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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 108 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 108/ मन्त्र 3
    ऋषिः - नृमेधः देवता - इन्द्रः छन्दः - पुरउष्णिक् सूक्तम् - सूक्त-१०८
    44

    त्वां शु॑ष्मिन्पुरुहूत वाज॒यन्त॒मुप॑ ब्रुवे शतक्रतो। स नो॑ रास्व सु॒वीर्य॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वाम् । शु॒ष्मि॒न् । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । वा॒ज॒ऽयन्त॑म् । उप॑ । ब्रु॒वे॒ । श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो ॥ स: । न॒: । रा॒स्‍व॒ । सु॒ऽवीर्य॑म् ॥१०८.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वां शुष्मिन्पुरुहूत वाजयन्तमुप ब्रुवे शतक्रतो। स नो रास्व सुवीर्यम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वाम् । शुष्मिन् । पुरुऽहूत । वाजऽयन्तम् । उप । ब्रुवे । शतक्रतो इति शतऽक्रतो ॥ स: । न: । रास्‍व । सुऽवीर्यम् ॥१०८.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 108; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमेश्वर की प्रार्थना का उपदेश।

    पदार्थ

    (शुष्मिन्) हे महाबली ! (पुरुहूत) हे बहुत प्रकार बुलाये गये ! (शतक्रतो) हे सैकड़ों कर्मोंवाले ! [परमेश्वर] (वाजयन्तम्) बलवान् बनानेवाले (त्वाम्) तुझको (उप) आदर से (ब्रुवे) मैं बुलाता हूँ, (सः) सो तू (नः) हमें (सुवीर्यम्) बड़ा वीरपन (रास्व) दे ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य महाबली परमेश्वर से प्रार्थना करके अनेक उपकारी कर्म करते हुए अपना वीरत्व बढ़ावें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(त्वाम्) (शुष्मिन्) महाबलिन् (पुरुहूत) बहुविधाहूत (वाजयन्तम्) बलवन्तं कुर्वाणम् (उप) पूजायाम् (ब्रुवे) वदामि (शतक्रतो) बहुकर्मन् (सः) स त्वम् (नः) अस्मभ्यम् (रास्व) देहि (सुवीर्यम्) महावीरत्वम् ॥

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    विषय

    सुवीर्यम्

    पदार्थ

    १.हे (शष्मिन्) = शत्रुओं के शोषक बल से सम्पन्न! (पुरुहूत) = बहुतों से पुकारे जानेवाले (शतक्रतो) = अनन्त प्रज्ञान व शक्ति से सम्पन्न प्रभो! (वाजयन्तम्) = हमारे साथ बल का सम्पर्क करनेवाले (त्वाम्) = आपको ही (उपब्रुवे) = मैं समीपता से पुकारता हूँ। २. (स:) = उपासना किये गये वे आप (नः) = मारे लिए (सुवीर्यम्) = उत्तम शक्ति को (रास्व) = दीजिए।

    भावार्थ

    सर्वशक्तिमान् प्रभु उपासक को भी शक्ति-सम्पन्न बनाते हैं। प्रभु हमारे लिए भी सुवीर्य को प्राप्त कराएँ। 'ओज-नृम्ण-सुम्न व सुवीर्य' को प्राप्त करनेवाला यह व्यक्ति प्रशस्त इन्द्रियोंवाला 'गो तम' बनता है। यही अगले सूक्त का ऋषि है -

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    भाषार्थ

    (शुष्मिन्) हे बलशाली! (पुरुहूत) हे बहुत उपासकों द्वारा या बहुत नामों द्वारा पुकारे गये, (शतक्रतो) हे सैकड़ों कर्मोंवाले महाप्रज्ञ! (वाजयन्तम्) उपासकों को बल-प्रदान की इच्छावाले (त्वाम्) आपको (उपब्रुवे) मैं नम्रतापूर्वक कहता हूँ कि (सः) वे आप (नः) हमें (सुवीर्यम्) धर्मकार्यों में उत्तम वीरता (रास्व) प्रदान कीजिए।

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    विषय

    राजा, परमेश्वर।

    भावार्थ

    हे (पुरुहूत) बहुतसी प्रजाओं से नित्य पुकारे जाने योग्य ! हे (शतक्रतो) अनन्त प्रज्ञावाले ! हे (शुष्मिन्) बलवन् ! (वाजयन्तम्) ऐश्वर्य प्रदान करने वाले (त्वाम्) तेरी मैं (उप ब्रुवे) स्तुति करता हूं। (सः) वह तू (नः) हमें (वीर्यम्) उत्तम वीर्य, बल (रास्व) प्रदान कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नृमेध ऋषिः। इन्द्रो देवता। १ गायत्री, २ ककुप्, ३ पुर उष्णिक्। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Agni Devata

    Meaning

    O lord of cosmic energy universally invoked, hero of infinite acts of kindness and creation, giver of sustenance and victory, we pray in silent sincerity of conscience, bring us and bless us with noble strength and vitality of body and mind and creativity of vision and imagination.

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    Translation

    O All-praised, O Possessor of hundred powers, O mighty one, I praise you, the doer of powerful acts. So you grant us heroic might.

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    Translation

    O All-praised, O Possessor of hundred powers, O mighty one, I praise you, the doer of powerful acts. So you gram us heroic might.

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    Translation

    Just as white rays of the penetrating Sun drink the sweet waters, similarly do the people of the earth enjoy the sweet fortunes of the vast kingdom ofthe ruler. The subjects, who always move with, i.e., co-operate with the powerful and wealthy king, under his permanent domicile and patronage, revel in pleasures, in accordance with their self-rule, for great fame and glory.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(त्वाम्) (शुष्मिन्) महाबलिन् (पुरुहूत) बहुविधाहूत (वाजयन्तम्) बलवन्तं कुर्वाणम् (उप) पूजायाम् (ब्रुवे) वदामि (शतक्रतो) बहुकर्मन् (सः) स त्वम् (नः) अस्मभ्यम् (रास्व) देहि (सुवीर्यम्) महावीरत्वम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরপ্রার্থনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (শুষ্মিন্) হে মহাবলশালী! (পুরুহূত) হে বিবিধ প্রকারে আহূত! (শতক্রতো) হে শত কর্মসম্পন্ন! [পরমেশ্বর] (বাজয়ন্তম্) বলবান্ নির্মাতা (ত্বাম্) তোমাকে (উপ) আদরপূর্বক (ব্রুবে) আমরা আহ্বান করি, (সঃ) তাই তুমি (নঃ) আমাদের (সুবীর্যম্) মহা বীরত্ব (রাস্ব) প্রদান করো॥৩॥

    भावार्थ

    পরাক্রমশালী পরমেশ্বরের নিকট প্রার্থনা করে অনেক উপকারী/কল্যাণকর কর্ম দ্বারা মানুষ নিজের বীরত্ব বৃদ্ধি করুক ॥৩॥

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    भाषार्थ

    (শুষ্মিন্) হে বলশালী! (পুরুহূত) হে বহু উপাসকদের দ্বারা বা বহু নাম দ্বারা আহূত, (শতক্রতো) হে শত কর্মযুক্ত মহাপ্রজ্ঞ! (বাজয়ন্তম্) উপাসকদের বল-প্রদানের কামনাসম্পন্ন (ত্বাম্) আপনাকে (উপব্রুবে) আমি নম্রতাপূর্বক বলি, (সঃ) সেই আপনি (নঃ) আমাদের (সুবীর্যম্) ধর্মকার্যে উত্তম বীরত্ব (রাস্ব) প্রদান করুন।

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