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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 45 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 45/ मन्त्र 2
    ऋषिः - शुनःशेपः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-४५
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    स्तो॒त्रं रा॑धानां पते॒ गिर्वा॑हो वीर॒ यस्य॑ ते। विभू॑तिरस्तु सू॒नृता॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्तो॒त्रम् । रा॒धा॒ना॒म् । प॒ते॒ । गिर्वा॑ह: । वी॒र॒ । यस्य॑ । ते॒ ॥ विऽभू॑ति: । अ॒स्तु॒ । सू॒नृता॑ ॥४५.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्तोत्रं राधानां पते गिर्वाहो वीर यस्य ते। विभूतिरस्तु सूनृता ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्तोत्रम् । राधानाम् । पते । गिर्वाह: । वीर । यस्य । ते ॥ विऽभूति: । अस्तु । सूनृता ॥४५.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 45; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सभापति के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (राधानां पते) हे धनों के स्वामी ! (गिर्वाहः) हे विद्याओं के पहुँचानेवाले ! (वीर) हे वीर ! (यस्य ते) जिस तेरी (स्तोत्रम्) स्तुति है, [उस तेरी] (विभूतिः) विभूति [ऐश्वर्य] (सूनृता) प्यारी और सच्ची वाणी (अस्तु) होवे ॥२॥

    भावार्थ

    प्रधान पुरुष अनेक धनों को प्राप्त होकर उत्तम कर्मों से अपनी स्तुति बढ़ावें और हितकारी सच्ची बात बोलने को ही अपना ऐश्वर्य समझे ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(स्तोत्रम्) स्तुतिम् (राधानाम्) धनानाम् (पते) पालक (गिर्वाहः) अ० २।३।४। हे गिरां विद्यानां प्रापक (वीर) हे निर्भय (यस्य) (ते) तव (विभूतिः) ऐश्वर्यम् (अस्तु) (सूनृता) अ० ३।१२।२। प्रियसत्यात्मिका वाक् ॥

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    विषय

    राधानां पते

    पदार्थ

    १. हे (वीर) = शत्रुओं को विशेषरूप से कम्पित करनेवाले! (राधानां पते) = सोम-रक्षण द्वारा सफलताओं के स्वामिन् ! (गिर्वाह:) = ज्ञान की वाणियों को धारण करनेवाले जीव (यस्य ते) = जिस तेरा (स्तोत्रम्) = यह प्रभु-स्तवन चलता है, उस तेरी (विभूतिः अस्तु) = विशिष्ट ऐश्वर्यशालिता हो तथा ऐश्वर्य के साथ (सूनृता) = सदा प्रिय, सत्य वाणी हो।

    भावार्थ

    सोम-रक्षण करनेवाला पुरुष वीर तो बनता ही है। वह जीवन में कभी असफल नहीं होता। यह ज्ञान की वाणियों का धारण करनेवाला बनता है। ऐसा बनकर सदा प्रभु-स्तवन करता है। परिणामत: विशिष्ट ऐश्वर्य प्राप्त करके भी सदा प्रिय, सत्य वाणीवाला-सौम्य स्वभाव होता है।

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    भाषार्थ

    (राधानां पते) हे आराधनारूपी धनों के रक्षक! (गिर्वाहः) हे वेदवाणियों का वहन करनेवाले! (वीर) हे विशिष्ट प्रेरणाओं के दाता! (यस्य ते) जिस आपका (स्तोत्रम्) वैदिक स्तुतिसमूह है, वह (सूनृता) प्रिय तथा सत्यरूप वेदवाणी (विभूतिः अस्तु) आपकी विभूति है। [वीर=वि+ईर्।]

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    विषय

    आत्मा परमात्मा

    भावार्थ

    हे (राधानां पते) ऐश्वर्यों के स्वामिन् ! हे (वीर) वीर ! वीर्यवान् ! (यस्य) जिस (ते) तेरा (स्तोत्रं) स्वरूप ही स्तुति करने योग्य है उस तेरी (विभूतिः) विविध प्रकार की ऐश्वर्य सम्पदा ही (सू नृता) शुभ सत्य वाणी स्वरूप (अस्तु) हो। अर्थात् परमेश्वर सर्वशक्तिमान् सर्वैश्वर्यवान् और सत्य ज्ञानमय है इसी प्रकार आत्मा भी विभूतिमय वीर्यवान् सत्य ज्ञानमय हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    देवरातः शुनः शेष ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    India Devata

    Meaning

    Indra, celebrated in the divine voice of revelation, creator and guardian of the world and its wealth, mighty lord of omnipotence, great and true is your glory, and may our praise and prayer to you be truly realised for our strength and joy of life.

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    Translation

    O master of wealth, O dissiminator of learnings (Girvahah), O bold one, the praise of you whose power is pleasantly true, is due.

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    Translation

    O master of wealth, O disseminator of learning’s (Girvahah), O bold one, the praise of you whose power is pleasantly true, is due.

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    Translation

    O Brave Lord of fortunes or riches. Worthy of respectful praise, Whose alone is this praise song. May Thy manifold bounties be true and everlasting.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(स्तोत्रम्) स्तुतिम् (राधानाम्) धनानाम् (पते) पालक (गिर्वाहः) अ० २।३।४। हे गिरां विद्यानां प्रापक (वीर) हे निर्भय (यस्य) (ते) तव (विभूतिः) ऐश्वर्यम् (अस्तु) (सूनृता) अ० ३।१२।२। प्रियसत्यात्मिका वाक् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    সভাধ্যক্ষকৃত্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (রাধানাং পতে) হে ধনের স্বামী! (গির্বাহঃ) হে বিদ্যা প্রেরণকারী/প্রদানকারী ! (বীর) হে বীর! (যস্য তে) এই যা তোমার (স্তোত্রম্) স্তুতি, [তা তোমার] (বিভূতিঃ) বিভূতি [ঐশ্বর্য] (সূনৃতা) এবং সত্যবাণী (অস্তু) হোক॥২॥

    भावार्थ

    প্রধান পুরুষ অনেক ধন প্রাপ্ত হয়ে উত্তমকর্ম দ্বারা নিজের স্তুতি বৃদ্ধি করুক এবং হিতকারী সত্য কথনকেই নিজের ঐশ্বর্য মনে করুক ॥২॥

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    भाषार्थ

    (রাধানাং পতে) হে আরাধনারূপী ধনের রক্ষক! (গির্বাহঃ) হে বেদবাণীর বহনকারী! (বীর) হে বিশিষ্ট প্রেরণাদাতা! (যস্য তে) যে আপনার (স্তোত্রম্) বৈদিক স্তুতিসমূহ আছে, তা (সূনৃতা) প্রিয় তথা সত্যরূপ বেদবাণী (বিভূতিঃ অস্তু) আপনার বিভূতি। [বীর=বি+ঈর্।]

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