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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 729
ऋषिः - कुसीदी काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
26
वि꣣द्मा꣡ हि त्वा꣢꣯ तुविकू꣣र्मिं꣢ तु꣣वि꣡दे꣢ष्णं तु꣣वी꣡म꣢घम् । तु꣣विमात्र꣡मवो꣢꣯भिः ॥७२९॥
स्वर सहित पद पाठवि꣣द्म꣢ । हि । त्वा꣣ । तुविकूर्मि꣣म् । तु꣢वि । कूर्मि꣢म् । तु꣣वि꣡दे꣢ष्णम् । तु꣣वि꣢ । दे꣣ष्णम् । तु꣣वी꣡म꣢घम् । तु꣣वि꣢ । म꣣घम् । तुविमात्र꣢म् । तु꣣वि । मात्र꣢म् । अ꣡वो꣢꣯भिः ॥७२९॥
स्वर रहित मन्त्र
विद्मा हि त्वा तुविकूर्मिं तुविदेष्णं तुवीमघम् । तुविमात्रमवोभिः ॥७२९॥
स्वर रहित पद पाठ
विद्म । हि । त्वा । तुविकूर्मिम् । तुवि । कूर्मिम् । तुविदेष्णम् । तुवि । देष्णम् । तुवीमघम् । तुवि । मघम् । तुविमात्रम् । तुवि । मात्रम् । अवोभिः ॥७२९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 729
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में आचार्य से ब्रह्मविद्या सीखे हुए शिष्य ब्रह्म के स्वरूप का वर्णन कर रहे हैं।
पदार्थ
हे सर्वान्तर्यामिन् परब्रह्म ! हम (हि) निश्चयपूर्वक (त्वा) आपको (तुविकूर्मिम्) उत्पत्ति, धारण, पालन आदि बहुत से कर्मों का कर्त्ता, (तुविदेष्णम्) बहुत से पदार्थों तथा सुख आदियों का दाता, (तुवीमघम्) बहुत धनी और (अवोभिः) रक्षाओं के साथ (तुविमात्रम्) सूर्य, चन्द्र, तारामण्डलादि बहुतों को मापनेवाला (विद्म) जानते हैं ॥२॥
भावार्थ
परमेश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव को जानकर उसके उपकारों के प्रति कृतज्ञता सबको प्रकट करनी चाहिए ॥२॥
पदार्थ
(त्वा) हे इन्द्र—परमात्मन्! तुझ (तुविकूर्मिम्) बहुत प्राणशक्तिमान्—बहुत बलवान् “तुवि बहुनाम” [श॰ ७.५.१.७] (तुविदेष्णम्) बहुत प्रेरणाकर्ता ‘दिशधातोश्छान्दसं रूपम्’ (तुवीमघम्) बहुत ऐश्वर्यवान्—बहुत प्रकार से धनदाता (तुविमात्रम्) बहुत प्रमाण वाले—महान् व्यापक अनन्त को (अवोभिः-विद्म हि) हमारे प्रति विविध रक्षणों कृपाभावों से हम नितान्त जानते हैं।
भावार्थ
परमात्मा की हमारे प्रति विविध रक्षाएँ कृपाएँ हैं जिनसे हम उसे महान् प्राणशक्तिमान् महान् प्रेरणाकर्ता महान् धन साधन दाता और सर्वव्यापक अनन्त जानते हैं जानें मानें॥२॥
विशेष
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विषय
चार रूप
पदार्थ
कुसीदी काण्व कहता है कि हे प्रभो! आप ज्ञान देकर हमारा रक्षण करते हैं । (अवोभिः) = आप से किये जाते हुए इन रक्षणों से हम आपको (हि) = निश्चयपूर्वक (तुविकूर्मिम्) = बहुकर्मयुक्त (विद्म) = जानते हैं। आपने हमारे रक्षण के लिए किस प्रकार द्यु, अन्तरिक्ष व पृथिवीलोक में ग्यारह-ग्यारह देवताओं का निर्माण किया है, उसे देखकर हम आपका स्मरण 'तुविकूर्मि' के रूप में करते हैं ।
एक व्यक्ति हमें सब-कुछ नहीं दे सकता। प्रभु सब-कुछ देते हैं। क्या प्रजा? क्या पशु ? क्या ब्रह्मवर्चस् और क्या अन्नाद्य ?
हम आपको (तुविदेष्णम्) = महान् दाता (विद्म) = जानते हैं। आपने हमारे पोषण के लिए ही कितने विविध अन्नों, फलों, शाकों व अन्य वनस्पतियों का निर्माण किया है, किस प्रकार आपने यह शरीर व ज्ञानेन्द्रियाँ, कर्मेन्द्रियाँ तथा मन व बुद्धि का दान किया है।
आपके ऐश्वर्य का चिन्तन करते-करते बुद्धि चकरा जाती है और हम आपको (तुवीमघम्) = अनन्त ऐश्वर्यवाले के रूप में स्मरण करते हैं । जीवों का ऐश्वर्य शान्त है। आपका कोई माप भी तो नहीं, आप सर्वव्यापक हैं, अतः हम (तुविमात्रम्) - शब्द से आपका स्मरण करते हैं। ‘मात्र' शब्द का अर्थ ज्ञान भी होता है [मीयते] सो आप अनन्त ज्ञानवाले हैं। आपके ये सब ज्ञान, बल व क्रियाएँ स्वाभाविक हैं। जीव के हित के लिए स्वभावतः इनकी प्रवृत्ति होती है ।
भावार्थ
हे प्रभो ! आप हमें ज्ञान प्राप्त कराइए, जिससे हम आपके रक्षण के योग्य बन सकें ।
टिप्पणी
नोट – तुविकूर्मिम् ब्रह्मचर्य में खूब क्रियाशील–‘सुखार्थिनः कुतो विद्या ।'
तुविदेष्णम्-गृहस्थ में खूब देनेवाला—'अपञ्चयज्ञो मलिम्लुचः'।
तुवीमधम्=वानप्रस्थ में सतत स्वाध्याय से ज्ञान वृद्धि |
तुविमात्रम् = संन्यास में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्' की वृत्ति से व्यापकता।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = (२) हे इन्द्र ( त्वा ) = तुझको हम ( अवोभिः ) = तेरी रक्षाओं, ज्ञानों और कृपाओं के कारण ( तुविकूर्मिम् ) = बहुत से कर्मों के करनेहारा ( तुविदेष्णं ) = बहुत से धन सम्पदाओं का दाता, ( तुवीमघम् ) = बहुत उत्तम धनों , ज्ञानों से सम्पन्न ( तुविमात्रं हि ) = बहुतसे ज्ञान साधनों से युक्त भी ( विद्य ) = जानते हैं ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः -कुसीद: काण्व:। देवता - इन्द्र:। स्वरः - षड्ज:।
संस्कृत (1)
विषयः
अथाचार्याद् गृहीतब्रह्मविद्याः शिष्या ब्रह्मणः स्वरूपमाहुः।
पदार्थः
हे इन्द्र सर्वान्तर्यामिन् परब्रह्म ! वयम् (हि) निश्चयेन (त्वा) त्वाम् (तुविकूर्मिम्१) बहूनां सर्जनधारणपालनादिकर्मणां कर्त्तारम्। [तुवि इति बहुनाम। निघं० ३।१। कूर्मिः इत्यत्र करोतेरौणादिको मिः प्रत्ययः] (तुविदेष्णम्२) बहूनां पदार्थानां सुखादीनां च दातारम्। [दिश अतिसर्जने धातोः औणादिकः नः प्रत्ययः। मूर्धन्यादेशश्छान्दसः।] (तुवीमघम्) बहुधनम्, अपि च (अवोभिः) रक्षणैः सह (तुविमात्रम्) बहूनां सूर्यचन्द्रतारामण्डलादीनां परिमातारम् (विद्म) जानीमः ॥२॥
भावार्थः
परमेश्वरस्य गुणकर्मस्वभावान् विज्ञाय तदुपकारान् प्रति कृतज्ञता सर्वैर्ज्ञापनीया ॥२॥
टिप्पणीः
२. ऋ० ८।८१।२। १. तुविकूर्मि बहुकर्माणम्—इति सा०। तुविशब्दो बहुवाची, कूर्मिशब्दो मनुष्यवाची कर्मवाची वा—इति वि०। २. तुविदेष्णम् बहुप्रदेयम्—इति सा०। देष्णं दानम्, बहुदानम्—इति वि०।
इंग्लिश (2)
Meaning
O King, we know thee, mighty in thy deeds of mighty bounty, mighty wealth, mighty in knowledge for thy manifold favours !
Meaning
We know you as lord of universal action, all giving, treasure hold of unbounded wealth and boundless in power and presence with your favour and protections. (Rg. 8-81-2)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (त्वा) હે ઇન્દ્ર-પરમાત્મન્ ! તને (तविकूर्मिम्) બહુજ પ્રાણશક્તિમાન-મહાન બળવાન (तुविदेष्णम्) મહાન પ્રેરણાદાતા (तुवीमघम) મહાન ઐશ્વર્યવાન-અનેક રીતે ધનદાતા (तुविमात्रम्) અનેક પ્રમાણવાળામહાન વ્યાપક અનંતને (अवोभिः विद्म हि) અમારા માટે વિવિધ રક્ષણો કૃપાભાવો દ્વારા તને જ અમે નિતાંત જાણીએ છીએ. (૨)
भावार्थ
ભાવાર્થ : પરમાત્માની અમારે માટે વિવિધ પ્રકારની રક્ષાઓ, કૃપાઓ છે, જેથી અમે તેને મહાન પ્રાણશક્તિમાન, મહાન પ્રેરણાદાતા, મહાન ધન સાધનદાતા અને સર્વવ્યાપક અનંત જાણીએ છીએ, જાણીએ, માનીએ. (૨)
मराठी (2)
भावार्थ
परमेश्वराचा गुण-कर्म-स्वभाव जाणून त्याच्या उपकाराबाबत सर्वांनी कृतज्ञता प्रकट केली पाहिजे ॥२॥
विषय
आचार्याकडून ब्रह्मविद्या प्राप्त केलेले शिष्य ब्रह्माच्या स्वरूपाविषयी सांगत आहेत.
शब्दार्थ
हे सर्वान्तर्यामी परमेश्वर, आम्ही (हि) निश्चयाने (त्वा) तुम्हाला (तुविकूर्मिम्) उत्पत्ती, धारणव पालन आदी कार्यांचे कर्ता म्हणून जाणतो. तुम्हीही (विदेष्णम्) अनेक पदार्थ आणि सुख सुविधा देणारे जाणतो. तुम्हाला (तुरीमधम्) अत्यंत समृद्ध जाणतो आणि (अबोभि:) तुमच्या रक्षण प्रकाराद्वारे, तुमच्या सामर्थ्याद्वारे सूर्य, चंद्र, तारका आदींचे नियंत्रण करण्यास म्हणून आम्ही तुम्हाला (विदम:) जाणतो. (अर्थात तुम्ही जगदुत्पत्तिकारक, पालक, सुखदाता, रक्षक आणि जगनियन्ता आहात) ।।२।।
भावार्थ
सर्वांनी परमेश्वराच्या गुण-कर्म स्वभाव यांना जाणून घेऊन तो करीत असलेल्या उपकाराविषयी कृतज्ञ असावे. त्याला धन्यवाद द्यावेत. ।।२।।
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