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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 3
    ऋषिः - गृत्समदो मेधातिथिर्वा देवता - इन्द्र छन्दः - एकवसानार्च्युष्णिक् सूक्तम् - सूक्त-२
    86

    इन्द्रो॑ ब्र॒ह्मा ब्राह्म॑णात्सु॒ष्टुभः॑ स्व॒र्कादृ॒तुना॒ सोमं॑ पिबतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑: । ब्र॒ह्मा । ब्राह्म॑णात् । सु॒ऽस्तुभ॑: । सु॒ऽअ॒र्कात् । ऋ॒तुना॑ । सोम॑म् । पि॒ब॒तु॒ ॥२.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रो ब्रह्मा ब्राह्मणात्सुष्टुभः स्वर्कादृतुना सोमं पिबतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र: । ब्रह्मा । ब्राह्मणात् । सुऽस्तुभ: । सुऽअर्कात् । ऋतुना । सोमम् । पिबतु ॥२.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विद्वानों के व्यवहार का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्रः) परमऐश्वर्यवाला (ब्रह्मा) ब्रह्मा [वेदज्ञाता पुरुष] (सुष्टुभः) बड़े स्तुतियोग्य, (स्वर्कात्) बड़े पूजनीय (ब्राह्मणात्) ब्राह्मण [वेदोक्त ज्ञान] से (ऋतुना) ऋतु के अनुसार (सोमम्) उत्तम ओषधियों के रस को (पिबतु) पीवे ॥३॥

    भावार्थ

    वेदज्ञानी पुरुष वेदज्ञान से सदा सुख प्राप्त करे ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् (ब्रह्मा) वेदज्ञाता पुरुषः (ब्राह्मणात्) वेदोक्तज्ञानात्। शिष्टं पूर्ववत् ॥

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    विषय

    . इन्द्रः ब्रह्मा [जितेन्द्रियता+ज्ञान]

    पदार्थ

    १. (इन्द्र:) = जितेन्द्रिय (ब्रह्मा) = ज्ञानी पुरुष (ब्राह्मणात्) = ज्ञान-प्राप्ति के कर्म के द्वारा (ऋतुना) = समय रहते (सोमं पिबतु) = सोम का पान करे। जितेन्द्रिय बनकर सारे खाली समय को ज्ञान-प्राप्ति में लगाना ही सोम-रक्षण का सर्वोत्तम साधन है। २. ज्ञान-प्राप्ति में लगे रहने के द्वारा वह इन्द्र (सुष्टुभः) = वासनाओं के सम्यक् निरोध से तथा (स्वर्कात्) = प्रभु-पूजन से सोम का रक्षण करने में समर्थ होगा।

    भावार्थ

    हम जितेन्द्रिय व ज्ञानी बनें। ज्ञान-प्राप्ति में लगे रहना हमें वासनाओं के आक्रमण से बचाएगा और प्रभु-पूजन में प्रवृत्त करेगा। यही सोम-रक्षण का मार्ग है।

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    भाषार्थ

    (सुष्टुभः) उत्तम-स्तुतियोंवाले, (स्वर्कात्) उत्तम-अर्चना के साधनभूत मन्त्रों का स्वाध्याय और जप करनेवाले, (ब्राह्मणात्) ब्रह्मवेत्ता उपासक से (ब्रह्मा) चतुर्वेदविद् (इन्द्रः) परमेश्वर, (ऋतुना) ऋतु-ऋतु में (सोमम्) भक्तिरस का (पिबतु) पान करे।

    टिप्पणी

    [ब्रह्मा=ब्रह्मा या ब्रह्म आ+पिबतु; अथवा ब्रह्मा=बृह वृद्धौ, सद्गुणों में बढ़ा हुआ]

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    विषय

    परमेश्वर की उपासना।

    भावार्थ

    (इन्द्रः) इन्द्र ऐश्वर्यवान्, विभूर्तिमान् (ब्रह्मा) ब्रह्मज्ञानी पुरुष ब्रह्मके महान् सर्वदेवमय, ज्ञानमय, वेदमय या वेद प्रतिपादित या ब्रह्माण्डमय, शक्तिस्वरूप, (सुस्तुभः) उत्तम स्तुति करने योग्य (स्वर्कात) परम अर्चनीय (ब्राह्मणात्) परमेश्वर से (ऋतुना) अपने प्राणबल से (सोमं पिबतु) सोम रस का पान करे। पिबेन्द्र स्वाहा प्रहुतं वषटकृतं हीत्रादा सोमं प्रथमोय ईशिषे ऋ० २। ३६ १॥ ब्राह्मणादिन्दराधसः पिवासोमं ऋतूँरमु। इति ऋ० १ । १५ । ५ ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समदो मेधातिथिर्वा ऋषिः। मरुदिन्द्राग्निर्द्रविणोदाः देवताः। १, २ विराड गायत्र्यौ। आर्ष्युष्णिक्। ४ साम्नी त्रिष्टुप्। चतुऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Paramatma

    Meaning

    Let Indra Brahma, the presiding priest of yajna accept soma from the holy vessel of the sagely vedic scholar’s heart sanctified by the chant of sacred Rks, in accordance with the seasons.

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    Translation

    Let the mighty Indra (Sun) drink the juice of herbs from the praisworthy extolled Brahmana, the chief priest accrding to the season.

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    Translation

    Let the mighty Indra (Sun) drink the juice of herbs from the praiseworthy. extolled Brahmana, the chief priest accrding-to the season.

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    Translation

    Let the fortunate Vedic scholar, well-versed in all the four Vedas drink the medicinal juice, according to the requirement of the season from the praiseworthy and respectable Brahman, who is fully conversant with Vedic sciences.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् (ब्रह्मा) वेदज्ञाता पुरुषः (ब्राह्मणात्) वेदोक्तज्ञानात्। शिष्टं पूर्ववत् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    বিদুষাং ব্যবহারোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্রঃ) পরমৈশ্বর্যবান্ (ব্রহ্মা) ব্রহ্মা [বেদজ্ঞাতা পুরুষ] (সুষ্টুভঃ) অত্যন্ত স্তুতিযোগ্য, (স্বর্কাৎ) অত্যন্ত পূজনীয় (ব্রাহ্মণাৎ) ব্রাহ্মণ [বেদোক্ত জ্ঞান] দ্বারা (ঋতুনা) ঋতু অনুসারে (সোমম্) উত্তম ঔষধিসমূহের রস (পিবতু) পান করুক॥৩॥

    भावार्थ

    বেদজ্ঞানী পুরুষ বেদজ্ঞান দ্বারা সর্বদা সুখ প্রাপ্ত করুক ॥৩॥

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    भाषार्थ

    (সুষ্টুভঃ) উত্তম-স্তুতিযুক্ত, (স্বর্কাৎ) উত্তম-অর্চনার সাধনভূত মন্ত্র-সমূহের স্বাধ্যায়ী এবং জপকারী, (ব্রাহ্মণাৎ) ব্রহ্মবেত্তা উপাসক হতে (ব্রহ্মা) চতুর্বেদবিদ্ (ইন্দ্রঃ) পরমেশ্বর, (ঋতুনা) প্রত্যেক ঋতুতে (সোমম্) ভক্তিরসের (পিবতু) পান করেন।

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