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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - चन्द्रमा अथवा जङ्गिडः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु प्राप्ति सूक्त
    54

    अ॒यं विष्क॑न्धं सहते॒ ऽयं बा॑ध॒ते अ॒त्त्रिणः॑। अ॒यं नो॑ वि॒श्वभे॑षजो जङ्गि॒डः पा॒त्वंह॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । विऽस्क॑न्धम् । स॒ह॒ते॒ । अ॒यम् । बा॒ध॒ते॒ । अ॒त्त्रिण॑: । अ॒यम् । न॒: । वि॒श्वऽभे॑षज: । ज॒ङ्गि॒ड: । पा॒तु॒ । अंह॑स: ॥४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं विष्कन्धं सहते ऽयं बाधते अत्त्रिणः। अयं नो विश्वभेषजो जङ्गिडः पात्वंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । विऽस्कन्धम् । सहते । अयम् । बाधते । अत्त्रिण: । अयम् । न: । विश्वऽभेषज: । जङ्गिड: । पातु । अंहस: ॥४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य परमेश्वर की भक्ति से आयु बढ़ावे।

    पदार्थ

    (अयम्) यह (विश्वभेषजः) सर्वौषध (जङ्गिडः) पापों वा रोगों का भक्षक [परमेश्वर वा औषध] (विष्कन्धम्) विघ्न को (सहते) दबाता है, (अयम्) यही (अत्रिणः) खाउओं वा रोगों को (बाधते) रोकता है। (अयम्) यही (नः) हमको (अंहसः) पाप से (पातु) बचावे ॥३॥

    भावार्थ

    उत्साही विचारवान् पुरुष परमेश्वर में विश्वास और पथ्य पदार्थों का सेवन करके अपनी दूरदर्शिता से मानसिक और शारीरिक बाधाओं को हटाकर अटल सुख भोगते हैं ॥३॥

    टिप्पणी

    ३–विष्कन्धम्। म० १। विघ्नम्। सहते। षह अभिभवे। अभिभवति। बाधते। बाधृ विलोडने। निवारयति नाशयति। अत्त्रिणः। अ० १।७।३। अद भक्षणे–त्रिनि। अत्रीन्, भक्षकान् पुरुषान् रोगान् वा। विश्वभेषजः। सर्वेषां रोगादीनां जेता निवर्तकः। सर्वौषधः। अंहसः। अमेर्हुक् च। उ० ४।११३। इति अम रोगे, गतौ च–असुन् हुक् च। रोगात्। पापात् ॥ ०२।०४।०४

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    विषय

    'विश्वभेषज' मणि

    पदार्थ

    १. (अयम्) = यह वीर्यरूप मणि (विष्कन्धम्) = अङ्गों के गठन के टूटने को (सहते) = अधिभूत करती है, अङ्गों को सुगठित बनाती है। (अयम्) = यह (अत्रिण:) = शरीर-भक्षक कृमियों को (बाधते) = पीडित करके दूर करती है। वीर्यरक्षण से शरीर में रोगकृमि प्रबल नहीं हो पाते। २. (अयं जङ्गिड:) = शरीर-भक्षक रोगकृमियों को नष्ट करनेवाली यह जङ्गिडमणि [वीर्यशक्ति] (विश्वभेषजः) = सब रोगों की औषध है। यह हमें (अहंस: पातु) = पापों से बचाये। वीर्यरक्षण से शरीर के ही दोष दूर नहीं होते, यह मानस दुर्भावनाओं को भी दूर करके हमें पापों से बचाता है। यह वीर्यरक्षण शरीर व मन दोनों को ही नीरोग बनाता है।

    भावार्थ

    यह वीर्य 'विश्वभेषज' मणि है।

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    भाषार्थ

    (अयम्) यह (विष्कन्धम् ) शोषण रोग को (सहते) पराभूत करता है, (अयम् ) यह (अत्त्रिणः) भक्षक रोगकीटाणुओं [germs] का (बाधते) वध करता है। ( अयम् ) यह (विश्वभेषज:) सर्वौषधरूप (जङ्गिङः) जङ्गिङ (नः) हमें (अंहसः पातु) पाप से सुरक्षित करे। [विश्वभेषजः= सहस्रवीर्य: (मन्त्र २)। अत्त्रिणः= अद् भक्षणे (अदादिः) + त्रिनिप्रत्ययः ( सायण )।]

    टिप्पणी

    [अत्त्रिणः = त्रिप् (उणा० ४।६९)। त्रिनिच्, त्रिप् च (दशपादी उणा०)।]

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    विषय

    जङ्गिड़ और शण दो प्रकार की सेनाएं ।

    भावार्थ

    ( अयम् ) ब्रह्मचर्य का यह भाव ( विष्कन्धम् ) रक्त-शोषण को ( सहते ) दवा देता है, (अयम्) यह भाव (अत्रिणः) खा जाने वाले काम क्रोध आदि शत्रुओं का ( बाधते ) नाश करता है, (जङ्गिडः) ब्रह्मचर्य रूप ( विश्वभेषजः ) महौषध (नः) हमें (अंहयः) हत्या से या पापवृत्तियों से ( पातु ) बचाए ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। चन्द्रमा जङ्गिडो वा देवता । जगढमणिस्तुतिः । १ विराट् प्रस्तारपंक्तिः । २-६ अनुष्टुभः। षडृर्चं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Jangida Mani

    Meaning

    This jangida mani challenges and eliminates vishkanadha. It wards off all those ailments which eat up the vitalities of the system. It is a panacea for health against all disease. Worn and borne, may it protect us against all evil.

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    Translation

    This jangida-mani, a vaccination -derived from plants, overcomes the rheumatism; this resists the devouring germs. May this jangida vaccine, a wide based remedy, protect us from various diseases.

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    Translation

    This Jangida, overcomes rhumatism, this drives away debilities conouming the body and this is the panacea. Let it save us from distress caused by diseases.

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    Translation

    May this God, the Panacea for all ills, the Devourer of sifts Who overcomes obstacles, and chases the greedy sinners away, save us from sin.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३–विष्कन्धम्। म० १। विघ्नम्। सहते। षह अभिभवे। अभिभवति। बाधते। बाधृ विलोडने। निवारयति नाशयति। अत्त्रिणः। अ० १।७।३। अद भक्षणे–त्रिनि। अत्रीन्, भक्षकान् पुरुषान् रोगान् वा। विश्वभेषजः। सर्वेषां रोगादीनां जेता निवर्तकः। सर्वौषधः। अंहसः। अमेर्हुक् च। उ० ४।११३। इति अम रोगे, गतौ च–असुन् हुक् च। रोगात्। पापात् ॥ ०२।०४।०४

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (অয়ং) এই (বিশ্বভেষজঃ) সর্বৌষধ (জঙ্গিডঃ) পাপ নাশক পরমেশ্বর (বিষ্কন্ধং) বিঘ্নকে (সহতে) পরাজয় করেন। (অয়ং) তিনিই (অত্রিণঃ) রোগকে (বাথতে) নিবারণ করেন। (অয়ং) তিনিই (নঃ) আমাদিগকে (অংহসঃ) পাপ হইতে (পাতু) রক্ষা করেন।।

    भावार्थ

    এই সর্বৌষধ স্বরূপ, পাপ নাশক পরমেশ্বর বিগ্নকে পরাজয় করেন, তিনি রোগকে নিবারণ করেন এবং আমাদিগকে পাপ হইতে রক্ষা করেন।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    অয়ং বিষ্কন্ধং সহতে বাধতে অত্ৰিণঃ। অয়ং নো বিশ্বভেষজো জঙ্গিডঃ পাতৃহসঃ।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    অর্থবা। জঙ্গিডমণিঃ। অনুষ্টুপ্

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    भाषार्थ

    (অয়ম্) ইহা (বিষ্কন্ধম্) শোষণ রোগকে (সহতে) পরাজিত করে, (অয়ম্) ইহা (অত্ত্রিণঃ) ভক্ষক রোগজীবাণু [germs] এর (বাধতে) বধ করে। (অয়ম্) এই (বিশ্বভেষজঃ) সর্বৌষধরূপ (জঙ্গিডঃ) জঙ্গিড (নঃ) আমাদের (অহসঃ পাতু) পাপ থেকে সুরক্ষিত করে/করুক। [বিশ্বভেষজঃ = সহস্রবীর্যঃ (মন্ত্র ২)। অত্রিণঃ= অদ্ ভক্ষণে (অদাদিঃ) + ত্রিনিপ্রত্যয়ঃ (সায়ণ)

    टिप्पणी

    [অত্ত্রিণঃ = ত্রিপ্ (উণা০ ৪।৬৯) ত্রিণিচ, ত্রিপ্ চ (দশপাদী উণা০)।]

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    मन्त्र विषय

    মনুষ্যঃ পরমেশ্বরভক্ত্যায়ুর্বর্ধয়েৎ

    भाषार्थ

    (অয়ম্) এই (বিশ্বভেষজঃ) সর্বৌষধ (জঙ্গিডঃ) পাপ বা রোগের ভক্ষক [পরমেশ্বর বা ঔষধ] (বিষ্কন্ধম্) বিঘ্ন (সহতে) দমন করে, (অয়ম্) ইহাই (অত্রিণঃ) সেবন করি যা রোগ-সমূহকে (বাধতে) প্রতিরোধ করে। (অয়ম্) ইহা (নঃ) আমাদের (অংহসঃ) পাপ থেকে (পাতু) রক্ষা করে ॥৩॥

    भावार्थ

    উৎসাহী বিচারবান্ পুরুষ পরমেশ্বরের প্রতি বিশ্বাস ও পথ্য পদার্থের সেবন করে নিজের দূরদর্শিতা দ্বারা মানসিক ও শারীরিক বাধা দূর করে অটল/দৃঢ়/স্থায়ী সুখ ভোগ করে/করুক॥৩॥

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