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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अङ्गिराः देवता - भैषज्यम्, आयुः, धन्वन्तरिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - आस्रावभेषज सूक्त
    88

    उ॑प॒जीका॒ उद्भ॑रन्ति समु॒द्रादधि॑ भेष॒जम्। तदा॑स्रा॒वस्य॑ भेष॒जं तदु॒ रोग॑मशीशमत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒प॒ऽजीका॑: । उत् । भ॒र॒न्ति॒ । स॒मु॒द्रात् । अधि॑ । भे॒ष॒जम् । तत् । आ॒ऽस्रा॒वस्य॑ । भे॒ष॒जम् । तत् । ऊं॒ इति॑ । रोग॑म् । अ॒शी॒श॒म॒त् ॥३.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपजीका उद्भरन्ति समुद्रादधि भेषजम्। तदास्रावस्य भेषजं तदु रोगमशीशमत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उपऽजीका: । उत् । भरन्ति । समुद्रात् । अधि । भेषजम् । तत् । आऽस्रावस्य । भेषजम् । तत् । ऊं इति । रोगम् । अशीशमत् ॥३.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शारीरिक और मानसिक रोग की निवृत्ति के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (उपजीकाः) [परमेश्वर के] आश्रित पुरुष (समुद्रात् अधि) आकाश [समस्त जगत्] में से (भेषजम्) भयनिवारक ब्रह्म को, (उद्भरन्ति) ऊपर निकालते हैं। (तत्) वही [ब्रह्म] (आस्रावस्य) बड़े क्लेश का (भेषजम्) औषध है, (तत्) उसने (उ) ही (रोगम्) रोग को (अशीशमत्) शान्त कर दिया है ॥४॥

    भावार्थ

    परमेश्वर का सहारा रखनेवाले पुरुष संसार के प्रत्येक पदार्थ में ईश्वर को पाते हैं और उस आदिकारण की महिमा को साक्षात् करके अपने सब क्लेशों का नाश करके आनन्द भोगते हैं ॥४॥

    टिप्पणी

    ४–उपजीकाः–कषिदूषिभ्यामीकन्। उ० ४।१६। इति बाहुलकात्, उप+जीव प्राणधारणे–ईकन्, स च डित्। उपजीविनः। परमेश्वराश्रिताः। प्राणिनः। वल्मीकनिष्पादिका वम्र्यः–इति सायणः। उद्भरन्ति। उत्–भृञ्। उद्भरन्ति। ऊर्ध्वं हरन्ति। समुद्रात्। अ० १।३।८। अन्तरिक्षात्। सर्वसंसारात्। भेषजम्। भयनिवारकं परब्रह्म। उदकम्–निघ० १।१२। सुखम्। निघ० ३।६। आस्रावस्य। म० ४। महाक्लेशस्य। अशीशमत्। शमु उपशमे, ण्यन्तात् लुङि चङि रूपम्। उपशाम्यति नाशयति स्म ॥ ०२।०३।०५

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    विषय

    समुद्र की जलनीली [Mass]

    पदार्थ

    १. "उपजीक' शब्द जलाधिष्ठातृदेवता [Water deity] के लिए प्रयुक्त होता है। जलों में कार्य करके आजीविका चलानेवाले व्यक्ति भी उपजीक है। ये (उपजीका:) = जल में कार्य करके जीनेवाले लोग (समुद्राद् अधि) = समुद्र में से (भेषजम्) = औषध को (उद्भरन्ति) = ऊपर लाते हैं। समुद्र में होनेवाली यह 'जलनीली' [काई] ही वह औषध है। २. (तत्) = वह जलनीली (आस्त्रावस्य आस्ताव) = की (भेषजम्) उत्तम औषध है (उ) = और (तत्) = वह (रोगम्) = रोग को (अशीशमत्) = शान्त कर देती है।

    भावार्थ

    समुद्र में उत्पन्न होनेवाली काई कृमिनाशक होने से आस्त्राव की उत्तम औषध है।

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    भाषार्थ

    (उपजीका:) दीमकें (समुद्रात् अधि) समुद्र से (भेषजम् ) औषध को (उद् भरन्ति) उद्धृत करती हैं, ऊपर की ओर लाती हैं। (तत् ) वह (आस्रावस्य) आस्राव की ( भेषजम् ) औषध है ( तत् उ ) वह निश्चय से (रोगम्, अशीशमत्) रोग को शान्त कर देती है।

    टिप्पणी

    [दीमकों का सामुद्रिक जल में निवास अनुपपन्न है। अतः समुद्रात् का अभिप्राय है "समुद्रतटात्" जैसेकि "गङ्गायां घोषाः" वाक्य में घोष जाति के मनुष्यों का निवास प्रवाहित-गङ्गा में अनुपपन्न है, अतः गङ्गायाम् का अभिप्राय है "गङ्गा-तटे"। समुद्र-तट पर दीमकें वल्मीक को पैदा कर सकती हैं, जिसेकि Ant-Hill कहते हैं। वल्मीक यतः समुद्र के तट पर है, इसलिए इसके निर्माण में सामुद्रिक लवण का भी मिश्रण हो जाता है। लवणमिश्रित वल्मीक की मिट्टी आस्राव के शामन में विशेषोपकारी है, यह अभिप्राय है । सामुद्रिक तट पर निर्मित वल्मीक में सामुद्रिक जल सिमसिम कर निज लवण को वल्मीक में मिश्रित कर देता है। इसलिये सामुद्रिक वल्मीक में विशेष गुणाधान हो जाता है ।

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    विषय

    आस्राव रोग का उपचार ।

    भावार्थ

    ( उपजीकाः ) ब्रह्म के आश्रय में जीने वाले ( समुद्रात् अधि ) शक्ति के समुद्र रूप ब्रह्म से (भेषजम्) औषध (उद्भरन्ति) प्राप्त करते हैं ( तत् आस्त्रावस्य भेषजम् ) वह ब्रह्म वीर्य स्राव का औषध है, (तत् उ रोगम् अशीशमत् ) वह निश्चय से इस रोग का नाश करदेता है।

    टिप्पणी

    ( उपजीकाः ) ब्रह्म के आश्रय में जीने वाले ( समुद्रात् अधि ) शक्ति के समुद्र रूप ब्रह्म से (भेषजम्) औषध (उद्भरन्ति) प्राप्त करते हैं ( तत् आस्त्रावस्य भेषजम् ) वह ब्रह्म वीर्य स्राव का औषध है, (तत् उ रोगम् अशीशमत् ) वह निश्चय से इस रोग का नाश करदेता है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अंगिरा ऋषिः। भैषज्यायुर्धन्वन्तरिर्देवता। १-५ अनुष्टुभः। ६ त्रिपात् स्वराट् उपरिष्टान्महाबृहती। षडर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Health and Healing

    Meaning

    Sea weeds collect up on the sea. That is the cure for morbid flow, and that relieves and removes the disease.

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    Translation

    The white ants bring up this remedy out of the water flood. This is the remedy for morbid flux and this has cured the disease.

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    Translation

    The white ants collect mount from the ocean soil and that is the medicine of the flow and bodily pain. This drives away the disease.

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    Translation

    Human beings living under the shelter of God, receive remedy from God, the Ocean of power. God is the efficacious medicine for the flow of semen. He certainly eradicates this malady. [1]

    Footnote

    [1] He refers to God, Who is the most efficient physician, the outer of our ailments and the dispenser of medicines

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४–उपजीकाः–कषिदूषिभ्यामीकन्। उ० ४।१६। इति बाहुलकात्, उप+जीव प्राणधारणे–ईकन्, स च डित्। उपजीविनः। परमेश्वराश्रिताः। प्राणिनः। वल्मीकनिष्पादिका वम्र्यः–इति सायणः। उद्भरन्ति। उत्–भृञ्। उद्भरन्ति। ऊर्ध्वं हरन्ति। समुद्रात्। अ० १।३।८। अन्तरिक्षात्। सर्वसंसारात्। भेषजम्। भयनिवारकं परब्रह्म। उदकम्–निघ० १।१२। सुखम्। निघ० ३।६। आस्रावस्य। म० ४। महाक्लेशस्य। अशीशमत्। शमु उपशमे, ण्यन्तात् लुङि चङि रूपम्। उपशाम्यति नाशयति स्म ॥ ०२।०३।०५

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (উপজীকাঃ) আশ্রিত পুরুষ (সমুদ্রাৎ অধি) আকাশ হইতে (ভেষজং) ভয়নিবারক ব্রহ্মকে (উদ্ভরন্তি) উপরে বাহির করেন। (তৎ) সেই ব্রহ্ম (তস্রাবস্য) মহা ক্লেশেীয় (ভেষজং) ঔষধ স্বরূপ (ভউ) তিনিই (রোগং) রোগকে (অশীশমৎ) শান্ত করেন।।

    भावार्थ

    পরমেশ্বরের আশ্রিত পুরুষ সমগ্র জগৎ হইতেই ভয় নিবারক ব্রহ্মকে উপলব্ধি করেন। সেই ব্রহ্মই মহা ক্লেশের ঔষধ স্বরূপ। তিনিই রোগকে শান্ত করেন।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    উপজীকা উদ্ভরন্তি সমুদ্ৰাদধি ভেষজম্ ৷ তদাস্রাবস্য ভেষজং তদু রোগমশীশমৎ।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    অঙ্গিরাঃ। (আস্রাব) ভেষজম্। অনুষ্টুপ্

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    भाषार्थ

    (উপজীকাঃ) উইপোকা (সমুদ্রাৎ অধি) সমুদ্র থেকে (ভেষজম্) ঔষধকে (উদ্ ভরন্তি) উদ্ধৃত করে, উপরের দিকে নিয়ে আসে (তৎ) তা (আস্রাবস্য) আস্রাব এর (ভেষজম্) ঔষধ, (তৎ উ) তা নিশ্চিতরূপে (রোগ, অশীশমৎ) রোগকে শান্ত করে দেয়।

    टिप्पणी

    [উইপোকার সমুদ্রের জলে নিবাস অপ্রমাণিত। অতঃ সমুদ্রাৎ এর অভিপ্রায় হলো "সমুদ্রতটাৎ"। যেমন "গঙ্গায়াং ঘোষাঃ" বাক্যে ঘোষ জাতির মনুষ্যের নিবাস প্রবাহিত-গঙ্গায় তা অসম্ভব, অতঃ গঙ্গায়াম্ এর উদ্দেশ্য হলো "গঙ্গা-তট"। সমুদ্র-তটে উইপোকা ঢিবি তৈরী করতে পারে, যাকে Ant-Hill বলা হয়। ঢিবি যতঃ সমুদ্রের তটে থাকে, এইজন্য এর নির্মাণে সামুদ্রিক লবণেরও মিশ্রণ হয়ে যায়। লবণমিশ্রিত ঢিবির মাটি আস্রাবের নিবারণে বিশেষোপকারী হয়, এটাই উদ্দেশ্য। সামুদ্রিক তটে নির্মিত ঢিবিতে সামুদ্রিক জল আস্তে আস্তে করে নিজের লবণকে ঢিবিতে মিশ্রিত করে দেয়। এইজন্য সামুদ্রিক ঢিবিতে বিশেষ গুণাধান হয়ে যায়।]

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    मन्त्र विषय

    শারীরিকমানসিকরোগনাশোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (উপজীকাঃ) [পরমেশ্বরের] আশ্রিত পুরুষ (সমুদ্রাৎ অধি) আকাশ [সমস্ত জগত] থেকে (ভেষজম্) ভয়নিবারক ব্রহ্মকে, (উদ্ভরন্তি) উপরে নিয়ে আসে। (তৎ) সেই [ব্রহ্ম] (আস্রাবস্য) বহু ক্লেশের (ভেষজম্) ঔষধ, (তৎ) তিনি (উ)(রোগম্) রোগকে (অশীশমৎ) শান্ত করে দিয়েছেন/করেছেন॥৪॥

    भावार्थ

    পরমেশ্বরের আশ্রিত পুরুষ সংসারের প্রত্যেক পদার্থে ঈশ্বরকে প্রাপ্ত করে এবং সেই আদিকারণের মহিমা সাক্ষাৎ করে নিজের সমস্ত ক্লেশের নাশ করে আনন্দ ভোগ করে॥৪॥

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