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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 858
    ऋषिः - सप्तर्षयः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - द्विपदा विराट् स्वरः - पञ्चमः काण्ड नाम -
    24

    नृ꣡भि꣢र्येमा꣣णो꣡ ह꣢र्य꣣तो꣡ वि꣢चक्ष꣣णो꣡ राजा꣢꣯ दे꣣वः꣡ स꣢मु꣣꣬द्र्यः꣢꣯ ॥८५८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नृ꣡भिः꣢꣯ । ये꣣मानः꣢ । ह꣣र्यतः꣢ । वि꣣चक्षणः꣢ । वि꣣ । चक्षणः꣢ । रा꣡जा꣢꣯ । दे꣣वः꣢ । स꣣मुद्र्यः꣢ । स꣢म् । उद्र्यः꣢ ॥८५८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नृभिर्येमाणो हर्यतो विचक्षणो राजा देवः समुद्र्यः ॥८५८॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नृभिः । येमानः । हर्यतः । विचक्षणः । वि । चक्षणः । राजा । देवः । समुद्र्यः । सम् । उद्र्यः ॥८५८॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 858
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में पुनः उसी विषय का वर्णन है।

    पदार्थ

    (नृभिः) नेता गुरुजनों से (येमाणः) नियन्त्रण में रखा जाता हुआ, (हर्यतः) प्रिय, (राजा) तेज से देदीप्यमान, (समुद्र्यः) ब्रह्मचर्याश्रमरूप समुद्र में निवास करता हुआ ब्रह्मचारी (देवः) दिव्य गुणों से युक्त, और (विचक्षणः) विद्वान् हो जाता है ॥३॥

    भावार्थ

    गुरुकुल में गुरुजनों के सान्निध्य में निवास करता हुआ ब्रह्मचारी विद्वान् और सदाचारी होकर स्नातक बनता है ॥३॥

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    पदार्थ

    (नृभिः-येमाणः) मुमुक्षुओं के द्वारा “नरो ह वै देवविशः” [जै॰ १.८९] यम आदि साधना में आता हुआ (हर्यतः) कमनीय “हर्यति प्रेप्साकर्मा” [निरु॰ २.१०] (विचक्षणः) विशेषद्रष्टा (राजा) सर्वत्र राजमान (देवः) सुखदाता परमात्मा (समुद्र्यः) हृदयावकाश में साक्षात् होने योग्य है साक्षात् किया जाता है।

    भावार्थ

    कमनीय सर्वद्रष्टा सर्वत्र राजमान सुखदाता परमात्मा मुमुक्षुओं द्वारा साधना में लाया हुआ हृदयावकाश में साक्षात् होता है॥३॥

    विशेष

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    विषय

    उत्तम शिक्षा

    पदार्थ

    मनुष्य अपने जीवन में बहुत कुछ वैसा ही बन जाता है जैसा शिक्षक उसे बनाते हैं। ('मातृमान् पितृमान् आचार्यवान् पुरुषो वेद') = उत्तम माता-पिता व आचार्यवाला पुरुष ही ज्ञानी बनता है । प्रस्तुत मन्त्र में कहा है – (नृभिः) = [नृ नये] नेतृत्व करनेवाले - जीवन - मार्ग में आगे और आगे ले=चलनेवाले माता-पिता व आचार्यों से (येमाणः) = नियमित जीवनवाला बनाया जाता हुआ—१. (हर्यतः) = [हर्य गतिकान्त्योः] यह गतिशील होता है और इसकी गति में कान्ति होती है, [कान्ति इच्छा] यह लक्ष्यस्थान को प्राप्त करने की इच्छा से गतिशील होता है । २. (विचक्षणः) = यह विशेषरूप से प्रत्येक पदार्थ को देखनेवाला होता है, इसके जीवन का एक विशिष्ट दृष्टिकोण बन जाता है । ३. राजा=यह नियमित गतिवाला तथा स्वास्थ्य व ज्ञान की दीप्तिवाला बनता है । ४. . (देवः) = यह दिव्य गुणों को अपने अन्दर बढ़ाता हुआ 'देव' बनता है। ५. (समुद्र्यः) = ‘कामो हि समुद्रः'=इस वाक्य से समुद्र काम है, यह उसमें उत्तम होता है। काम में उत्तम होने का अभिप्राय ‘नियन्त्रित कामवाला होना' है ।

    भावार्थ

    जीवन की उन्नति उत्तम शिक्षकों पर ही निर्भर होती है ।
     

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    विषय

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    भावार्थ

    (नृभिः) विद्वान् नेताओं, या प्राणों के द्वारा (येमाणः) सुव्यवस्थित (राजा देवः) प्रकाशस्वरूप योगी आत्मा (हर्यतः) सबके प्रेमका पात्र (विचक्षणः) और सब का साक्षी रूप होकर (समुद्रयः) महान् रससागर में आनन्द प्राप्त करने वाला होकर उसी में मग्न हो जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    missing

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि तमेव विषयमाह।

    पदार्थः

    (नृभिः) नेतृभिः गुरुजनैः (येमाणः) नियम्यमानः, (हर्यतः) प्रियः, (राजा) तेजसा राजमानः, (समुद्र्यः) ब्रह्मचर्याश्रमरूपे समुद्रे निवसन् ब्रह्मचारी (देवः) दिव्यगुणयुक्तः, (विचक्षणः) विद्वांश्च भवतीति शेषः ॥३॥

    भावार्थः

    गुरुकुले गुरुजनानां सान्निध्ये वसन् ब्रह्मचारी विद्वान् सदाचारी च भूत्वा स्नातको जायते ॥३॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।१०७।१६, ‘येमा॒नो’ इति ‘स॑मुद्रि॑यः’ इति च पाठः।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The lustrous, self-controlled soul, guided by the teachers Of Yoga, lovely, far-seeing, absorbs itself in God, vast like an ocean.

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    Meaning

    Invoked and impelled by leading lights of intelligent humanity, graciously charming, all watching, self-refulgent divine light of life, omnipresent in the universe, it rolls for Indra, the soul. (Rg. 9-107-16)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (नृभिः येमाणः) મુમુક્ષુઓ દ્વારા યમ આદિ સાધનામાં આવતા (हर्यतः) કમનીય (विचक्षणः) વિશેષ દ્રષ્ટા (राजा) સર્વત્ર રાજમાન (देवः) સુખદાતા પરમાત્મા (समुद्र्यः) હૃદયાવકાશમાં સાક્ષાત્ થવા યોગ્ય છે. સાક્ષાત્ કરી શકાય છે. (૩)

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : કમનીય, સર્વદ્રષ્ટા, સર્વત્ર રાજમાન, સુખદાતા પરમાત્મા મુમુક્ષુઓ દ્વારા સાધનામાં લાવતાં હૃદયાવકાશમાં સાક્ષાત્ થાય છે. (૩)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    गुरुकुलमध्ये गुरुजनांच्या सान्निध्यात निवास करणारा ब्रह्मचारी विद्वान व सदाचारी स्नातक बनतो ॥३॥

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