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अथर्ववेद के काण्ड - 16 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 4
    ऋषिः - आदित्य देवता - प्राजापत्या त्रिष्टुप् छन्दः - ब्रह्मा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
    45

    वि॑मो॒कश्च॑मा॒र्द्रप॑विश्च॒ मा हा॑सिष्टामा॒र्द्रदा॑नुश्च मा मात॒रिश्वा॑ च॒ माहा॑सिष्टाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒ऽमो॒क: । च॒ । मा॒ । आ॒र्द्रऽप॑वि: । च॒ । मा । हा॒सि॒ष्टा॒म् । आ॒र्द्रऽदा॑नु: । च॒ । मा॒ । मा॒त॒रिश्वा॑ । च॒ । मा । हा॒सि॒ष्टा॒म् ॥३.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विमोकश्चमार्द्रपविश्च मा हासिष्टामार्द्रदानुश्च मा मातरिश्वा च माहासिष्टाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विऽमोक: । च । मा । आर्द्रऽपवि: । च । मा । हासिष्टाम् । आर्द्रऽदानु: । च । मा । मातरिश्वा । च । मा । हासिष्टाम् ॥३.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 3; मन्त्र » 4
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    हिन्दी (4)

    विषय

    आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (विमोकः) विमुक्तकरनेवाला गुण (च च) और (आर्द्रपविः) गतिशोधक गुण (मा) मुझे (मा हासिष्टाम्)दोनों न छोड़ें, (आर्द्रदानुः) याचकों का पालनेवाला गुण (च च) और (मातरिश्वा)ऐश्वर्य में बढ़नेवाला गुण (मा) मुझे (मा हासिष्टाम्) दोनों न छोड़ें ॥४॥

    भावार्थ

    मनुष्य दुःखों सेछूटकर उद्योग करें और अधिकारी याचकों का पालन करके वैभव बढ़ावें ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(विमोकः)मुच्लृ मोचने-घञ् कुत्वं च। दुःखविमोचको गुणः (च) (मा) माम् (आर्द्रपविः)अर्देर्दीर्घश्च। उ० २।१८। अर्द गतौ याचने हिंसायां च-रक्+अच इः। उ० ४।१३९। पूञ्शोधने-इ प्रत्ययः। गतिशोधको गुणः (च) (मा हासिष्टाम्) न त्यजताम् (आर्द्रदानुः)अर्द याचने-रक्+दाभाभ्यां नुः। उ० ३।३२। देङ् पालने-नु। याचकपालको गुणः (मातरिश्वा) माता लक्ष्मीः, वैभवम्। श्वन्नुक्षन्पूषन्०। उ० १।१५९। मातरि+टुओश्वि गतिवृद्ध्योः-कनिन् डित्। मातरि वैभवे ऐश्वर्ये प्रवर्धको गुणः। अन्यत्पूर्ववत् ॥

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    विषय

    आर्द्रपवि:-आर्द्रदानुः

    पदार्थ

    १. (विमोकः च) = काम-क्रोधादि शत्रुओं से छुटकारा (च) = और (आर्द्रपवि:) = शत्ररूधिर से क्लिन्न वज्र (मा) = मुझे (मा हासिष्टाम्) = मत छोड़ जाएँ, अर्थात् मैं काम आदि से सदा मुक्त रहूँ और अपने क्रियाशीलतारूप वज्र के द्वारा शत्रुओं का संहार करनेवाला बनूं। २. (आर्द्रपवि: च) = स्नेहाई हृदय से युक्त दानवृत्ति (च) = और (मातरिश्वा) = वेदमाता में गति व वृद्धि, अर्थात् वेद की प्रेरणा के अनुसार कार्यों को करते हुए उन्नत होना (मा) = मुझे (मा हासिष्टाम्) = मत छोड़ जाएँ। मैं दानवृत्ति व वेदानुकूल आचरण को अपनानेवाला बनूं।

    भावार्थ

    'काम-क्रोध आदि शत्रुओं से छुटकारा', "क्रियाशीलतारूप व्रज द्वारा शन्नुसंहार', 'स्नेहपूर्वक दानवृत्ति', तथा 'वेदानुकूल आचरण' ये बातें सदा मेरे जीवन में हों।

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    भाषार्थ

    (विमोकः,च) विमोक्ष (आर्द्रपविः, च) और सरस या स्नेहार्द्र वाणी (मा) मुझे (मा हासिष्टाम्) न त्यागें, (आर्द्रदानुः) दयार्द्र तथा स्नेहार्द्र हृदय से दिया दान (मातरिश्वा, च) और माता में शिशु को वढ़ाने या जीवन प्रदान करने वाला परमेश्वर (मा) मुझे (मा)(हासिष्टाम्) त्यागें।

    टिप्पणी

    [मातरिश्वा= मातरि+टुओश्वि + गतिवृद्ध्योः। मातरि श्वसिति जीवयति वा (उणा० १।१५ओ)। विमोकः=वि+मोकः (मुच्लृ मोक्षणे, मुच प्रमोचने), जन्म-मरण से छुटकारा; मुक्ति। पविः= वाङ्नाम (निघं० १।११)। दानुः=दान। यथा "यवं न वृष्टि र्दिव्येन दानुना" (अथर्व० २०।१७।७)। तथा दानुनस्पती= दानपती (निरु० २।४।१३)। मातरिश्वा=अथवा प्राणवायु "मातरि अन्तरिक्षे श्वसिति, मातरि आशु अनिति वा" (निरु० ७।७।२६), अर्थात् मैं दीर्घायुः होऊं]

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    विषय

    एैश्वर्य उपार्जन।

    भावार्थ

    (विमोकः च) जलधाराएं बरसाने वाला मेघ और (आर्द्रपविः च) जलप्रद बादल की वाणी, गर्जनशील विद्युत् (मा मा हासिष्टाम्) मुझे परित्याग न करें। (आर्द्रदानुः) जलों को देने वाले मेघ को ला देने वाला और (मातरिश्वा च) अन्तरिक्षगामी वायु भी (मा मा हासिष्टाम्) मुझे न छोड़ें।

    टिप्पणी

    एष [ वायुः ] ह्यार्द्रं ददाति इति आर्द्रदानुः। श० ६। ४। २। ५॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्माऋषिः। आदित्यो देवता। १ आसुरी गायत्री, २, ३ आर्च्यनुष्टुभौ, ५ प्राजापत्या त्रिष्टुप्, ५ साम्नी उष्णिक, ६ द्विपदा साम्नी त्रिष्टुप्। षडृयं तृतीयं पर्यायसूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Atma-Aditya Devata

    Meaning

    Let the lord giver of Moksha and the moving wheel never forsake me. Let abundant flowing generosity and life giving cosmic wind never forsake me.

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    Translation

    May not the (hurling) shooting and the moist arrow desert me; may not the granter of moisture and the atmospheric wind desert me.

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    Translation

    Let not the rair-causing cloud and moistening lightning desert me and let not sender of moisture and air for sake me.

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    Translation

    Let not the raining cloud and the thundering lightning desert. Let not charity to the suppliant and ever growing prosperity forsake me.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(विमोकः)मुच्लृ मोचने-घञ् कुत्वं च। दुःखविमोचको गुणः (च) (मा) माम् (आर्द्रपविः)अर्देर्दीर्घश्च। उ० २।१८। अर्द गतौ याचने हिंसायां च-रक्+अच इः। उ० ४।१३९। पूञ्शोधने-इ प्रत्ययः। गतिशोधको गुणः (च) (मा हासिष्टाम्) न त्यजताम् (आर्द्रदानुः)अर्द याचने-रक्+दाभाभ्यां नुः। उ० ३।३२। देङ् पालने-नु। याचकपालको गुणः (मातरिश्वा) माता लक्ष्मीः, वैभवम्। श्वन्नुक्षन्पूषन्०। उ० १।१५९। मातरि+टुओश्वि गतिवृद्ध्योः-कनिन् डित्। मातरि वैभवे ऐश्वर्ये प्रवर्धको गुणः। अन्यत्पूर्ववत् ॥

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