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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 105 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 105/ मन्त्र 5
    ऋषिः - पुरुन्हमा देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-१०५
    40

    इन्द्रं॒ तं शु॑म्भ पुरुहन्म॒न्नव॑से॒ यस्य॑ द्वि॒ता वि॑ध॒र्तरि॑। हस्ता॑य॒ वज्रः॒ प्रति॑ धायि दर्श॒तो म॒हो दि॒वे न सूर्यः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑म् । तम् । शु॒म्भ॒ । पु॒रु॒ऽह॒न्म॒न् । अव॑से । यस्य॑ । द्वि॒ता । वि॒ऽध॒र्तरि॑ ॥ हस्ता॑य । वज्र॑: । प्रत‍ि॑ । धा॒यि॒ । द॒र्श॒त: । म॒ह: । दि॒वे । न । सूर्य॑: ॥१०५.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रं तं शुम्भ पुरुहन्मन्नवसे यस्य द्विता विधर्तरि। हस्ताय वज्रः प्रति धायि दर्शतो महो दिवे न सूर्यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रम् । तम् । शुम्भ । पुरुऽहन्मन् । अवसे । यस्य । द्विता । विऽधर्तरि ॥ हस्ताय । वज्र: । प्रत‍ि । धायि । दर्शत: । मह: । दिवे । न । सूर्य: ॥१०५.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 105; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (पुरुहन्मन्) हे बहुत ज्ञानी ऋषि ! (तम्) उस (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] का (शुम्भ) भाषण कर, (यस्य) जिसके (द्विता) दोनों कर्म [अनुग्रह और निग्रह गुण] (विर्धतरि) बुद्धिमान् जन पर (अवसे) रक्षा के लिये और [जिसका] (दर्शतः) दर्शनीय (महः) महान् (वज्रः) वज्र [दण्डसामर्थ्य] (हस्ताय) हाथ [अर्थात् हमारे बाहुबल] के लिये (प्रति) प्रत्यक्ष (धायि) धारण किया गया है, (न) जैसे (सूर्यः) सूर्य (दिवे) प्रकाश के लिये है ॥॥

    भावार्थ

    परमात्मा अति प्रत्यक्ष रूप से दुष्टों को दण्ड देता है और धर्मात्माओं पर अनुग्रह करता है, ऐसा निश्चय करके विद्वान् लोग सदा ईश्वर की आज्ञा में रहकर सुखी होवें ॥॥

    टिप्पणी

    ४, −व्याख्यातौ-अथ० २०।९२।१६, १७ ॥

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    विषय

    वज्रः-सूर्यः

    पदार्थ

    १.हे (पुरुहन्मन्) = शत्रुओं का खूब ही हनन करनेवाले जीव। तू (तम्) = उस (इन्द्रम्) = शत्रु विद्रावक प्रभु को (अवसे) = रक्षण के लिए (शुम्भ) = अपने जीवन में अलंकृत कर । उस प्रभु को अलंकृत कर (यस्य) = जिसके (द्विता) = दोनों का विस्तार है-उस प्रभु की शक्ति भी अनन्त विस्तारवाली है और ज्ञान भी। प्रभु को धारण करने पर हम भी ज्ञान व शक्ति प्राप्त करेंगे। २. उस (विधर्तरि) = विशेषरूप से धारण करनेवाले प्रभु में (हस्ताय) = [हननाय]-शत्रु-संहार के लिए (दर्शतः) = दर्शनीय (महः) = महान् (वज्रः) = वन (प्रतिधायि) = धारण किया जाता है (न) = [चार्थे] और (दिवे:) = प्रकाश के लिए (सूर्य:) = सूर्य धारण किया जाता है। 'वा'शत्रु-संहार की शक्ति का प्रतीक है और 'सूर्य' ज्ञान का।

    भावार्थ

    हम अपने जीवनों में प्रभु का धारण करें। प्रभु शत्रुहनन के लिए वन का धारण करते हैं और प्रकाश के लिए सूर्य का। प्रभु का धारण हमें शक्ति व प्रकाश प्राप्त कराएगा। ज्ञान के धारण करनेवाले हम 'गोधूक्ति' बनेंगे, अर्थात् हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ उत्तम ही कथन करेंगी तथा शक्ति को धारण करनेवाले हम अश्वसूक्ति होंगे। ये ही अगले सूक्त के ऋषि -

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    भाषार्थ

    (पुरुहन्मन्) पापों का स्वयं हनन करनेवाले हे उपासक! तू (अवसे) आत्म-रक्षा के लिए (तं इन्द्रम्) उस परमेश्वर की (शुम्भ) शोभा को बढ़ा स्तुतियों द्वारा, (विधर्तरि) जगत् के धारण करने में (यस्य) जिसके कि (द्विता) दो रूप हैं। उस परमेश्वर ने (हस्ताय) पापों के हनन के लिए (दर्शतः) दर्शनीय (वज्रः) न्याय-वज्र (प्रति धायि) धारण किया हुआ है, (न) जैसे कि (दिवे) प्रकाश के लिए (महः सूर्यः) तेजस्वी-सूर्य को, उसने धारण किया हुआ है।

    टिप्पणी

    [द्विता=परमेश्वर के दो रूप हैं—अनुग्रह करनेवाला रूप, और निग्रह करनेवाला रूप। सत्कर्मियों पर वह अनुग्रह रूपवाला है, और दुष्कर्मियों पर निग्रह रूपवाला है। हस्ताय=हन् हिंसायाम्।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Agni Devata

    Meaning

    O man of universal devotion, exalt and glorify that omnipotent Indra for protection and progress in whom, as ruler and controller of the world, both justice and mercy abide simultaneously, who holds the thunderbolt of power in hand, and who is great and glorious like the sun in heaven.

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    Translation

    O man of ignorance-quelling quality, you for aid described the qualities of that strong God whose two-fold action, the mercy and dispensing of justice are amnifest on the learned one, whose shining bolt is held by Him for the resistence of obstructive forces as the sun is held for the light.

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    Translation

    O man of ignorance-quelling quality, you for aid described, the qualities of that strong God whose two-fold action, the mercy and dispensing of justice are manifest on the learned one, whose shining bolt is held by Him for the resistance of obstructive forces as the sun is held for the light.

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    Translation

    The Intelligence and devotion sharpen (i.e., increase the influence of) Thy that Great Glory, high Energy, supreme knowledge activation and terrible might, which is so acceptable and worthy of choice.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४, −व्याख्यातौ-अथ० २०।९२।१६, १७ ॥

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