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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 740
    ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    22

    आ꣢꣫ त्वेता꣣ नि꣡ षी꣢द꣣ते꣡न्द्र꣢म꣣भि꣡ प्र गा꣢꣯यत । स꣡खा꣢य꣣ स्तो꣡म꣢वाहसः ॥७४०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ꣢ । तु । आ । इ꣣त । नि꣢ । सी꣣दत । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । अ꣣भि꣢ । प्र । गा꣣यत । स꣡खा꣢꣯यः । स । खा꣣यः । स्तो꣡म꣢꣯वाहसः । स्तो꣡म꣢꣯ । वा꣣हसः ॥७४०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ त्वेता नि षीदतेन्द्रमभि प्र गायत । सखाय स्तोमवाहसः ॥७४०॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आ । तु । आ । इत । नि । सीदत । इन्द्रम् । अभि । प्र । गायत । सखायः । स । खायः । स्तोमवाहसः । स्तोम । वाहसः ॥७४०॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 740
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 1
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में क्रमाङ्क १६४ पर परमात्मा तथा राष्ट्र के विषय में व्याख्यात हो चुकी है। यहाँ आत्मोद्बोधन का विषय है।

    पदार्थ

    हे (स्तोमवाहसः) गीतों को गानेवाले (सखायः) मित्रो ! तुम (तु) शीघ्र ही (आ एत) आओ, (निषीदत) बैठो, (इन्द्रम् अभि) अपने अन्तरात्मा को लक्ष्य करके (प्र गायत) भली-भाँति उद्बोधन-गीत गाओ ॥१॥

    भावार्थ

    परस्पर मिलकर आत्मा को उद्बोधन देने से वह शक्ति जागती है, जिससे मार्ग की सभी बाधाएँ हटायी जा सकती हैं ॥१॥

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    टिप्पणी

    (देखो अर्थव्याख्या मन्त्र संख्या १६४)

    विशेष

    ऋषिः—मधुच्छन्दाः (मीठी इच्छा वाला)॥ देवता—इन्द्रः (ऐश्वर्यवान् परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>

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    विषय

    सामुदायिक प्रार्थना

    पदार्थ

    मन्त्र का ऋषि ‘मधुच्छन्दा' है । यह अत्यन्त मधुर इच्छाओंवाला है। यह अपने समानख्यान[tendeney]-वाले (सखायः) = मित्रों से कहता है कि (आ) = चारों ओर से (तु) = निश्चयपूर्वक (एत) = आओ। (नि-षीदत) = नम्रतापूर्वक बैठो और प्रभु की शरण में उपस्थित होकर उस (इन्द्रम्) = परमैश्वर्यशाली प्रभु का अभिप्रगायत=लक्ष्य करके खूब गायन करो । आप सब (स्तोमवाहसः) = स्तुतिसमूह के धारण करनेवाले बनों ।

    मिलकर प्रभु का कीर्तन करने से अधिक उत्तम बात और हो ही क्या सकती है ? प्रभु-कीर्तन का मन पर स्वास्थ्यजनक प्रभाव होता ही है । सामुदायिक प्रभु गायन तो सारे वातावरण को बड़ा सुन्दर बना देता है। प्रभु का स्मरण १. व्यसनों से बचाता है, २. अभिमानशून्यता को उत्पन्न करता है, ३. एक पितृत्व के नाते पारस्परिक बन्धुत्व व ऐक्य की भावना को जन्म देता है, ४. एक ऊँचे लक्ष्य को पैदा करता है, ५. और मैं प्रभु - पुत्र हूँ, इस स्मरण से पापों को आत्म-सम्मान से हीन समझता है [below dignity]। इसी सामुदायिक प्रार्थना के लाभ अगले मन्त्र में अधिक विस्तार से कहे गये हैं। 

    भावार्थ

    हम मिलकर प्रभु का स्तवन करें ।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = (१) व्याख्या देखो अवि० सं० [१६४] पृ० ९१ ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - मधुच्छन्द:। देवता - इन्द्र:। स्वरः - षड्ज:।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके १६४ क्रमाङ्के परमात्मपक्षे राष्ट्रपक्षे च व्याख्याता। अत्र आत्मोद्बोधनमाह।

    पदार्थः

    हे (स्तोमवाहसः) स्तोमान् गीतानि वाहयन्ति गायन्तीति तादृशाः (सखायः) सुहृदः ! यूयम् (तु) क्षिप्रम् (आ एत) आगच्छत, (नि षीदत) उपविशत, (इन्द्रम् अभि) स्वान्तरात्मानमभिलक्ष्य (प्र गायत) प्रकृष्टतया उद्बोधनगीतानि उच्चारयत ॥१॥२

    भावार्थः

    परस्परमेकीभूयाऽऽत्मोद्बोधनेन सा शक्तिर्जागर्ति यथा मार्गस्य सर्वा अपि बाधा निराकर्त्तुं शक्यन्ते ॥१॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० १।५।१, अथ० २०।६८।११, साम० १६४। २. ऋग्भाष्ये दयान्दर्षिणा मन्त्रोऽयं परमेश्वरपक्षे शिल्पविद्यापक्षे च व्याख्यातः।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O priests, eulogising continuously, come sharp, sit down, and recite the Sama verses in praise of the King!

    Translator Comment

    The verse is the same as 164.

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    Meaning

    Friends and celebrants of song divine, come, sit together and join to meditate (on life, divinity, humanity, science and spirituality, and freedom), and sing in thankful praise of Indra, lord of life and energy. (Rg. 1-5-1)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (स्तोमवाहसः सखायः) હે સ્તવનગાનને વહાવનાર ગાયક, સ્તુતિકર્તા, ઉપાસક મિત્રો ! (आ इत् तु आ) આવો, તો આવો - અવશ્ય આવો, શીઘ્ર આવો, આ = આવીને (निषीदत) નિયમિત રૂપથી બેસો - શ્રદ્ધા સ્નેહથી બેસો. (इन्द्रम् अभिप्रगायत) સર્વ ઐશ્વર્ય - સંપન્ન પરમાત્માને લક્ષ્ય કરીને તેના ગુણગાન કરો. (૧૦)

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : પરમાત્માની સ્તુતિને પ્રવાહિત કરનાર ઉપાસક મિત્રજનો સામૂહિક સ્તવનના તાંતણા બેસાડનાર એકત્ર શ્રદ્ધા સ્નેહથી બેસીને પરમાત્માના ગુણગાન કરે, ત્યારે આનંદનો પ્રવાહ પ્રવાહિત થઈ જાય છે. (૧૦)

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    परस्पर (भक्त) मिळून आत्म्याला उद्बोधन करून ती शक्ती जागते, ज्यामुळे मार्गातील सर्व बाधा दूर होऊ शकतात ॥१॥

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    विषय

    बाहुमध्ये उत्तम कर्म करण्याची प्रेरणा जागृत होऊ लागते. ।।३।।

    शब्दार्थ

    (स्तोमवाहस:) गीत गाणाऱ्या (सरवाय:) हे मित्रांनो, तुम्ही (तु) त्वरेने (आ एव) इथे या (निषीदत) इथे बसा आणि (इन्द्रम अभि) आपल्या अंतरात्म्याला उद्देशून (प्र गायन) उत्तम प्रकारे उत्साहवर्धक गीत गा (म्हणजे शांतपणे आत्मचिंतन करीत आत्म्यामध्ये शक्ती व उत्साहाचा संचार होऊ द्या. ।।१।।

    भावार्थ

    अनेकांनी एकत्र येऊन आपला आत्मा जागृत करावा त्यात आत्मबल येऊ द्यावा. सामुहिकपणे असे आत्म बलवर्धन झाल्यामुळे एवढे बल उत्पन्न होते की त्यामुळे वाटेत येणाऱ्या सर्व प्रकारच्या अडचणी दूर होतात. ।।१।।

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