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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 105 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 105/ मन्त्र 2
    ऋषिः - नृमेधः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-१०५
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    अनु॑ ते॒ शुष्मं॑ तु॒रय॑न्तमीयतुः क्षो॒णी शिशुं॒ न मा॒तरा॑। विश्वा॑स्ते॒ स्पृधः॑ श्नथयन्त म॒न्यवे॑ वृ॒त्रं यदि॑न्द्र॒ तूर्व॑सि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अनु॑ । ते॒ । शुष्म॑म् । तु॒रय॑न्तम् । ई॒य॒तु॒: । क्षो॒णी इति॑ । शिशु॑म् । न । मा॒तरा॑ ॥ विश्वा॑: । ते॒ । स्पृध॑: । श्न॒थ॒य॒न्त॒ । म॒न्यवे॑ । वृ॒त्रम् । यत् । इ॒न्द्र॒ । तूर्व॑सि ॥१०५.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनु ते शुष्मं तुरयन्तमीयतुः क्षोणी शिशुं न मातरा। विश्वास्ते स्पृधः श्नथयन्त मन्यवे वृत्रं यदिन्द्र तूर्वसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनु । ते । शुष्मम् । तुरयन्तम् । ईयतु: । क्षोणी इति । शिशुम् । न । मातरा ॥ विश्वा: । ते । स्पृध: । श्नथयन्त । मन्यवे । वृत्रम् । यत् । इन्द्र । तूर्वसि ॥१०५.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 105; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमेश्वर] (क्षोणी) दोनों आकाश और भूमिलोक (ते) तेरे (तुरयन्तम्) वेग करते हुए (शुष्मम् अनु) शत्रुओं को सुखानेवाले बल के पीछे (ईयतुः) चलते हैं, (न) जैसे (मातरा) माता-पिता दोनों (शिशुम्) बालक के [पीछे प्रीति से चलते हैं]। (ते) तेरे (मन्यवे) क्रोध से (विश्वाः) सब (स्पृधः) ललकारती हुई शत्रुसेनाएँ (श्नथयन्त) मारी गयी हैं, (यत्) जब कि तू (वृत्रम्) शत्रु को (तूर्वसि) मारता है ॥२॥

    भावार्थ

    जैसे माता-पिता आपा छोड़कर बच्चे से प्रीति करते हैं, वैसे ही सर्वशक्तिमान्, सर्वनियन्ता परमात्मा में परम भक्ति करके मनुष्य शत्रुओं को मारें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(अनु) अनुसृत्य (ते) तव (शुष्मम्) शत्रुशोषकं बलम् (तुरयन्तम्) तुरां कुर्वन्तम् (ईयतुः) गच्छतः (क्षोणी) द्यावापृथिव्यौ (शिशुम्) (न) इव (मातरा) मातापितरौ (विश्वाः) (ते) तव (स्पृधः) स्पर्धमानाः शत्रुसेनाः (श्नथयन्त) श्नथतिर्वधकर्मा-निघ० ३।१९। हता अभवन् (मन्यवे) क्रोधाय (वृत्रम्) शत्रुम् (यत्) यदा (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (तूर्वसि) हंसि ॥

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    विषय

    'वृन-विनाश से सब शत्रुओं को विनाश'

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = सर्वशक्तिमन् प्रभो। आपके (तुरयन्तम् शुष्पम्) = शत्रुओं का संहार करनेवाले बल का (क्षोणी) = द्यावापृथिवी (अनु ईयतुः) = अनुगमन करते हैं, (न:) = जैसे (मातरा शिशुम्) = माता-पिता प्रेम-वश छोटे बच्चे के पीछे चलते हैं। प्रभु के बल से ही वस्तुत: सब अपने शत्रुओं का विनाश कर पाते हैं। २. (ते मन्यवे) = आपके क्रोध के लिए (विश्वा: स्पृधः) = सब शत्रुसैन्य (श्नथयन्त) = श्नथित [हिंसित] व खिन्न हो जाते हैं। (यत्) = जब आप (वृत्रम्) = वृत्र को-ज्ञान के आवरणभूत 'काम' को (तूर्वसि) = विध्वस्त कर देते हैं। वृत्र का विनाश होने पर सब शत्रुसैन्य ढीले पड़ जाते हैं।

    भावार्थ

    सम्पूर्ण संसार प्रभु की शक्ति का ही अनुगमन करता है। प्रभु के मन्यु के सामने सब शत्रु शिथिल हो जाते हैं। प्रभु ही वृत्र का विनाश करते हैं।

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    भाषार्थ

    हे परमेश्वर! (ते) आपके (तुरयन्तम्) संहारकारी (शुष्मम् अनु) बल का मानो अनुचिन्तन करके (क्षोणी) द्युलोक और भूलोक (अनु ईयतुः) आपके अनुगामी हो रहे हैं, (न) जैसे कि (मातरा) माता-पिता (शिशुम् अनु ईयतुः) शिशु की सुरक्षा का अनुचिन्तन करके उसके अनुगामी होते हैं, उसके पीछे-पीछे चलते हैं। (स्पृृधः) स्पर्धा आदि (विश्वाः) सब दुर्भावनाएँ, (ते मन्वये) आपके मन्युरूप के प्रति, (श्नथयन्त) शिथिल पड़ जाती हैं, (यद्) क्योंकि (इन्द्र) हे परमेश्वर! आप (तूर्वसि) उनका विनाश करनेवाले हैं। [क्षोणी=द्यावापृथिवी नाम (निघं০ ३.३०)।]

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    विषय

    राजा, सेनापति।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) शत्रुनाशक राजन् ! (मातरा शिशुं न) माता और पिता दोनों जिस प्रकार बालक के पीछे चलते हैं उसी प्रकार (तुरयन्तम्) शत्रुओं के नाशक (ते शुष्मम्) तेरे बल के (अनु) पीछे पीछे (क्षोणी) शासकवर्ग और प्रजावर्ग दोनों आकाश और पृथिवी के समान वर्तमान बड़े और छोटे सभी (ईयतुः) चलते हैं। (यत्) जब तू (वृत्रं) विघ्नकारी का (तूर्वसि) विनाश करता है तब ही (विश्वाः स्पृधः) सब स्पर्धा करने वाले शत्रुगण (ते मन्यवे) तेरे क्रोध के आगे (श्नथयन्त) शिथिल होजाते हैं, दब जाते हैं और कोई विपरीत उद्योग नहीं करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नृमेध ऋषिः। इन्द्रो देवता। प्रगाथाः। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Agni Devata

    Meaning

    Just as mothers follow the desires and interests of children, so do the heaven and earth, all living beings from earth to heaven, think and act in conformity with you, evil destroying power. All oppositions slacken and fall exhausted when you strike and destroy the demons of evil and negativity in the interest of humanity.

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    Translation

    O mighty ruler, the heaven and the earth cling close to your victorious might as father and mother to their child. When you attack the powerful enemy (vritra) all the hostile rivals Shrink and faint at your wrath.

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    Translation

    O mighty ruler, the heaven and the earth cling close to your Victorious might as father and mother to their child. When you attack the powerful enemy (vritra) all the hostile rivals shrink and faint at your wrath.

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    Translation

    O people, tor your protection and safety, approach the Ageless, Expert in striking others, but never being struck by others, the swift-mover the Victorious, the Destroyer of the wicked, the best of charioteers, the Enhancer of the strength of the brave, foe-killing forces.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(अनु) अनुसृत्य (ते) तव (शुष्मम्) शत्रुशोषकं बलम् (तुरयन्तम्) तुरां कुर्वन्तम् (ईयतुः) गच्छतः (क्षोणी) द्यावापृथिव्यौ (शिशुम्) (न) इव (मातरा) मातापितरौ (विश्वाः) (ते) तव (स्पृधः) स्पर्धमानाः शत्रुसेनाः (श्नथयन्त) श्नथतिर्वधकर्मा-निघ० ३।१९। हता अभवन् (मन्यवे) क्रोधाय (वृत्रम्) शत्रुम् (यत्) यदा (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (तूर्वसि) हंसि ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র! [পরম্ ঐশ্বর্যবান্ পরমেশ্বর] (ক্ষোণী) দ্যাবাপৃথিবী (তে) তোমার (তুরয়ন্তম্) বেগবান (শুষ্মম্ অনু) শত্রুশোষক বলের অনুসরণে (ঈয়তুঃ) চলে, (ন) যেমন (মাতরা) মাতা-পিতা উভয়ই (শিশুম্) সন্তানের [পেছনে প্রীতিপূর্বক গমন করে]। (তে) তোমার (মন্যবে) ক্রোধে (বিশ্বাঃ) সমস্ত (স্পৃধঃ) প্রতিদ্বন্দ্বী শত্রুসেনা (শ্নথয়ন্ত) নিহত হয়/হয়েছে, (যৎ) যখন তুমি (বৃত্রম্) শত্রুদের (তূর্বসি) বধ করো॥২॥

    भावार्थ

    মাতা-পিতা যেমন আশা ত্যাগ করে সন্তানদের প্রীতি করে, তেমনই সর্বশক্তিমান, সর্বনিয়ন্তা পরমাত্মাকে পরম ভক্তি করে মানুষ শত্রুদের বধ করুক ॥২॥

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    भाषार्थ

    হে পরমেশ্বর! (তে) আপনার (তুরয়ন্তম্) সংহারকারী (শুষ্মম্ অনু) বল মানো অনুচিন্তন করে (ক্ষোণী) দ্যুলোক এবং ভূলোক (অনু ঈয়তুঃ) আপনার অনুগামী হচ্ছে, (ন) যেমন (মাতরা) মাতা-পিতা (শিশুম্ অনু ঈয়তুঃ) শিশুর সুরক্ষার অনুচিন্তন করে তাঁর অনুগামী হয়, তাঁর পেছন-পেছন চলে । (স্পৃৃধঃ) স্পর্ধা আদি (বিশ্বাঃ) সকল দুর্ভাবনা, (তে মন্বয়ে) আপনার মন্যুরূপ-এর প্রতি, (শ্নথয়ন্ত) শিথিল হয়ে যায়, (যদ্) কারণ (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! আপনি (তূর্বসি) সেগুলোর বিনাশকারী। [ক্ষোণী=দ্যাবাপৃথিবী নাম (নিঘং০ ৩.৩০)।]

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