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अथर्ववेद के काण्ड - 16 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 30
    ऋषिः - दुःस्वप्ननासन देवता - यजुर्ब्राह्मी एकपदा अनुष्टुप्,त्रिपदा निचृत गायत्री छन्दः - यम सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
    45

    जि॒तम॒स्माक॒मुद्भि॑न्नम॒स्माक॑मृ॒तम॒स्माकं॒ तेजो॒ऽस्माकं॒ ब्रह्मा॒स्माकं॒स्वर॒स्माकं॑य॒ज्ञो॒ऽस्माकं॑ प॒शवो॒ऽस्माकं॑ प्र॒जा अ॒स्माकं॑ वी॒राअ॒स्माक॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    जि॒तम् । अ॒स्माक॑म् । उ॒त्ऽभि॑न्नम् । अ॒स्माक॑म् । ऋ॒तम् । अ॒स्माक॑म् । तेज॑: । अ॒स्माक॑म् । ब्रह्म॑ । अ॒स्माक॑म् । स्व᳡: । अ॒स्माक॑म् । य॒ज्ञ: । अ॒स्माक॑म् । प॒शव॑: । अ॒स्माक॑म् । प्र॒ऽजा: । अ॒स्माक॑म् । वी॒रा: । अ॒स्माक॑म् ॥८.३०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    जितमस्माकमुद्भिन्नमस्माकमृतमस्माकं तेजोऽस्माकं ब्रह्मास्माकंस्वरस्माकंयज्ञोऽस्माकं पशवोऽस्माकं प्रजा अस्माकं वीराअस्माकम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    जितम् । अस्माकम् । उत्ऽभिन्नम् । अस्माकम् । ऋतम् । अस्माकम् । तेज: । अस्माकम् । ब्रह्म । अस्माकम् । स्व: । अस्माकम् । यज्ञ: । अस्माकम् । पशव: । अस्माकम् । प्रऽजा: । अस्माकम् । वीरा: । अस्माकम् ॥८.३०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 8; मन्त्र » 30
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रु के नाश करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (जितम्) जय किया हुआवस्तु (अस्माकम्) हमारा, (उद्भिन्नम्) निकासी किया हुआ धन (अस्माकम्) हमारा, (ऋतम्) वेदज्ञान (अस्माकम्) हमारा, (तेजः) तेज (अस्माकम्) हमारा, (ब्रह्म) अन्न (अस्माकम्) हमारा, (स्वः) सुख (अस्माकम्) हमारा, (यज्ञः) यज्ञ [देवपूजा, संगतिकरण और दान] (अस्माकम्) हमारा, (पशवः) सब पशु [गौ, घोड़ा आदि] (अस्माकम्)हमारे, (प्रजाः) प्रजागण (अस्माकम्) हमारे और (वीराः) वीर लोग (अस्माकम्) हमारे [होवें]−[म० १] ॥३०॥

    भावार्थ

    विद्वान् धर्मवीर राजासुवर्ण आदि धन और सब सम्पत्ति का सुन्दर प्रयोग करे और अपने प्रजागण और वीरों कोसदा प्रसन्न रख कर कुमार्गियों को कष्ट देकर नाश करे॥३०॥

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    विषय

    शारीर 'रोगरूप' शत्रुओं का प्रतीकार

    पदार्थ

    १. हम विजय आदि दशों रत्नों को प्राप्त करें। इसी उद्देश्य से शरीर में उत्पन्न हो जानेवाले रोगरूप शत्रुओं को नष्ट करें। (सः) = वह रोगरूप शत्रु (वनस्पतीनां) = वनस्पतियों के (पाशात्) = पाशों से (मा मोचि) = मत मुक्त हो, अर्थात् बनस्पतियों का प्रयोग इन रोगों के नाश का कारण बने। (सः) = वह रोग (वानस्पत्यानाम्) = वनस्पति से प्राप्त पदार्थों के (पाशात् मा मोचि) = पाश से मत मुक्क हो, अर्थात् वानस्पत्य भोजनों को करते हुए हम रोगों का शिकार न हों। २. (सः) = वह रोग (ऋतूनाम्) = ऋतुओं के (पाशात्) = पाश से (मा मोचि) = मत मुक्त हो। ऋतुचर्या का ठीक से पालन हमें रोगाक्रान्त होने से बचाए। (सः) = बह रोग (आर्तवानाम्) = उस-उस ऋतु में होनेवाले पदार्थों के (पाशात् मा मोचि) = पाश से मत मुक्त हो। हम ऋतु के पदार्थों का प्रयोग करते हुए नीरोग बने रहें। ३. (सः) = वह व्याधि (मासानां) = मासों के (पाशात् मा मोचि) = पाश से मत मुक्त हो। इसीप्रकार (सः) = वह (अर्थमासानां) = अर्धमासों [पक्षों] के (पाशात् मा मोचि) = पाश से मत मुक्त हो। उस उस मास व पक्ष के अनुसार अपनी चर्या को करते हुए हम नौरोग बनें। ४. (सः) = यह रोग (अहोरात्र्यो:) = दिन-रात के (पाशात् मा मोचि) = पाश से मत मुक्त हो। (सः) = वह संयतो (अह्नो:) = [be formed in rows] क्रम में स्थित दिनों के (पाशात्) = पाश से (मा मोचि) = मत मुक्त हो। 'दिन के बाद रात और रात के बाद दिन' इसप्रकार दिन-रात चलते ही रहते हैं। दिन कार्य के लिए है और रात्रि आराम के लिए। इनके व्यवहार के ठीक होने पर रोगों से बचाव रहता है। यह 'काम और आराम' का क्रम टूटते ही रोग आने लगते हैं। 'रात्री जागरणं रूक्षं स्निग्धं प्रस्वपनं दिवा'। ५. (सः) = वह रोग (द्यावापृथिव्यो:) = द्यावापृथिवी के (पाशात् मा मोचि) = पाश से मत मुक्त हो। 'द्यावा' मस्तिष्क है, 'पृथिवी' शरीर है। हम इन्हें क्रमशः दीप्त व दृढ़ बनाएँ और इसप्रकार नीरोग जीवनवाले हों। (सः) = वह रोग (इन्द्राग्न्यो:) = इन्द्र और अग्नि के (पाशात् मा मोचि) = पाश से मत मुक्त हो। 'इन्द्र' जितेन्द्रियता का प्रतीक है, 'अग्नि' प्रगति का। जितेन्द्रियता व प्रगतिशीलता हमें नीरोग बनाएँ। (सः) = वह (मित्रावरुणयो:) = मित्र और वरुण के (पाशात् मा मोचि) = पाश से मत मुक्त हो। हम मित्र-स्नेहवाले व वरुण-निष बनकर रोगों के शिकार होने से बचें। (सः) = वह रोग राज्ञः वरुणस्य-राजा वरुण के (पाशात् मा मोचि) = पाश से मत मुक्त हो। 'राजा' का भाव है-व्यवस्थित जीवनवाला [well regulated] और अतएव वरुण-श्रेष्ठ व्यक्ति रोगों का शिकार नहीं होता। ६. (सः) = वह रोग (मृत्यो पड्बीशात्) = मृत्यु के पादबन्धनरूप (पाशात् मा मोचि) = पाश से मत मुक्त हो। जब हम इस बात को भूलते नहीं कि 'यस्त्वा मृत्युरभ्यधत्त जायमानं सुपाशया'। हमें पैदा होने के साथ ही मृत्यु उत्तम पाशों से जकड़ लेती है तो हम युक्ताहार-विहार करते हुए स्वस्थ बने रहते हैं और उन्नतिपथ पर आगे बढ़ते हैं।

    भावार्थ

    नीरोग बनने का मार्ग यह है कि [क] हम वानस्पतिक पदार्थों का ही सेवन करें। [ख] ऋतुचर्या का ध्यान करें। [ग] प्रत्येक मास व पक्ष का ध्यान करते हुए हमारा खान पान हो। [घ] दिन में सोएँ नहीं, रात्रि में जागें नहीं। [ङ] मस्तिष्क और शरीर दोनों का ध्यान करें। [च] जितेन्द्रिय व प्रगतिशील हों। [छ] स्नेह व निषता को अपनाएँ। [ज] व्यवस्थित जीवनवाले हों। [झ] मृत्यु को न भूल जाएँ।

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    भाषार्थ

    अर्थ पूर्ववत् (मन्त्र १)

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    विषय

    विजयोत्तर शत्रुदमन।

    भावार्थ

    (जितम्० इत्यादि) पूर्ववत्। (तस्मादमुम्० इत्यादि) पूर्ववत् (सः मृत्योः) वह मृत्यु के (पड्वीशात्) चरण में पड़ने वाले (पाशात्) पाश से (मा मोचि) छूटने न पावे। (तस्य इदं वर्च० इत्यादि) पूर्ववत् ऋचा १-४॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-२७ (प्र०) एकपदा यजुर्बाह्मनुष्टुभः, १-२७ (द्वि०) निचृद् गायत्र्यः, १ तृ० प्राजापत्या गायत्री, १-२७ (च०) त्रिपदाः प्राजापत्या स्त्रिष्टुभः, १-४, ९, १७, १९, २४ आसुरीजगत्य:, ५, ७, ८, १०, ११, १३, १८ (तृ०) आसुरीत्रिष्टुभः, ६, १२, १४, १६, २०, २३, २६ आसुरीपंक्तयः, २४, २६ (तृ०) आसुरीबृहत्यौ, त्रयस्त्रिशदृचमष्टमं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    What we have conquered from the external and internal enemy is ours. Whatever is broke open, discovered and recovered is ours. The splendour and glory is ours. Brahma, universal knowledge of the Veda, is ours. Svah, heavenly light, peace and joy is ours. Yajna, creative action, freedom of assembly and freedom of contribution is ours. Wealth and cattle, all is ours. The people are ours. The heroic brave are ours.

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    Translation

    Ours be the conquest; ours the rise up; ours the righteousness; ours the brilliance; ours the knowledge; ours the bliss; ours the sacrifice; ours the cattle; ours the progeny: ours be the heroic sons. (Same as XVI.8.1)

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    Translation

    May victory or whatever is gained be of ours; may the rise or the consequence of our ventures be of ours; may the truth or right be of ours; may the energy be of ours; may grain and science be of ours; may the light physical and spiritual be of ours; may the grain and science be of ours; may Yajna, the all deliberate activities of mind be of ours, may the animals be of ours; may off-springs be of ours, may the heroes be of ours.

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    Translation

    Let us be victorious. Let us be prosperous. Let us be truthful. Let us be energetic. Let us be learned. Let our soul advance. Let our sacrifice be fruitful. Let us own cattle. Let us progeny progress. Let us have brave soldiers.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

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