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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 778
ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
20
प꣡व꣢स्वेन्दो꣣ वृ꣡षा꣢ सु꣣तः꣢ कृ꣣धी꣡ नो꣢ य꣣श꣢सो꣣ ज꣡ने꣢ । वि꣢श्वा꣣ अ꣢प꣣ द्वि꣡षो꣢ जहि ॥७७८॥
स्वर सहित पद पाठप꣡व꣢꣯स्व । इ꣣न्दो । वृ꣡षा꣢꣯ । सु꣣तः꣢ । कृ꣣धि꣢ । नः꣣ । यश꣡सः꣢ । ज꣡ने꣢꣯ । वि꣡श्वाः꣢꣯ । अ꣡प꣢꣯ । ꣡द्विषः꣢꣯ । ज꣣हि ॥७७८॥
स्वर रहित मन्त्र
पवस्वेन्दो वृषा सुतः कृधी नो यशसो जने । विश्वा अप द्विषो जहि ॥७७८॥
स्वर रहित पद पाठ
पवस्व । इन्दो । वृषा । सुतः । कृधि । नः । यशसः । जने । विश्वाः । अप । द्विषः । जहि ॥७७८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 778
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में ४७९ क्रमाङ्क पर परमात्मा को सम्बोधित की गयी थी। यहाँ परमात्मा, आचार्य तथा राजा से प्रार्थना की गयी है।
पदार्थ
हे (इन्दो) तेजस्वी परमात्मन्, आचार्य और राजन् ! (वृषा) विद्या और सुख की वर्षा करनेवाले, (सुतः) हमसे प्रार्थना और प्रेरणा किये गये आप (पवस्व) हमें पवित्र कीजिए । (जने) जन-समुदाय में (नः) हमें (यशसः) यशस्वी (कृधि) कीजिए, (विश्वाः द्विषः) सब द्वेष-वृत्तियों को और सब द्वेषियों को (अप जहि) विनष्ट कर दीजिए ॥१॥ इस मन्त्र में अर्थश्लेष अलङ्कार है ॥१॥
भावार्थ
जगदीश्वर, आचार्य और राजा से विद्या, सुख, पवित्रता, कीर्ति और द्वेष-पाप आदि का विनाश प्राप्त करके सब लोग सफल जीवनवाले होवें ॥१॥
पदार्थ
(इन्दो) हे आनन्दरस भरे आनन्दधारा वाले परमात्मन्! तू (सुतः) हृदय में साक्षात् किया (वृषा) कामनावर्षक हुआ (नः) हमें (जने) जनसमुदाय में (यशसः) यश वाले ‘अकारो मत्वर्थीयः’ (कृधि) कर (विश्वाः-द्विषः-अपजहि) सारी द्वेषभावनाओं को दूर कर दे।
भावार्थ
हे आनन्दरसभरे परमात्मन्! तू हृदय में साक्षात् हुआ कामपूरक हो जनसमुदाय—जनसमाज में यशस्वी कर दे और काम-क्रोध आदि शत्रुभावनाओं को दूर कर दे॥१॥
विशेष
ऋषिः—अमहीयुः (मही—पृथिवी का नहीं मोक्ष का इच्छुक उपासक)॥ देवता—पवमानः सोमः (आनन्दधारा में आता हुआ परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>
पदार्थ
४७९ संख्या पर मन्त्रार्थ द्रष्टव्य है।
संस्कृत (1)
विषयः
तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ४७९ क्रमाङ्के परमात्मानं सम्बोधिता। अत्र परमात्माऽऽचार्यो नृपतिश्च प्रार्थ्यते।
पदार्थः
हे (इन्दो) तेजस्विन् परमात्मन् आचार्य नृपते च (वृषा) विद्यावर्षकः सुखवर्षकश्च, (सुतः) अस्माभिः प्रार्थितः प्रेरितश्च त्वम् (पवस्व) अस्मान् पुनीहि। (जने) जनसमाजे (नः) अस्मान् (यशसः) यशस्विनः (कृधि) कुरु। (विश्वाः द्विषः) सर्वाः द्वेषवृत्तीः, सर्वान् द्वेष्टॄन् वा (अप जहि) विनाशय ॥१॥ अत्रार्थश्लेषालङ्कारः ॥१॥
भावार्थः
जगदीश्वरादाचार्यान्नृपतेश्च विद्यां सुखं पवित्रतां कीर्तिं द्वेषपापादिविनाशं च प्राप्य सर्वे जनाः सफलजीवना भवेयुः ॥१॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ९।६१।२८, साम० ४७९।
इंग्लिश (2)
Meaning
O learned soul, being well equipped, the giver of all joys, display thyself in us. Make us glorious. Remove all our moral weaknesses !
Meaning
Soma, lord of purity and generosity, light and splendour, served and realised through yajnic life, protect and purify us, help us join the community of honour and excellence, ward off and eliminate all malignity, jealousy and enmity from our life. (Rg. 9-61-28)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (इन्दो) હે આનંદરસ ભરેલ આનંદધારાવાળા પરમાત્મન્ ! તું (सुतः) હૃદયમાં સાક્ષાત્ કરેલ (वृषा) કામનાવર્ષક બનીને (नः) અમને (जने) જનસમુદાયમાં (यशसः) યશવાન (कृधि) બનાવ (विश्वाः द्विषः अपजहि) સમસ્ત દ્વેષ ભાવનાઓને અમારાથી દૂર કરી દે. (૧)
भावार्थ
ભાવાર્થ : હે આનંદરસ ભરેલ પરમાત્મન્!તું હૃદયમાં સાક્ષાત્ થઈને કામનાપૂરક બન. જનસમુદાય નસમાજમાં યશસ્વી કરી દે અને કામ-ક્રોધ આદિ શત્રુ ભાવનાઓને દૂર કરી દે. (૧)
मराठी (1)
भावार्थ
जगदीश्वर, आचार्य व राजाकडून विद्या, सुख, पवित्रता, कीर्ती व द्वेष-पाप इत्यादीचा विनाश करून सर्व लोकांनी सफल जीवन व्यतीत करावे. ॥१॥
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