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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 828
    ऋषिः - जेता माधुच्छन्दसः देवता - इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
    24

    स꣣ख्ये꣡ त꣢ इन्द्र वा꣣जि꣢नो꣣ मा꣡ भे꣢म शवसस्पते । त्वा꣢म꣣भि꣡ प्र नो꣢꣯नुमो꣣ जे꣡ता꣢र꣣म꣡परा꣢जितम् ॥८२८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स꣣ख्ये꣢ । स꣣ । ख्ये꣢ । ते꣣ । इन्द्र । वाजि꣡नः꣢ । मा । भे꣣म । शवसः । पते । त्वा꣢म् । अ꣣भि꣢ । प्र । नो꣣नुमः । जे꣡ता꣢꣯रम् । अ꣡प꣢꣯राजितम् । अ । प꣣राजितम् ॥८२८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सख्ये त इन्द्र वाजिनो मा भेम शवसस्पते । त्वामभि प्र नोनुमो जेतारमपराजितम् ॥८२८॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सख्ये । स । ख्ये । ते । इन्द्र । वाजिनः । मा । भेम । शवसः । पते । त्वाम् । अभि । प्र । नोनुमः । जेतारम् । अपराजितम् । अ । पराजितम् ॥८२८॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 828
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 6; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    अगले मन्त्र में जगदीश्वर वा आचार्य से प्रार्थना की गयी है।

    पदार्थ

    हे (शवसः पते) बल के अधीश्वर (इन्द्र) परमैश्वर्यवान्, अविद्याविदारक जगदीश्वर वा आचार्य ! (वाजिनः) बलवान् हम (ते) आपकी (सख्ये) मित्रता में रहते हुए (मा भेम) भयभीत न हों। (जेतारम्) सब विघ्नों पर विजय पानेवाले, (अपराजितम्) किसी भी बाधा से पराजित न होनेवाले (त्वाम्) तुझ जगदीश्वर वा आचार्य को (अभि) लक्ष्य करके, हम (प्र नोनुमः) अतिशय बार-बार स्तुति करते हैं ॥२॥

    भावार्थ

    ब्रह्मबल, आत्मबल, विद्याबल आदियों में बलिष्ठ, सब विपत्तियों पर विजय पानेवाले, किसी से भी पराजित न होनेवाले जगदीश्वर और आचार्य यदि हमारे साथी हो जाते हैं तो निर्भय रहते हुए हम सम्पूर्ण उत्कर्ष को पा सकते हैं ॥२॥

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    पदार्थ

    (शवसस्पते-इन्द्र) हे बल के स्वामिन्! ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! (ते सख्ये) तेरे मित्रभाव में (वाजिनः) बलवान् होते हुए—आत्मबल वाले होते हुए हम (मा भेम) नहीं भय करते हैं (त्वाम्-अपराजितं जेतारम्) तुझ पराजित न होने वाले जैता—विजेता—समर्थ को हम (प्र नोनुमः) पुनः पुनः प्रणाम करते हैं—तेरी ओर नमते हैं—तेरी उपासना करते हैं।

    भावार्थ

    सर्वबलवान् ऐश्वर्यवान् परमात्मा की मित्रता में उपासकजन बलवान् होकर निर्भय हो जाते हैं, अतः उस अभयशरण समर्थ अपराजित की पुनः पुनः उपासना करनी चाहिये॥२॥

    विशेष

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    विषय

    अभय-विजय

    पदार्थ

    ‘जेता माधुच्छन्दस'= वासनाओं का विजय करनेवाला, उत्तम इच्छाओंवाला प्रभु से प्रार्थना करता हुआ कहता है कि हे (शवसस्पते) = [शिव-गति, वृद्धि] गति व वृद्धि के पति प्रभो ! आप सदा गतिमान् हो, परिणामतः सदा वृद्धिमान् हो । हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (वाजिनः) = सर्वशक्तिमान्, बलवान् (ते) = आपकी सख्ये मित्रता में हम (मा भेम) = मत भयभीत हों । प्रभु की मित्रता मनुष्य को निर्भीक बनाती है। वे प्रभु सर्वशक्ति-सम्पन्न हैं । अशक्त जीव भी प्रभु-मित्रता में सशक्त हो जाता है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं रहता ।

    (त्वाम् अभिप्रणोनुमः) = आपको लक्ष्य करके हम प्रणाम करते हैं— बारम्बार आपकी आराधना करते हैं । आप (जेतारम्) = सदा विजयी हैं (अपराजितम्) = कभी पराजित नहीं होते। आपको अपने रथ का सारथि बनाकर मैं भी विजयी होता हूँ। अपने जीवन की बागडोर आपके हाथ में सौंपकर मैं भी पराजित नहीं होता ।

    भावार्थ

    प्रभु की मित्रता में निर्भयता है— प्रभु की आराधना में विजय है ।

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    पदार्थ

    शब्दार्थ = हे इन्द्र ! ( ते सख्ये ) = आपकी मैत्री में हम  ( वाजिनः ) = अन्न और बल युक्त हुए  ( मा भेम ) = किसी से न डरें ।  ( शवसस्पते ) = हे बलपते !  ( जेतारम् ) = सबको जीतनेवाले  ( अपराजितम् ) = और किसी से भी न हारने वाले  ( त्वाम् अभिप्र नोनुमः ) = आपको हम बारम्बार प्रणाम और आपकी ही स्तुति करते हैं । 

    भावार्थ

    भावार्थ  =  हे दयासिन्धो  भगवन् ! जो आपकी शरण आते हैं, उनको किसी  प्रकार का भय नहीं प्राप्त होता क्योंकि आप महाबली और सबको जीतनेवाले हैं, तो आपकी शरण में आए भक्तों को डर किसका रहा। इसलिए अभय पद की  इच्छावाले हमको इस लोक और परलोक में अभय कीजिये ।

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    विषय

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    भावार्थ

    हे (शवसस्पते) बलों के स्वामिन् ! हे (इन्द्र) ऐश्वर्य के देने हारे ! (ते सख्ये) तेरे प्रेम भाव या मित्रभाव में रहते हुए हम (वाजिनः) बलशाली, ऐश्वर्यवान्, ज्ञानी होकर (मा भेम) भय न करें (जेतारं) सबसे उत्कृष्ट (अपराजितं) किसी से पराजित न होने वाले (त्वा) तुझ को (अभि प्र नोनुमः) साक्षात् प्रणाम करते हैं।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ जगदीश्वरमाचार्यं च प्रार्थयते।

    पदार्थः

    हे (शवसः पते) बलस्य अधीश्वर (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् अविद्याविदारक जगदीश्वर आचार्य वा ! (वाजिनः) बलवन्तो वयम् (ते) तव (सख्ये) सखित्वे (मा भेम) मा भैष्म। [ञिभी भये इत्यस्माल्लुङि बहुलं छन्दसीति च्लेर्लुक्।] (जेतारम्) सर्वविघ्नविजयिनम्, (अपराजितम्) कयापि बाधया न पराजितम् (त्वाम्) जगदीश्वरमाचार्यं वा (अभि) अभिलक्ष्य, वयम् (प्र नोनुमः) अतिशयेन पुनः पुनः स्तुमः। [णु स्तुतौ इत्यस्माद् यङ्लुकि प्रयोगः।] ॥–२॥२

    भावार्थः

    ब्रह्मबलात्मबलविद्याबलादिषु बलिष्ठो निखिलविपद्विजेता केनाप्यपराजितो जगदीश्वर आचार्यश्च यद्यस्माकं सखा जायते तर्हि निर्भयाः सन्तो वयं सर्वमप्युत्कर्षमधिगन्तुं पारयामः ॥–२॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० १।११।२, ‘प्र णो॑नुमो॒’ इति पाठः। २. ऋग्भाष्ये दयानन्दर्षिर्मन्त्रमेतमीश्वरविषये सभाध्यक्षविषये च व्याख्यातवान्।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The Lord of might, God, may we never, strong in Thy friendship, be afraid ! We glorify with praises Thee, the never Conquered Conqueror.

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    Meaning

    We are the friends of Indra, we are the fighters of life and humanity. Indra, lord of might, never shall we succumb to fear while we are under the cover of your protective friendship. We offer homage and worship to you, supreme victor, unbeaten since eternity. (Rg. 1-11-2)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (शवसस्पते इन्द्र) હે બલના સ્વામિન્ ! ઐશ્વર્યવાન પરમાત્મન્ ! (ते सख्ये) તારા મિત્રભાવમાં (वाजिनः) બલવાન થઈને-આત્મબળવાળા થઈને અમે (मा भेम) ભય પામતા નથી. (त्वाम् अपराजितं जेतारम्) તું પરાજિત ન થનાર જૈતા-વિજેતા-સમર્થને અમે (प्र नोनुमः) વારંવાર પ્રણામ કરીએ છીએતારી તરફ નમીએ છીએ-તારી ઉપાસના કરીએ છીએ. (૨)

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : સર્વ બળવાન ઐશ્વર્યવાન્ પરમાત્માની મિત્રતામાં ઉપાસકજન બળવાન થઈને નિર્ભય થઈ જાય છે, તેથી તે અભયશરણ સમર્થ અપરાજિતની પુનઃ પુનઃ ઉપાસના કરવી જોઈએ. (૨)
     

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    সখ্যে তে ইন্দ্র বাজিনো মা ভেম শবসস্পতে।

    ত্বামভি প্র নোনুমো জেতারমপরাজিতম্।।৪২।।

    (সাম ৮২৮)

    পদার্থঃ (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র! (তে সখ্যে) তোমার মিত্র আমি (বাজিনঃ) অন্ন আর বলযুক্ত হয়ে (মা ভেম) কাউকে ভয় করি না। (শবসস্পতে) হে বলবান! (জেতারম্) সবার বিজেতা, (অপরাজিতম্) সবার দ্বারা অপরাজিত, (ত্বাম অভি প্র নোনুমঃ) তোমাকে আমরা বার বার প্রণাম ও স্তুতি করি। 

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ হে দয়াসিন্ধু ভগবান! যে তোমার শরণে আসে, তার কোনো প্রকারের ভয় থাকে না। কারণ তুমি সর্বশক্তিমান এবং সকল কিছুকেই জয় করতে সক্ষম। তাই তোমার শরণে আসা ভক্তদের কীসের ভয় থাকবে! এ কারণে অভয়প্রদাতা তুমি আমাদের জন্ম-জন্মান্তরে অভ্যন্তরীণ ও বাহ্যিক উভয় দিকেই অভয় প্রদান করো ।।৪২।।

     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ब्रह्मबल, आत्मबल, विद्याबल इत्यादीमध्ये बलवान सर्व विपत्तींवर मात करणारे, कुणाकडूनही पराजित न होणारे जगदीश्वर व आचार्य जर आमचे साथी असतील तर निर्भय होऊन आम्ही आमचा उत्कर्ष करून घेऊ शकतो. ॥१॥

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