अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 7
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - आयुः
छन्दः - चतुष्पदा भुरिग्बृहती
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
69
अर्जु॑नि॒ पुन॑र्वो यन्तु या॒तवः॒ पुन॑र्हे॒तिः कि॑मीदिनीः। यस्य॒ स्थ तम॑त्त॒ यो वः॒ प्राहै॒त्तम॑त्त॒ स्वा मां॒सान्य॑त्त ॥
स्वर सहित पद पाठअर्जु॑नि । पुन॑: । व॒: । य॒न्तु॒ । या॒तव॑: । पुन॑: । हे॒ति: । कि॒मी॒दि॒नी॒: । यस्य॑ । स्थ । तम् । अ॒त्त॒ । य: । व॒: । प्र॒ऽअहै॑त् । तम् । अ॒त्त॒ । स्वा । मां॒सानि॑ । अ॒त्त॒ ॥२४.७॥
स्वर रहित मन्त्र
अर्जुनि पुनर्वो यन्तु यातवः पुनर्हेतिः किमीदिनीः। यस्य स्थ तमत्त यो वः प्राहैत्तमत्त स्वा मांसान्यत्त ॥
स्वर रहित पद पाठअर्जुनि । पुन: । व: । यन्तु । यातव: । पुन: । हेति: । किमीदिनी: । यस्य । स्थ । तम् । अत्त । य: । व: । प्रऽअहैत् । तम् । अत्त । स्वा । मांसानि । अत्त ॥२४.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
म० १–४ कुसंस्कारों के और ५–८ कुवासनाओं के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(अर्जुनि) अरे कुटिनी [दूती !] (किमीदिनीः=०–न्यः) अरी तुम लुतरियों ! [कुवासनाओं !] (वः) तुम्हारी (यातवः) पीड़ाएँ..... मन्त्र ५ ॥७॥
भावार्थ
इस मन्त्र में कुवासनाओं को कुटिनी वा दूती इत्यादि माना है–शेष मन्त्र ५ के समान ॥७॥
टिप्पणी
७–अर्जुनि। अर्जेर्णिलुक् च। उ० ३।५८। इति अर्ज लाभे, संस्कारे च–उनन्। षिद्गौरादिभ्यश्च। पा० ४।१।४१। ङीप्। हे कुट्टिनि ॥
विषय
शुद्ध उपायों से अर्जुन
पदार्थ
१. "अर्जुनि' शब्द एक प्रकार की सर्पिणी के लिए आता है। वस्तुतः अर्ज धातु कमाने के अर्थ में आती है। कुटिलता से, छल-छिद्र से कमाने की वृत्ति ही 'अर्जुनी' है। हे (अर्जुनि) = छल-कपट से कमाने की वृत्ते! (किमीदिनी:) = लूट-खसोट की वृत्तियो! (व:) = तुम्हारे यातवः पीड़ित करनेवाले राक्षसी लोग (पुनः यन्तु) = फिर से तुम्हें ही प्राप्त हों, (हेति: पुन:) = तुम्हारे अस्त्र लौटकर फिर तुमपर ही प्रहार करनेवाले हों। २. (यस्य) = जिसकी (स्थ) = तुम हो (तम् अत्त) = उसे ही खा जाओ, (यः वः प्राहैत्) = जो तुम्हें भेजता है, (तम् अत्त) = उसे ही खा जाओ। (स्वा मांसानि अत्त) = अपने ही मांस को खा जाओ।
भावार्थ
छल-छिद्र से कमाने की वृत्ति हमसे दूर हो।
भाषार्थ
[अर्जुनि= युद्ध में अर्जित प्रतिष्ठावाली हे शश्रुसेना, अथवा युद्धविजय में प्रतियत्नशील हे शत्रुसेना ! अर्ज अर्जने (भ्वादिः), अर्ज प्रतियत्ने (चुरादिः)। शेष अर्थ पूर्ववत्।]
विषय
हिंसक स्त्री-पुरुषों के लिये दण्ड विधान।
भावार्थ
हे जूर्णि! आयु का नाश करने हारी नागिनी की वृत्ति से अपने और दूसरों के बल नाश करने वाली दुष्ट स्त्री ! हे (अर्जुनि) बदला लेने वाली या पुरुष को संताप देने वाली या अपने कुकर्म से द्रव्य अर्जन करने वाली स्त्री ! और हे (उपब्दे) गुप्तरूप से कलह करने वाली और परपुरुष से संग करने हारी ! और (भरूजि) हे कपटकारिणी ! अपने क्षुद्र वचनों से हृदय को पीड़ा देने वाली स्त्रियो ! तुम भी (किमीदिनीः) कर्त्तव्यपथ में मूढ़ हो । तुम भी अपने पापों से शंकित रहती हो, तुम्हारी दी हुई पीड़ाएं तुमको प्राप्त हों, तुम्हारे हथियार भी तुमको ही कष्ट दें। तुम जिसकी हो उसको खाती और जो तुमको प्रेरित करे, मार्ग दिखाये, उसको खाजाती और अपने सम्बन्धियों, पुत्रों और भाइयों तक के प्राणों को हर लेती हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः । शेरभकादयो मन्त्रोक्ता देवताः। १, २ पुर उष्णिहौ, ३, ४ पुरोदेवत्ये पङ्क्तिः । १-४ वैराजः । ५-८ पंचपदाः पथ्यापङ्क्ति । ५, ६ भुरिजौ । ६, ७ निचृतौ। ५ चतुष्पदा बृहती । ६-८ भुरिजः। अष्टर्चं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
The Social Negatives
Meaning
O deceptive forces of nature and society, destroyers of honesty and positive values, go back, you and your allies. Let your arms and onslaughts turn on to you. Destroy him who is your master. Destroy him that has sent you. Eat up and destroy your own selves.
Translation
O pallidness of fever (arjuni), may your after effects go back. May the offensive weapon go back. May you eat him whose you are. May you eat him who has sent you. May you eat your own flesh.
Translation
Let whiteness of skin......
Translation
O revengeful woman, who earns money through immoral practices, O mala-fide critics, may all your distressing deeds, and your weapon, fall back upon you. You eat him, who befriends you. You eat him, who shows you the right path, as a preacher. Ye eat the flesh of your own kith and kin!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७–अर्जुनि। अर्जेर्णिलुक् च। उ० ३।५८। इति अर्ज लाभे, संस्कारे च–उनन्। षिद्गौरादिभ्यश्च। पा० ४।१।४१। ङीप्। हे कुट्टिनि ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
[অর্জুনি= যুদ্ধে অর্জিত প্রতিষ্ঠাবান হে শত্রুসেনা, অথবা যুদ্ধ-বিজয়ে প্রতিযত্নশীল হে শত্রুসেনা ! অর্জ অর্জনে (ভ্বাদিঃ), অর্জ প্রতিযত্নে (চুরাদিঃ)। শেষ অর্থ পূর্ববৎ ।]
मन्त्र विषय
ম০ ১–৪। কুসংস্কারাণাং ৫–৮ কুবাসনানাং চ নাশায়োপদেশঃ
भाषार्थ
(অর্জুনি) কুটিনী [দূতী !] (কিমীদিনীঃ=০–ন্যঃ) লুণ্ঠনকারিনী ! [কুবাসনা !] (বঃ) তোমাদের (যাতবঃ) পীড়া (হেতিঃ) আঘাত (পুনঃ-পুনঃ) পুনঃ-পুনঃ (যন্তু) চলে যাক। তোমরা (যস্য) যার [সাথী] (স্থ) হও, (তম্) তাকে (অত্ত) ভক্ষণ করো, (যঃ) যে (বঃ) তোমাদের (প্রাহৈৎ=প্রাহৈষীৎ) প্রেরণ করেছে, (তম্) তাকে (অত্ত) ভক্ষণ করো, (স্বা=স্বানি) নিজের (মাংসানি) মাংস (অত্ত) ভক্ষণ করো ॥৭॥
भावार्थ
এই মন্ত্রে কুবাসনাকে কুটিনী বা দূতী ইত্যাদি মানা হয়েছে–অবশিষ্ট মন্ত্র ৫ এর সমান ॥৭॥
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