Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 730
ऋषिः - कुसीदी काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
23
न꣡ हि त्वा꣢꣯ शूर दे꣣वा꣡ न मर्ता꣢꣯सो꣣ दि꣡त्स꣢न्तम् । भी꣣मं꣢꣫ न गां वा꣣र꣡य꣢न्ते ॥७३०॥
स्वर सहित पद पाठन । हि । त्वा꣣ । शूर । देवाः꣢ । न । म꣡र्ता꣢꣯सः । दि꣡त्स꣢꣯न्तम् । भी꣣म꣢म् । न । गाम् । वा꣣र꣡य꣢न्ते ॥७३०॥
स्वर रहित मन्त्र
न हि त्वा शूर देवा न मर्तासो दित्सन्तम् । भीमं न गां वारयन्ते ॥७३०॥
स्वर रहित पद पाठ
न । हि । त्वा । शूर । देवाः । न । मर्तासः । दित्सन्तम् । भीमम् । न । गाम् । वारयन्ते ॥७३०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 730
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में परमेश्वर के दान का वर्णन है।
पदार्थ
हे (शूर) दानशूर परमात्मन् ! (दित्सन्तम्) जब आप किसी को भौतिक या दिव्य ऐश्वर्य देना चाहते हो, तब (त्वा) आपको (नहि) न तो (देवाः) चमकीले अग्नि, सूर्य, चन्द्र, विद्युत् आदि कोई जड़ पदार्थ और (न) न ही (मर्तासः) मनुष्य (वारयन्ते) रोक सकते हैं, (भीमं गां न) जैसे भंयकर दुर्दान्त विद्युत् रूप अग्नि को कोई नहीं रोक सकता ॥३॥ इस मन्त्र में उपमालङ्कार है ॥३॥
भावार्थ
जो कृपालु परमेश्वर सूर्यकिरण, पत्र, पुष्प, फल, वायु जल आदि वस्तुओं को और सत्य, न्याय, दया, उदारता आदि को बिना मूल्य के ही प्रदान करता है, उसकी सबको कृतज्ञता के साथ वन्दना करनी चाहिए ॥३॥
पदार्थ
(शूर) हे समर्थ परमात्मन्! (त्वा दित्सन्तम्) तुझ यथा-योग्य कर्मफल देने की इच्छा करते हुए को (न हि देवाः) न ही देव (न मर्त्तासः) न मनुष्य (वारयन्ते) हटा पाते हैं (भीमं गां न) भयङ्कर वृषभ को जैसे उसके बलकार्य से कोई नहीं हटा सकता है।
भावार्थ
जैसे भयङ्कर वृषभ को उसके बलकार्य से कोई नहीं हटा पाता है ऐसे ही परमात्मा को उसके बलकार्य करते हुए कर्मफल के देते हुए को कोई नहीं रोक सकता है॥३॥
विशेष
<br>
विषय
देने की इच्छावाला
पदार्थ
मनुष्य ज्ञान प्राप्त करके दक्षिणेन-कुशलता से कर्म करने लगता है और अवोभिः=वासनाओं से अपनी रक्षा कर पाता है। पिछले मन्त्र में (‘तुविकूर्मिम् व तुविदेष्णम्') = शब्दों से खूब क्रियाशीलता व खूब देने की वृत्ति का संकेत किया था। उसी का संकेत करते हुए रक्षण की इच्छावाले जीव से प्रभु कहते हैं कि (दित्सन्तम्) = देने की इच्छावाले (त्वा) = तुझे हे (शूर) = सब अशुभ भावनाओं को नष्ट करनेवाले जीव ! (न हि) = न तो (देवः) = अन्तरिक्षलोक (न मर्तासः) = न यह पृथिवीलोक (वारयन्ते) = आच्छादित कर पाते हैं, अर्थात् कोई भी वासना आकाश-पाताल का ज़ोर लगाकर भी तुझे वशीभूत नहीं कर सकती । (भीमं गाम्) = भयङ्कर साँड को क्या कोई पशु वशीभूत कर पाता है ? (न) = उसी प्रकार तू भी देने की इच्छावाला बनकर किसी वासना से वशीभूत नहीं किया जा सकता ।
दान [दा=देना] मनुष्य की सब अशुभ भावनाओं को नष्ट करता है [दा-काटना] और उसके जीवन को शुद्ध बनाता [दा=शोधन] है। लोभ ही तो सब वासनाओं का मूल है । लोभ गया तो वासनाएँ गई। मूल कटा तो वृक्ष कहाँ बचा? दाता तो वासनाओं के लिए भयङ्कर साँड के समान हो जाता है। उसके सामने वासनाएँ ठहर ही कहाँ सकती हैं ?
भावार्थ
हममें दानवृत्ति सदा पनपे और वासनाएँ विनष्ट हों ।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = (३) हे शूर ! ( भीमं ) = भयजनक ( गां न ) = जिस प्रकार सांड को कोई हटाने का साहस नहीं करता उसी प्रकार ( भीमं ) = सबको भयजनक, सर्वव्यापक ( दित्सन्तं ) = दान की कामना करते हुए तुझको ( न देवाः ) = न विद्वान् लोग और ( न मर्तासः ) = और न साधारण लोग ( वारयन्ते ) = वारण करते हैं ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः -कुसीद: काण्व:। देवता - इन्द्र:। स्वरः - षड्ज:।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमेश्वरस्य दानं वर्णयति।
पदार्थः
हे (शूर) दानशौण्ड परमात्मन् ! (दित्सन्तम्) भौतिकं दिव्यं चैश्वर्यं दातुमिच्छन्तम् (त्वा) त्वाम् (नहि) नैव (देवाः) दीप्यमानाः अग्निसूर्यचन्द्रविद्युदादयः, (न) नापि च (मर्तासः) मनुष्याः (वारयन्ते) निरोद्धुं शक्नुवन्ति। कथमिव ? (भीमं गां न) भयंकरं विद्युदग्निमिव। यथा दुर्दान्तं विद्युदग्निं केचिद् वारयितुं नोत्सहन्ते तद्वदित्यर्थः ॥३॥ अत्रोपमालङ्कारः ॥३॥
भावार्थः
यः कृपालुः परमेश्वरः सूर्यरश्मिपत्रपुष्पफलवायुवारिप्रभृतीनि वस्तूनि सत्यन्यायदयादाक्षिण्यादीनि च निःशुल्कमेव प्रयच्छति स सर्वैः कृतज्ञतया वन्दनीया ॥३॥
टिप्पणीः
३. ऋ० ८।८१।३।
इंग्लिश (2)
Meaning
Hero, when thou wouldst give thy gifts, neither the sages nor ordinary mortal men, can restrain thee like a fearful bull.
Translator Comment
Hero' means a heroic King.
Meaning
When you give to bless mankind, no one can stop you, O brave lord, neither mortals nor immortals, just as no one can resist the mighty sun. (Rg. 8-81-3)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (शूर) હે સમર્થ પરમાત્મન્ ! (त्वा दित्सन्तम्) તારી યથા-યોગ્ય કર્મફળ આપવાની ઇચ્છાને (न हि देवाः) ન દેવો (न मर्त्तासः) ન મનુષ્ય (वारयन्ते) અટકાવી શકે છે. (भीमं गां न) ભયંકર વૃષભસાંઢને જેમ તેના બળકાર્યથી કોઈ અટકાવી-હટાવી શકતા નથી. (૩)
भावार्थ
ભાવાર્થ : જેમ ભયંકર વૃષભને તેના બળના કાર્યથી કોઈ હટાવી-રોકી શકતાં નથી, તેમ પરમાત્માને તેના બળકાર્ય કરતાં કર્મફળ આપતાં કોઈ રોકી શકતાં નથી. (૩)
मराठी (2)
भावार्थ
कृपाळू परमेश्वर सूर्य किरणे, पत्र, पुष्प, फळे, वायू, जल इत्यादी वस्तूंना व सत्य, न्याय, दया, उदारता इत्यादी बिना मूल्य प्रदान करतो. सर्वांनी त्याला कृतज्ञतापूर्वक वंदन केले पाहिजे ॥३॥
विषय
पुढच्या मंत्रात परमेश्वर देत असलेल्या दानाचे वर्णन केले आहे. -
शब्दार्थ
हे (शूर) दानशूर परमेश्वरा, (दित्सन्तम) जेव्हा तू कोणाला भौतिक समृद्धी वा दिव्य ऐश्वर्य देऊ इच्छितोस तेव्हा (त्वा) तुला (देवा:) चमकणारे अग्नी, सूर्य, चंद्र, विद्युत आदी अचेतन पदार्थ नहि) रोखू शकत नाहीत. तसेच (मर्तस:) कोणी राजा आदी माणूसदेखील तुला देण्यपासून (न नारयन्ते) रोखू शकत नाही. (उपमा देताना सांगितले आहे, ज्याप्रकारे भयंकर पेटलेल्या अग्नीला वा विद्युतेला कोणी रोखू शकत नाही त्याप्रमाणे हे परमेश्वरा तुलाही तुझ्या कार्यापासानू कोणी परावृत्त करू शकता नाही. ।।३।।
भावार्थ
जो दयाळू परमेश्वर सर्वांना सारखेपणाने सूर्य प्रकाश, पत्र, पुष्प, फळ, वायू, जल आदी भौतिक पदार्थाचे दान करतो तसेच सत्य, न्याय, दया, औदार्य आदी सद्गुण काहीही मोबदला न घेता विनामूल्य देत असतो,सर्वांनी त्या कृपाळू परमेश्वराची वंदना अवश्य केली पाहिजे. ।।३।।
विशेष
या मंत्रात उपमा अलंकार आहे. ।।३।।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal