अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 4
ऋषिः - आदित्य
देवता - प्राजापत्या त्रिष्टुप्
छन्दः - ब्रह्मा
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
45
वि॑मो॒कश्च॑मा॒र्द्रप॑विश्च॒ मा हा॑सिष्टामा॒र्द्रदा॑नुश्च मा मात॒रिश्वा॑ च॒ माहा॑सिष्टाम् ॥
स्वर सहित पद पाठवि॒ऽमो॒क: । च॒ । मा॒ । आ॒र्द्रऽप॑वि: । च॒ । मा । हा॒सि॒ष्टा॒म् । आ॒र्द्रऽदा॑नु: । च॒ । मा॒ । मा॒त॒रिश्वा॑ । च॒ । मा । हा॒सि॒ष्टा॒म् ॥३.४॥
स्वर रहित मन्त्र
विमोकश्चमार्द्रपविश्च मा हासिष्टामार्द्रदानुश्च मा मातरिश्वा च माहासिष्टाम् ॥
स्वर रहित पद पाठविऽमोक: । च । मा । आर्द्रऽपवि: । च । मा । हासिष्टाम् । आर्द्रऽदानु: । च । मा । मातरिश्वा । च । मा । हासिष्टाम् ॥३.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।
पदार्थ
(विमोकः) विमुक्तकरनेवाला गुण (च च) और (आर्द्रपविः) गतिशोधक गुण (मा) मुझे (मा हासिष्टाम्)दोनों न छोड़ें, (आर्द्रदानुः) याचकों का पालनेवाला गुण (च च) और (मातरिश्वा)ऐश्वर्य में बढ़नेवाला गुण (मा) मुझे (मा हासिष्टाम्) दोनों न छोड़ें ॥४॥
भावार्थ
मनुष्य दुःखों सेछूटकर उद्योग करें और अधिकारी याचकों का पालन करके वैभव बढ़ावें ॥४॥
टिप्पणी
४−(विमोकः)मुच्लृ मोचने-घञ् कुत्वं च। दुःखविमोचको गुणः (च) (मा) माम् (आर्द्रपविः)अर्देर्दीर्घश्च। उ० २।१८। अर्द गतौ याचने हिंसायां च-रक्+अच इः। उ० ४।१३९। पूञ्शोधने-इ प्रत्ययः। गतिशोधको गुणः (च) (मा हासिष्टाम्) न त्यजताम् (आर्द्रदानुः)अर्द याचने-रक्+दाभाभ्यां नुः। उ० ३।३२। देङ् पालने-नु। याचकपालको गुणः (मातरिश्वा) माता लक्ष्मीः, वैभवम्। श्वन्नुक्षन्पूषन्०। उ० १।१५९। मातरि+टुओश्वि गतिवृद्ध्योः-कनिन् डित्। मातरि वैभवे ऐश्वर्ये प्रवर्धको गुणः। अन्यत्पूर्ववत् ॥
विषय
आर्द्रपवि:-आर्द्रदानुः
पदार्थ
१. (विमोकः च) = काम-क्रोधादि शत्रुओं से छुटकारा (च) = और (आर्द्रपवि:) = शत्ररूधिर से क्लिन्न वज्र (मा) = मुझे (मा हासिष्टाम्) = मत छोड़ जाएँ, अर्थात् मैं काम आदि से सदा मुक्त रहूँ और अपने क्रियाशीलतारूप वज्र के द्वारा शत्रुओं का संहार करनेवाला बनूं। २. (आर्द्रपवि: च) = स्नेहाई हृदय से युक्त दानवृत्ति (च) = और (मातरिश्वा) = वेदमाता में गति व वृद्धि, अर्थात् वेद की प्रेरणा के अनुसार कार्यों को करते हुए उन्नत होना (मा) = मुझे (मा हासिष्टाम्) = मत छोड़ जाएँ। मैं दानवृत्ति व वेदानुकूल आचरण को अपनानेवाला बनूं।
भावार्थ
'काम-क्रोध आदि शत्रुओं से छुटकारा', "क्रियाशीलतारूप व्रज द्वारा शन्नुसंहार', 'स्नेहपूर्वक दानवृत्ति', तथा 'वेदानुकूल आचरण' ये बातें सदा मेरे जीवन में हों।
भाषार्थ
(विमोकः,च) विमोक्ष (आर्द्रपविः, च) और सरस या स्नेहार्द्र वाणी (मा) मुझे (मा हासिष्टाम्) न त्यागें, (आर्द्रदानुः) दयार्द्र तथा स्नेहार्द्र हृदय से दिया दान (मातरिश्वा, च) और माता में शिशु को वढ़ाने या जीवन प्रदान करने वाला परमेश्वर (मा) मुझे (मा) न (हासिष्टाम्) त्यागें।
टिप्पणी
[मातरिश्वा= मातरि+टुओश्वि + गतिवृद्ध्योः। मातरि श्वसिति जीवयति वा (उणा० १।१५ओ)। विमोकः=वि+मोकः (मुच्लृ मोक्षणे, मुच प्रमोचने), जन्म-मरण से छुटकारा; मुक्ति। पविः= वाङ्नाम (निघं० १।११)। दानुः=दान। यथा "यवं न वृष्टि र्दिव्येन दानुना" (अथर्व० २०।१७।७)। तथा दानुनस्पती= दानपती (निरु० २।४।१३)। मातरिश्वा=अथवा प्राणवायु "मातरि अन्तरिक्षे श्वसिति, मातरि आशु अनिति वा" (निरु० ७।७।२६), अर्थात् मैं दीर्घायुः होऊं]
विषय
एैश्वर्य उपार्जन।
भावार्थ
(विमोकः च) जलधाराएं बरसाने वाला मेघ और (आर्द्रपविः च) जलप्रद बादल की वाणी, गर्जनशील विद्युत् (मा मा हासिष्टाम्) मुझे परित्याग न करें। (आर्द्रदानुः) जलों को देने वाले मेघ को ला देने वाला और (मातरिश्वा च) अन्तरिक्षगामी वायु भी (मा मा हासिष्टाम्) मुझे न छोड़ें।
टिप्पणी
एष [ वायुः ] ह्यार्द्रं ददाति इति आर्द्रदानुः। श० ६। ४। २। ५॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्माऋषिः। आदित्यो देवता। १ आसुरी गायत्री, २, ३ आर्च्यनुष्टुभौ, ५ प्राजापत्या त्रिष्टुप्, ५ साम्नी उष्णिक, ६ द्विपदा साम्नी त्रिष्टुप्। षडृयं तृतीयं पर्यायसूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Atma-Aditya Devata
Meaning
Let the lord giver of Moksha and the moving wheel never forsake me. Let abundant flowing generosity and life giving cosmic wind never forsake me.
Translation
May not the (hurling) shooting and the moist arrow desert me; may not the granter of moisture and the atmospheric wind desert me.
Translation
Let not the rair-causing cloud and moistening lightning desert me and let not sender of moisture and air for sake me.
Translation
Let not the raining cloud and the thundering lightning desert. Let not charity to the suppliant and ever growing prosperity forsake me.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(विमोकः)मुच्लृ मोचने-घञ् कुत्वं च। दुःखविमोचको गुणः (च) (मा) माम् (आर्द्रपविः)अर्देर्दीर्घश्च। उ० २।१८। अर्द गतौ याचने हिंसायां च-रक्+अच इः। उ० ४।१३९। पूञ्शोधने-इ प्रत्ययः। गतिशोधको गुणः (च) (मा हासिष्टाम्) न त्यजताम् (आर्द्रदानुः)अर्द याचने-रक्+दाभाभ्यां नुः। उ० ३।३२। देङ् पालने-नु। याचकपालको गुणः (मातरिश्वा) माता लक्ष्मीः, वैभवम्। श्वन्नुक्षन्पूषन्०। उ० १।१५९। मातरि+टुओश्वि गतिवृद्ध्योः-कनिन् डित्। मातरि वैभवे ऐश्वर्ये प्रवर्धको गुणः। अन्यत्पूर्ववत् ॥
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