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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 134 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 134/ मन्त्र 3
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - निचृत्साम्नी पङ्क्तिः सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
    48

    इ॒हेत्थ प्रागपा॒गुद॑ग॒धरा॒क्स्थाली॑पाको॒ वि ली॑यते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒ह । इत्थ॑ । प्राक् । अपा॒क् । उद॑क् । अ॒ध॒राक् । स्थाली॑पा॒क: । वि । ली॑यते ॥१३४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इहेत्थ प्रागपागुदगधराक्स्थालीपाको वि लीयते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इह । इत्थ । प्राक् । अपाक् । उदक् । अधराक् । स्थालीपाक: । वि । लीयते ॥१३४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 134; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    बुद्धि बढ़ाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (इह) यहाँ (इत्थ) इस प्रकार ................ [म० १]−(स्थालीपाकः) स्थाली पाक [बटले वा कड़ाही में पका हुआ भोजन पदार्थ] (वि) विविध प्रकार (लीयते) मिलता है ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य को सब स्थान में सदा भोजन आदि पदार्थ प्राप्त करना चाहिये ॥३, ४॥

    टिप्पणी

    ३−(स्थालीपाकः) स्थाचतिमृजेरालज्०। उ० १।११६। ष्ठा गतिनिवृत्तौ−आलच् ङीप्+डुपचष् पाके−घञ्। स्थाल्यां सूपादिपचन्यां पच्यते। पक्वभोजनपदार्थः (वि) विविधम् (लीयते) लीङ् श्लेषणे। श्लिष्यते। संयुज्यते ॥

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    विषय

    स्थालीपाक-विलय

    पदार्थ

    १. (इह) = यहाँ (इत्थ) = सचमुच (प्राग् अपाम् उदग् अधराग्) = पूर्व, पश्चिम, उत्तर व दक्षिण में वे प्रभु सर्वत्र विद्यमान हैं। ३. ऐसा अनुभव होने पर (स्थालीपाक:) = कुण्ड में [देगची में] पकाते रहने की क्रिया (विलीयते) = विलीन हो जाती है-नष्ट हो जाती है। यह व्यक्ति हर समय खाता पीता ही नहीं रहता। खान-पान में ही मजा लेने से ऊपर उठकर यह अध्यात्म उन्नति की ओर अग्नसर होता है?

    भावार्थ

    हम प्रभु की सर्वव्यापकता को अनुभव करें और हर समय पशुओं की तरह चरते ही न रहें। अध्यात्म-उन्नति में प्रवृत्त हों।

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    भाषार्थ

    (इह) इस पृथिवी में (एत्थ) आओ, जन्म लो—(प्राक्, अपाक्, उदक्, अधराक्) चाहे पृथिवी के पूर्व आदि किसी भी भू-भाग में जन्म लो—सर्वत्र (स्थालीपाकः) स्थालीपाक (विलीयते) अच्छी प्रकार पकाया जाता है।

    टिप्पणी

    [स्थालीपाकः—खाने के लिए थाली में रखा पका भोजन। वैदिक आर्थिक नीति में भोजन के निमित्त, सबके लिए भोज्यसामग्री का प्रबन्ध होना अत्यावश्यक है। यज्ञकर्म के लिए भी स्थालीपाक पकाया जाता है। इससे मन्त्र में यज्ञकर्मों के करने का भी विधान किया है। ‘विलीयते’ का अभिप्राय ‘विलयन’ भी सम्भव है, अर्थात् समाप्त करना। विलयन=removing, taking away(आप्टे)। अर्थात् गृहस्थी को चाहिए कि आयु के नियत काल में स्थालीपाक आदि क्रियाओं का परित्याग कर, वनस्थ या संन्यास धारण कर, कन्द मूल फलों पर जीवन-निर्वाह करे।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    Here thus on earth, east, west north or south, holy food is prepared for the sacred fire of yajna.

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    Translation

    Here, thus in east, in north and in south the cereal prepartion for Yajna is available or the world matured in time is to dissolve.

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    Translation

    Here, thus in east, in north and in south the cereal preparation for Yajna is available or the world matured in time is to dissolve.

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    Translation

    In this world, below, and material objects get ripened and there after annihilated or disintegrated, like the leaves of the pipal tree, falling off, when dry.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(स्थालीपाकः) स्थाचतिमृजेरालज्०। उ० १।११६। ष्ठा गतिनिवृत्तौ−आलच् ङीप्+डुपचष् पाके−घञ्। स्थाल्यां सूपादिपचन्यां पच्यते। पक्वभोजनपदार्थः (वि) विविधम् (लीयते) लीङ् श्लेषणे। श्लिष्यते। संयुज्यते ॥

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