अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 114/ मन्त्र 2
नकी॑ रे॒वन्तं॑ स॒ख्याय॑ विन्दसे॒ पीय॑न्ति ते सुरा॒श्व:। य॒दा कृ॒णोषि॑ नद॒नुं समू॑ह॒स्यादित्पि॒तेव॑ हूयसे ॥
स्वर सहित पद पाठनकि॑: । रे॒वन्त॑म् । स॒ख्याय॑ । वि॒न्द॒से॒ । पीब॑न्ति । ते॒ । सु॒रा॒श्व॑: ॥ य॒दा । कृ॒णोषि॑ । न॒द॒नुम् । सम् । ऊ॒ह॒सि॒ । आत् । इत् । पि॒ताऽइ॑व । हू॒य॒से॒ ॥११४.२॥
स्वर रहित मन्त्र
नकी रेवन्तं सख्याय विन्दसे पीयन्ति ते सुराश्व:। यदा कृणोषि नदनुं समूहस्यादित्पितेव हूयसे ॥
स्वर रहित पद पाठनकि: । रेवन्तम् । सख्याय । विन्दसे । पीबन्ति । ते । सुराश्व: ॥ यदा । कृणोषि । नदनुम् । सम् । ऊहसि । आत् । इत् । पिताऽइव । हूयसे ॥११४.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
[हे परमात्मन् !] (रेवन्तम्) [उस] बड़े धनवान् को (सख्याय) अपनी मित्रता के लिये (नकिः) कभी नहीं (विन्दसे) तू मिलता है, (सुराश्वः) [जो] मदिरा से बढ़ा हुआ [उन्मत्त पागल मनुष्य] (ते) तेरी (पीयन्ति) हिंसा करता है। (यदा) जब तू (नदनुम्) गर्जन (कृणोषि) करता है और (सम्) यथावत् (ऊहसे) तू विचार करता है, (आत् इत्) तभी (पिता इव) पिता के समान (हूयसे) तू बुलाया जाता है ॥२॥
भावार्थ
परमात्मा दुराचारी नास्तिक बड़े धनी को भी जब तुच्छ कर देता है, तब वह अभिमानी उस परमात्मा की महिमा को साक्षात् करता है ॥२॥
टिप्पणी
२−(नकिः) न कदापि (रेवन्तम्) बहुधनवन्तम् (सख्याय) सखिभावाय (विन्दसे) त्वं लभसे (पीयन्ति) एकवचनस्य बहुवचनम्। पीयति। हिंसां करोति (ते) तव (सुराश्वः) सुरा+टुओगतिवृद्ध्योः-डप्रत्ययः। सुरया मदिरया वृद्धः प्रमत्तः। नास्तिकः (यदा) कृणोषि। करोषि (नदनुम्) अनुङ् नदेश्च। उ० ३।२। णद अव्यक्ते शब्दे-अनुङ्। गर्जनम्। संग्रामम्-निघ० २।१७। (सम्) सम्यक् (ऊहसि) वितर्कयसि (आत्) अनन्तरम् (इत्) एव (पिता) (इव) (हूयसे) आहूयसे ॥
विषय
सम्पत्ति में विस्मरण, विपत्ति में ही स्मरण
पदार्थ
१. हे प्रभो। आप (रेवन्तम्) = धनवान् को-यज्ञ आदि में धन का विनियोग न करनेवाले पुरुष को (सख्याय) = मित्रता के लिए (नकिः बिन्दसे) = नहीं प्राप्त करते। ऐसे अयज्ञशील धनी के आप कभी मित्र नहीं होते। (ते) = वे (सुराश्वः) = [सुर ऐश्वर्य] ऐश्वर्य से फूलनेवाले लोग (पीयन्ति) = हिंसात्मक कर्मों में प्रवृत होते हैं। अभिमान में खूब फूले हुए ये लोग प्रभु को भूल जाते हैं । २. (यदा) = जब आप (नदनुं कृणोषि) = गर्जना करते हैं, अर्थात् जब जरा भूकम्प-सा आता है तब सब सम्पत्ति हिलती-सी प्रतीत होती है तब आप (समूहसि) = [change, modify] उनके जीवन में परिवर्तन लाते हैं। (आत् इत्) = उस समय ही (पिता इव हूयसे) = पिता के समान आप पुकारे जाते हैं। वे धनी व्याकुलता होने पर परिवर्तित जीवनवाले बनते हैं और प्रभु की ओर झुकाववाले हो जाते हैं।
भावार्थ
जो धनी धन के मद में फूले हुए हिंसात्मक कर्मों में प्रवृत्त होते हैं, प्रभु उनके कभी मित्र नहीं होते। जब कभी सम्पत्ति विनष्ट होने लगती है, तभी ये धनी व्याकुल होकर प्रभु का स्मरण करते हैं और पिता की तरह प्रभु को पुकारते हैं। सम्पत्ति में भी प्रभु का स्मरण करनेवाला प्रभु का प्रिय बनता है, अत: 'वत्स' कहलाता है। यही अगले सूक्त का ऋषि है -
भाषार्थ
हे परमेश्वर! आप (रेवन्तम्) धनलोलुप को (सख्याय) सखिभाव के लिए (नकिः) नहीं (विन्दसे) स्वीकार करते। (ते) वे धन-लोलुप (सुराश्वः) ऐश्वर्य की सुरा में वृद्धि को प्राप्त हुए-हुए (पीयन्ति) प्रजा को पीड़ित करते हैं। (यदा) जब आप (नदनुम्) मृत्युरूपी स्तनयित्नु की गर्जना (कृणोषि) करते हैं, और आप (समूहसि) संहार करने लगते हैं, (आत् इत्) तदनन्तर ही आप (पिता इव) उन धन-लोलुपों के द्वारा पिता कहकर (हूयसे) पुकारे जाते हैं।
टिप्पणी
[सुराश्वः=सुरा+श्वि (गति, वृद्धि), सुरया, धन-सुरया वृद्धाः प्रमत्ताः।]
विषय
राजा और आत्मा।
भावार्थ
हे इन्द्र ! राजन् ! तू (सख्याय) अपने मित्रता के लिये भी (रेवन्तं) केवल धनवान् स्वयं भोक्ता, कंजूस को (नकिः) कभी भी नहीं (विन्दसे) प्राप्त करता है, क्योंकि वे (सुराश्वः) सुरा, राज्यलक्ष्मी से समृद्ध, एवं सुरा, मदकारी पदार्थों के सेवन से मदमत्त होकर (ते) तेरे उत्तम जनों को (पीयन्ति) विनाश किया करते हैं। (यदा) जब तू (नदनुम्) मेघ के समान गर्जन करता है तब (सम् ऊहसि) तू भली प्रकार मेघ के समान ही समृद्धियों को भी प्राप्त कराता है और (आत् इत्) तभी प्रजाओं द्वारा (पिता इव) पालक पिता के समान (हूयसे) पुकारा जाता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सौभरिर्ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यौ। द्व्यृचं सक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
You do not just care to choose the rich for companionship, if they are swollen with drink and pride and violate the rules of divine discipline. But when you attend to the poor and alter their fortune for the better, you are invoked like father with gratitude which the voice of thunder acknowledges and approves.
Translation
O Almighty one, you never find the wealthy man to be your friend. Those man who are flown with wine scorn you when you issue the thunder and make one think you are invoked as father.
Translation
O Almighty one, you never find the wealthy man to be your friend. Those man who are flown with wine scorn you, when you issue the thunder and make one think you are invoked as father.
Translation
Surely I (i.e., God) alone fully conceive the penetrating intelligence of the natural laws of the protector and creator of the universe. I reveal my as the Sun, lighting the whole creation.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(नकिः) न कदापि (रेवन्तम्) बहुधनवन्तम् (सख्याय) सखिभावाय (विन्दसे) त्वं लभसे (पीयन्ति) एकवचनस्य बहुवचनम्। पीयति। हिंसां करोति (ते) तव (सुराश्वः) सुरा+टुओगतिवृद्ध्योः-डप्रत्ययः। सुरया मदिरया वृद्धः प्रमत्तः। नास्तिकः (यदा) कृणोषि। करोषि (नदनुम्) अनुङ् नदेश्च। उ० ३।२। णद अव्यक्ते शब्दे-अनुङ्। गर्जनम्। संग्रामम्-निघ० २।१७। (सम्) सम्यक् (ऊहसि) वितर्कयसि (आत्) अनन्तरम् (इत्) एव (पिता) (इव) (हूयसे) आहूयसे ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
[হে পরমাত্মন্!] (রেবন্তম্) [সেই] খুব/বহু ধনবান মনুষ্যকে (সখ্যায়) নিজের মিত্রতার জন্য (নকিঃ) কখনও না (বিন্দসে) তুমি সাক্ষাৎ করো/প্রাপ্ত হও, (সুরাশ্বঃ) [যে] সুরা দ্বারা বর্ধিত [উন্মত্ত পাগল মনুষ্য] (তে) তোমার (পীয়ন্তি) হিংসা করে। (যদা) যখন তুমি (নদনুম্) গর্জন (কৃণোষি) করো এবং (সম্) যথাবৎ (ঊহসে) তুমি বিচার করো, (আৎ ইৎ) তখনই (পিতা ইব) পিতার ন্যায় (হূয়সে) তুমি আহূত হও ॥২॥
भावार्थ
পরমাত্মা যখন দুরাচারী নাস্তিক অনেক ধনীকেও তুচ্ছ করে দেয়, তখন সেই অভিমানী, পরমাত্মার মহিমার সাক্ষাৎ/প্রকাশ করে ॥২॥
भाषार्थ
হে পরমেশ্বর! আপনি (রেবন্তম্) ধনলোলুপকে (সখ্যায়) সখিভাবের জন্য (নকিঃ) না (বিন্দসে) স্বীকার করেন। (তে) সেই ধন-লোলুপ (সুরাশ্বঃ) ঐশ্বর্যের সুরায় বৃদ্ধি প্রাপ্ত হয়ে-হয়ে (পীয়ন্তি) প্রজাকে পীড়িত করে। (যদা) যখন আপনি (নদনুম্) মৃত্যুরূপী স্তনয়িত্নু-এর গর্জনা (কৃণোষি) করেন, এবং আপনি (সমূহসি) সংহার করেন, (আৎ ইৎ) তদনন্তরই আপনি (পিতা ইব) সেই ধন-লোলুপদের দ্বারা পিতা হিসেবে/সম্বোধনে (হূয়সে) আহূত হন।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal