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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 19 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 19/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अथर्वा देवता - अग्निः छन्दः - एकावसानानिचृद्विषमात्रिपाद्गायत्री सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    60

    अग्ने॒ यत्ते॑ शो॒चिस्तेन॒ तं प्रति॑ शोच॒ यो॑३ ऽस्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑ । यत् । ते॒ । शो॒चि: । तेन॑ । तम् । प्रति॑ । शो॒च॒ । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म: ॥१९.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने यत्ते शोचिस्तेन तं प्रति शोच यो३ ऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने । यत् । ते । शोचि: । तेन । तम् । प्रति । शोच । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म: ॥१९.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 19; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    कुप्रयोग के त्याग के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (अग्ने) हे अग्नि (यत्) जो (ते) तेरी (शोचिः) शोधनशक्ति है, (तेन) उससे (तम्) उस [दोष] को (प्रति शोच) शुद्ध कर दे, (यः) जो (अस्मान्) हमसे..... मन्त्र १ ॥४॥

    भावार्थ

    मन्त्र १ के समान ॥४॥

    टिप्पणी

    ४–शोचिः। अर्चिशुचि०। उ० २।१०८। इति ईशुचिर् शौचविशरणयोः–इसि। ज्वलतो नाम–निघ० १।१७। शुच्यत्यनेनेति। शोधनसामर्थ्यम्। शोच। शोचय, शोधय ॥

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    विषय

    शोचिः [ज्वाला की दीप्ति]

    पदार्थ

    १. हे (अग्रे) = ज्ञानदीप्त प्रभो ! (यत्) = जो (ते) = आपकी (शोचि:) = ज्ञान-ज्वाला की दीप्ति है, (तेन) = उससे (तं प्रति शोच) = उसके जीवन में दीति कीजिए (यः) = जो (अस्मान्) = हम सबके (प्रति द्वेष्टि) = द्वेष करता है और परिणामतः वयम्-हम भी यम्-जिससे द्विष्मः-प्रीति नहीं कर पाते। २. इन द्वेष स्वभाववाले व्यक्तियों के हदय में ज्ञान-ज्वाला से दीति उत्पन्न करके इनके द्वेषभाव को समाप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। अज्ञान द्वेष का कारण बनता है। ज्ञान की दीप्ति होते ही द्वेष की व्यर्थता स्पष्ट हो जाती है। मूर्ख ही द्वेष कर सकता है, ज्ञानी नहीं।

    भावार्थ

    ज्ञान की दीसि के द्वारा हम हदयों को शुद्ध करके द्वेष-भावना का विनाश करें।

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    भाषार्थ

    (शोचिः की व्याख्या के लिये देखो मन्त्र (१) की व्याख्या)। शेष अर्थ पूर्ववत् ।

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    विषय

    द्वेष करने वालों के सम्बन्ध में प्रार्थना ।

    भावार्थ

    हे परमात्मन् ! (योऽस्मान्०) जो हम से द्वेष करता और जिसको हम भी प्रेम नहीं करते (यत् ते शोचिः) जो तेरी दीप्ति है (तेन तं प्रति) उस द्वारा उसके प्रति (शोच) प्रकाशित हो और सन्मार्ग दिखा ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः । अग्निर्देवता । १-४ निचृत् सामगायत्री, २ भुरिग् विषमा । पञ्चर्चं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Way to Purification: 19-23

    Meaning

    Agni, the radiance that’s yours, with that burn and eliminate that which hates and harms us and that which we hate to suffer.

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    Translation

    O fire-divine, whatever burning (Socih) you have, with that may you burn towards him who hates us and whom we hate.

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    Translation

    Let the fire, with that of its blaze, blaze against that who......... etc. etc.

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    Translation

    O God, with Thy purifying power, purify him, who hates us, or whom we do not love!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४–शोचिः। अर्चिशुचि०। उ० २।१०८। इति ईशुचिर् शौचविशरणयोः–इसि। ज्वलतो नाम–निघ० १।१७। शुच्यत्यनेनेति। शोधनसामर्थ्यम्। शोच। शोचय, शोधय ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (অগ্নে) হে অগ্নি ! (যৎ তে শোচিঃ) যে তোমার শোকজননশক্তি রয়েছে, (তেন) তা দ্বারা (তম্) তাঁকে (প্রতি শোচঃ) শোক প্রদান করাও (যঃ) যাঁরা/যে (অস্মান্ দ্বেষ্টি) আমাদের সাথে দ্বেষ করে, (যম্) এবং যাঁর সাথে (বয়ম্) আমরা (দ্বিষ্মঃ) অপ্রীতি করি।

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    मन्त्र विषय

    কুপ্রয়োগত্যাগায়োপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অগ্নে) হে অগ্নি (যৎ) যে/যা (তে) তোমার (শোচিঃ) শোধনশক্তি আছে, (তেন) তা দ্বারা (তম্) সেই [দোষ]কে (প্রতি শোচ) শুদ্ধ করো, (যঃ) যা (অস্মান্) আমাদের প্রতি (দ্বেষ্টি) অপ্রীতি করে, [অথবা] (যম্) যার প্রতি (বয়ম্) আমরা (দ্বিষ্মঃ) অপ্রীতি করি ॥৪॥

    भावार्थ

    মন্ত্র ১ এর সমান ॥৪॥

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