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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 118 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 118/ मन्त्र 2
    ऋषिः - भर्गः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-११८
    51

    पौ॒रो अश्व॑स्य पुरु॒कृद्गवा॑म॒स्युत्सो॑ देव हिर॒ण्ययः॑। नकि॒र्हि दानं॑ परि॒मर्धि॑ष॒त्त्वे यद्य॒द्यामि॒ तदा भ॑र ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पौ॒र: । अश्व॑स्य । पु॒रु॒ऽकृत् । गवा॑म् । अ॒सि॒ । उत्स॑: । दे॒व॒ । हि॒र॒ण्यय॑: ॥ नकि॑: । हि । दान॑म् । प॒रि॒ऽमर्धि॑षत् । त्वे इति॑ । यत्ऽय॑त् । यामि॑ । तत् । आ । भ॒र॒ ॥११८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पौरो अश्वस्य पुरुकृद्गवामस्युत्सो देव हिरण्ययः। नकिर्हि दानं परिमर्धिषत्त्वे यद्यद्यामि तदा भर ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पौर: । अश्वस्य । पुरुऽकृत् । गवाम् । असि । उत्स: । देव । हिरण्यय: ॥ नकि: । हि । दानम् । परिऽमर्धिषत् । त्वे इति । यत्ऽयत् । यामि । तत् । आ । भर ॥११८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 118; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमेश्वर की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    (देव) हे देव ! [कामनायोग्य परमेश्वर] तू (अश्वस्य) घोड़ों का (पौरः) भरपूर करनेवाला, (गवाम्) गौओं का (पुरुकृत्) बहुत करनेवाला, (हिरण्ययः) तेजोमय और (उत्सः) जल के स्रोत [कुएँ के समान उपकारी] (असि) है। (हि) क्योंकि (त्वे) तेरे (दानम्) दान को (नकिः) कोई भी नहीं (परिमर्धिषत्) नाश कर सकता, (यद्यत्) जो-जो (यामि) माँगता हूँ, (तत्) वह-वह (आ भर) भरपूर कर ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमेश्वर की सृष्टि में सब पदार्थों से उपकार लेकर सदा आनन्द पावे ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(पौरः) पूर-अण् स्वार्थे। पूरः। पूरकः। पूरयिता (अश्वस्य) अश्वसमूहस्य (पुरुकृत्) बहुकर्ता (गवाम्) धेनूनाम् (असि) (उत्सः) कूपतुल्य उपकारकः (देव) कमनीय परमात्मन् (हिरण्ययः) तेजोमयः (नकिः) न कश्चिदपि (हि) यतः (दानम्) (परिमर्धिषत्) मृध मृधु हिंसायाम् आर्द्रीभावे च-लेट्। नाशयेत् (त्वे) विभक्तेः शे। तव (यद्यत्) वस्तु (यामि) याचे (तत्) (आ) समन्तात् (भर) धर ॥

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    विषय

    पौरः

    पदार्थ

    १. हे (देव) = प्रकाशमय प्रभो! (अश्वस्य) = कर्मों में व्याप्त होनेवाली, कर्मेन्द्रियों के आप (पौर:) = पूरयिता (असि) = हैं। (गवाम्) = अर्थों की गमक इन्द्रियों के आप (पुरुकृत्) = पालन व पूरण करनेवाले हैं। आप हमारे लिए (हिरण्ययः उत्स:) = ज्योतिर्मय स्रोत के समान हैं। २. (त्वे) = आपमें (दानम्) = हमारे लिए देय धन (नकिः हि) = नहीं ही (परिमार्धिषत्) = हिंसित होता, अर्थात् आप सदा हमारे लिए इन धनों को प्राप्त कराते हैं। (यत् यत् यामि) = जो-जो मैं आपसे माँगता हूँ (तत) = उसे (आभर) = हमारे लिए प्राप्त कराइए।

    भावार्थ

    प्रभु हमारी ज्ञानेन्द्रियों व कर्मेन्द्रियों का पूरण करनेवाले हैं। हमारे लिए ज्ञान के स्रोत हैं। जो कुछ माँगते हैं, उसे हमारे लिए देते हैं।

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    भाषार्थ

    हे परमेश्वर! आप (पौरः) ब्रह्माण्ड-पुरी में बसे हुए हैं। (अश्वस्य) मन की, और (गवाम्) इन्द्रियों की शक्तियों को आप (पुरुकृत्) बहुत बढ़ाते हैं। (उत्सः) आप शक्तियों के स्रोत हैं। (देव) हे दिव्यगुणोंवाले! (हिरण्ययः) आप हितकर और रमणीय हैं, अथवा हिरण्यसदृश बहुमूल्य सम्पत्तिरूप हैं। (त्वे) आपके अधिकार में (दानम्) जो दान देना है उसे (नकिः) कोई भी शक्ति नहीं (परि मर्धिषत्) टाल सकती। हे परमेश्वर! मैं आपका उपासक (यद् यद् यामि) जो-जो आपसे याचना करता हूं (तत्) वह (आ भर) प्रदान कीजिए।

    टिप्पणी

    [यामि=याच्ञाकर्मा (निघं০ ३.१९)।]

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    विषय

    राजा।

    भावार्थ

    हे (देव) दानशील देव ! तू (अश्वस्य पारः) अश्वों को पूर्ण करने वाला और (गवाम् पुरुकृत्) गौ आदि पशु सम्पत्ति को बढ़ाने वाला और (हिरण्यः उत्सः) सुवर्ण आदि धनैश्वर्य का अक्षय कोष (असि) है। (त्वे) तेरे दिये (दानम्) दान को (नकिः हि) कोई भी नहीं (परिमार्धिषत्) नाश कर सकता। हे राजन् (यत् यत्) जो जो पदार्थ भी मैं (यामि) याचना करूं। तू (तत् तत्) वह (आ भर) प्राप्त करा।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १, २ भर्गो ऋषिः। ३, ४ मेधातिथिर्ऋषिः। इन्द्रो देवता। प्रगाथः चतुर्ऋचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    You are the sole One omnipresent citizen of the universe, creator of all lands, cows, lights and knowledges of the world, maker of the motions, ambitions, advancements and achievements of nature and humanity, fountain head of universal joy, and golden refulgent generous lord supreme. No one can ever impair or obstruct your gifts to humanity. O lord, I pray, bring us whatever we need and ask for.

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    Translation

    O Divinity, you are the increaser of steeds, you are the multiplier of kine and you are refulgent and like the well. No, one may impair your gift, you bring me whatever I ask.

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    Translation

    O Divinity, you are the increaser of steeds, you are the multiplier of kine and you are refulgent and like the well. No, one may impair your gift, you bring me whatever I ask.

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    Translation

    In order to achieve divine qualities or honor the learned persons we invoke the Adorable God, king or soul. In the very beginning of a non-violent sacrifice we call Him (or him). Worshipping the Adorable Lord or king or soul, we invoke Him (him) at the time of a war.. Even to achieve wealth and riches, we seek His aid.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(पौरः) पूर-अण् स्वार्थे। पूरः। पूरकः। पूरयिता (अश्वस्य) अश्वसमूहस्य (पुरुकृत्) बहुकर्ता (गवाम्) धेनूनाम् (असि) (उत्सः) कूपतुल्य उपकारकः (देव) कमनीय परमात्मन् (हिरण्ययः) तेजोमयः (नकिः) न कश्चिदपि (हि) यतः (दानम्) (परिमर्धिषत्) मृध मृधु हिंसायाम् आर्द्रीभावे च-लेट्। नाशयेत् (त्वे) विभक्तेः शे। तव (यद्यत्) वस्तु (यामि) याचे (तत्) (आ) समन्तात् (भर) धर ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরোপাসনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (দেব) হে দেব! [কামনাযোগ্য পরমেশ্বর] তুমি (অশ্বস্য) অশ্বসমূহের (পৌরঃ) পূরয়িতা/পূরক, (গবাম্) গাভীদের (পুরুকৃৎ) বহুকর্তা, (হিরণ্যযঃ) তেজোময় এবং (উৎসঃ) জলের স্রোত/উৎস [কূপের ন্যায় উপকারী] (অসি) হও। (হি) কারণ (ত্বে) তোমার (দানম্) দানকে (নকিঃ) কেউ না (পরিমর্ধিষৎ) নাশ করতে পারে, (যদ্যৎ) যা-যা (যামি) যাচনা করি, (তৎ) তা-তা (আ ভর) ভরপূর করো ॥২॥

    भावार्थ

    মনুষ্য পরমেশ্বরের সৃষ্টিতে সকল পদার্থের উপকার গ্রহণ করে সর্বদা আনন্দ লাভ করুক॥২॥

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    भाषार्थ

    হে পরমেশ্বর! আপনি (পৌরঃ) ব্রহ্মাণ্ড-পুরীতে স্থিত। (অশ্বস্য) মনের, এবং (গবাম্) ইন্দ্রিয়-সমূহের শক্তি আপনি (পুরুকৃৎ) অনেক বৃদ্ধি করেন। (উৎসঃ) আপনি শক্তি-সমূহের স্রোত/উৎস। (দেব) হে দিব্যগুণসম্পন্ন! (হিরণ্যযঃ) আপনি হিতকর এবং রমণীয়, অথবা হিরণ্যসদৃশ বহুমূল্য সম্পত্তিরূপ। (ত্বে) আপনার অধিকারে (দানম্) যে দান তা (নকিঃ) কোনো শক্তি না (পরি মর্ধিষৎ) নাশ করতে পারে। হে পরমেশ্বর! আমি আপনার উপাসক (যদ্ যদ্ যামি) যা-যা আপনার প্রতি যাচনা করি (তৎ) তা (আ ভর) প্রদান করুন।

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