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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 750
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः
देवता - अग्निः
छन्दः - प्रगाथः(विषमा बृहती, समा सतोबृहती)
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
24
स꣡ यो꣢जते अरु꣣षा꣢ वि꣣श्व꣡भो꣢जसा꣣ स꣡ दु꣢द्रव꣣꣬त्स्वा꣢꣯हुतः । सु꣣ब्र꣡ह्मा꣢ य꣣ज्ञः꣢ सु꣣श꣢मी꣣ व꣡सू꣢नां दे꣣व꣢꣫ꣳ राधो꣣ ज꣡ना꣢नाम् ॥७५०॥
स्वर सहित पद पाठसः । यो꣣जते । अरुषा꣣ । वि꣡श्व꣡भो꣢जसा । वि꣣श्व꣢ । भो꣣जसा । सः꣢ । दु꣣द्रवत् । स्वा꣢हुतः । सु । आ꣣हुतः । सुब्र꣡ह्मा꣢ । सु꣣ । ब्र꣡ह्मा꣢꣯ । य꣣ज्ञः꣢ । सु꣣श꣡मी꣢ । सु꣣ । श꣡मी꣢꣯ । व꣡सू꣢꣯नाम् । दे꣣व꣡म् । रा꣡धः꣢꣯ । ज꣡ना꣢꣯नाम् ॥७५०॥
स्वर रहित मन्त्र
स योजते अरुषा विश्वभोजसा स दुद्रवत्स्वाहुतः । सुब्रह्मा यज्ञः सुशमी वसूनां देवꣳ राधो जनानाम् ॥७५०॥
स्वर रहित पद पाठ
सः । योजते । अरुषा । विश्वभोजसा । विश्व । भोजसा । सः । दुद्रवत् । स्वाहुतः । सु । आहुतः । सुब्रह्मा । सु । ब्रह्मा । यज्ञः । सुशमी । सु । शमी । वसूनाम् । देवम् । राधः । जनानाम् ॥७५०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 750
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में अग्निहोत्र के लाभों का वर्णन है।
पदार्थ
(सः) वह यज्ञाग्नि (विश्वभोजसा) सबका पालन करनेवाले (अरुषा) चमकते तेज से (योजते) संयुक्त होता है तथा यजमानों को संयुक्त करता है। (सः) वह यज्ञाग्नि (स्वाहुतः) भले प्रकार आहुति दिये जाने पर (दुद्रवत्) अत्यधिक गतिमय हो जाता है, ज्वालाओं को लपलपाने लगता है। (सुब्रह्मा) श्रेष्ठ ब्रह्मा जिसमें बना है, ऐसा (यज्ञः) यज्ञ (वसूनाम्) आहिताग्नि यजमानों को (सुशमी) उत्तम शान्ति देनेवाला होता है। वह यज्ञ (जनानाम्) अग्निहोत्री जनों को (देवम्) प्रकाशक (राधः) ज्योतिरूप धन देता है ॥२॥
भावार्थ
सुयोग्य ब्रह्मा को अध्यक्ष पद पर नियुक्त करके किया हुआ यज्ञ, सुख, शान्ति और स्वास्थ्य देनेवाला, लोगों को ज्योति प्रदान करनेवाला तथा अध्यात्ममार्ग में प्रेरित करनेवाला होता है ॥२॥
पदार्थ
(सः-विश्वभोजसा-अरुषा योजते) वह ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मा विश्व का पालन करने वाले तेज से युक्त है (सः-स्वाहुतः-दुद्रवत्) वह सम्यक् आमन्त्रित हुआ उपासक के अन्दर शोभनरूप में प्राप्त होता है (सुब्रह्मा यज्ञः) शोभन मन्त्र यथार्थ पवित्र स्तवन वाला यजनीय है (सुशमी) शोभन शान्तिप्रद है (वसूनां जनानां देवं राधः) उसकी शरण में बसने वाले जनों को वह दिव्य धन देता है।
भावार्थ
ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मा विश्व का पालन करनेवाले ज्ञान तेज से युक्त है उसका तेज दाहक नहीं, किन्तु सर्वपालक है वह उपासक द्वारा हृदय से आमन्त्रित हुआ शोभनरूप में प्राप्त होता है तथा सुन्दर पवित्र स्तुतिपात्र यजनीय सङ्गमनीय है उसकी शरण में बसने वाले उपासकों का दिव्य धन है या दिव्य धन दाता है॥२॥
विशेष
<br>
विषय
वामदेव का जीवन
पदार्थ
१. परमेश्वर की उल्लिखित आठ विशेष गुणों से स्तुति करनेवाला (सः) = वह वामदेव अपने को (अरुषा) = तेज से (योजते) = जोड़ता है । कैसे तेज से ? (विश्व-भोजसा) = सबका पालन करनेवाले तेज से। दुर्जनों की शक्ति दूसरों के पीड़न के लिए होती है, परन्तु वामदेव अपनी शक्ति से सभी का पालन करता है। २. (स्वाहुत:) = [सु आहुत:] = बड़े उत्तम प्रकार से अपने तन-मन-धन की समाजहित के कार्य में आहुति दे-देनेवाला यह वामदेव (दुद्रुवत्) = पीड़ितों की पीड़ाओं को दूर करने के लिए निरन्तर भागता-फिरता है, [द्रु-गतौ+यङ् प्रत्यय=नित्य अर्थ में] । ३. (सु ब्रह्मा) = यह चारों वेदों का उत्तम ज्ञाता बनता है । जितना अधिक इसका ज्ञान होगा उतना अधिक यह लोकहित कर सकेगा। ४. (यज्ञः) = ज्ञानी बनकर यह अपने जीवन को यज्ञमय बनाता है। 'देवपूजा, संगतीकरण और दान' =बड़ों का आदर, बराबरवालों से प्रेम तथा छोटों के प्रति दया – ये तीन बातें इसके जीवन का सूत्र बन जाती हैं । ५. (सुशमी वसूनाम्) = यह यज्ञशील वामदेव संसार में अपने निवास को उत्तम बनाता हुआ औरों को भी उत्तम निवास देनेवाला होता है । वसु तो यह है ही । बसाने, नकि उजाड़ने के ही कार्य में यह लगा है। इस कार्य में लगे होने के साथ इसकी विशेषता यह है कि यह (सुशमी) = उत्तम शान्तिवाला है। अपने कार्य का ढिंढोरा पीटनेवाला नहीं है, मौन साधक [Silent worker] है। बड़ी शान्त, स्वस्थ, मनोवृत्ति से अपने कार्य में लगा रहता है । इस प्रकार कार्य में लगे रहने से ही ६. (देवं राधो जनानाम्) = मनुष्यों में यह (दिव्य) = अनुपम सफलता [राध्=सिद्धि] का लाभ करनेवाला है । स्वार्थ ही कार्य को बिगाड़ा करता है, स्वार्थ न होने से वामदेव को अपने कार्यों में अलौकिक सफलता का लाभ होता है ।
एवं, वामदेव कोरी उपासना ही नहीं करता, उसका जीवन क्रियामय है। उपासना के अनुकूल उसका पौरुष भी है। यही कारण है कि वह प्रभु का सच्चा उपासक बन पाता है। प्रत्येक सच्चे उपासक का जीवन ऐसा ही होना चाहिए। उपासना और कर्म में समन्वय हमें उपास्य- जैसा बना देता है ।
भावार्थ
हमारी उपासना व कर्म में किसी प्रकार का विरोध न हो ।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = ( २ ) ( सः ) = वह परमात्मा ( अरुषा ) = दीप्तिमान्, ( विश्वभोजसा ) = विश्व, समस्त संसार का भोग कराने हारे पालक सूर्य और पृथिवी दोनों को ( योजते ) = नियुक्त करता है । वह ( स्वाहुतः ) = उत्तम रूप से कीर्त्तित परमात्मा ही ( दुद्रुवत् ) = सर्वत्र व्यापक हैं । वही ( सुब्रह्मा ) = उत्तम ज्ञानवान्, सबका उत्पादक है और वही ( यज्ञः) = महादानी, यज्ञस्वरूप, ( सुशमी ) = उत्तम शान्त गुण सम्पन्न है । ( वसूनां ) = वास करने हारे ( जनानां ) = जन्तुओं के ( राध: देवं ) = उस आराधनीय देव की उपासना करो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - वामदेव:। देवता - अग्नि:। छंद: - वृहती । स्वरः - मध्यम: ।
संस्कृत (1)
विषयः
अथाग्निहोत्रस्य लाभानाह।
पदार्थः
(सः) असौ यज्ञाग्निः (विश्वभोजसा) विश्वपालकेन। [विश्वं सर्वं यजमानहोत्रादिकं भुनक्ति पालयतीति विश्वभोजाः तेन।] (अरुषा) आरोचमानेन तेजसा। [अरुषम् इति रूपनाम। निघं० ३।७।] (योजते) युज्यते योजयति वा यजमानान्। (सः) यज्ञाग्निः (स्वाहुतः) सम्यक् प्राप्ताहुतिः सन् (दुद्रवत्) भृशं द्रवति गच्छति, ज्वालाभिर्लेलायते। [द्रु गतौ, यङ्लुगन्तः, लङ्, अडभावः।] (सुब्रह्मा) उत्कृष्टो ब्रह्मा (ऋत्विग्) यत्र तादृशः (यज्ञः) अध्वरः (वसूनाम्)आहिताग्नीनां यजमानानाम् (सुशमी) सुशान्तिकरः जायते। स च यज्ञः (जनानाम्) अग्निहोत्रिणां प्रजानाम् (देवं) प्रकाशकम् (राधः) ज्योतीरूपं धनं, प्रयच्छतीति शेषः ॥२॥१
भावार्थः
सुयोग्यं ब्रह्माणमध्यक्षपदे नियुज्य कृतो यज्ञः सुखशान्तिस्वास्थ्यकरो जनानां ज्योतिष्प्रदोऽध्यात्ममार्गे प्रेरकश्च जायते ॥२॥
टिप्पणीः
२. ऋ० ७।१६।२। १. दयानन्दर्षिर्मन्त्रमिममृग्भाष्ये राजा कीदृशः स्यादिति विषये व्याचष्टे।
इंग्लिश (2)
Meaning
God appoints both the luminous Sun and Earth, the protectors of aft. He, well praised pervades every where. He is the Creator of all, highly Charitable, most Calm. Worship Him, Worthy of adoration by all living people.
Meaning
That Agni, leading power of nature and humanity, uses bright natural elements of universal value such as sun rays, fire and water, like horses harnessed to the chariot, and, when invoked and raised, would move at the fastest speed. He is the master of natural knowledge and natural materials, adorable, noble and potent worker, and the accomplisher of means, materials and projects of humanity for common success and progress. (Rg. 7-16-2)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (सः विश्वभोजसा अरुषा योजते) તે જ્ઞાન-પ્રકાશસ્વરૂપ પરમાત્મા વિશ્વનું પાલન કરનાર તેજથી યુક્ત છે (सः स्वाहुतः दुद्रवत्) તે સારી રીતે આમંત્રિત કરેલ ઉપાસકની અંદર શોભન-શ્રેષ્ઠરૂપમાં પ્રાપ્ત થાય છે (सु ब्रह्मायज्ञः) શોભન મંત્ર યથાર્થ પવિત્ર સ્તવનવાળા યજનીય છે. (सुशमी) શોભન શાન્તિપ્રદ છે (वसूनां जनानां देवम् राधः) તેના શરણમાં વસનાર જનોને તે દિવ્યધન પ્રદાન કરે છે. (૨)
भावार्थ
ભાવાર્થ : જ્ઞાન-પ્રકાશ સ્વરૂપ પરમાત્મા વિશ્વનું પાલન કરનાર તેજથી યુક્ત છે, તેનું તેજ દાહક નહિ પરંતુ સર્વપાલક છે, તે ઉપાસક દ્વારા હૃદયથી આમંત્રિત થતાં શોભનરૂપમાં-શ્રેષ્ઠરૂપમાં પ્રાપ્ત થાય છે; તથા સુંદર, પવિત્ર, સ્તુતિપાત્ર, યજનીય અને સંગનીય છે, તેના શરણમાં વસનારા ઉપાસકોનું દિવ્ય ધન છે અથવા દિવ્યધન પ્રદાતા છે. (૨)
मराठी (1)
भावार्थ
सुयोग्य ब्रह्माला अध्यक्ष पदावर नियुक्त करून यज्ञ, सुख, शांती व स्वास्थ्य देणारा, लोकांना ज्योती प्रदान करणारा व अध्यात्ममार्गात प्रेरित करणारा असतो ॥२॥
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