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु, औणादिकः इन्। (वाघद्भिः) स्तुतिवहनशीलैः मनोबुद्धीन्द्रियरूपैः ऋत्विग्भिः। वाघतः इति ऋत्विङ्नाम। निघं० ३।१८। वाघतः वोढारः इति निरुक्तम्। ११।१६। वयं त्वाम् (वि ह्वयामहे) विशेषेण आह्वयामः (स्तुमः)। ऊ इत्यत्र ‘इकः सुञि।’ अ० ६।३।१३४ इति दीर्घः। षु इत्यत्र सुञः।’ अ० ८।३।१०७ इति मूर्धन्यादेषः। ण इत्यत्र नश्च धातुस्थोरुषुभ्यः।’ अ० ८।४।२७ इति षत्वम् ॥३॥५ अत्रोपमेयनिगरणपूर्वकं परमात्मनि यूपत्वारोपादतिशयोक्ति- रलङ्कारः, ऊर्ध्वः देवो न सविता इत्यत्र च पूर्णोपमा ॥३॥
भावार्थः
परमात्मानं हि यूपवत् सूर्यवच्च स्वहृदि यदा वयं समुन्नमामस्तदा महत् फलं सोऽस्मभ्यं प्रयच्छति ॥३॥
टिप्पणीः
१. ऋ० १।३६।१३, य० ११।४२। उभयत्र देवता अग्निः। २. इयं यूपस्य उच्छ्रयणे अनूच्यते—इति भ०। हे यूप यद्वा यूपात्मकदारुनिष्ठ अग्ने—इति सा०। ३. सनितिर्लाभः, तस्मादयं तादर्थ्यचतुर्थ्या आ आदेशः, सनितये लाभायेत्यर्थः—इति वि०। सनिता दाता भवेति शेषः—इति भ०। ४. अञ्जिभिः त्वद्गुणप्रकाशकैश्छन्दोभिः—इति वि०। अञ्जिभिः छन्दोभिः। व्यज्यन्ते सिच्यन्ते वर्धन्ते देवता अमीभिरिति अञ्जयः। वाघद्भिः आवहद्भिः। यदञ्जिभिः वाघद्भिः विह्वयामहे इति छन्दांसि वा अञ्जयो वाघतः तैरेतद् देवान् यजमाना विह्वयन्ते मम यज्ञम् आगच्छत मम यज्ञमिति (ऐ० ब्रा० २।२) इति हि ऐतरेयकम्—इति भ०। अञ्जिभिः यज्ञेन यूपमञ्जद्भिः वाघद्भिः यज्ञं वहद्भिः ऋत्विग्भिः—इति सा०। ५. दयानन्दर्षिणा मन्त्रोऽयम् ऋग्भाष्ये सभाध्यक्षपक्षे यजुर्भाष्ये च विद्वदध्यापकपक्षे व्याख्यातः।
इंग्लिश (3)
Meaning
0 God, for our protection, be nobly steady like the Sun. Be the grand donor of spiritual force. We extol Thee along with beloved learned persons.
Translator Comment
Sayan Acharya interprets Urdhwa as “Yupa” the sacrificial post to which the victims at an animal sacrifice were tied. This rendering is irrelevant.
Meaning
Agni, lord of light and life, brilliant as the sun, stay high with grace in glory for our protection and progress. Rise high as the hero of lifes battles of honour and prosperity. It is for the reason of your glory and generosity that we invoke and pray to you along with the scholars with holy offers of yajna and celebration. (Rg. 1-36-13)
Translation
Be up to protect us, like the sun capable of healing, please rise; you are the giver of food and we invoke you with devotion and earnestness. (Cf. Rv I.36.13)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (नः ऊर्ध्वः उ ऊतये सुतिष्ठ) હે અગ્રણાયક પરમાત્મન્ ! તું અમારા ઉપર રક્ષા માટે નિરંતર સ્થિર રહે (सविता देवः न ऊर्ध्वः) જેમ સૂર્ય ઉપર રહીને પ્રકાશ આપે છે; (वानस्य सनिता) તેમ અનમોક્ષાનંદનું સેવન કરનાર (ऊर्ध्वः) અમારી ઉપર બની રહે. (यत् अञ्जिभिः वाघद्भिः) જે તને વહન કરનારી-બોલાવનારી સ્નિગ્ધ મંત્ર સ્તુતિઓ દ્વારા (विह्वयामहे) વિશેષ રૂપથી બોલાવે છે - મારા હૃદયગૃહમાં આમંત્રિત કરે છે.
भावार्थ
ભાવાર્થ : જેમ સૂર્ય અંધકારથી બચાવવા માટે પ્રકાશ આપીને ઉપર રહે છે, તેમ તું પણ અજ્ઞાનથી રક્ષા કરવા માટે જ્ઞાનપ્રકાશ આપતા અમારી ઉપર વિરાજમાન રહે. આ એક પ્રાર્થના બીજી પ્રાર્થના છે કે, તું મોક્ષાનંદ અમૃતભોગનો આપનાર છે. તને મંત્ર સ્નિગ્ધ સ્તુતિઓથી અમારા હૃદયમાં આમંત્રિત કરીએ છીએ, તે બન્નેનો તું સ્વીકાર (૩)
उर्दू (1)
Mazmoon
اُونچا ہے بھگوان سب سے اُونچا
Lafzi Maana
ہے پربھو (نہ) ہماری (سُو اُوتیئے) اُتم پرکار سے رکھشا کے لئے (اُو) نشچے سے آپ ہی (واجسیہ سِنی تا) اَیشوریہ انّ گیان آدی سمردھی کے داتا اور موکھش آنند کے دینے والے (اُور دھو) سب سے اُوپر (تشِٹھ) براجمان ہیں (نا) جیسے کہ (دیوسوِتا) پرکاش مان سُوریہ ہماری حفاظت کے لئے سب سے اُوپر رہتا ہے۔ اس لئے (انجی بھی) آپ کے گُنوں کو پرگٹ کرنے والی جو اپ کے سورُوپ کو ٹھیک پرکار سے ورنن کرسکے۔ ایسی بانی اور (واگھد بھی) اپ کو پراپت کرانے والی دشیش وید منتروں دوارہ (دہویا) اپ کا اواہن کرتے ہیں، خاص طور پر پکار کرتے ہوئے آپ کو بُلا رہے ہیں۔
मराठी (2)
भावार्थ
परमात्म्याला यज्ञस्तंभाप्रमाणे व सूर्याप्रमाणे जेव्हा आपल्या हृदयात आम्ही समुन्नत करतो तेव्हा तो आम्हाला महान फळ प्रदान करतो ॥३॥
विषय
योपो देवता । यूपाप्रमाणे उंच असलेला उन्नत उत्कृष्ट मनुष्य परमेशाची प्रार्थना करीत आहेत. -
शब्दार्थ
यज्ञस्तभ्या (पूप) प्रमाणे उन्नत हे परमात्मन् आपण (न:) आमच्या (ऊतये) रक्षणाकरीता (देव:) प्रकाशक (सवितान) सूर्याप्रमाणे (उ) अवश्यमेव (सु) त्व चांगल्या पद्धतीने (ऊर्ध्व:) आमच्या हृदयात समुन्नत व्हा. तसेच (वाजस्य) आत्मिक शक्तीचे (सनिता) प्रदाता व्हा. (यत्) कारण की (अज्जिभि:) स्वच्छ अशा (वाघद्भि:) स्तुति वहन करणारे मन, बुद्धी, इंद्रिय रूप ऋत्विजांद्वारे आम्ही तुम्हाला (विद्यामहे) विशेषत्वाने हाक देत आहोत. तुमची स्तुती करीत आहोत. ।।३।।
भावार्थ
जेव्हा आम्ही परमेश्वराला यज्ञस्तम्भाप्रमाणे आणि सूर्याप्रमाणे (महत्त्वपूर्ण मानून) आपल्या हृदयात उन्नत जागृत करतो, तेव्हा तो आम्हाला महान लाभ प्राप्त करवितो. ।।३।।
विशेष
या मंत्रात उपमेयाच्या निगरणपूर्वक उपमेय परमेश्वरावर यूयत्वाचा आरोप केला आहे, म्हणून येथे अतिशयोक्ति अलंकार आहे. देव सविताप्रमाणे उन्नत या वाक्यांशात पूर्णोपमा अलंकार आहे. ।।३।।
तमिल (1)
Word Meaning
எங்களை ரட்சிக்க உயரமாய் நிற்கவும், சூரியனான (தேவரைப்) போல் நிற்கவும். சோதியான யக்ஞ கர்த்தாக்களோடு உன்னை அழைக்குங்கால் வன்மை அளிப்பவனாய் உன்னதமாக நிற்கவும்.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal