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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 89
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः देवता - अग्निः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
    42

    अ꣡ग꣢न्म वृत्र꣣ह꣡न्त꣢मं꣣ ज्ये꣡ष्ठ꣢म꣣ग्नि꣡मान꣢꣯वम् । य꣡ स्म꣢ श्रु꣣त꣡र्व꣢न्ना꣣र्क्षे꣢ बृ꣣ह꣡द꣢नीक इ꣣ध्य꣡ते꣢ ॥८९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ꣡ग꣢꣯न्म । वृ꣣त्रह꣡न्त꣢मम् । वृ꣣त्र । ह꣡न्त꣢꣯मम् । ज्ये꣡ष्ठ꣢꣯म् । अ꣣ग्नि꣢म् । आ꣡न꣢꣯वम् । यः । स्म꣣ । श्रुत꣡र्व꣢न् । आ꣣र्क्षे꣢ । बृ꣣ह꣡द꣢नीकः । बृ꣣ह꣢त् । अ꣣नीकः । इध्य꣡ते꣢ ॥८९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अगन्म वृत्रहन्तमं ज्येष्ठमग्निमानवम् । य स्म श्रुतर्वन्नार्क्षे बृहदनीक इध्यते ॥८९॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अगन्म । वृत्रहन्तमम् । वृत्र । हन्तमम् । ज्येष्ठम् । अग्निम् । आनवम् । यः । स्म । श्रुतर्वन् । आर्क्षे । बृहदनीकः । बृहत् । अनीकः । इध्यते ॥८९॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 89
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 9
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 9;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में परमात्मा के गुणों का वर्णन है।

    पदार्थ

    हम (वृत्रहन्तमम्) पापों के अतिशय विनाशक, (ज्येष्ठम्) सर्वाधिक प्रशंसनीय और महान् (आनवम्) मनुष्यों के हितकारी (अग्निम्) तेजस्वी परमेश्वर को (अगन्म) प्राप्त हुए हैं। (यः स्म) जो (श्रुतर्वन्) प्रसिद्ध किरणरूप अश्वोंवाले ज्योतिर्मय सूर्य में तथा (आर्क्षे) तारापुंज में (बृहदनीकः) विशाल तेजवाला होकर (इध्यते) भासमान होता है ॥९॥

    भावार्थ

    प्रचण्ड दीप्तिवाले सूर्य में, तारामण्डल में, सारे ही ब्रह्माण्ड में जिसका कर्तृत्व, जिसकी दी हुई शक्ति, जिसका उत्पन्न किया तेज द्योतमान है, जो पापों का संहारक, मनुष्यों का हितकर्ता, सर्वाधिक प्रशंसनीय पुराण-पुरुष है, उसकी सबको वन्दना, प्राप्ति और उपासना करनी चाहिए ॥९॥ इस मन्त्र पर कुछ लोगों की यह व्याख्या असंगत है कि श्रुतर्वा नाम का कोई राजा था, जो ऋक्ष का पुत्र था, जिसके पास अग्नि प्रदीप्त रहती थी, क्योंकि वेदों में लौकिक इतिहास नहीं है ॥९॥

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    पदार्थ

    (यः स्म) जो ही परमात्मा (श्रुतर्वन्) प्रसिद्ध अर्वा-रश्मि-घोड़ों वाले सूर्य में (बृहदनीके-आर्क्षे) बड़े खुले अवकाश में नक्षत्र तारागण द्युमण्डल में (इध्यते) प्रकाशित हो रहा है। “योऽसावादित्ये पुरुषः सोऽसावहम्” ‘ओ३म् खं ब्रह्म’ [यजुः॰ ४०.१७] “तस्य भासा सर्वमिदं विभाति” [कठो॰ ५.१५] (वृत्रहन्तमं ज्येष्ठम्-आनवम्-अग्निम्) इस पाप विनाशक “पाम्मा वै वृत्रः” [श॰ ११.१.५.७] श्रेष्ठ तथा मनुष्य सम्बन्धी “अनवः-मनुष्याः” [निघं॰ २.३] इष्टदेव परमात्मा को (अगन्म) प्राप्त करें।

    भावार्थ

    परमात्मा दिन में सूर्य के अन्दर रात्रि में महान् नक्षत्रतारामण्डल में प्रकाश देता हुआ साक्षात् होता है वह मनुष्यों के भीतर आत्मा में से अज्ञानान्धकार और पाप को हटाता हुआ वर्तमान है उसे हम अपने अन्दर साक्षात् करें॥९॥

    विशेष

    ऋषिः—गोपवनः (इन्द्रियों को पवित्र करने वाला उपासक)॥<br>

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    विषय

    रुतर्वा और आर्क्ष्य

    पदार्थ

    इन्द्रियों को पवित्र करनेवाला इस मन्त्र का ऋषि ‘गोपवन' अपने मित्रों के साथ निश्चय करता है कि हम (अगन्म) = प्राप्त होते हैं, उस प्रभु को जोकि (वृत्रहन्तमम्)=ज्ञान को आवृत करनेवाले ‘वृत्र' नामक काम का बुरी तरह से नाश करनेवाला है। मनुष्य जब प्रभु को अपनी ढाल बनाता है और उसे इन शत्रुओं के सामने करता है तो ये शत्रु नष्ट-भ्रष्ट हो जाते हैं। 
    वे प्रभु ज्(येष्ठम्)=स्वयं प्रशस्यतम हैं, उनमें किसी प्रकार के पाप का अंश नहीं है। स्वयं प्रशस्य होते हुए वे (अग्निम्) = हमें आगे ले-चलनेवाले हैं। वे सदा अपने मित्र जीव के उत्थान की कामना करते हैं और इस उत्थान के लिए (आनवम्) = ये सदा उसे उत्साहित करनेवाले हैं [आनयति प्रोत्साहयति ] ।

    प्रभु जीव को उन्नत करते हैं। परन्तु कब? जबकि (यः स्म इध्यते) = वे हृदय में दीप्त किये जाते हैं। अदीप्त अग्नि काष्ठ में होते हुए भी कार्य करनेवाली नहीं होती। इसी प्रकार सर्वव्यापकता से विद्यमान वह प्रभु हममें वृत्रहननादिरूप कार्यों को करते तभी हैं जब हम उन्हें अपने में प्रकाशित करते हैं। प्रभु का प्रकाश होता है (श्रुतर्वन् अर्क्षे) = श्रुतर्वा और आर्क्ष्य में। (“श्रुतं प्रति ऋच्छति")=सदा ज्ञान के प्रति जाने से जीव श्रुतर्वा होता है और ऋच् स्तुतौ सदा स्तुतिरूप, नकि निन्दारूप वचनों के उच्चारण से आर्क्ष्य होता है। हम अपने मस्तिष्क को ज्ञान की ज्योति से दीप्त करें और हमारी वाणी सदा स्तुतिरूप वचनों को बोले। ऐसा करने पर हममें उस प्रभु का प्रकाश होगा, (जोकि बृहद् अनीकः )= विशाल व अनन्त बलवाले हैं।
    अनन्त बल प्रभु से बलवाले होकर ही हम कामादि वृत्रों का विनाश कर सकेंगे और इस प्रकार कामादि के ध्वंस से हम अपनी इन्द्रियों को पवित्र कर इस मन्त्र के ऋषि 'गोपवन' बनेंगे।

    भावार्थ

    हम सदा ज्ञानमार्ग के पथिक श्रुतर्वा बनें और शुभ शब्दों का उच्चारण करनेवाले आर्क्ष्य हों तभी हममें प्रभु का प्रकाश होकर पवित्रता का प्रसार होगा ।

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    विषय

    परमेश्वर की स्तुति

    भावार्थ

    भा० = ( वृत्रहन्तमं ) = विध्न उपद्रव और यज्ञविनाशक दुष्ट जीवों को नाश करने वाले, ( ज्येष्ठं ) = सब से अधिक श्रेष्ठ, प्रशंसा करने योग्य,( आनवं ) = मनुष्यों के हितकारी, ( अग्निं  ) = अग्नि परमेश्वर और आत्मा को ( अगन्म ) = हम प्राप्त हों ( यः ) जो अग्नि ( आर्क्षे१  ) = नक्षत्र लोकों से और ज्ञानेन्द्रियगण से सम्पन्न, ( श्रुतर्वन् ) = बड़े लोकों और प्राणेन्द्रियों से युक्त देह में और भौतिक बडी २ शक्तियों से युक्त ब्रह्माण्ड में ( बृहदनीकः ) = प्राणमय बलों और विशाल पंचभूतों के बल से युक्त होकर ( इध्यते ) = प्रकाशित या जीवित, जागृत रहता है । 

    टिप्पणी

    ८९.-‘आगन्म' इति ऋ० । 'यस्य श्रुतर्वा बृहन्नार्क्षो  अनीक एधते' इति ऋ० । 
    १. ऋषति इति ऋक्षम् । ऋषतेरौणादिकः  सः । उ० ३ । ६६ । इन्द्रियम् । ऋषेरिन्द्रियत्वं बृहदारण्यकोपनिषदि सुस्पष्टम् सप्तर्षिव्याख्याने ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः -  गोपवन:।

    छन्द: - अनुष्टुप् ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमात्मगुणानाह।

    पदार्थः

    वयम् (वृत्रहन्तमम्२) अतिशयेन पापहन्तारम्। पाप्मा वै वृत्रः। श० ११।१।५।७, (ज्येष्ठम्) अतिशयेन प्रशस्यं वृद्धं वा। अतिशायनार्थे इष्ठनि ज्य च अ० ५।३।६१, वृद्धस्य च अ० ५।३।६२ इति सूत्राभ्यां क्रमेण प्रशस्यस्य वृद्धस्य च ज्यादेशः। (आनवम्३) अनुभ्यो मनुष्येभ्यो हितस्तम्। अनुरिति मनुष्यनाम। निघं० २।३। (अग्निम्) तेजस्विनं परमेश्वरम् (अगन्म) प्राप्ताः स्मः। (यः स्म) यः खलु (श्रुतर्वन्४) श्रुताः ख्याता अर्वाणः किरणरूपा अश्वा यस्य स श्रुतर्वा, तस्मिन् श्रुतर्वणि ज्योतिर्मये सूर्ये, श्रुतर्वन्, इत्यत्र सुपां सुलुक् अ० ७।१।३९ इति सप्तम्या लुक्। श्रुत-अर्वन् अत्र च शकन्ध्वादिषु पररूपं वाच्यम् अ० ६।१।९४ वा० इति पररूपम्। तथा (आर्क्षे५) ऋक्षाणि नक्षत्राणि, तेषां समूह आर्क्षम्, तस्मिन् तारकपुञ्जे। ऋषन्ति गच्छन्त्याकाशे तानि ऋक्षाणि नक्षत्राणि। ऋष धातोः स्नुव्रश्चिकृत्यृषिभ्यः कित् उ० ३।६६ इति स प्रत्ययः। तेषां समूहः आर्क्षम्। (बृहदनीकः५) महातेजाः सन् (इध्यते) दीप्यते, भासते। तथा चोपनिषद्वर्णः “न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः। तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति” कठ० ५।१५ इति।

    भावार्थः

    प्रचण्डदीप्तिमति सूर्ये, तारामण्डले, सर्वस्मिन्नेव ब्रह्माण्डे यस्य कर्तृत्त्वं, यत्प्रदत्ता शक्तिः, यत्कृतं च तेजो द्योतते, यः पापानां हन्ता, मनुष्याणां हितकर्ता, प्रशस्यतमः पुराणपुरुषो वर्वर्ति स सर्वैर्नमसा वन्दनीयः प्राप्तव्य उपासनीयश्च ॥९॥ अत्र श्रुतर्वा नाम राजा, स च ऋक्षस्य पुत्रः, तस्मिन् आर्क्षे श्रुतर्वणि अग्निः इध्यते स्म, इति केषाञ्चिद् व्याख्यानं तु न समञ्जसम्, वेदेषु लौकिकेतिहासाभावात्।

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ८।७४।४, यस्य श्रुतर्वा बृहन्नार्क्षो अनीक एधते इत्युत्तरार्द्धपाठः। २. वृत्रहन्तमं शत्रूणां हन्तारम्—इति वि०। अतिशयेन तमोहन्तारम्— इति भ०। पापानामतिशयेन हन्तारम्—इति सा०। ३. अनुर्मनुष्यः तस्यापत्यम्। मनुष्येण हि मन्थनेन अग्निर्जन्यते—इति वि०। अनवो मनुष्याः तेभ्यः हितम्—इति भ०। मनुष्यसम्बन्धिनम्, तेषां हितकारिणम्—इति सा०। ४. श्रुतर्वन्निति विवरकारेण आमन्त्रितान्तं स्वीकृतम्, तच्चिन्त्यं स्वरविरोधात्। श्रुतर्वा नाम ऋषि—इति वि०। श्रुतर्वणि राज्ञि—इति भ०। श्रुतर्वनाम्नि राजनि—इति सा०। ५. आर्क्ष्यः ऋक्षस्य पुत्रः इति वि०। आर्क्ष्ये ऋक्षपुत्रे—इति भ०। ऋक्षपुत्रे—इति सा०। सर्वैः आर्क्ष्ये इति पाठं मत्वा व्याख्यातम्। ६. बृहदनीकः बृहत्तेजाः—इति भ०।

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    May we realise God, the Remover of the sin of ignorance, Most Excellent, the Well-wisher of humanity, the Revealer of the Vedas, and Visible in the great fight amongst the organs of senses.

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    Meaning

    Let us rise and reach Agni, highest divinity, greatest destroyer of evil and darkness and friend of humanity, which shines with mighty blaze in the universal sun in the midst of the stars. (Rg. 8-74-4)

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    Translation

    We have come to that most excellent fire-divine, who is the mightiest destroyer of the wicked. He is the benefactor of men, in whose beams (of radiations), the seer adept in the divine lore always waxes beyond expectation.

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (यः स्म) જે પરમાત્મા જ (श्रुतर्वन्) પ્રસિદ્ધ અર્વા-રશ્મિ ઘોડાવાળા સૂર્યમાં (बृहदनीके आर्क्षे) મહાન ખુલ્લા અવકાશમાં નક્ષત્ર , તારાગણ દ્યુ મંડળમાં (इघ्यते) પ્રકાશિત થઈ રહ્યો છે. (वृत्रहन्तमं ज्येष्ठम् आनवम् अग्निम्) એ પાપ વિનાશક શ્રેષ્ઠ તથા મનુષ્ય સંબંધી ઈષ્ટદેવ પરમાત્માને (अगन्म) પ્રાપ્ત કરે. (૯)

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : પરમાત્મા દિવસે સૂર્યની અંદર , રાતે મહાન નક્ષત્ર-તારામંડળમાં પ્રકાશ આપતા સાક્ષાત્ થાય છે. તે મનુષ્યોની અંદર આત્મામાંથી અજ્ઞાન-અંધકાર અને પાપને દૂર કરતા વિદ્યમાન છે. તેનો અમે પોતાની અંદર સાક્ષાત્ કરીએ. (૯)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    پالِیا ہم نے پاپوں کے وِناشک کو

    Lafzi Maana

    پراپت کریں (اگنم) اُس کو جو کہ (وِرتر ہنتم) پاپ راکھشسوں کا وناشک (جیشٹھم) سب سے بڑا (اگنم آن وم) سب مخلوقات کا پالک، رکھشک ہے، اور (یہ) جو (اشُروتروں) ویدوں کی بانی سے شرون، منن اور عمل کرنے والے (برہد نیکے) یوگ پرانایام کے ابھیاس میں تتھا (آرکھشئے) دئیو لوک کے جگمگاتے تاروں میں (اِدھیت) چمکتا ہے اور (سما) ہمیشہ چمکتا آیا ہے۔
     

    Tashree

    پراپت کر لیا جس پربھُو ورکو جو کن کن میں ویاپک ہے،
    سب کا رکھشک سب کا پالک جو بھگتوں کا نائیک ہے۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    प्रचंड दीप्तियुक्त सूर्यामध्ये, तारामंडलात, संपूर्ण ब्रह्मांडात ज्याचे कर्तृत्व, ज्याची शक्ती, ज्याचे तेज द्योतमान आहे, जो पापाचा संहारक, माणसांचा हितकर्ता, सर्वाधिक प्रशंसनीय पुराण पुरुष आहे, त्याची सर्वांनी वंदना, प्राप्ती व उपासना केली पाहिजे. ॥९॥

    टिप्पणी

    या यंत्राची काही लोकांची व्याख्या असंगत आहे. श्रुतवी नावाचा राजा होता, तो ऋशचा पुत्र होतो, ज्याच्या जवळ अग्नी प्रदीप्त होता. वेदात इतिहास नाही. त्यामुळे हे त्याज्य आहे.

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    विषय

    आता परमेश्वराच्या गुणांचे वर्णन करीत आहेत. -

    शब्दार्थ

    (वृत्रहन्तमम्) पापांचा संपूर्ण विनाश करणाऱ्या (ज्येष्ठम्) सर्वाधिक प्रशंसनीय आणि महान तसेच (आनवम्) मनुष्यांचा जो हितकारी त्या (अग्निम्) तेजस्वी परमेश्वराला आम्ही (उपासक) (अगन्म) प्राप्त झालो आहोत. (त्याच्या ध्यान उपासनेत मग्न आहोत.) (य:) (स्म) जो (श्रुतर्वन्) किरणे हेच ज्याचे अश्व आहेत अशा ज्योतिर्मय सूर्यात आणि (आर्क्षे) तारापुंजामध्ये (वृहदनीक:) विशाल तेजवान होऊन (इध्यते) भासमान होत आहे. (सूर्यात आणि ग्रह नक्षत्रादीमध्ये त्याचीच ज्योती आहे.) ।।९।।

    भावार्थ

    प्रचंड तेजोमय सूर्यामध्ये, तारामंडळात, एवढेच नव्हे, समग्र ब्रह्मांडात ज्याचे कर्तृत्व दृष्टिगत होत आहे, सर्व पदार्थात असलेली शक्ती आणि तेज हे त्यानेच दिलेले असून, ती शक्ती व ते तेज त्याचीच दीप्ती आहे, तो पाजसहारक, मानव हितकारी आणि सर्वाधिक पुराण-पुरुष आहे. सर्व लोकांनी त्याचीच वंदना, प्राप्ती आणि उपासना केली पाहिजे. ।।९।।

    विशेष

    या मंत्राची काही लोकांनी जी व्याख्या केली आहे, ती पूर्णरूपेण असंगत आहे त्यांनी म्हटले आहे की श्रुतर्वा नामाचा कोणी राजा झाला होता जो ऋक्षाचा पुत्र होता आणि त्याच्याजवळ नेहमी अग्नी प्रदीप्त असायचा. ही व्याख्या असंगत आहे. कारण की वेदात लौकिक इतिहास नाही. ।।९।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    [1] ருக்ஷ மகனோடு [2] சுருதர்வனோடு பெரிய சுவாலை சமூகத்தோடு மூட்டப்பட்டுள்ள [3] விருத்திரனைக் கொல்லும் சிறந்தவனாய் உனக்கு ஹிதம் செய்பவனான அக்னியின் அருகே நாங்கள் வந்துள்ளோம்.

    FootNotes

    [1] ருக்ஷ மகனோடு - நட்சத்திரத்தோடு
    [2] சுகுதர்வனோடு - பெரிய சக்தியுடன்
    [3] விருத்திரனை - அநீதியை

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