अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 12/ मन्त्र 4
ऋषिः - भृग्वङ्गिराः
देवता - यक्ष्मनाशनम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - यक्ष्मनाशन सूक्त
109
शं मे॒ पर॑स्मै॒ गात्रा॑य॒ शम॒स्त्वव॑राय मे। शं मे॑ च॒तुर्भ्यो॒ अङ्गे॑भ्यः॒ शम॑स्तु त॒न्वे॑३ मम॑ ॥
स्वर सहित पद पाठशम् । मे॒ । पर॑स्मै । गात्रा॑य । शम् । अ॒स्तु॒ । अव॑राय । मे॒ ।शम् । मे॒ । च॒तु:ऽभ्य॑: । अङ्गे॑भ्य: । शम् । अ॒स्तु॒ । त॒न्वे । मम॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
शं मे परस्मै गात्राय शमस्त्ववराय मे। शं मे चतुर्भ्यो अङ्गेभ्यः शमस्तु तन्वे३ मम ॥
स्वर रहित पद पाठशम् । मे । परस्मै । गात्राय । शम् । अस्तु । अवराय । मे ।शम् । मे । चतु:ऽभ्य: । अङ्गेभ्य: । शम् । अस्तु । तन्वे । मम ॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
रोगनिवृत्ति का उपदेश।
पदार्थ
(मे) मेरे (परस्मै) ऊपर के (गात्राय) शरीर के लिये (शम्) सुख और (मे) मेरे (अवराय) नीचे के शरीर के लिये (शम्) सुख (अस्तु) होवे। (मे) मेरे (चतुर्भ्यः) चारों (अङ्गेभ्यः) अङ्गों के लिये (शम्) सुख और (मम) मेरे (तन्वे) सब शरीर के लिये (शम्) सुख (अस्तु) होवे ॥४॥
भावार्थ
चारों अङ्ग दो हाथ और दो पद हैं। मनुष्य को योग्य है कि परमेश्वर की प्रार्थनापूर्वक अपने सब अमूल्य शरीर को प्रयत्न से सर्वथा स्वस्थ रक्खे और मानसिक बल बढ़ा कर संसार में उपकारी हो और सदा सुख भोगे ॥४॥
टिप्पणी
४−परस्मै। १।८।३। श्रेष्ठाय, उपरि वर्तमानाय। गात्राय। गमेरा च। उ० ४।१६९। इति गम्लृ-त्रन्, मस्य आकारः। गच्छति चेष्टतेऽनेन। अङ्गाय, शरीराय। अवराय। १।८।३। निकृष्टाय, अवस्ताद् वर्तमानाय। चतुः-भ्यः। चतुःसंख्येभ्यः। द्वौ हस्तौ, द्वौ पादौ−इति चत्वारि तेभ्यः। अङ्गेभ्यः। अङ्ग पदे=गतौ-अच्। अङ्गयति चेष्टतेऽनेन। अवयवेभ्यः, गात्रेभ्यः। तन्वे। म० १। शरीराय सर्वस्मै ॥
विषय
चारों अङ्गों में शान्ति
पदार्थ
१. (मे) = मेरे (परस्मै गात्राय) = शरीर के ऊपर के अङ्गों के लिए (शम्) = शान्ति (अस्तु) = हो। (मे) = मेरे (अवराय) = शरीर के निचले अङ्गों के लिए भी (शम् अस्तु) = शान्ति हो। सूर्य-किरणों का सेवन मेरे एक-एक अङ्ग को नीरोग व शान्त बनाए। सूर्य-किरणों का सेवन शरीर के उपद्रवों को दूर करनेवाला हो। २. (मे) = मेरे (चतुर्थ्य:) = चारों (अङ्गेभ्य:) = अङ्गों के लिए (शम् अस्तु) = शान्ति हो। 'सिर, छाती, उदर व टाँगे-स्थूलतया ये शरीर के चार अङ्गहैं। समाज-शरीर में ये ही 'ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र' कहलाते हैं। मेरे ये चारों ही अङ्ग शान्त व निरुपद्रव हों। इनके ठीक होने पर ही (मम तन्वे शम्) = मेरा सम्पूर्ण शरीर नीरोग, स्वस्थ और शान्त हो।
भावार्थ
सूर्य-किरणों का सेवन शरीर के सब अङ्गों को शान्त और निरुपद्रव बनाता है।
विशेष
सूक्त के प्रथम मन्त्र में सूर्य को रोगों को नष्ट करनेवाला कहा है [१]। यह रोगों को काट देता है [२]। सिरदर्द, खाँसी व सन्धिपीड़ा से मुक्त करता है [३]। शरीर के चारों अङ्गों को शान्त रखता है। इन सूर्य-किरणों का व हवि का ही सेवन करनेवाला यह व्यक्ति भृगु है, 'भ्रस्ज पाके' अपनी शक्तियों का ठीक से परिपाक करता है और अपने सब अङ्गों को नीरोग बनाकर 'अङ्गिरस' बनता है-एक-एक अङ्ग में रसवाला-लोच व लचकवाला। यह "भृगु-अङ्गिराः' ही १२ से १४ तक के सूक्तों का ऋषि है। १३वें सूक्त में यह ईश्वर के प्रति नमन करता हुआ प्रार्थना करता है कि -
भाषार्थ
(मे) मेरे (परस्मै) ऊपर के (गात्राय) शिरोभूत अङ्ग के लिये (शम्) सुख हो, (मे) मेरे (अवराय) नीचे के गात्र के लिये ( शम् अस्तु) सुख हो। (मे) मेरे (चतुर्भ्यः अङ्गेभ्यः) चारों अङ्गों दो टाँगों, दो वाहुओं के लिये, (मम) तथा मेरी (तन्वे) तनू के लिये (शम् अस्तु) सुख हो ।
टिप्पणी
[अवर गात्र है ग्रीवा से नीचे कटि तक। शम् सुखनाम (निघं० ३।६)।]
विषय
उत्तम नीरोग सन्तति ।
भावार्थ
( मे ) मेरे ( परस्मै ) उत्कृष्ट ( गात्राय ) शरीर के उत्तम भाग अर्थात् शिर के लिये ( शं ) कल्याण और सुख हो । ( मे ) मेरे (अवराय) नीचे के भाग अर्थात् छाती, हाथ तथा पेट आदि को भी ( शम् अस्तु ) सुख हो। ( मे ) मेरे ( चतुर्भ्यः ) चारों ( अङ्गेभ्यः ) अंगों अर्थात् दो बाहु तथा दो टांगों को भी ( शं ) सुख हो । ( मम ) मेरे ( तन्वे ) समस्त शरीर को भी ( शम् अस्तु ) सुख हो । समाज की दृष्टि से चारों वर्गों और अपने शरीर के चारों भागों के कल्याण की प्रार्थना की गई है ।
टिप्पणी
‘शे ते परेभ्यो गात्रेभ्यः शमस्त्ववरेभ्यः । शमस्थभ्यो मज्जभ्यः शम्वन्तु तन्वै तन। ’ इतिः यजु०। ( च० ) शमते तनुवे भवत् । इति तै० सं० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृगवंगिराः ऋषिः। यक्ष्मनाशनो देवता। १,३ जागतं छन्दः । ४ अनुष्टुप चतुऋचं सक्तम् ।
इंग्लिश (4)
Subject
Lavation of Disease
Meaning
May there be health and well being for the upper parts of my body system. May there be peace and well being for the lower parts of my body system. May there be good health for all the four parts of my body. May there be peace, good health and total well being for the whole body, mind and soul of my life system.
Translation
May it be well with the upper part of mine.May it be well with the lower part of mine. May it be well with four limbs of mine. May the whole of my body, be in perfect health.
Translation
Let be well with my upper part of the body, let it go well with my lower frame, let it be pleasant for my four body parts and let, thus, it be auspicious to whole my body.
Translation
Calm be it with my upper frame, calm be it with my lower parts. With my four limbs let there be calm. Let all my body be in health.
Footnote
Four limbs: Two hands, two feet, or two arms and two legs. This is a prayer offered to God by an ordinary man, for health and welfare.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−परस्मै। १।८।३। श्रेष्ठाय, उपरि वर्तमानाय। गात्राय। गमेरा च। उ० ४।१६९। इति गम्लृ-त्रन्, मस्य आकारः। गच्छति चेष्टतेऽनेन। अङ्गाय, शरीराय। अवराय। १।८।३। निकृष्टाय, अवस्ताद् वर्तमानाय। चतुः-भ्यः। चतुःसंख्येभ्यः। द्वौ हस्तौ, द्वौ पादौ−इति चत्वारि तेभ्यः। अङ्गेभ्यः। अङ्ग पदे=गतौ-अच्। अङ्गयति चेष्टतेऽनेन। अवयवेभ्यः, गात्रेभ्यः। तन्वे। म० १। शरीराय सर्वस्मै ॥
बंगाली (3)
पदार्थ
(মে) আমার (পরস্মৈ) উপরের (গাত্রায়) শরীরের জন্য (শং) সুখ এবং (মে) আমার (অবরাষ) নীচের শরীরের জন্য (শং) সুখ (অস্ত্র) হউক । (মে) আমার (চতুর্ভঃ) চারি (অঙ্গেভ্যঃ) অঙ্গের জন্য (শং) সুখ এবং (মম) আমার (তন্বে) সব শরীরের জন্য (শম্) সুখ (অদ্ভু) হউক ।।
भावार्थ
আমার শরীরের উপরি ভাগ ও ম্লি ভাগ সুখপূর্ণ হউক। দুই হস্ত ও দুই পদ এই চারি অঙ্গ সুখপূর্ণ হউক, সর্ব শরীর সর্ব সুখপূর্ণ হউক।।
मन्त्र (बांग्ला)
শংমে পরস্মৈ গাত্রায় সমস্ত্ববরায় মে। শংমে চতুর্ত্যো অঙ্গেভ্যঃ শমস্তু তন্বে ৩ মম।।
ऋषि | देवता | छन्द
ভৃগ্বঙ্গিরাঃ। যক্ষ্মনাশনম্। অনুষ্টুপ্
मन्त्र विषय
(রোগনিবৃত্তঃ) রোগনিবৃত্তির উপদেশ
भाषार्थ
(মে) আমার (পরস্মৈ) উপরের (গাত্রায়) শরীরের জন্য (শম্) সুখ এবং (মে) আমার (অবরায়) নীচের শরীরের জন্য (শম্) সুখ (অস্তু) হোক। (মে) আমার (চতুর্ভ্যঃ) চার (অঙ্গেভ্যঃ) অঙ্গের জন্য (শম্) সুখ এবং (মম) আমার (তন্বে) সমস্ত শরীরের জন্য (শম্) সুখ (অস্তু) হোক ॥৪॥
भावार्थ
চার অঙ্গ দুই হাথ ও দুই পা। মানুষের উচিত, পরমেশ্বরের প্রার্থনাপূর্বক নিজের সমস্ত অমূল্য শরীরকে যথাসাধ্য সর্বদা সুস্থ রাখা এবং মানসিক বল বৃদ্ধি করে সংসারে উপকারী হওয়া এবং সদা সুখ ভোগ করা ॥৪॥
भाषार्थ
(মে) আমার (পরস্মৈ) উপরের (গাত্রায়) শিরোভূত অঙ্গের জন্য (শম্) সুখ হোক, (মে) আমার (অবরায়) নীচের গাত্রের জন্য (শম্ অস্তু) সুখ হোক। (মে) আমার (চতুর্ভ্যঃ অঙ্গেভ্যঃ) চার অঙ্গ দুই পা, দুই বাহুর জন্য, (মম) এবং আমার (তন্বে) তনূর জন্য (শম্ অস্তু) সুখ হোক ।
टिप्पणी
[অবর গাত্র হল গ্রীবা থেকে নীচে কটি পর্যন্ত। শম্ সুখনাম (নিঘং০ ৩।৬)।]
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