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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 40 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 40/ मन्त्र 3
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - बृहस्पतिः, विश्वे देवाः छन्दः - बृहत्यनुष्टुप् सूक्तम् - मेधा सूक्त
    68

    मा नो॑ मे॒धां मा नो॑ दी॒क्षां मा नो॑ हिंसिष्टं॒ यत्तपः॑। शि॒वा नः॒ शं स॒न्त्वायु॑षे शि॒वा भ॑वन्तु मा॒तरः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा। नः॒। मे॒धाम्। मा। नः॒। दी॒क्षाम्। मा। नः॒। हिं॒सि॒ष्ट॒म्। यत्। तपः॑। शि॒वाः। नः॒। शम्। स॒न्तु॒। आयु॑षे। शि॒वाः। भ॒व॒न्तु॒। मा॒तरः॑ ॥४०.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा नो मेधां मा नो दीक्षां मा नो हिंसिष्टं यत्तपः। शिवा नः शं सन्त्वायुषे शिवा भवन्तु मातरः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा। नः। मेधाम्। मा। नः। दीक्षाम्। मा। नः। हिंसिष्टम्। यत्। तपः। शिवाः। नः। शम्। सन्तु। आयुषे। शिवाः। भवन्तु। मातरः ॥४०.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 40; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    बुद्धि बढ़ाने का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे माता-पिता ! म०४] तुम दोनों (न) न तो (नः) हमारी (मेधाम्) धारणावती बुद्धि को, (मा)(नः) हमारी (दीक्षाम्) दीक्षा [नियम और व्रत की शिक्षा] को और (मा)(नः) हमारा (यत्) जो कुछ (तपः) तप [ब्रह्मचर्यादि] है, [उसको] (हिंसिष्टम्) नष्ट करो। (नः) हमारे (आयुषे) जीवन के लिये [वे प्रजाएँ] (शिवाः) कल्याणकारिणी और (शम्) शान्तिदायिनी (सन्तु) होवें, और (शिवाः) कल्याणकारिणी (मातरः) माताओं [के समान] (भवन्तु) होवें ॥३॥

    भावार्थ

    माता-पिता ऐसा प्रयत्न करें कि उनके सन्तान बुद्धिमान्, धर्मात्मा और सर्वहितैषी होवें, जिससे उनसे सब लोग माता के समान प्रीति करें ॥३॥

    टिप्पणी

    यह मन्त्र कुछ भेद से महर्षिदयानन्दकृत संस्कारविधि वानप्रस्थप्रकरण में व्याख्यात है ॥३−(मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (मेधाम्) धारणावतीं बुद्धिम् (मा) (नः) (दीक्षाम्) नियमव्रतयोः शिक्षाम् (मा) (नः) (हिंसिष्टम्) नाशयतं युवाम् (यत्) (तपः) ब्रह्मचर्यादितपश्चरणम् (शिवाः) मङ्गलकारिण्यः प्रजाः (नः) अस्माकम् (शम्) शान्तिदायिन्यः (सन्तु) (आयुषे) जीवनाय (शिवाः) मङ्गलप्रदाः (भवन्तु) (मातरः) जननीवद्धितकारिण्यः ॥

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    भाषार्थ

    हे माता-पिता! आप दोनों (मा)(नः) हमारी (मेधाम्) बुद्धि को, (मा)(नः) हमारे (दीक्षाम्) व्रत-नियमों को, (यत्) जो (नः) हमारा (तपः) तप है (मा) न उसको (हिंसिष्टम्) हिंसित होने दीजिये। पितृवर्गः (नः) हमारे लिये (शिवाः) कल्याणकारी और (शम्) सुखशान्तिकर (सन्तु) हों, और (मातरः) माताएँ (शिवाः) कल्याणकारिणी (भवन्तु) हों, (आयुषे) ताकि हमारा जीवन कल्याणमय और सुख-शान्ति-सम्पन्न हो सके।

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    विषय

    मेधा, दीक्षा, तप

    पदार्थ

    १.(न:) = हमारी (मेधाम्) = मेधा बुद्धि को (मा हिंसिष्टम) = मत हिंसित करो। (न:) = हमारी (दीक्षाम) = व्रत-संग्रह को (मा) = मत नष्ट करो और (नः) = हमारा (यत्) = जो (तप:) = तप है उसे (मा) = [हिंसिष्टम्] मत समाप्त करो। हम प्राणायाम करते हुए प्राणसाधना द्वारा 'मेधा, दीक्षा व तप' का रक्षण करें। २. ये 'मेधा, दीक्षा व तप'(नः शिवा:) = हमारे लिए कल्याणकर हों। ये (शं सन्तु) = शान्ति दें, तथा (आयुषे) = प्रशस्त जीवन के लिए हों। ये 'मेधा, दीक्षा व तप' (शिवाः भवन्तु) = कल्याणकर हों। (मातस) = ये हमारे जीवन का निर्माण करनेवाले हों।

    भावार्थ

    हम प्राणसाधना द्वारा 'मेधा, दीक्षा व तप' को अपनाएँ। ये हमारे कल्याण, शान्ति, दीर्घ व प्रशस्त जीवन के लिए हों।

    सूचना

    प्रस्तुत मन्त्र में प्राणसाधना की भावना अगले मन्त्र में आनेवाले 'अश्विना' शब्द से ली गई है। "हिंसिष्टं' यह द्विवचनात्मक क्रिया 'अश्विना' के उद्धृत' करने का संकेत कर रही है।

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    विषय

    निर्दोष, मेघावी, ज्ञानी होने की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे माता और पिता आप लोग ! (नः मेधाम्) हमारी मेधा बुद्धि को, (नः दीक्षाम्) हमारी दीक्षा, व्रत ग्रहण की प्रतीक्षा को और (यत् तपः) जो तप हम कर रहे हैं उसको (मा हिंसिष्टम्) मत नष्ट करो। (नः) हमारे (शिवाः) कल्याण चाहने वाले हितैषी जन (नः) हमारे लिये (शं सन्तु) शान्तिप्रद सिद्ध हों। और (मातरः) हमारी माताएं हमारे (आयुषे) दीर्घ जीवन के लिये (शिवा, भवन्तु) हमारी कल्याणचिन्तक हो। माता पिता और नाना हितू बन्धू जन ही प्रायः शिक्षा, दीक्षा और तपः साधन में बाधक होकर बच्चों को गुरु-गृह में शान्ति से तपस्या पूर्वक शिक्षाभ्यास नहीं करने देते। उनसे विघ्न न करने की प्रार्थना है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्म ऋषिः। बृहस्पतिर्विश्वेदेवाश्च देवताः। १ परानुष्टुप्। २ त्रिष्टुप् पुरः ककुम्मती उपरिष्टाद् बृहती। ३ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्। ४ त्रिपदा आर्षी गायत्री। चतुऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    For Intelligence, Medha

    Meaning

    O teachers and preachers, O parental guides, pray do not hurt our intelligence and understanding, do not disturb and hurt our commitment, do not disturb our discipline and dedication. May all of you and all people be kind and gracious to us for our life and health, let all our mother powers be kind and gracious to us.

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    Translation

    May you not-injure our intelligence, nor our conservation, nor what is our austerity. May they, the gracious, recommend us for a long life; may they be gracious mother to us.

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    Translation

    May not adepts disturb our intellect and may not they disturb our knowledge. O Ye learned, you giving pleasure to all walk on your path and may I accepted by you become vigorous and wise.

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    Translation

    Let not our parents suppress our intelligence, nor our initiative, nor what has been achieved by our austerity. Let them be peaceful to as. May they bring peace for life. May our mothers be sources of happiness and wellbeing for us.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह मन्त्र कुछ भेद से महर्षिदयानन्दकृत संस्कारविधि वानप्रस्थप्रकरण में व्याख्यात है ॥३−(मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (मेधाम्) धारणावतीं बुद्धिम् (मा) (नः) (दीक्षाम्) नियमव्रतयोः शिक्षाम् (मा) (नः) (हिंसिष्टम्) नाशयतं युवाम् (यत्) (तपः) ब्रह्मचर्यादितपश्चरणम् (शिवाः) मङ्गलकारिण्यः प्रजाः (नः) अस्माकम् (शम्) शान्तिदायिन्यः (सन्तु) (आयुषे) जीवनाय (शिवाः) मङ्गलप्रदाः (भवन्तु) (मातरः) जननीवद्धितकारिण्यः ॥

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