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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 597
    ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - आरण्यं काण्डम्
    39

    इ꣢न्द्र꣣ इ꣢꣫द्धर्योः꣣ स꣢चा꣣ स꣡म्मि꣢श्ल꣣ आ꣡ व꣢चो꣣यु꣡जा꣢ । इ꣡न्द्रो꣢ व꣣ज्री꣡ हि꣢र꣣ण्य꣡यः꣢ ॥५९७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ꣡न्द्रः꣢꣯ । इत् । ह꣡र्योः꣢꣯ । स꣡चा꣢꣯ । स꣡म्मि꣢꣯श्लः । सम् । मि꣣श्लः । आ꣢ । व꣣चोयु꣡जा꣢ । व꣣चः । यु꣡जा꣢꣯ । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । व꣣ज्री꣢ । हि꣣रण्य꣡यः꣢ ॥५९७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र इद्धर्योः सचा सम्मिश्ल आ वचोयुजा । इन्द्रो वज्री हिरण्ययः ॥५९७॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रः । इत् । हर्योः । सचा । सम्मिश्लः । सम् । मिश्लः । आ । वचोयुजा । वचः । युजा । इन्द्रः । वज्री । हिरण्ययः ॥५९७॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 597
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 2; मन्त्र » 3
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 2;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले दो मन्त्रों में इन्द्र देवता है। यहाँ परमात्मा की महिमा का वर्णन है।

    पदार्थ

    (इन्द्रः इत्) जगदीश्वर ही (वचोयुजा) आदेशवचन होते ही नियुक्त हो जानेवाले (हर्योः) भूमि-आकाश, दिन-रात, शुक्लपक्ष-कृष्णपक्ष, प्राण-अपान, ज्ञानेन्द्रिय-कर्मेन्द्रिय, ऋक्-साम रूप घोड़ों का (सचा) एक साथ (सम्मिश्लः) संयुक्त करनेवाला है। (इन्द्रः) वह जगदीश्वर (वज्री) वज्रधारी के समान निरङ्कुशों को नियम में रखनेवाला और (हिरण्ययः) प्रतापी है ॥३॥

    भावार्थ

    महाप्रतापी परमेश्वर ने ही सौरमण्डल में द्यावापृथिवी आदि रूप, शरीर में प्राण-अपान आदि रूप तथा मनोभूमि में ऋक्-साम आदि रूप अश्वों को सामञ्जस्यपूर्वक नियुक्त किया है ॥३॥

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    पदार्थ

    (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् परमात्मा (वचोयुजा हर्योः) अपने वचन—आदेश या प्रार्थना से युक्त होने वाले दुःखापहर्ता और सुखाहर्ता दोनों ज्योति और स्नेह या कृपा और प्रसाद का (सचा-आमिश्लः) समन्तरूप से उपासक में मेल कराने वाला है तथा (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् परमात्मा (वज्री हिरण्ययः) ओजस्वी “वज्रो वा ओजः” [श॰ ८.४.१.२०] और सुशोभन है।

    भावार्थ

    परमात्मा के आदेश से या उपासक की प्रार्थना से युक्त होने वाले ज्योति और स्नेह या कृपा और प्रसाद का साथ सम्यक् मिश्रण करनेवाला ऐश्वर्यवान् परमात्मा है और वह अपने रूप में ओजस्वी तथा सुशोभन है, उसकी स्तुति करनी चाहिए॥३॥

    विशेष

    ऋषिः—मधुच्छन्दा वैश्वामित्र (सर्वमित्र आचार्य से सम्बद्ध मधुर इच्छा वाला)॥ देवता—इन्द्रः (ऐश्वर्यवान् परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>

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    विषय

    इन्द्र कहलाने योग्य कौन ?

    पदार्थ

    गत मन्त्र का ‘पवित्र' यहाँ मधुच्छन्दाः=मधुर इच्छाओंवाला वैश्वामित्र:=प्राणिमात्र का मित्र है। ऐसा बनने के लिए यह (इन्द्रः) = इन्द्रियों का अधिष्ठाता जीव (इत्) = निश्चय से (हर्योः सचा) = ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रियरूप घोड़ों को सदा साथ-साथ रखता है। शरीररूप रथ से उन्हें इधर-उधर भटकने नहीं देता। (संमिश्ल:) = यह इन इन्द्रियों को सम्यक् मिश्रित करनेवाला होता है। इन्हें सदा उत्तम कार्यों में लगाये रखता है। (वचोयुज:) = यह इन इन्द्रियरूप घोड़ों को वेदवाणी के अनुसार (आ) = सर्वथा कर्मों में युक्त करता है। वेदानुकूल जीवन बनाने से यह इन्द्र (वज्री) = वज्रतुल्य शरीरवाला बनता है और (हिरण्ययः) = मस्तिष्क में ज्योतिर्मय होता है। वेद की प्रेरणा के अनुसार मनुष्य तमोगुण व रजोगुण से ऊपर उठकर सत्त्वगुण में अवस्थित होता हुआ मस्तिष्क को प्रकाश से पूर्ण करता है और शरीर को आमय-शून्य बनाता है। निरामय शरीर सारवान् बनता हुआ वज्रतुल्य दृढ़ होता है।

    ज्ञानी और पूर्ण स्वस्थ मनुष्य किसी से द्वेष नहीं करता। यह सचमुच ‘वैश्वामित्रः’ होता है, सबके लिए मङ्गल-ही-मङ्गल चाहता हुआ यह 'मधुच्छन्दा' कहलाता है। 

    भावार्थ

    हम शरीर से वज्री हों, मस्तिष्क से हिरण्य ।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = ( इन्द्र इत् ) = आत्मा ही ( वचोयुजा ) = वाणीमात्र से योग रखन वाले ( हर्योः ) = हरण करने वाले अश्वों, शक्तियों ज्ञान, कर्म और इन्द्रियों को ( सचा ) = एक साथ ( संमिश्लः ) = मिला कर रखने वाला है । वही ( वज्री ) = संहारक शक्ति से युक्त और ( हिरण्ययः ) = सूर्य के समान कान्तिमान् रूप वाला या स्वतः हित, प्रिय, रमणयि, और गतिशील आत्मा है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः।

    देवता - इन्द्रः।

    छन्दः - गायत्री।

    स्वरः - षड्जः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ द्वयोरिन्द्रो देवता। अत्र परमात्मनो महिमानमाचष्टे।

    पदार्थः

    (इन्द्रः इत्) जगदीश्वर एव (वचोयुजा) वचोयुजोः, आदेशसमकालमेव युज्यमानयोः। अत्र ‘सुपां सुलुक्०’ अ० ७।१।३९ इत्यनेन षष्ठीद्विवचनस्य आकारादेशः। (हर्योः) द्यावापृथिवीरूपयोः, अहो- रात्ररूपयोः, शुक्लकृष्णपक्षरूपयोः, प्राणापानरूपयोः, ज्ञानेन्द्रियकर्मेन्द्रियरूपयोः, ऋक्सामरूपयोश्च अश्वयोः (सचा) सह (सम्मिश्लः) सम्मिश्रः संयोजयिता विद्यते। अत्र ‘संज्ञाछन्दसोर्वा कपिलकादीनामिति वक्तव्यम्’ अ० ८।२।१८ वा० इत्यनेन रेफस्य लत्वादेशः। (इन्द्रः) स जगदीश्वरः (वज्री) अङ्कुशधर इव निरङ्कुशानां नियामकः, लुप्तोपममेतत् (हिरण्ययः) प्रतापवांश्च (विद्यते) इति शेषः।१ इमे द्यावापृथिवी वै हरी विपक्षसा। तै० ३।९।४।२, अहोरात्रौ वा अस्य हरी। जै० ब्रा० २।७९, पूर्वपक्षापरपक्षौ वा इन्द्रस्य हरी। ष० ब्रा० १।१ ऋक्सामे वै हरी। श० ४।४।३।६, प्राणापानौ वा अस्य हरी। जै० ब्रा० २।७९। हिरण्ययः इत्यत्र ‘ऋत्व्यवास्त्व्यवास्त्वमाध्वीहिरण्ययानि च्छन्दसि’ अ० ६।४।१७५ इति हिरण्यशब्दाद् विहितस्य मयटो मशब्दलोपो निपात्यते। ज्योतिर्हि हिरण्म्। श० ४।३।१।२१ ॥३॥

    भावार्थः

    महाप्रतापेन परमेश्वरेणैव सौरमण्डले द्यावापृथिव्यादिरूपौ, शरीरे प्राणापानादिरूपौ, मनोभूमौ च ऋक्सामादिरूपावश्वौ सामञ्जस्यपूर्वकं नियुक्तौ स्तः ॥३॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० १।७।२, साम० ७९७, अथ० २०।३८।५, ४७।५, ७०।८। २. दयानन्दर्षिणा मन्त्रेऽस्मिन् ऋग्भाष्ये प्रथमेन इन्द्रशब्देन वायुः, द्वितीयेन च इन्द्रशब्देन सूर्यो गृहीतः।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    God alone, with His Word, keeps the Sum and Moon simultaneously inter-connected. God is Chastiser; and Lustrous like the Sun.

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    Meaning

    Indra, the omnipresent Spirit, Indra, the universal energy of vayu or maruts, And Indra, the solar energy, the bond of unity and sustenance in things, co-existent synthesis of equal and opposite complementarities of positive and negative, activiser of speech, lord of the thunderbolt and the golden light of the day and the year. (Rg. 1-7-2)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (इन्द्रः) ઐશ્વર્યવાન પરમાત્મા (वचोयुजाहर्योः) પોતાનાં વચન-આદેશ અથવા પ્રાર્થનાથી યુક્ત થનાર દુઃખહર્તા સુખદાતા બન્ને જ્યોતિ અને સ્નેહ અથવા કૃપા અને પ્રસાદ (सचा आमिश्लः) સમગ્રરૂપથી ઉપાસકોમાં મિશ્રણ કરાવનાર છે તથા (इन्द्रः) ઐશ્વર્યવાન પરમાત્મા (वज्री हिरण्ययः) ઓજસ્વી અને સુશોભન છે. (૩)
     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : પરમાત્માના આદેશથી અથવા ઉપાસકની પ્રાર્થનાથી યુક્ત થનાર, જ્યોતિ અને સ્નેહ અથવા કૃપા અને પ્રસાદને સાથે સમ્યક્ મિશ્રણ કરનાર ઐશ્વર્યવાન પરમાત્મા છે; તથા તે પોતાનાં રૂપમાં ઓજસ્વી અને સુશોભન છે, તેની સ્તુતિ કરવી જોઈએ. (૩)
     

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    ہمارے وسائل کے ذریعے ہی ایشور ہمیں بدی سے چُھڑاتا ہے!

    Lafzi Maana

    پرمیشور ہی اپنے ازلی قانونِ قدرت کے ذریعے حواسِ خمسہ یعنی گیان اور کرم اندری روپی گھوڑوں کے ساتھ اُن کے کاموں میں ساتھی بن کر ایسا گھل مل جاتا ہے، کہ جس سے بدی پر اپنی طاقت سے حاوی ہو کر ہمیں چمتکاری معلوم ہوتا ہے، بمثل معجزہ۔

    Tashree

    کام کا روُ اِندریوں کے ساتھ مل جاتا ہے اِیش، بدیوں پر قابو جما اُن سے بچا لیتا ہے ایش۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    महाप्रतापी परमेश्वराने सौरमंडलात द्यावा पृथ्वी इत्यादी रूप, शरीरात प्राण-अपान इत्यादी रूप व मनोभूमीत ऋक्-साम इत्यादी रूप अश्वांना सामंजस्यपूर्वक नियुक्त केलेले आहे ॥३॥

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    विषय

    इन्द्र देवता। परमेश्वराच्या महिमेविषयी. -

    शब्दार्थ

    (इन्द्रःइत्) तो जगदीश्वरच (वचोयुजा) आज्ञा देताच रथात नियुक्त होणाऱ्या (हर्योः) घोड्याप्रमाणे भूमि-आकाश, दिवस-रात्र, शुक्लपक्ष-कृष्णपक्ष, प्राण-अपान, ज्ञानेंद्रियें- कर्मेन्द्रियें, ऋक्-साम या युगलांचा (घोडे-रथ यांना) (सचा) एकाच वेळी (सम्मिश्ला) संयुक्त करतो (जुंपतो निरंकुश व्यक्तींना नियंत्रणात ठेचणारा आणि (हिरण्मयः) प्रतापवान आहे.।।३।।

    भावार्थ

    महाप्रतापी परमेश्वरानेच सौर मंडळात द्यावापृथिवी, शरीरात प्राण-अपान तसेच मनोभूमी ऋक्-साम आदी रूपाच्या अश्वांना व्यवस्थितपणे त्यांच्या त्यांच्या कार्यात जुपले आहे. ।।२।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    இந்திரனே குதிரைகளினுடைய சேர்க்கையை ஒன்று சேர்ப்பவன் ; சுசிட்சிதமான இந்திரன் வச்சிராயுதத்துடன் பொன்மயமானவன்.

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