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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 691
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
27
व꣣रिवोधा꣡त꣢मो भुवो꣣ म꣡ꣳहि꣢ष्ठो वृत्र꣣ह꣡न्त꣢मः । प꣢र्षि꣣ रा꣡धो꣢ म꣣घो꣡ना꣢म् ॥६९१॥
स्वर सहित पद पाठवरिवोधा꣡त꣢मः । व꣣रिवः । धा꣡त꣢꣯मः । भु꣣वः । म꣡ꣳहि꣢꣯ष्ठः । वृ꣣त्र꣡हन्त꣢मः । वृ꣣त्र । ह꣡न्त꣢꣯मः । प꣡र्षि꣢꣯ । रा꣡धः꣢꣯ । म꣣घो꣡ना꣢म् ॥६९१॥
स्वर रहित मन्त्र
वरिवोधातमो भुवो मꣳहिष्ठो वृत्रहन्तमः । पर्षि राधो मघोनाम् ॥६९१॥
स्वर रहित पद पाठ
वरिवोधातमः । वरिवः । धातमः । भुवः । मꣳहिष्ठः । वृत्रहन्तमः । वृत्र । हन्तमः । पर्षि । राधः । मघोनाम् ॥६९१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 691
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में परमात्मा से प्रार्थना करते हैं।
पदार्थ
हे इन्द्र परमात्मन् ! आप (वरिवोधातमः) अतिशय ऐश्वर्य को धारण करनेवाले, (मंहिष्ठः) सबसे बढ़कर दानी, (वृत्रहन्तमः) सबसे बड़े पापहन्ता (भुवः) सिद्ध हुए हो। आप ही (मघोनाम्) हम भौतिक धनों के धनियों को (राधः) सत्य, न्याय, दया, मोक्ष, आदि दिव्य धन (पर्षि) प्रदान करो ॥३॥
भावार्थ
वही मनुष्य वस्तुतः धनी है, जो भौतिक धन के साथ अध्यात्म धन भी कमाता है ॥३॥
पदार्थ
(वृत्रहन्तम्) हे अत्यन्त पापनाशक परमात्मन्! तू (वरिवः-धातमः) धन का अत्यन्त धारक “वरिवः-धननाम” [निघं॰ २.१०] साथ ही (मंहिष्ठः) अत्यन्त दाता भी है (मघोनाम्) धन वालों को तू ही (राधः पर्षि) धन पूरता है।
भावार्थ
पापाज्ञान का नाशक परमात्मा महान् धन का धारक होता हुआ अतीव दानकर्ता भी है, जितने भी धनवान् हैं उनको वही धन से भरपूर करता है। परमात्मन्! तेरे जैसा कोई दानी नहीं दानियों को भी तू ही दानार्थ धन देता है तेरी उपासना से कोई निर्धन नहीं रह सकता॥३॥
विशेष
<br>
विषय
‘वरिवोधातम' सोम
पदार्थ
यह सोम ‘वरिवो-धा-तम' है, उत्तमोत्तम धनों को अतिशेयन धारण करनेवाला है। इसने शरीर को 'वज्रतुल्य दृढ़ता', मन को 'निर्मलता' तथा बुद्धि को 'तीव्रता' प्राप्त करायी है। ये ही मानव के सर्वोत्तम धन हैं । मधुछन्दाः कहता है कि हे सोम! तू (वरिवोधातमः भुवः) = उत्तम धनों का देनेवाला होता है। इन्हीं से तो मनुष्य ‘धन्य' बनता है । (मंहिष्ठ:) = तू दातृतम है । इन धनों को खूब देता है और (वृत्रहन्तम:) = ज्ञान को आवृत करनेवाली [वृत्र] इन वासनाओं को पूर्णरूप से नष्ट करनेवाला है। वासनाएँ ही मनुष्य के उन्नति - मार्ग में रुकावटें हुआ करती हैं, इन्हीं के कारण मनुष्य अपने कार्यों में सफल नहीं हुआ करता, परन्तु जब सोम-रक्षा के द्वारा मनुष्य इनपर विजय पा लेता है, तब इन (मघोनाम्) = इन्द्रों – वासनारूप असुरों को नष्ट करनेवालों की राधः-सिद्धि को, सफलता को [राध्=सिद्धि] (पर्षि) = तू पूर्ण करता है । [पृ=To complete]। वीर्यवान् पुरुष सिद्धि=सफलता प्राप्त करते हैं ।
भावार्थ
वीर्य-रक्षा द्वारा शरीर की दृढ़ता, मन की निर्मलता व बुद्धि की तीव्रता आदि उत्तम धनों को प्राप्त करके, सिद्धि की विनरूप वासनाओं को विनष्ट करके हम सदा सिद्धि को प्राप्त करनेवाले बनें ।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = ( ३ ) हे ( वृत्रहन्तम ) = आवरणकारी तम, अज्ञान के नाशक परमात्मन् ! आप ( वरिवः धातमः ) = नाना प्रकार से वरण करने योग्य धनों , रत्नों को धारण करने हारे, ( मंहिष्ठः ) = और सब से बड़े दानी ( भुवः ) = है । आप ही ( मघोनाम् ) = बड़े २ धनाढ्यों को भी ( राधः ) = धन ( पर्षि ) = देकर पूर्ण करते हो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - पुष्कुल: अग्नि: । देवता - सोम:। छन्दः - गायत्री। स्वरः - षड्जः।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मानं प्रार्थयते।
पदार्थः
हे इन्द्र परमात्मन् ! त्वम् (वरिवोधातमः) धनानाम् अतिशयेन धारयिता। [वरिवः इति धननाम निघ० २।१०।] (मंहिष्ठः२) दातृतमः [मंहते दानकर्मा। निघ० ३।२०।] (वृत्रहन्तमः) पापानाम् अतिशयेन हन्ता च (भुवः) जातोऽसि। त्वमेव (मघोनाम्) भौतिकधनवताम् अस्माकम् (राधः) सत्यन्यायदयामोक्षादिकं दिव्यं धनम् (पर्षि) प्रयच्छ। [पृ पालनपूरणयोः जुहोत्यादिः, लेटि मध्यमैकवचने छान्दसं रूपम्।] ॥३॥
भावार्थः
स एव वस्तुतो धनिको यो भौतिकधनेन साकमध्यात्मं धनमपि समर्जति ॥३॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ९।१।२, ‘भुवो’ इत्यत्र ‘भव’ इति पाठः। २. मंहिष्ठः मंहनीयतमः—इति वि०।
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, the Dispeller of ignorance. Thou art the Master of manifold riches, and Most Charitable. Thon givest wealth even to the wealthy!
Translator Comment
Even rich persons ask for wealth from God to become fully rich, as they consider their wealth meagre and incomplete.
Meaning
Be the highest giver of the cherished wealth of life, mightiest munificent, and the destroyer of want, suffering and darkness. Sanctify the wealth of the prosperous and powerful with showers of peace, purity and generosity. (Rg. 9-1-3)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (वृत्रहन्तम्) હે અત્યંત પાપનાશક પરમાત્મન્ ! તું (वरिवः धातमः) તું ધનનો અત્યંત ધારક સાથે જ (मंहिष्ठ) મહાન દાતા પણ છે. (मघोनाम्) ધનવાળાઓને તું જ (राधः पर्षि) ધન પૂરે છે. (૩)
भावार्थ
ભાવાર્થ : પાપ-અજ્ઞાનના નાશક પરમાત્મા મહાન ધનના ધારક હોવા ઉપરાંત અત્યંત દાતા પણ છે, જેટલા પણ ધનવાનો છે, તેને તે જ ધનથી ભરપૂર કરે છે. પરમાત્મન્ ! તારા જેવો કોઈ દાની નથી, દાનીઓને પણ તું જ દાન માટે ધન પ્રદાન કરે છે. તારી ઉપાસના કરનાર કોઈ નિર્ધન રહી શકતો નથી. (૩)
मराठी (2)
भावार्थ
जो भौतिक धनाबरोबर अध्यात्म धनही कमावतो तोच माणूस वास्तविक धनी असतो ॥३॥
विषय
या मंत्रात परमेश्वराला प्रार्थना केली आहे.
शब्दार्थ
हे इन्द्र परमेश्वरा, तू (वरिबोधोतम:) अपार ऐश्वर्य धारण करणारा आहेस. तूच (मंहिष्ठ:) सर्वांहून श्रेष्ठ दाता आहेस. (वृत्रहन्तम) बलवान पापवृत्तीला नष्ट करणारा सर्वांहून श्रेष्ठ असा तूच आहेस. हे (भुव) सिद्ध झालेले आहे. तुला प्रार्थना की (मघोनाम्) आम्ही जे भौतिक धनाला श्रेष्ठ धन मानतो त्यांना तू (राद:) सत्य, न्याय, दवा, मोक्ष आदी दिव्य धन (पर्षि) प्रदान कर (म्हणजे भौतिक द्रव्य खरे धन नाही, तर सत्य, न्यायादी गुण श्रेष्ठ धन आहेत.) ।।३।।
भावार्थ
खरा धनवान तो जो की भौतिक धनाबरोबर अध्यात्म धनही अर्जित करतो. ।।३।।
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