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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 13 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 13/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अथर्वा देवता - आयुः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु प्राप्ति सूक्त
    502

    एह्यश्मा॑न॒मा ति॒ष्ठाश्मा॑ भवतु ते त॒नूः। कृ॒ण्वन्तु॒ विश्वे॑ दे॒वा आयु॑ष्टे श॒रदः॑ श॒तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । इ॒हि॒ । अश्मा॑नम् । आ । ति॒ष्ठ॒ । अश्मा॑ । भ॒व॒तु॒ । ते॒ । त॒नू: । कृ॒ण्वन्तु॑ । विश्वे॑ । दे॒वा: । आयु॑: । ते॒ । श॒रद॑: । श॒तम् ॥१३.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एह्यश्मानमा तिष्ठाश्मा भवतु ते तनूः। कृण्वन्तु विश्वे देवा आयुष्टे शरदः शतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । इहि । अश्मानम् । आ । तिष्ठ । अश्मा । भवतु । ते । तनू: । कृण्वन्तु । विश्वे । देवा: । आयु: । ते । शरद: । शतम् ॥१३.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 13; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्मचारी के समावर्त्तन, विद्यासमाप्ति पर वस्त्र आदि के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    [हे ब्रह्मचारिन्] (एहि=आ+इहि) तू आ, (अश्मानम्) इस शिला पर (आ+तिष्ठ) चढ़, (ते) तेरा (तनूः) तन [शरीर] (अश्मा) शिला [शिला जैसा दृढ़] (भवतु) होवे। (विश्वे) सब (देवाः) उत्तम गुणवाले [पुरुष और पदार्थ] (ते) तेरी (आयुः) आयु को (शतम्) सौ (शरदः) शरद् ऋतुओं तक (कृण्वन्तु) [दीर्घ] करें ॥४॥

    भावार्थ

    ब्रह्मचारी को शिक्षा दें कि वह यथानियम पथ्यसेवन, व्यायाम, ब्रह्मचर्य और पौरुष करके अपने शरीर को दृढ़ और स्वस्थ रक्खे और विद्वानों के मेल और उत्तम पदार्थों के सेवन से पूर्ण आयु भोगकर संसार में उपकार करे ॥४॥ अथर्ववेद १।२।२। में आया है “(अश्मानं तन्वं कृधि) शरीर को पत्थर सा दृढ़ बना”॥

    टिप्पणी

    ४–आ+इहि। आगच्छ। अश्मानम्। अ० १।२।२। प्रस्तरम्। अश्मा। पाषाणशिला। पाषाणवद्दृढा। आ+तिष्ठ। अधितिष्ठ। आरूढो भव। तनूः। तनु विस्तारे–ऊ। शरीरम्। कृण्वन्तु। कुर्वन्तु। विश्वे। सर्वे। देवाः। दिव्यगुणाः पुरुषाः पदार्था वा। आयुः। म० २। जीवनम्। ते। तव। युष्मत्तत्ततक्षुष्वन्तःपादम्। पा० ८।३।१०३। इति सकारस्य षत्वम्। शरदः। शरदृतून्। संवत्सरान्। शतम्। बह्वीः। बहुसंवत्सरान् ॥

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    विषय

    पाषाणवत् दृढ़ शरीर

    पदार्थ

    १. आचार्य ब्रह्मचारी से कहते हैं-(एहि) = आओ, (अश्मानम् आतिष्ठि) = इस पाषाण पर स्थित होओ। (ते तनू:) = तेरा शरीर (अश्मा भवतु) = पाषाण-जैसा ही दृढ़ बन जाए। इस पाषाण से प्ररेणा लेकर अपने शरीर को इसीप्रकार दृढ़ बनाने का तेरा संकल्प हो। २. (विश्वेदेवा:) = सब देव (ते आयुः) = तेरे जीवन को (शतं शरदः) = सौ शरद् ऋतुओं तक चलनेवाला (कृण्वन्तु) = करें। सूर्य आदि देवों के सम्पर्क में रहता हुआ तू सदा स्वस्थ हो तथा दिव्य गुण तेरे मन को सब आयुष्य विघातक भावों से रहित करनेवाले हों।

    भावार्थ

    दीर्घ जीवन के लिए आवश्यक है कि हम [क] शरीर को दृढ़ बनाने की भावनावाले हों। [ख] सूर्यादि देवों के सम्पर्क में जीवन बिताएँ, [ग]दिव्य गुणों को मन में स्थान दें।

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    भाषार्थ

    हे ब्रह्मचारिन् (एहि)(अश्मानम्, आतिष्ठ) अश्मा पर आ खड़ा हो, (अश्मा भवतु ते तनूः) पत्थरसदृश दृढ़ हो तेरी तनू। (विश्वे देवा:) सब गुरुदेव (ते आयुः) तेरी आयुः (शतम्, शरदः) सौ वर्षों की (कुण्वन्तु) करें।

    टिप्पणी

    [ब्रह्मचारी को क्रियात्मक शिक्षा दी है। उसे दर्शाया है कि यह पत्थर जैसे दृढ़ाङ्ग है, वैसे तुझे कठोराङ्ग होना चाहिए, तदर्थ तू नियमपूर्वक व्यायाम किया कर, और वीर्य की रक्षा किया कर। आश्रम के सब गुरुदेव ब्रह्मचारी के खान-पान का विशेष ख्याल करें, जिससे कि ब्रह्मचारी की आयुः सौ वर्षों की हो सके। वर्ष शब्द के लिए शरदः शब्द पठित हुआ है, शरत् काल में जीवन स्वस्थ रहता है।]

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    विषय

    ब्रह्मचर्य व्रत में आयु, बल बल और दृढ़ता की प्रार्थना

    भावार्थ

    हे ब्रह्मचर्य पालन करने हारे बालक ! ( एहि ) गुरु के समीप आ और (अश्मानं) दृढ़ पत्थर पर (आ तिष्ठ) अपना पग रख और (अश्मानम् आतिष्ठ) चट्टान के समान दृढ़ सर्वदुःखनाशक ब्रह्म का आश्रय ले । (ते) तेरा (तनूः) शरीर भी (अश्मा भवतु) शिला के समान दृढ़ हो । (विश्वे देवाः) समस्त देवगण, विद्वान्गण और दिव्य शक्तियां (ते आयुः) तेरी आयु को (शतं शरदः) सौ वर्ष तक (कृण्वन्तु) कर दें ।

    टिप्पणी

    ‘इममश्मानमातिष्ठाश्मेव त्वं स्थिरो भव । प्रमृणीहि दुरस्यतः सहस्व पृतनायतः ’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। १ अग्निर्देवता। २, ३ बृहस्पतिः। ४, ५ विश्वेदेवाः। १ अग्निस्तुतिः। २, ३ चन्द्रमसे वासः प्रार्थना। ४, ५ आयुः प्रार्थना। १-३ त्रिष्टुभः। ४ अनुष्टुप्। ५ विराड् जगती। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Investiture

    Meaning

    Come, stand on the rock and stay firm. Let your body, mind and soul be strong as the rock. May all divine forces of nature and all brilliancies of humanity join to give you a life of hundred years of adamantine strength.

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    Subject

    Nauture's All Bounties

    Translation

    O boy, come here and stand on this stone. May your body become hard as stone. May the bounties of Nature, make your life-span óf a hundred autumns.

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    Translation

    O celibate disciple; come hither, climb on the stone and your body be strong and constant like stone. May all the physical forces prolong your life for hundred autumns.

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    Translation

    O Brahmchari, come near the Guru, put your foot upon the steady stone, depend upon God, fixed like a rock, and Banisher of miseries. Make your body strong like a stone. May all the learned persons make thy life a hundred years long.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४–आ+इहि। आगच्छ। अश्मानम्। अ० १।२।२। प्रस्तरम्। अश्मा। पाषाणशिला। पाषाणवद्दृढा। आ+तिष्ठ। अधितिष्ठ। आरूढो भव। तनूः। तनु विस्तारे–ऊ। शरीरम्। कृण्वन्तु। कुर्वन्तु। विश्वे। सर्वे। देवाः। दिव्यगुणाः पुरुषाः पदार्था वा। आयुः। म० २। जीवनम्। ते। तव। युष्मत्तत्ततक्षुष्वन्तःपादम्। पा० ८।३।१०३। इति सकारस्य षत्वम्। शरदः। शरदृतून्। संवत्सरान्। शतम्। बह्वीः। बहुसंवत्सरान् ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    হে ব্রহ্মচারী ! (এহি) এসো (অশ্মানম্, আতিষ্ঠ) পাথর/শিলা/অশ্মা-এর ওপর এসে দাঁড়াও/স্থিত হও, (অশ্মা ভবতু তে তনূঃ) পাথরসদৃশ দৃঢ় হোক তোমার তনু/দেহ। (বিশ্বে দেবাঃ) সমস্ত গুরুদেব (তে আয়ুঃ) তোমার আয়ুঃ (শতম্, শরদঃ) শত বর্ষের (কৃণ্বন্তু) করুক।

    टिप्पणी

    [ব্রহ্মচারীকে ক্রিয়াত্মক শিক্ষা দিয়েছে। তাঁকে দর্শানো হয়েছে যে, এই পাথরের যেমন দৃঢ়াঙ্গ, সেভাবেই তোমাকে কঠোরাঙ্গ হওয়া উচিত, তদর্থে তুমি নিয়মপূর্বক ব্যায়াম করো, এবং বীর্যের রক্ষা করো। আশ্রমের সমস্ত গুরুদেব ব্রহ্মচারীর খাদ্য-পানীয়ের বিষয়ে বিশেষ যত্ন করুক, যাতে ব্রহ্মচারীর আয়ুঃ শত বর্ষের হতে পারে। বর্ষ শব্দের জন্য শরদঃ শব্দ পঠিত হয়েছে, শরৎ কালে জীবন সুস্থ থাকে।]

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    मन्त्र विषय

    ব্রহ্মচারিণঃ সমাবর্ত্তনে বস্ত্রাদিধারণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে ব্রহ্মচারিন্] (এহি=আ+ইহি) তুমি এসো, (অশ্মানম্) এই শিলাতে (আ+তিষ্ঠ) আরোহণ করো, (তে) তোমার (তনূঃ) শরীর (অশ্মা) শিলা [শিলার মতো দৃঢ়] (ভবতু) হোক। (বিশ্বে) সব (দেবাঃ) উত্তম গুণের [পুরুষ ও পদার্থ] (তে) তোমার (আয়ুঃ) আয়ুকে (শতম্) শত (শরদঃ) শরদ্ ঋতু পর্যন্ত (কৃণ্বন্তু) [দীর্ঘ] করুক ॥৪॥

    भावार्थ

    ব্রহ্মচারীকে শিক্ষা দেওয়া হোক যে, সে যথানিয়ম পথ্যসেবন, ব্যায়াম, ব্রহ্মচর্য ও পৌরুষ দ্বারা নিজের শরীরকে দৃঢ়, সুস্থ রাখুক এবং বিদ্বানদের সৎসঙ্গ, উত্তম পদার্থের সেবন দ্বারা পূর্ণ আয়ু ভোগ করে সংসারের উপকার করুক॥৪॥ অথর্ববেদ ১।২।২। এ আছে “(অশ্মানং তন্বং কৃধি) শরীরকে পাথরের সদৃশ দৃঢ় করো”॥

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