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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 104 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 104/ मन्त्र 2
    ऋषिः - मेध्यातिथिः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-१०४
    43

    अ॒यं स॒हस्र॒मृषि॑भिः॒ सह॑स्कृतः समु॒द्र इ॑व पप्रथे। स॒त्यः सो अ॑स्य महि॒मा गृ॑णे॒ शवो॑ य॒ज्ञेषु॑ विप्र॒राज्ये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । स॒हस्र॑म् । ऋषि॑ऽभि: । सह॑:ऽकृत: । स॒मु॒द्र:ऽइ॑व । प॒प्र॒थे॒ ॥ स॒त्य: । स: । अ॒स्य॒ । म॒हि॒मा । गृ॒णे॒ । शव॑: । य॒ज्ञेषु॑ । वि॒प्र॒ऽराज्ये॑ ॥१०४.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं सहस्रमृषिभिः सहस्कृतः समुद्र इव पप्रथे। सत्यः सो अस्य महिमा गृणे शवो यज्ञेषु विप्रराज्ये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । सहस्रम् । ऋषिऽभि: । सह:ऽकृत: । समुद्र:ऽइव । पप्रथे ॥ सत्य: । स: । अस्य । महिमा । गृणे । शव: । यज्ञेषु । विप्रऽराज्ये ॥१०४.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 104; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (समुद्रः इव) आकाश के समान वर्तमान (अयम्) इस [परमेश्वर] ने (ऋषिभिः) ऋषियों [वेदार्थ जाननेवालों] द्वारा (सहस्कृतः) पराक्रम करनेवालों को (सहस्रम्) सहस्र प्रकार से (पप्रथे) फैलाया है। (अस्य) इस [परमात्मा] की (सः) वह (महिमा) महिमा (सत्यः) सत्य है, (विप्रराज्ये) विद्वानों के राज्य के बीच (यज्ञेषु) यज्ञों [श्रेष्ठ व्यवहारों] में (शवः) उस बल की (गृणे) मैं बड़ाई करता हूँ ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिये कि परमात्मा की सदा स्तुति करते रहें, क्योंकि वह विद्वानों को प्राप्त होकर राज्य करनेवाले पुरुष का बल बढ़ाता है ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(अयम्) परमेश्वरः (सहस्रम्) बहुप्रकारेण (ऋषिभिः) वेदार्थविद्भिः (सहस्कृतः) पराक्रमकर्तॄन् (समुद्रः) अन्तरिक्षम् (इव) यथा (पप्रथे) विस्तारितवान् (सत्यः) यथार्थः (सः) (अस्य) परमेश्वरस्य (महिमा) महत्त्वम् (गृणे) स्तौमि (शवः) बलम् (यज्ञेषु) श्रेष्ठव्यवहारेषु (विप्रराज्ये) मेधाविनां राष्ट्रे ॥

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    विषय

    यज्ञेषु-विप्रराज्ये

    पदार्थ

    १. (अयम्) = ये प्रभु (ऋषिभिः) = तत्त्वद्रष्टा पुरुषों से (सहस्त्रम्) = आनन्दपूर्वक (सहस्कत:) = अपना बल बनाया जाता है, अर्थात् ऋषि लोग प्रभु को हृदयों में धारण करते हुए प्रभु के बल से अपने को बल-सम्पन्न बनाते हैं। ये प्रभु (समुद्रः इव) = समुद्र के समान (पप्रथे) = विस्तृत हैं। समुद्र अनन्त सा प्रतीत होता है-प्रभु हैं ही अनन्त । २. (सः) = वह (अस्य) = इसकी (महिमा) = महिमा (सत्यः) = सत्य है कि (यज्ञेषु) = यज्ञों और (विप्रराज्ये) = ज्ञानियों के राज्य में (शवः गृणे) = इस प्रभु के बल का स्तवन होता है। वे प्रभु स्तुत्य बलवाले हैं। प्रभु का यह बल यज्ञों व ज्ञानयज्ञों का रक्षण करता है।

    भावार्थ

    ऋषि प्रभु को ही अपना बल बनाते हैं। प्रभु सर्वव्यापक हैं। प्रभु के बल का सर्वत्र यज्ञों में व ज्ञानयज्ञों में स्तवन होता है।

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    भाषार्थ

    (अयम्) यह परमेश्वर (सहस्रम् ऋषिभिः) हजारों ऋषियों द्वारा (सहस्कृतः) साहस और धैर्यपूर्वक साक्षात् किया जाता है। यह (समुद्र इव) जलीय-समुद्र या आकाश के सदृश (पप्रथे) फैला हुआ है। (अस्य) इस परमेश्वर की (सः) वह (महिमा) महिमा (सत्यः) यथार्थ है—(गृणे) यह मैं कहता हूँ। (यज्ञेषु) यज्ञों में (विप्रराज्ये) तथा विप्रों के राज्य में (शवः) इसका बल प्रसिद्ध है।

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    विषय

    राजा परमेश्वर।

    भावार्थ

    (अयं) यह (सहम्कृतः) बल के उत्पादक (समुद्र इव) समुद्र के समान विस्तृत, अक्षय भण्डार वाले, ऐश्वर्यवान् परमेश्वर और राजा को (सहस्रम्) हजारों (ऋषिभिः) मन्त्रदर्शी ऋषिगण (पप्रथे) विस्तृत या प्रसिद्ध करते हैं। (अस्य) उसकी (सः) वह विख्यात (महिमा) महिमा और (शवः) बल (यज्ञेषु) यज्ञों, उपासनाओं में और (विप्रराज्ये) विद्वानों के प्रदीप्त हृदय में (सत्यः) सत्य है। उसकी ही (गृणे) स्तुति की जाती है। राजा के पक्ष में—(सहस्कृतः) शत्रु के पराजय करने योग्य बल से युक्त वह (ऋषिभिः) हज़ारों ऋषि, मन्त्रद्रष्टा विद्वानों द्वारा (समुद्र इव) समुद्र के समान गम्भीर, अक्षय कोशवाला (पप्रथे) प्रसिद्ध किया जाता है। (यज्ञेषु) परस्पर संगत प्रजासंघों में, संग्रामों में और (विप्रराज्ये) विद्वानों के शासन में (अस्य सत्यः महिमा) इसकी सत्य महिमाओं और (शवः) बल की (गृणे) स्तुति, प्रशंसा की जाती है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-२ मेध्यातिथिर्ऋषिः। ३-४ नृमेधः। इन्दो देवता। प्रगाथाः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Agni Devata

    Meaning

    This Indra, adored and exalted by poets and sages a thousand ways to power and glory, rises like the sea. Ever true and inviolable is he, and I celebrate his might and grandeur expanding in the yajnic programmes of the dominion of the wise.

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    Translation

    This Almighty Divinity like the vast space with seers spreads the strengthening ones in thousand ways. His grandeur is true. I in the Yajna which is realm of enlightened persons praise his power.

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    Translation

    This Almighty Divinity like the vast space with seers spreads the strengthening ones in thousand ways. His grandeur is true. I in the Yajna which is realm of enlightened persons praise his power.

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    Translation

    May the Worship-Worthy, Mighty Lord or king grace us in all the states of rejoicings or Wars! May the Destroyer of evil forces or foes, conqueror of main difficulties or obstacles, pervading all the Vedic verses, grace the occasions of our singing of Vedic songs and praises and the sacrificial acts.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(अयम्) परमेश्वरः (सहस्रम्) बहुप्रकारेण (ऋषिभिः) वेदार्थविद्भिः (सहस्कृतः) पराक्रमकर्तॄन् (समुद्रः) अन्तरिक्षम् (इव) यथा (पप्रथे) विस्तारितवान् (सत्यः) यथार्थः (सः) (अस्य) परमेश्वरस्य (महिमा) महत्त्वम् (गृणे) स्तौमि (शवः) बलम् (यज्ञेषु) श्रेष्ठव्यवहारेषु (विप्रराज्ये) मेधाविनां राष्ट्रे ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (সমুদ্রঃ ইব) আকাশের ন্যায় বর্তমান (অয়ম্) এই [পরমেশ্বর] (ঋষিভিঃ) ঋষিগণের [বেদার্থ জ্ঞাতাদের] দ্বারা (সহস্কৃতঃ) পরাক্রমশালীদের (সহস্রম্) সহস্র উপায়ে (পপ্রথে) বিস্তৃত করেছেন। (অস্য) এই [পরমাত্মার] (সঃ) সেই (মহিমা) মহিমা (সত্যঃ) সত্য, (বিপ্ররাজ্যে) বিদ্বানদের রাজ্যের (যজ্ঞেষু) যজ্ঞে [উৎকৃষ্ট ব্যবহারে] (শবঃ) সেই বলকে (গৃণে) আমি প্রশংসা করি॥২॥

    भावार्थ

    মনুষ্যদের উচিৎ, সর্বদা পরমাত্মার স্তুতি করা, কারণ তিনি বিদ্বানদের প্রাপ্ত হয়ে রাজ্য শাসকের বল বৃদ্ধি করেন ॥২॥

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    भाषार्थ

    (অয়ম্) এই পরমেশ্বর (সহস্রম্ ঋষিভিঃ) সহস্র ঋষিগণ দ্বারা (সহস্কৃতঃ) সাহস এবং ধৈর্যপূর্বক সাক্ষাৎ করা হয়/সাক্ষাৎকৃত হন। ইনি (সমুদ্র ইব) জলীয়-সমুদ্র বা আকাশের সদৃশ (পপ্রথে) বিস্তৃত। (অস্য) এই পরমেশ্বরের (সঃ) সেই (মহিমা) মহিমা (সত্যঃ) যথার্থ —(গৃণে) ইহা আমি বলি। (যজ্ঞেষু) যজ্ঞে (বিপ্ররাজ্যে) তথা বিপ্রদের রাজ্যে (শবঃ) এনার[পরমেশ্বরের] বল প্রসিদ্ধ।

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