Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 24 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 9
    ऋषिः - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२४
    31

    त्वां सु॒तस्य॑ पी॒तये॑ प्र॒त्नमि॑न्द्र हवामहे। कु॑शि॒कासो॑ अव॒स्यवः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वाम् । सु॒तस्य॑ । पी॒तये॑ । प्र॒त्नम् । इ॒न्द्र॒ । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥ कु॒शि॒कास॑: । अ॒व॒स्यव॑: ॥२४.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वां सुतस्य पीतये प्रत्नमिन्द्र हवामहे। कुशिकासो अवस्यवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वाम् । सुतस्य । पीतये । प्रत्नम् । इन्द्र । हवामहे ॥ कुशिकास: । अवस्यव: ॥२४.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 24; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    विद्वानों के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] (त्वां प्रत्नम्) तुझ पुराने का (सुतस्य) सिद्ध किये हुए रस के (पीतये) पीने के लिये (कुशिकासः) मिलनेवाले, (अवस्यवः) रक्षा चाहनेवाले हम (हवामहे) बुलाते हैं ॥९॥

    भावार्थ

    मनुष्य अनुभवी पुराने बुद्धिमानों से आदर करके शिक्षा लेवें ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(त्वाम्) (सुतस्य) संस्कृतस्य रसस्य (पीतये) पानाय (प्रत्नम्) नश्च पुराणे प्रात्। वा० पा० ।४।२। प्र-त्नप्-प्रत्ययः। पुराणम्-निघ० ३।२७। अनुभविपुरुषम् (इन्द्र) (हवामहे) आह्वयामः (कुशिकासः) वृश्चिकृष्योः किकन्। उ० २।४०। कुश संश्लेषणे-किकन्, असुगागमः। कुशिको राजा बभूव क्रोशतेः शब्दकर्मणः क्रंशतेर्वा स्यात् प्रकाशयतिकर्मणः साधु विक्रोशयितार्थानामिति वा-निरु० २।२। संगन्तारो वयम् (अवस्यवः) अ० २०।१४।१। रक्षाकामः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    कुशिकासः अवस्यवः

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = शत्रुओं के विद्रावक प्रभो! (सुतस्य) = उत्पन्न हुए सोम के (पीतये) = पान के लिए (प्रत्नम्) = सनातन (त्वम्) = आपको (हवामहे) = पुकारते हैं। प्रभु का आराधन (वासना) = विद्रावण द्वारा सोम रक्षण का साधन बनता है। २. (अवस्यवः) = रक्षण की कामनावाले हम (कुशिकासः) = [कुश संश्लेषणे]-प्रभु के साथ आलिंगन करनेवाले होते हैं। प्रभु के साथ मेल के द्वारा ही [क्रंशतेर्वा प्रकाशयति कर्मणः] ये सपने हृदयों को प्रकाशमय बनाते हैं।

    भावार्थ

    हम उत्पन्न सोम के रक्षण के लिए सनातन प्रभु का आराधन करते हैं। प्रभु के आराधन से ही हृदय को प्रकाशमय बना पाते हैं। प्रभु के आराधन से प्रशस्त इन्द्रियोंवाला यह 'गोतम' बनता है। यह गोतम अगले सूक्त का ऋषि है -

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (इन्द्र) हे परमेश्वर! (कुशिकासः) भक्ति और योग के विषयों पर प्रकाश डालनेवाले, (अवस्यवः) तथा राग-द्वेष से आत्मरक्षा चाहनेवाले हम उपासक (सुतस्य पीतये) निष्पादित भक्तिरस के पानार्थ (त्वां प्रत्नम्) आप पुराण पुरुष का (हवामहे) आह्वान करते हैं।

    टिप्पणी

    [कुशिकः=“क्रं शतेर्वा स्यात् प्रकाशयतिकर्मणः, साधु विक्रोशयिताऽर्थानामिति वा” (निरु০ २.७.२५)। जो वस्तु-तत्त्वों का प्रकाश करे, या सम्यक् प्रकार से पदार्थों की व्याख्या करे, उसे ‘कुशिक’ कहते हैं।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Self-integration

    Meaning

    Indra, veteran lord and ruler of the world, we children of knowledge and humility invoke and invite you to have a drink of the soma of our own making for the sake of protection and progress.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O learned one, we, the enlightened ones and desirous of safety, call you, the matured one in age and understanding for drinking the juice prepared by us.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O learned one, we, the enlightened ones and desirous of safety, call you, the matured one in age and understanding for drinking the juice prepared by us.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O king or soul, we, the enlightened persons, well-versed in speech or learning, seeking self-protection, ever call thee, the old respectable one, for guarding as well as enjoying the generated wealth and fortune.

    Footnote

    Kushitas does not refer to the members of the family of Kushika, but the learned Persons, well-versed in speech, etc. Vedas contain no history of any king or individual.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(त्वाम्) (सुतस्य) संस्कृतस्य रसस्य (पीतये) पानाय (प्रत्नम्) नश्च पुराणे प्रात्। वा० पा० ।४।२। प्र-त्नप्-प्रत्ययः। पुराणम्-निघ० ३।२७। अनुभविपुरुषम् (इन्द्र) (हवामहे) आह्वयामः (कुशिकासः) वृश्चिकृष्योः किकन्। उ० २।४०। कुश संश्लेषणे-किकन्, असुगागमः। कुशिको राजा बभूव क्रोशतेः शब्दकर्मणः क्रंशतेर्वा स्यात् प्रकाशयतिकर्मणः साधु विक्रोशयितार्थानामिति वा-निरु० २।२। संगन्तारो वयम् (अवस्यवः) अ० २०।१४।१। रक्षाकामः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top