अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 140/ मन्त्र 4
यद॒द्य वां॑ नासत्यो॒क्थैरा॑चुच्युवी॒महि॑। यद्वा॒ वाणी॑भिरश्विने॒वेत्का॒ण्वस्य॑ बोधतम् ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । अ॒द्य । वा॒म् । ना॒स॒त्या॒ । उ॒क्थै: । आ॒ऽचु॒च्यु॒वी॒महि॑ ॥ यत् । वा॒ । वाणी॑भि: । अ॒श्वि॒ना॒ । ए॒व । इत् । का॒ण्वस्य॑ । बो॒ध॒त॒म् ॥१४०.४॥
स्वर रहित मन्त्र
यदद्य वां नासत्योक्थैराचुच्युवीमहि। यद्वा वाणीभिरश्विनेवेत्काण्वस्य बोधतम् ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । अद्य । वाम् । नासत्या । उक्थै: । आऽचुच्युवीमहि ॥ यत् । वा । वाणीभि: । अश्विना । एव । इत् । काण्वस्य । बोधतम् ॥१४०.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
दिन और रात्रि के उत्तम प्रयोग का उपदेश।
पदार्थ
(नासत्या) हे सदा सत्य स्वभाववाले दोनों ! [दिन-राति] (अद्य) आज [यत्] जैसे (उक्थैः) कहने योग्य शास्त्रों से, (वा) अथवा (यत्) जैसे (वाणीभिः) अपनी वाणियों से (वाम्) तुम दोनों को (आचुच्युवीमहि) हम लावें, (अश्विना) हे दोनों अश्वी ! [व्यापक दिन-राति] (एव इत्) वैसे ही (काण्वस्य) बुद्धिमान् के किये कर्म का (बोधतम्) तुम दोनों ज्ञान करो ॥४॥
भावार्थ
मनुष्य शीघ्र शास्त्रों में प्रवीण होकर अपने वचन के पक्के होवें और प्राप्त अवसर का यथावत् प्रयोग करें ॥४॥
टिप्पणी
४−(यत्) यथा (अद्य) अस्मिन् दिने (वाम्) युवाम् (नासत्या) म० १। हे सदा सत्यस्वभावौ (उक्थैः) कथनीयशास्त्रैः (आचुच्युवीमहि) आगमयेम (यत्) यथा (वा) अथवा (वाणीभिः) वाग्भिः (अश्विना) म० २। हे व्यापकौ। अहोरात्रौ। अन्यद् गतम्-१३९।३ ॥
विषय
उक्थैः-वाणीभिः
पदार्थ
१. हे (नासत्या) = हमारे जीवनों से असत्यों को दूर करनेवाले प्राणापानो! (यत्) = जब (अद्य) = आज हम (उक्थैः) = स्तोत्रों के द्वारा (वाम्) = आपको (आचुच्युवीमहि) = अपने अन्दर प्राप्त कराएँ। (वा) = अथवा (यत्) = जब (वाणीभि:) = इन ज्ञान की वाणियों के द्वारा आपको अपने में प्राप्त कराएँ तो हे (अश्विना) = प्राणापानो! (काण्वस्य इव) = समझदार मेधावी पुरुष की भाँति (इत्) = निश्चय से (बोधतम्) = हमारा ध्यान करो। हम आपके अनुग्रह से समझदार बनें। प्राणसाधना में प्रगति के लिए प्रभु-स्तवन [उक्थ] व स्वाध्याय [वाणी] सहायक होते हैं। वस्तुत: इनके द्वारा ही प्राणसाधना में हम प्रगति कर पाते हैं। साधित प्राण हमारी बुद्धि का वर्धन करते हुए हमारा रक्षण करते हैं।
भावार्थ
हम प्रभु-स्तवन व स्वाध्याय द्वारा प्राणों की साधना में प्रगति करने में समर्थ हों। साधित प्राण हमारी बुद्धि का वर्धन करते हुए हमारा रक्षण करें।
भाषार्थ
(नासत्या) हे असत्य व्यवहारों से रहित अश्वियो! (यद् अद्य) जो आज, अर्थात् तुम्हें तुम्हारे पदों पर नियुक्त करते समय, (उक्थैः) वैदिक सूक्तों द्वारा (वाम्) तुम दोनों को, हम सबने मिलकर (आ चुच्युवीमहि) तुम्हारे कर्त्तव्यों का निर्देश किया है, या मेघ के सदृश तुम दोनों पर कर्त्तव्यामृत की वर्षा की है, तथा (यद् वा) जो कुछ (अश्विना) हे अश्वियो! हमने (वाणीभिः) निजवाणियों द्वारा तुम्हें तुम्हारे कर्तव्यों का बोध कराया है, (एव इत्) उन्हें ठीक-ठीक प्रकार से (काण्वस्य) मेधावियों द्वारा शासित प्रजावर्ग को (बोधतम्) तुम दोनों जता दिया करो।
विषय
सत्यपालक दो अधिकारी।
भावार्थ
हे (नासत्यौ) सदा सत्य व्यवहारवान् ! हे (अश्विनौ) विद्यवान् एवं पदाधिकार पर स्थित पुरुषो ! (वां) तुम दोनों के (उक्थैः) प्रशंसनीय वचनों से हम विद्वान् पुरुष (आचुच्यवीमहि) बलों को बढ़ावें और (यद्) जब हम (वाणीभिः) उत्तम वाणियों से (वां आचुच्यवीमहि) तुम दोनों को ज्ञानोपदेश करें उस समय तुम दोनों (काण्वस्य) विद्वान् पुरुष को भी (बोधतम्) ज्ञान का प्रदान करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अश्विनौ देवते। शशकर्ण ऋषिः। अनुष्टुभः। पञ्चर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
Ashvins, ever dedicated to the divine truth of nature’s law, when we invoke you with hymns of adoration or by yajnic sessions or by words of yajakas today, pray take it that the call is the conscientious voice of the visionary sage in search for the light of his mission.
Translation
When, O Nasatyas, truthful ones we this day make you speed hither with our praises. You O teacher and preacher, remember the most learned man specially.
Translation
When, O Nasatyas, truthful ones we this day make you speed hither with our praises. You O teacher and preacher, remember the most learned man specially.
Translation
O Asvins, who never fail in your actions or effects when we enhance your power and effect by these descriptions of your attributes today, you should,, at the same time, enlighten the wise and the intelligent person by your speeches.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(यत्) यथा (अद्य) अस्मिन् दिने (वाम्) युवाम् (नासत्या) म० १। हे सदा सत्यस्वभावौ (उक्थैः) कथनीयशास्त्रैः (आचुच्युवीमहि) आगमयेम (यत्) यथा (वा) अथवा (वाणीभिः) वाग्भिः (अश्विना) म० २। हे व्यापकौ। अहोरात्रौ। अन्यद् गतम्-१३९।३ ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
অহোরাত্রসুপ্রয়োগোপদেশঃ
भाषार्थ
(নাসত্যা) হে সদা সত্য স্বভাবযুক্ত উভয়! [দিন-রাত] (অদ্য) আজ [যৎ] যেমন (উক্থৈঃ) বলার যোগ্য শাস্ত্রসমূহের দ্বারা, (বা) অথবা (যৎ) যেমন (বাণীভিঃ) নিজের বাণীসমূহের দ্বারা (বাম্) তোমাদের উভয়কেই (আচুচ্যুবীমহি) আমরা নিয়ে আসি, (অশ্বিনা) হে উভয় অশ্বী! [ব্যাপক দিন-রাত] (এব ইৎ) তেমনই (কাণ্বস্য) বুদ্ধিমানদের কৃত কর্মের (বোধতম্) তোমরা উভয়ে জ্ঞান করো ॥৪॥
भावार्थ
মনুষ্য শীঘ্র শাস্ত্রে প্রবীণ হয়ে নিজের বচনে পরিপক্ক হোক এবং প্রাপ্ত সময়ের/সুযোগের যথাবৎ প্রয়োগ করুক ॥৪॥
भाषार्थ
(নাসত্যা) হে অসত্য ব্যবহাররহিত অশ্বিগণ! (যদ্ অদ্য) যে আজ, অর্থাৎ তোমাদের পদে নিযুক্ত করার সময়, (উক্থৈঃ) বৈদিক সূক্ত দ্বারা (বাম্) তোমাদের, আমরা সবাই মিলে (আ চুচ্যুবীমহি) তোমাদের কর্ত্তব্যের নির্দেশ করেছি, বা মেঘের সদৃশ তোমাদের ওপর কর্ত্তব্যামৃতের বর্ষা করেছি, তথা (যদ্ বা) যা কিছু (অশ্বিনা) হে অশ্বিগণ! আমরা (বাণীভিঃ) নিজবাণী দ্বারা তোমাদের কতর্ব্যের বোধ করিয়েছি, (এব ইৎ) তা সঠিক প্রকারে (কাণ্বস্য) মেধাবীদের দ্বারা শাসিত প্রজাবর্গকে (বোধতম্) তোমরা বোধ করাও।
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