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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 681
    ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः(विषमा बृहती समा सतोबृहती) स्वरः - पञ्चमः काण्ड नाम -
    28

    न꣡ त्वावा꣢꣯ꣳ अ꣣न्यो꣢ दि꣣व्यो꣡ न पार्थि꣢꣯वो꣣ न꣢ जा꣣तो꣡ न ज꣢꣯निष्यते । अ꣣श्वाय꣡न्तो꣢ मघवन्निन्द्र वा꣣जि꣡नो꣢ ग꣣व्य꣡न्त꣢स्त्वा हवामहे ॥६८१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न꣢ । त्वा꣡वा꣢꣯न् । अ꣣न्यः꣢ । अ꣣न् । यः꣢ । दि꣣व्यः꣢ । न । पा꣡र्थि꣢꣯वः । न । जा꣡तः꣢ । न । ज꣡निष्यते । अश्वाय꣡न्तः꣢ । मघ꣣वन् । इन्द्र । वाजि꣡नः꣢ । ग꣣व्य꣡न्तः꣢ । त्वा꣣ । हवामहे ॥६८१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    न त्वावाꣳ अन्यो दिव्यो न पार्थिवो न जातो न जनिष्यते । अश्वायन्तो मघवन्निन्द्र वाजिनो गव्यन्तस्त्वा हवामहे ॥६८१॥


    स्वर रहित पद पाठ

    न । त्वावान् । अन्यः । अन् । यः । दिव्यः । न । पार्थिवः । न । जातः । न । जनिष्यते । अश्वायन्तः । मघवन् । इन्द्र । वाजिनः । गव्यन्तः । त्वा । हवामहे ॥६८१॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 681
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    इस प्रकार अपने अन्तरात्मा को उद्बोधन देकर अब परमात्मा का आह्वान करते हैं।

    पदार्थ

    हे परमेश्वर ! (अन्यः) दूसरा (त्वावान्) तेरे समान (न दिव्यः) न आकाशवर्ती और (न पार्थिवः) न भूमिवर्ती कोई पदार्थ है। तेरे समान (न जातः) न कोई पदार्थ उत्पन्न हुआ है, (न जनिष्यते) न भविष्य में उत्पन्न होगा। हे (मघवन्) ऐश्वर्यशालिन् (इन्द्र) परमात्मन् ! (वाजिनः) बलवान् तथा पुरुषार्थी हम (अश्वायन्तः) श्रेष्ठ प्राणों की कामनावाले और (गव्यन्तः) इन्द्रियरूप गौओं के श्रेष्ठ ज्ञान व कर्म रूप दूध की कामनावाले होकर (त्वा) तुझे (हवामहे) पुकार रहे हैं ॥२॥ इस मन्त्र में ‘उसके मुख के तुल्य कोई अन्य वस्तु नहीं है, न ही नेत्रों के तुल्य है’ इस अर्थवाली साहित्यदर्पण १०।२० में उदाहृत उक्ति के समान उपमानलुप्तोपमालङ्कार है ॥२॥

    भावार्थ

    अलौकिक तथा अद्वितीय परमात्मा की उपासना करके बलवान् और पुरुषार्थी होकर सब लोग ऐहलौकिक तथा पारलौकिक अभीष्ट को प्राप्त कर सकते हैं ॥२॥

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    पदार्थ

    (मघवन्-इन्द्र) हे मोक्षैश्वर्यवान् परमात्मन्! (त्वावान्) तेरे जैसा शरण्यदेव (अन्यः-न दिव्यः-न पार्थिवः) कोई न द्युलोक वाला न पृथिवीलोक वाला (न जातः-न जनिष्यते) न उत्पन्न हुआ न उत्पन्न होवेगा यह निश्चय है (अश्वायन्तः-गव्यन्तः) हम सदन्तःकरण चाहते हुए संयत इन्द्रिय चाहने वाले होते हुए (वाजिनः) अमृतान्नभोग के भागी (त्वा हवामहे) तुझे आमन्त्रित करते हैं।

    भावार्थ

    मानव का शरण्यदेव वास्तव में केवल परमात्मा ही है कोई अन्य न द्युलोक का पदार्थ, न कोई पृथिवीलोक का पदार्थ हो सकता है। उसके आश्रय से हम उत्तम अन्तःकरण वाले संयत पवित्र इन्द्रियों वाले होते हुए अमृतभोग मोक्ष के भागी हो सकते हैं, उसका अपने अन्दर आमन्त्रण करना चाहिये॥२॥

    विशेष

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    विषय

    अद्वितीय

    पदार्थ

    हे प्रभो ! (त्वावान्) = आप-जैसा (अन्यः) = दूसरा और कोई (दिव्यः) = द्युलोक में होनेवाला (न जात:) = न तो कोई हुआ है (न जनिष्यते) = और न ही होगा। आप सर्वशक्तिमान् व सर्वज्ञ हैं। चराचर के ईशान हैं, सभी के सुख-साधन में लगे हुए हैं। आपको छोड़कर ऐसा कौन है ? आप तो 'अ-द्वितीय' ही हैं । हे (मघवन्) = [मा+अघ] सब पापों से दूर - अपापविद्ध प्रभो ! हे (इन्द्र) = सर्वैश्वर्यशाली प्रभो! (अश्वायन्तः गव्यन्त:) = कर्मों में व्याप्त होनेवाली प्रशस्त कर्मेन्द्रियों की कामना करते हुए, निश्चय से अर्थों का ज्ञान देनेवाली दीप्त ज्ञानेन्द्रियों की कामना करते हुए हम (वाजिनः) = बल को अपनानेवाले (त्वा हवामहे) = आपको पुकारते हैं। आपके स्मरण से ही वासनाओं का विनाश होकर हमें उत्तम कर्मेन्द्रियों व शक्ति का लाभ होगा। -

    ‘अश् व्याप्तौ' धातु से बनकर अश्व शब्द कर्मों में व्याप्त होनेवाली कर्मेन्द्रियों का वाचक है गौ शब्द समझना, Understand इस अर्थवाली गम् धातु से बनकर अर्थतत्त्व का ज्ञान देनेवाली ज्ञानेन्द्रियों को कह रहा है । वाज शब्द शक्ति का वाचक है, उससे प्रशस्त अर्थ में 'इनि प्रत्यय' आया है। एवं, उत्तम कर्मेन्द्रियों, ज्ञानेन्द्रियों व शक्ति को चाहते हुए हम प्रभु को पुकारते हैं। प्रभु के अतिरिक्त इन्हें हमें प्राप्त करा ही कौन सकता है ?

    भावार्थ

    हम निरन्तर प्रभु की स्तुति करें, वे चराचर के ईशान हैं, वे सभी के कल्याण की चिन्ता करते हैं। वे अद्वितीय है, उन्हीं से हमें इन्द्रिय-नैर्मल्य व शक्ति प्राप्त होगी ।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = ( २ ) हे ( मघवन् ) = ऐश्वर्यवन् ! राजन् ! परमेश्वर ! ( त्वावान् ) = तेरे जैसा ( अन्यः ) = दूसरा ( दिव्यः ) = दिव्य गुणों से युक्त ( न जातः ) = न पैदा हुआ और ( न जनिष्यते ) = न पैदा होगा। और तेरे जैसा अन्य ( पार्थिवः ) = इस पृथ्वी का कोई पदार्थ, या पृथ्वी का मालिक भी ( न जातः न जनिष्यते ) = न हुआ और न होगा। हम ( अश्वायन्तः गव्यन्तः ) = अश्व और गौओं या प्राण और कर्मेन्द्रियों को चाहने वाले, ( वाजिनः ) = ज्ञान और बल के इच्छुक होकर ( त्वा हवामहे ) = तेरी स्तुति करते हैं।

    टिप्पणी

    ६८१(३) 'शतं भवास्यूतिभिः' इति ऋ० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - वसिष्ठ:। देवता - इन्द्रः। छन्दः - बृहती। स्वरः - मध्यमः।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    एवं स्वात्मानमुद्बोध्य परमात्मानमाह्वयति।

    पदार्थः

    हे परमेश्वर ! (अन्यः) इतरः (त्वावान्) त्वत्सदृशः (न दिव्यः) न दिवि भवः, (न पार्थिवः) न पृथिव्यां भवः कश्चिद् अस्ति। (न जातः) न पूर्वमुत्पन्नः, (न जनिष्यते) न भाविनि काले कदाचित् उत्पत्स्यते। हे (मघवन्) ऐश्वर्यशालिन् (इन्द्र) परमात्मन् ! (वाजिनः) बलवन्तः पुरुषार्थिनो वयम् (अश्वायन्तः) श्रेष्ठान् प्राणान् कामयमानाः (गव्यन्तः) इन्द्रियधेनूनां श्रेष्ठं ज्ञानकर्मरूप दुग्धं च कामयमानाः (त्वा) त्वाम् (हवामहे) आह्वयामः ॥२॥२ अत्र ‘तस्या मुखेन सदृशं रम्यं नास्ते न वा नयनतुल्यम्’ इति दर्पणोदाहृतवद् (सा० द० १०।२०) उपमानलुप्तोपमालङ्कारः ॥२॥

    भावार्थः

    अलौकिकमद्वितीयं परमात्मानमुपास्य बलवन्तः पुरुषार्थिनश्च भूत्वा सर्वे ऐहलौकिकं पारलौकिकं च समीहितं प्राप्तुमर्हन्ति ॥२॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ७।३२।२३, य० २७।३६, अथ० २०।१२१।२। २. दयानन्दर्षिर्मन्त्रमिममृग्भाष्ये यजुर्भाष्ये च परमेश्वरेण तुल्योऽधिको वा कोऽपि नास्तीति विषये व्याख्यातवान्।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Supreme God, no one divine like Thee has ever been born, nor ever shall be. No one like Thee has ever been born on this Earth nor ever shall be. We, the aspirants after knowledge and power, longing for the control of our organs of cognition and action, praise Thee !

    Translator Comment

    God preaches to the King, that he should avoid the use of intoxicants and consider food as the best tonic to lend him strength to shatter the fortress of the enemy.

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    Meaning

    There is none other like you, neither heavenly nor earthly, neither born nor yet to be born. O lord of power and glory, we invoke you and pray for veteran scholars, dynamic scientists and technologists and the light of the divine Word of knowledge. (Rg. 7-32-23)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (मघवन् इन्द्र) હે મોક્ષૈશ્વર્યવાન પરમાત્મન્ ! (त्वाजान्) તારા જેવો શરણ્યદેવ (अन्यः न दिव्यः न पार्थिवः) બીજો કોઈ ન તો દ્યુલોકવાળો ન તો પૃથિવીલોકવાળો ( न जातः न जनिष्यते) ન તો ઉત્પન્ન થયો છે કે ન તો ઉત્પન્ન થશે એ નિશ્ચય છે. (अश्वायन्तः गव्यन्तः) અમે સદ્ અન્તઃકરણથી ચાહતાં સંયત ઇન્દ્રિયથી ચાહતાં (वाजिनः) અમૃતાન્ન ભોગનાં ભાગી (त्वा हवामहे) તને આમંત્રિત કરીએ છીએ. (૨)

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : મનુષ્યનો શરણ્યદેવ વાસ્તવમાં કેવળ પરમાત્મા જ છે, કોઈ અન્ય ન તો દ્યુલોકના પદાર્થો, ન તો પૃથિવીલોકના પદાર્થો હોઈ શકે, તેના આશ્રયથી અમે ઉત્તમ અન્તઃકરણવાળા અને સંયમિત પવિત્ર ઇન્દ્રિયોવાળા બનીને અમૃતભોગ મોક્ષનાં ભાગી બની શકીએ છીએ, તેને પોતાની અંદર આમંત્રિત કરવો જોઈએ. (૨)
     

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    अलौकिक व अद्वितीय परमेश्वराची उपासना करून बलवान व पुरुषार्थी बनून सर्व लोक इहलौकिक व पारलौकिक अभीष्ट प्राप्त करू शकतात. ॥२॥

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    विषय

    वरीलप्रमाणे आपल्या आत्म्याला उद्बोधित करून आता परमात्म्याचे आवाहन करीत आहेत.

    शब्दार्थ

    (उपासकगण प्रार्थना करीत आहेत) हे परमेश्वर, (त्वावान्) तुझ्याशिवाय (अन्या) अन्य कोणी (दिव्य:) आकाशवर्मी अथवा सर्वव्यापी नाही. तसेच तुझ्याशिवाय (पार्थिव:) कोणताही भूमिवरती पदार्थ नाही, अर्थात तू सर्वात व्याप्त आहेस. परमेश्वरा, तुझ्याशिवाय कोणी (न जात:) पदार्थ नाही. तुझ्यासारखा कोणी पदार्थ जन्मला नाही किंवा पुढेही (न जतिष्यते) जन्मणार नाही म्हणजे तू अजन्मा व अमर आहेस, पण तुझ्याशिवाय इतर कोणताही पदार्थ अजरामर नाही. हे (मधवन्) ऐश्वर्यवान (इन्द्र) परमेश्वरा, (वाजिन:) बलवान आणि पुरुषार्थी असे आम्ही (अश्वायन्त:) श्रेष्ठ प्राणांची (अश्व - प्राण) कामना करणारे व (गव्यन्त:) (गौ - इन्द्रिय) इंद्रियरूप गायीच्या श्रेष्ठ ज्ञान व श्रेष्ठ कर्मरूप दुधाचा इच्छा मनात घेऊन तुझ्याकडे आलो आहोत वा तुला पुकारत आहोत. ।।२।।

    भावार्थ

    अलौकिक आणि अद्वितीय परमात्म्याची उपासना करून सर्व जण बलवान व पुरुषार्थी होऊ शकतात आणि ऐहिक व पारलौकिक अभीष्ट प्राप्त करू शकतात. ।।२।।

    विशेष

    या मंत्रात उपमान लुप्तोपमा अलंकार आहे. कारण या उक्तीत (तुझ्यासारखा कोणी नाही) व उपमान लुप्त आहे. साहित्य शास्त्राच्या साहित्य दर्पण ग्रंथात याची व्याख्या अशीच केली आहे. जसे तिच्या मुखारसारखी अन्य वस्तू नाही. (साहित्यपूर्पण १०/२०) ।।२।।

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