अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 2
ऋषिः - आदित्य
देवता - आर्ची अनुष्टुप्
छन्दः - ब्रह्मा
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
57
रु॒जश्च॑ मावे॒नश्च॒ मा हा॑सिष्टां मू॒र्धा च॑ मा॒ विध॑र्मा च॒ मा हा॑सिष्टाम् ॥
स्वर सहित पद पाठरु॒ज: । च॒ । मा॒ । वे॒न: । च॒ । मा । हा॒सि॒ष्टा॒म् । मू॒र्धा । च॒ । मा॒ । विऽध॑र्मा । च॒ । मा । हा॒सि॒ष्टा॒म् ॥३.२॥
स्वर रहित मन्त्र
रुजश्च मावेनश्च मा हासिष्टां मूर्धा च मा विधर्मा च मा हासिष्टाम् ॥
स्वर रहित पद पाठरुज: । च । मा । वेन: । च । मा । हासिष्टाम् । मूर्धा । च । मा । विऽधर्मा । च । मा । हासिष्टाम् ॥३.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।
पदार्थ
(रुजः) अन्धकारनाशकगुण (च च) और (वेनः) कमनीय गुण (मा) मुझे (मा हासिष्टाम्) दोनों न छोड़ें, (मूर्धा) मस्तक [मस्तकबल] (च च) और (विधर्मा) विविध प्रकार धारण करनेवाला आत्मा [आत्मबल] (मा) मुझे (मा हासिष्टाम्) दोनों कभी न छोड़ें ॥२॥
भावार्थ
मनुष्य अज्ञान के नाशसे अपने मस्तकबल अर्थात् विचार सामर्थ्य और आत्मबल को बढ़ाते रहें ॥२॥
टिप्पणी
२−(रुजः)रुजो भङ्गे-क। अन्धकारनाशको गुणः (च) (मा) माम् (वेनः) धापॄवस्यज्यतिभ्यो नः। उ०३।६। अज गतिक्षेपणयोः-न, वीभावः, अथवा वी कान्त्यादिषु-न। प्रापणीयः कमनीयो वागुणः (च) (मा हासिष्टाम्) न त्यजताम् (मूर्धा) मस्तकसामर्थ्यम् (च) (मा) माम् (विधर्मा) विविधधारक आत्मा (च) (मा हासिष्टाम्) ॥
विषय
रुजः-वेनी:
पदार्थ
१. (रुजः च) = [रुजो भंगे] शत्रुओं का विदारण (वेन: च) = और प्रभु का पूजन [वेन् worship] (मा) = मुझे (मा हासिष्टाम्) = मत छोड़ जाएँ। मैं सदा प्रभु का पूजन करनेवाला बनूं और प्रभु-पूजन द्वारा काम-क्रोधादि शत्रुओं का विदारण करूँ। २. (मूर्धा च) = मस्तिष्क (च) = और (विधर्मा च) = विशिष्ट धारणशक्ति (मा) = मुझे (मा हासिष्टाम्) = मत छोड़ जाएँ। ज्ञान मुझे धारण-शक्ति-सम्पन्न बनाए। ज्ञान के अभाव में ही मनुष्य धारणशक्ति से रहित होकर 'पा-गल' हो जाता है। [पा-रक्षण, गल-च्युत]।
भावार्थ
मैं जीवन में प्रभुपूजन करता हुआ शत्रुओं का विदारण करनेवाला बनूँ तथा मस्तिष्क को स्वस्थ रखता हुआ ज्ञान द्वारा विशिष्ट धारणशक्तिवाला हो।
भाषार्थ
(रुजः, च) अविद्या तथा रागद्वेषादि ग्रन्थियों को तोड़ना, (वेनः, च) और तदर्थ ज्ञान (मा) मुझे (मा) न (हासिष्टाम्) त्यागें, (मूर्धा, च) मुखियापन (विधर्मा, च) और विविध गुणों या प्रजा का धारण-पोषण करना (मा, मा, हासिष्टाम्) मेरा त्याग न करें।
टिप्पणी
[रुजः= रुज् भङ्गे। वेनः= वेनृ ज्ञाने, निशामने। हासिष्टाम्= ओहाक् त्यागे। विधर्मा=वि+धृ (धारणपोषणयोः)। अर्थात् सम्पत्तियों को प्राप्त कर मैं अन्यों का धारण-पोषण करुं]
विषय
एैश्वर्य उपार्जन।
भावार्थ
(रुजः = रुचः च) नाना प्रकार की कान्तियां और तेज या रुजः शत्रुओं का हिंसाकारी बल और (वेनः च) प्रकाश ये दोनों (मा मा हासिष्टां) मुझे कभी न छोड़ें। (मूर्धा च) शिर और (विधर्मा च) नाना प्रकार का धारक बल भी (मा मा हासिष्टाम्) मुझे कभी परित्याग न करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्माऋषिः। आदित्यो देवता। १ आसुरी गायत्री, २, ३ आर्च्यनुष्टुभौ, ५ प्राजापत्या त्रिष्टुप्, ५ साम्नी उष्णिक, ६ द्विपदा साम्नी त्रिष्टुप्। षडृयं तृतीयं पर्यायसूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Atma-Aditya Devata
Meaning
Let the splendour and power to break down evil, and the lustre and light of divine knowledge, never forsake me. Let wisdom and love of Dharma never forsake me.
Translation
May lustre and desire not desert me; may the summit and circumference (vidharma) not desert me.
Translation
Let not splendor and intelligence leave me and let not the head (brain) and various capacities of righteousness leave me.
Translation
Let not dignity and loveliness desert me. Let not the intellectual power and spiritual power forsake me.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(रुजः)रुजो भङ्गे-क। अन्धकारनाशको गुणः (च) (मा) माम् (वेनः) धापॄवस्यज्यतिभ्यो नः। उ०३।६। अज गतिक्षेपणयोः-न, वीभावः, अथवा वी कान्त्यादिषु-न। प्रापणीयः कमनीयो वागुणः (च) (मा हासिष्टाम्) न त्यजताम् (मूर्धा) मस्तकसामर्थ्यम् (च) (मा) माम् (विधर्मा) विविधधारक आत्मा (च) (मा हासिष्टाम्) ॥
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