Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 119 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 119/ मन्त्र 2
    ऋषिः - श्रुष्टिगुः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-११९
    38

    तु॑र॒ण्यवो॒ मधु॑मन्तं घृत॒श्चुतं॒ विप्रा॑सो अ॒र्कमा॑नृचुः। अ॒स्मे र॒यिः प॑प्रथे॒ वृष्ण्यं॒ शवो॒ऽस्मे सु॑वा॒नास॒ इन्द॑वः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तु॒र॒ण्यव॑: । मधु॑ऽमन्तम् । घृ॒त॒ऽश्चुत॑म् । विप्रा॑स: । अ॒र्कम् । आ॒नृ॒चु॒: ॥ अ॒स्मे इति॑ । र॒यि: । प॒प्र॒थे॒ । वृष्ण्य॑म् । शव॑: । अ॒स्मे इति॑ । सु॒वा॒नास॑: । इन्द॑व: ॥११९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तुरण्यवो मधुमन्तं घृतश्चुतं विप्रासो अर्कमानृचुः। अस्मे रयिः पप्रथे वृष्ण्यं शवोऽस्मे सुवानास इन्दवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तुरण्यव: । मधुऽमन्तम् । घृतऽश्चुतम् । विप्रास: । अर्कम् । आनृचु: ॥ अस्मे इति । रयि: । पप्रथे । वृष्ण्यम् । शव: । अस्मे इति । सुवानास: । इन्दव: ॥११९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 119; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमेश्वर की स्तुति का उपदेश।

    पदार्थ

    (तुरण्यवः) फुरतीले (विप्रासः) बुद्धिमानों ने (मधुमन्तम्) मधु [वेदविद्या] वाले (घृतश्चुतम्) प्रकाश के बरसानेवाले (अर्कम्) पूजनीय परमात्मा को (आनृचुः) पूजा है। (अस्मे) हमारे लिये (रयिः) धन, और (वृष्ण्यम्) वीर के योग्य (शवः) बल (पप्रथे) फैल रहा है, (अस्मे) हमारे लिये (स्तुवानासः) उत्पन्न होते हुए (इन्दवः) ऐश्वर्य हैं ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य सर्वपूजनीय परमात्मा की महिमा विचारकर धनवान्, बलवान् और ऐश्वर्यवान् होवें ॥२॥

    टिप्पणी

    यह मन्त्र ऋग्वेद में है-८।१।१० [सायणभाष्य, अवशिष्ट, बालखिल्य सू० ३ म० १०]; सामवेद उ० ७।३।१९ ॥ २−(तुरण्यवः) पॄभिदिव्यधि०। उ० १।२३। त्वरणं त्वरायाम्, कण्ड्वादिः-कुप्रत्ययः। वेगशीलाः (मधुमन्तम्) वेदज्ञानवन्तम् (घृतश्चुतम्) अ० १०।६।६। श्चुतिर् क्षरणे-क्विप्। श्चोततिर्गतिकर्मा-निघ० २।१४। प्रकाशवर्षकम् (विप्रासः) मेधाविनः (अर्कम्) पूजनीयं परमात्मानम् (आनृचुः) अ० १२–।१।३९। पूजितवन्तः (अस्मे) अस्मभ्यम् (रयिः) धनम् (पप्रथे) विस्तृतं वर्तते (वृष्ण्यम्) वृष्णे बलवते हितम् (शवः) बलम् (अस्मे) अस्मभ्यम्। अन्यद् गतम्-अ० २०।११८।४ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    तुरण्यवः-विप्रास:

    पदार्थ

    १. (तुरण्यवः) = क्षिप्रकारी, कर्मकुशल (विप्रासः) = अपना विशेषरूप से पूरण करनेवाले लोग (मधुमन्तम्) = अत्यन्त माधुर्यवाले (घृतश्चुतम्) = हमारे जीवनों में दीप्ति को आसिक्त करनेवाले (अर्कम्) = पूजनीय प्रभु का (आनचः) = अर्चन करते हैं। २. इस प्रभु के अर्चन से (अस्मे) = हमारे लिए (रयिःपप्रथे) = ऐश्वर्य का विस्तार होता है। वृष्ण्यं शवः हमें सुखों का सेचन करनेवाला बल प्राप्त होता है। (अस्मे) = हमारे लिए (सुवानासः) = उत्पन्न होते हुए सोमकण (इन्दव:) = शक्तिशाली बनानेवाले होते हैं।

    भावार्थ

    हम प्रभु का अर्चन करें। हमें इस अर्चन से ऐश्वर्य व शक्ति प्राप्त होगी। हमारे अन्दर सुरक्षित सोमकण हमें तेजस्वी व ओजस्वी बनाएंगे। प्रभु की उपासना जीवन को मधुर व ज्ञानदीत बनाती है। यह प्रभु का उपासक अन्ततः 'देवातिथि' बनता है-प्रभु को अपना अतिथि बनाता है। यही अगले सूक्त का ऋषि है -

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (तुरण्यवः) उपासना-मार्ग में त्वरा करनेवाले शीघ्रता करनेवाले तीव्र-संवेगी (विप्रासः) मेधावी उपासक (मधुमन्तम्) मधुर-आनन्दरसवाले, तथा (घृतश्चुतम्) ज्ञानोदक से सींचनेवाले (अर्कम्) अर्चनीय परमेश्वर की (आनृचुः) अर्चनाएँ करते हैं। परिणाम में (अस्मे) हम अर्चना करनेवालों के लिए (रयिः) परमेश्वर की कृपा से आध्यात्मिक-सम्पत्ति (पप्रथे) प्रभूत मात्रा में प्राप्त हुई है, (वृष्ण्यम्) तथा सब पर सुख-शान्ति की वर्षा कर सकने का (शवः) बल प्राप्त हुआ है। और (अस्मे) हमें (सुवानासः) नवजीवनोत्पादक (इन्दवः) भक्तिरस या ज्ञान-विज्ञान की दीप्तियाँ प्राप्त हुई हैं।

    टिप्पणी

    [घृतम्=उदकम् (निघं০ १.१२)। अर्कम्=‘अर्कः देवो भवति यदेनमर्चति’ (निरु০ ५.१.४)।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    ईश्वर।

    भावार्थ

    (तुरण्यवः) अति शीघ्रता से कार्य सम्पादन करने वाले अप्रमादी, (विप्रासः) बुद्धिमान्, विद्वान् पुरुष (मधुमन्तम्) ज्ञानवान् (घृतश्चुतम्) तेज के देने वाले सूर्य के समान तेजस्वी, (अर्कम्) स्तुति करने योग्य परमेश्वर की (आनृचुः) स्तुति करते हैं। वह (अस्मे) हमारे लिये (रयिः) समस्त ऐश्वर्य (पप्रथे) त्रिस्तृत करता है। (सुवानासः) अभिषेक करने वाले (इन्दचः) ऐश्वर्य और (वृष्णयं शचः) बलवान् पुरुषों का बल सब (अस्मे) हमें प्राप्त हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १. आयुः श्रुष्टिर्ऋषिः। इन्द्रो देवता। त्रिष्टुभौ। द्व्यृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Dynamic scholars and vibrant sages offer to Indra the song of adoration replete with honey sweets and liquid power of exhortation. Let the beauty and prosperity of life increase among us, let generous and virile strength and vitality grow, and let streams of inspiring soma flow.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The men of great wisdom, swift and active worships, adorable God who possesses the knowledge of subjects as well as objects, who pours light and who spreads unto us riches and mighty strength and all the created objects and prosperities are for us.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The men of great wisdom, swift and active worships, adorable God who possesses the knowledge of subjects as well as objects, who pours light and. who spreads unto us riches and mighty strength and all the created objects and prosperities are for us.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O Mighty Lord of High Destructive Power, Most Honorable One, as Thou art called by the people from the front, behind, above and below, Thou art highly worshipped by the people amongst the learned and desirous ones, aiming at fourfold ideals of life (i.e., Dharma, Artha, Kama and Moksha).

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह मन्त्र ऋग्वेद में है-८।१।१० [सायणभाष्य, अवशिष्ट, बालखिल्य सू० ३ म० १०]; सामवेद उ० ७।३।१९ ॥ २−(तुरण्यवः) पॄभिदिव्यधि०। उ० १।२३। त्वरणं त्वरायाम्, कण्ड्वादिः-कुप्रत्ययः। वेगशीलाः (मधुमन्तम्) वेदज्ञानवन्तम् (घृतश्चुतम्) अ० १०।६।६। श्चुतिर् क्षरणे-क्विप्। श्चोततिर्गतिकर्मा-निघ० २।१४। प्रकाशवर्षकम् (विप्रासः) मेधाविनः (अर्कम्) पूजनीयं परमात्मानम् (आनृचुः) अ० १२–।१।३९। पूजितवन्तः (अस्मे) अस्मभ्यम् (रयिः) धनम् (पप्रथे) विस्तृतं वर्तते (वृष्ण्यम्) वृष्णे बलवते हितम् (शवः) बलम् (अस्मे) अस्मभ्यम्। अन्यद् गतम्-अ० २०।११८।४ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরস্ত্যুত্যুপদেশঃ

    भाषार्थ

    (তুরণ্যবঃ) বেগবান (বিপ্রাসঃ) বুদ্ধিমানগণ (মধুমন্তম্) মধুযুক্ত [বেদবিদ্যাসম্পন্ন] (ঘৃতশ্চুতম্) প্রকাশ বর্ষণকারী (অর্কম্) পূজনীয় পরমাত্মার (আনৃচুঃ) পূজা করেছে। (অস্মে) আমাদের জন্য (রয়িঃ) ধন, এবং (বৃষ্ণ্যম্) বীরের যোগ্য (শবঃ) বল (পপ্রথে) বিস্তৃত রয়েছে/হচ্ছে, (অস্মে) আমাদের জন্য (স্তুবানাসঃ) উদ্ভূত (ইন্দবঃ) ঐশ্বর্য রয়েছে ॥২॥

    भावार्थ

    সর্বপূজনীয় পরমাত্মার মহিমা বিচার করে মানুষ ধনবান, বলবান এবং ঐশ্বর্যবান হোক ॥২॥ এই মন্ত্র ঋগ্বেদে আছে-৮।১।১০ [সায়ণভাষ্য, অবশিষ্ট, বালখিল্য সূ০ ৩ ম০ ১০]; সামবেদ উ০ ৭।৩।১৯ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (তুরণ্যবঃ) উপাসনা-মার্গে শীঘ্রতাকারী/বেগবান তীব্র-সংবেগী (বিপ্রাসঃ) মেধাবী উপাসক (মধুমন্তম্) মধুর-আনন্দরসযুক্ত, তথা (ঘৃতশ্চুতম্) জ্ঞানোদক দ্বারা সীঞ্চণকারী (অর্কম্) অর্চনীয় পরমেশ্বরের (আনৃচুঃ) অর্চনা করে। পরিণামস্বরূপ (অস্মে) আমাদের [অর্চনাকারীদের] জন্য (রয়িঃ) পরমেশ্বরের কৃপা দ্বারা আধ্যাত্মিক-সম্পত্তি (পপ্রথে) প্রভূত মাত্রায় প্রাপ্ত হয়েছে, (বৃষ্ণ্যম্) তথা সকলের ওপর সুখ-শান্তির বর্ষা করার (শবঃ) বল প্রাপ্ত হয়েছে। এবং (অস্মে) আমাদের (সুবানাসঃ) নবজীবনোৎপাদক (ইন্দবঃ) ভক্তিরস বা জ্ঞান-বিজ্ঞানের দীপ্তি প্রাপ্ত হয়েছে।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top