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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 114 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 114/ मन्त्र 1
    ऋषिः - सौभरिः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-११४
    40

    अ॑भ्रातृ॒व्योऽअ॒ना त्वमना॑पिरिन्द्र ज॒नुषा॑ स॒नाद॑सि। यु॒धेदा॑पि॒त्वमि॑च्छसे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भ्रा॒तृ॒भ्य: । अ॒ना । त्वम् । अना॑पि: । इ॒न्द्र॒ । ज॒नुषा॑ । स॒नात् । अ॒सि॒ ॥ यु॒धा । इत् । आ॒पि॒ऽत्वम् । इ॒च्छ॒से॒ ॥११४.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभ्रातृव्योऽअना त्वमनापिरिन्द्र जनुषा सनादसि। युधेदापित्वमिच्छसे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभ्रातृभ्य: । अना । त्वम् । अनापि: । इन्द्र । जनुषा । सनात् । असि ॥ युधा । इत् । आपिऽत्वम् । इच्छसे ॥११४.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 114; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (1)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमेश्वर] (त्वम्) तू (जनुषा) जन्म से (सनात्) सदा (अभ्रातृव्यः) बिना वैरीवाला, (अना) बिना नेतावाला और (अनापिः) बिना बन्धुवाला (असि) है, (युधा) युद्ध में (हि) ही [हमारे साथ संग्राम होने पर ही] (आपित्वम्) बन्धुपन [हमारे लिये सहायता] (इच्छसे) तू चाहता है ॥१॥

    भावार्थ

    अनादि, अद्वितीय परमात्मा अपने धर्मात्मा भक्तों को सदा संकट से छुड़ाता है ॥१॥

    टिप्पणी

    यह सूक्त ऋग्वेद में है-८।२१।१३, १४, सामवेद, उ० ६।२।४; म० १ सा० पू० ।२।१ ॥ १−(अभ्रातृव्यः) अ० २।१८।१। शत्रुरहितः (अना) अनेतृकः (त्वम्) (अनापिः) बन्धुवर्जितः (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (जनुषा) जन्मना (सनात्) चिरादेव (असि) (युधा) विभक्तेराकारः। अस्माभिः सह युद्धे (इत्) एव (आपित्वम्) बन्धुत्वम् (इच्छसे) कामयसे ॥

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    इंग्लिश (2)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Indra, lord of absolute might by nature, since birth of the universe, indeed for eternity, you are without a rival, need no leader, no friend and no comrade, but in the dynamics of human life you do want that the human should be your companion in and for his struggle for self-evolution and social progress.

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    Translation

    O Almighty God, you are rivalless and companionless from all times by your nature (janusha). By your pervasiveness and creation (Yudha) you desire comradeship.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह सूक्त ऋग्वेद में है-८।२१।१३, १४, सामवेद, उ० ६।२।४; म० १ सा० पू० ।२।१ ॥ १−(अभ्रातृव्यः) अ० २।१८।१। शत्रुरहितः (अना) अनेतृकः (त्वम्) (अनापिः) बन्धुवर्जितः (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (जनुषा) जन्मना (सनात्) चिरादेव (असि) (युधा) विभक्तेराकारः। अस्माभिः सह युद्धे (इत्) एव (आपित्वम्) बन्धुत्वम् (इच्छसे) कामयसे ॥

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