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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 943
    ऋषिः - प्रतर्दनो दैवोदासिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम -
    30

    सो꣡मः꣢ पवते जनि꣣ता꣡ म꣢ती꣣नां꣡ ज꣢नि꣣ता꣢ दि꣣वो꣡ ज꣢नि꣣ता꣡ पृ꣢थि꣣व्याः꣢ । ज꣣निता꣡ग्नेर्ज꣢꣯नि꣣ता꣡ सूर्य꣢꣯स्य जनि꣣ते꣡न्द्र꣢स्य जनि꣣तो꣡त विष्णोः꣢꣯ ॥९४३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सो꣡मः꣢꣯ । प꣣वते । जनिता꣢ । म꣣तीना꣢म् । ज꣣निता꣢ । दि꣣वः꣢ । ज꣣निता꣢ । पृ꣣थिव्याः꣢ । ज꣣निता꣢ । अ꣣ग्नेः꣢ । ज꣣निता꣢ । सू꣡र्य꣢꣯स्य । ज꣣निता꣢ । इ꣡न्द्र꣢꣯स्य । ज꣣नि꣢ता । उ꣣त꣢ । वि꣡ष्णोः꣢꣯ ॥९४३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमः पवते जनिता मतीनां जनिता दिवो जनिता पृथिव्याः । जनिताग्नेर्जनिता सूर्यस्य जनितेन्द्रस्य जनितोत विष्णोः ॥९४३॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सोमः । पवते । जनिता । मतीनाम् । जनिता । दिवः । जनिता । पृथिव्याः । जनिता । अग्नेः । जनिता । सूर्यस्य । जनिता । इन्द्रस्य । जनिता । उत । विष्णोः ॥९४३॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 943
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 1
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 6; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में क्रमाङ्क ५२७ पर परमात्मा के विषय में व्याख्यात हो चुकी है। यहाँ भी वही विषय वर्णित है।

    पदार्थ

    (सोमः) सकल जगत् का उत्पत्तिकर्ता परमेश्वर (पवते) सर्वगत है, सर्वान्तर्यामी है, जो (मतीनाम्) बुद्धियों का (जनिता) उत्पादक, (दिवः) द्युलोक का (जनिता) उत्पादक, (पृथिव्याः) पृथ्वीलोक का (जनिता) उत्पादक, (अग्नेः) आग का (जनिता)उत्पादक, (सूर्यस्य) सूर्य का (जनिता) उत्पादक, (इन्द्रस्य) बिजली का (जनिता) उत्पादक, (उत) और (विष्णोः) व्यापक सूत्रात्मा प्राण का (जनिता) उत्पादक है ॥१॥

    भावार्थ

    परमात्मा ने ही इन लोकलोकान्तरों को और उनमें स्थित सब अद्भुत पदार्थों को रचा है, क्योंकि जो भी उत्पन्न होता है, उसका कर्ता अवश्य होता है, यह नियम है और हम जैसे लोगों में जगत् के रचने का सामर्थ्य नहीं है ॥१॥

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    टिप्पणी

    (देखो अर्थव्याख्या मन्त्र संख्या ५२७)

    विशेष

    ऋषिः—प्रतर्दनः (कामादि दोषों का निराकरणकर्ता)॥ देवता—सोमः (शान्तस्वरूप परमात्मा)॥ छन्दः—उष्णिक्॥<br>

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    पदार्थ

    ५२७ संख्या पर मन्त्रार्थ द्रष्टव्य है ।
     

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    पदार्थ

    शब्दार्थ = ( सोमः ) = सकल जगत् उत्पादक, सत्कर्मों में प्रेरक, शान्त स्वरूप अन्तर्यामी परमात्मा जोकि ( मतीनां जनिता ) = बुद्धियों का उत्पादक  ( दिवो जनिता ) = द्युलोक का उत्पादक  ( पृथिव्याः जनिता ) = पृथिवी का उत्पादक  ( अग्ने जनिता ) = अग्नि का उत्पादक  ( सूर्यस्य जनिता ) = सूर्य का उत्पादक  ( इन्द्रस्य जनिता ) = बिजुली का उत्पादक  ( उत विष्णोः जनिता जनयिता ) = और यज्ञ का उत्पादक है  ( पवते ) = ऐसा प्रभु धार्मिक विद्वान् महात्माओं को प्राप्त होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ = पृथिवी सूर्य आदि सब लोक लोकान्तर और सब ब्रह्माण्डों को उत्पन्न करनेवाला महासमर्थ प्रभु अपने प्यारे धार्मिक और परोपकारी योगी भक्तजनों को प्राप्त होते हैं, अन्य को नहीं । 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ५२७ क्रमाङ्के परमात्मविषये व्याख्याता। अत्रापि स एव विषयो वर्ण्यते।

    पदार्थः

    (सोमः) सकलजगदुत्पादकः परमेश्वरः (पवते) सर्वत्र गच्छति, सर्वान्तर्यामी अस्ति। [पवते गतिकर्मा निघं० २।१४] यः (मतीनाम्) बुद्धीनां (जनिता) जनयिता, (दिवः) द्युलोकस्य (जनिता) जनयिता, (पृथिव्याः) पृथिवीलोकस्य (जनिता) जनयिता, (अग्नेः) वह्नेः(जनिता) जनयिता, (सूर्यस्य) आदित्यस्य (जनिता)जनयिता, (इन्द्रस्य) विद्युतः (जनिता) जनयिता, (उत) अपि च (विष्णोः) व्यापकस्य सूत्रात्मनः प्राणस्य (जनिता) जनयिता वर्तते ॥१॥

    भावार्थः

    परमात्मनैवेमानि लोकलोकान्तराणि तत्रस्थाः सर्वेऽद्भुताः पदार्थाश्च रचिताः सन्ति, यदुत्पद्यते तस्य कर्त्ताऽवश्यमस्तीति नियमाद्, अस्मादृशां च जगत्कर्तृत्वसामर्थ्याभावात् ॥१॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।९६।५, साम० ५२७।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The soul manifests itself as the Creator of all mental feelings, the Creator of light like the Sun, the Creator of skin extended like the earth, the Creator of fire-like speech, the Creator of sun-like eye, the Creator of Praga, and the Creator of space-like ear.

    Translator Comment

    See verse 527.

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    Meaning

    Soma, spirit of divine peace, power and generous creativity, flows and purifies universally. It is generator of heavens, maker of the earth and creator of the nobilities of sagely wisdom, generator of fire, maker of the stars, manifester of its own omnipotence, and manifester of the omnipresence of its own self in expansive space. (Rg. 9-96-5)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (सोमः पवते) શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મા આનંદરૂપ ધારામાં ઉપાસકોને પ્રાપ્ત થાય છે, તે (मतीनां जनिता) ઉપાસકોની અંદર મતિઓ-બુદ્ધિઓનો જનક છે, માત્ર તેમજ નહીં પરન્તુ (दिवः जनिता) દ્યુલોકનો જનક ઉત્પાદક છે. (पृथिव्याः जनिता) પૃથિવીલોકનો જનક, (अग्नेः जनिता) અગ્નિનો જનક, (सूर्यस्य जनिता) સૂર્યનો જનક, (इन्द्रस्य जनिता) વિદ્યુત્ નો પણ જનક છે (उत) અને (विष्णोः जनिता) વ્યાપક આકાશ વાયુસહિતનો પણ જનક-ઉત્પન્ન કરનાર છે. (૫)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्म्यानेच या लोकलोकान्तरांना व त्यात स्थित सर्व अद्भुत पदार्थांना निर्माण केलेले आहे, कारण जे उत्पन्न होते त्याचा कर्ता अवश्य असतो, हा नियम आहे व आमच्यामध्ये जग निर्माण करण्याचे सामर्थ्य नाही. ॥१॥

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