अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 14
ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - प्राजापत्या बृहती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
62
है॑म॒नौ मासौ॑गो॒प्तारा॒वकु॑र्व॒न्भूमिं॑ चा॒ग्निं चा॑नुष्ठा॒तारौ॑ ॥
स्वर सहित पद पाठहै॒म॒नौ । मासौ॑ । गो॒प्तारौ॑ । अकु॑र्वन् । भूमि॑म् । च॒ । अ॒ग्निम् । च॒ । अ॒नु॒ऽस्था॒तारौ॑ ॥४.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
हैमनौ मासौगोप्तारावकुर्वन्भूमिं चाग्निं चानुष्ठातारौ ॥
स्वर रहित पद पाठहैमनौ । मासौ । गोप्तारौ । अकुर्वन् । भूमिम् । च । अग्निम् । च । अनुऽस्थातारौ ॥४.१४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।
पदार्थ
(हैमनौ) शीतवाले [अग्रहायण-पौष] (मासौ) दो महीनों को (गोप्तारौ) दो रक्षक (अकुर्वन्) उन [विद्वानों] ने बनाया, (भूमिम्) भूमि (च च) और (अग्निम्) अग्नि [भौतिक अग्नि] को (अनुष्ठातारौ) दो अनुष्ठाता [साथ रहनेवाले वा कार्यसाधक] [बनाया] ॥१४॥
भावार्थ
मन्त्र १-३ के समान है॥१३-१५॥
टिप्पणी
१४, १५−(हैमनौ)सर्वत्राण् च तलोपश्च। पा० ४।३।२२। हेमन्त-अण्, तलोपः। शीतसम्बन्धिनौ।आग्रहायणपौषौ (भूमिम्) पृथिवीम् (अग्निम्) भौतिकाग्निम्। अन्यद् गतम् ॥
विषय
ध्रुवायाः दिशः
पदार्थ
१. (तस्मै) = उस व्रात्य विद्वान् के लिए (ध्रुवायाः दिश:) = ध्रुव दिशा से (हैमन्तौ मासौ) = हेमन्त ऋतु के दो मासों को सब देवों ने (गोप्तारौ अकुर्वन्) = रक्षक बनाया तथा (भूमिं च अग्निं च) = इस भूमिरूप शरीर को तथा शरीर में स्थित अग्निरूप शक्ति को (अनुष्ठातारौ) = विहित कार्यसाधक बनाया। इस व्रात्य का शक्तिसम्पन्न शरीर विहितानुष्ठान में प्रवृत्त हुआ। २. (य:) = जो व्रात्य (एवं वेद) = इसप्रकार भूमि व अग्नि के प्रयोजन को समझता है (एनम्) = इस व्रात्य को (हेमन्तौ मासौ) = हेमन्त ऋतु के दो मास (ध्रुवायाः दिश:) = ध्रुवा दिशा से (गोपायत:) = रक्षित करते हैं और (भूमिः च अग्निः च अनुतिष्ठत:) = शरीर व शरीरस्थ शक्ति विहित कर्मों के अनुष्ठान में प्रवृत्त करते हैं।
भावार्थ
व्रात्य विद्वान् ध्रुवा दिशा से हेमन्त ऋतु के दो मासों द्वारा रक्षित होता है तथा इस विद्वान् को शक्तिसम्पन्न शरीरविहित कार्य के अनुष्ठान में समर्थ करता है।
भाषार्थ
(हैमनौ) हेमन्त ऋतुसम्बन्धी (मासौ) दो मासों को [वैदिक विधियों ने] (गोप्तारौ) रक्षक (अकुर्वन) निर्दिष्ट किया है, (भूमि च) और भूमि को (अग्निम् च) तथा अग्नि को (अनुष्ठातारौ) व्रात्य संन्यासी के अनुष्ठानों को सिद्ध करने वाला निर्दिष्ट किया है।
विषय
व्रात्य प्रजापति का राजतन्त्र।
भावार्थ
(ध्रुवाया: दिशा:) ध्रुवा = नीचे की दिशा से (तस्मै) उसके लिये (हैमनौ मासौ) हेमन्त ऋतु के दोनों मासों को (गोप्तारौ अकुर्वन्) रक्षक कल्पित किया। (भूमिं च अग्निम् च अनुष्टातारौ) भूमि और अग्नि को उसके भृत्य कल्पित किया। (यः एवं वेदं) जो व्रात्य प्रजापति के इस प्रकार के स्वरूप को साक्षात् कर लेता है (एनम्) उसको (हैमनौ मासौ) हेमन्त ऋतु के दोनों मास (ध्रुवायाः दिशः) ‘ध्रुवा’ दिशा, अर्थात् भूमि की ओर से, नीचे से (गोपायतः) रक्षा करते हैं और (भूमिः च) भूमि और (अग्निः च) अग्नि (अनु तिष्ठतः) उसके भृत्य के समान काम करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१, ५, ६ (द्वि०) दैवी जगती, २, ३, ४ (प्र०) प्राजापत्या गायत्र्य, १ (द्वि०), ३ (द्वि०) आर्च्यनुष्टुभौ, १ (तृ०), ४ (तृ०) द्विपदा प्राजापत्या जगती, २ (द्वि०) प्राजापत्या पंक्तिः, २ (तृ०) आर्ची जगती, ३ (तृ०) भौमार्ची त्रिष्टुप, ४ (द्वि०) साम्नी त्रिष्टुप, ५ (द्वि०) प्राजापत्या बृहती, ५ (तृ०), ६ (तु०) द्विपदा आर्ची पंक्तिः, ६ (द्वि०) आर्ची उष्णिक्। अष्टादशर्चं चतुर्थ पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Vratya-Prajapati daivatam
Meaning
The Devas made the two winter months his security guards, and the earth and fire his assistants to carry out his will and command.
Translation
They made the two winter-months protectors and earth and fire attendants.:
Translation
Make the two months of winter his protectors and the earth and fire his superintendents.
Translation
The two winter months protect him from the region of the nadir, and earth and fire serve the man who possesses this knowledge of God.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१४, १५−(हैमनौ)सर्वत्राण् च तलोपश्च। पा० ४।३।२२। हेमन्त-अण्, तलोपः। शीतसम्बन्धिनौ।आग्रहायणपौषौ (भूमिम्) पृथिवीम् (अग्निम्) भौतिकाग्निम्। अन्यद् गतम् ॥
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